विषय : असमानता

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Sanjeev Goyal

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Dec 13, 2025, 10:01:59 AM (14 hours ago) Dec 13
to dwarka-residents

 

PMOPG/E/2025/0187089


संबंधित मंत्रालय : विधि आयोग

 

हमारे राष्ट्र में समानता का सिद्धांत स्थापित है, जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं तथा किसी भी अपराध के लिए समान दंड का प्रावधान है। किंतु इस विषय पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनका समाज पर असाधारण तथा दूरगामी दुष्प्रभाव पड़ता है।

 

उदाहरणस्वरूप, देश के शीर्ष नेतृत्व पर किया गया हत्या का प्रयास केवल एक व्यक्ति की हत्या का प्रयास नहीं होता, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र अथवा राज्य को अस्थिर करने का प्रयास होता है, जिसकी भारी कीमत समाज को चुकानी पड़ती है। हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री पर हुए जानलेवा हमले ने इस विषय को पुनः प्रासंगिक बना दिया है। किन्तु प्रश्न यह है कि ऐसे अपराध में क्या दंड निर्धारित होगा? अधिकतम—कुछ वर्षों का कारावास। पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारे आज मुक्त हो चुके हैं; जबकि एक प्रधानमंत्री की हत्या पूरे राष्ट्र को झकझोर कर रख देती है, नागरिकों का आत्मविश्वास हिल जाता है और सम्पूर्ण व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। अभी कुछ सप्ताह पूर्व खबर थी की हमारे यशस्वी प्रधान मंत्री पर भी कुछ इसी प्रकार के दुस्साहस का प्रयास किया गया 

 

किसी सामान्य नागरिक की हत्या भी निंदनीय है और उसके परिवार को गहरा आघात पहुँचाती है, किन्तु राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व पर आक्रमण का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक और दीर्घकालिक होता है। अतः राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्रियों जैसे शीर्ष पदों के विरुद्ध किए गए अपराधों के लिए विशेष और कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए, जैसे—अनिवार्य मृत्युदंड तथा सभी प्रकार की संपत्ति की अनिवार्य जब्ती।

 

इसी प्रकार, भ्रष्टाचार के मामलों में भी वर्तमान व्यवस्था के अनुसार सभी के लिए एक समान दंड का प्रावधान है। यह आश्चर्य का विषय है कि एक चपरासी और एक केबिनेट मंत्री—दोनों को समान तराजू में तोला जाता है। क्या वे जनप्रतिनिधि, जिन्हें जनता ने अधिक दायित्व निभाने हेतु चुना है, अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण आचरण के लिए बाध्य नहीं होने चाहिए? सांसद, विधायक, पार्षद अथवा पञ्च —क्या इन सभी को सामान्य कर्मचारियों की श्रेणी में रखकर देखा जा सकता है?

 

जनता जिन व्यक्तियों को अपना आदर्श मानती है—जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद, विधायक, पार्षद, पंच, उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संयुक्त सचिव एवं उससे वरिष्ठ अधिकारी, तथा सभी सैन्य अधिकारी—उनके द्वारा किया गया भ्रष्टाचार समाज की नैतिक संरचना को कहीं अधिक गहराई से क्षति पहुँचाता है।

 

सामान्य पदों पर कार्यरत व्यक्तियों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार भी दंडनीय है, किंतु उसका प्रभाव सीमित होता है, क्योंकि वे समाज के मानक–निर्धारक नहीं हैं। इसीलिए, एक विशिष्ट श्रेणी के लिए अधिक कठोर दंड तथा उच्च मानदंड निर्धारित किए जा सकते हैं, जिससे समाज में नैतिकता और उत्तरदायित्व के प्रति विश्वास पुनः स्थापित हो।

 

मेरा अनुरोध है विधि मंत्रालय इस विषय पर मंथन करे

   


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