GOVUC/E/2024/0000738
04/05/2024
उत्तराखंड सरकार
व्यथा : जंगल की आग को नियंत्रित करने का उपाय।
पेड़ों से गिरी सूखी पत्तियां पृथ्वी के लिए प्राकृतिक उर्वरक हैं। किन्तु यही वनों की आग का प्रमुख कारण भी है। इस तथ्य की पुष्टि के अनेक सुबूत हैं की अधिकांश मामलों में आग का उतरदायित्व मानव का है। तापमान केवल इसमे सहायक हो सकता है पर आग मनुष्यों द्वारा ही लगाई जाती है। सरकार प्रतिवर्ष आग बुझाने के लिए करोड़ों रूपये खर्च करती है परंतु फिर भी समस्या बढ़ती ही जा रही है। अब सुना है की नजर रखने के किए हर जगह कैमरे लगाने पर विचार किया जा रहा है हजारों हेक्टेअर में फैले वनों में कहाँ तक सरकार कैमरे लगाएगी और उनको देखने के लिए कितने आदमी लगाएगी? ये भी एक सफ़ेद हाथी बन जाएँगे।
हमें समस्या को जड़ से पकड़ना होगा। अग्नि लगाने कि आधारभूत समस्या गिरते पत्तों से शुरू होती है। जगह जगह लगे सूखे पत्तों के ढेर से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीण उनमे आग लगा देते हैं और वो सब जगह फैल जाती है।
अगर हम पत्तियों का ढेर हटाने का प्रबंध कर दें तो बहुत हद तक इससे छुटकारा पाया जा सकता है। हमें एक छोटे से यंत्र कि जरूरत है जो कि इन सूखे पत्तों को पीस कर चूरा कर दे। वो चूरा मिट्टी में मिल जाएगा और पत्तों का ढेर दिखाई नहीं देगा। यंत्र ऐसा होने चाहिए जिसे आसानी से कर्मचारी कहीं भी हाथ में ले जा सकें। यह जिम्मेवारी ग्राम पंचायतों को भी दी जा सकती है। इस गतिविधि को नरेगा में सम्मिलित कर रोजगार के अवसर भी उत्पन्न किए जा सकते हैं। ऐसा यंत्र सरलता से कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बना सकता है। यह क्रशिंग मशीन ऐसी आग की घटनाओं को बहुत कम कर सकती है। यह छोटा सा उपकरण जंगल कि आग को नियंत्रण में लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इसके अलावा आग लगाने वालों कि सूचना देने वालों के लिए बहुत ही आकर्षक पुरस्कार की घोषणा होनी चाहिए।
इन उपायों का प्रयोग कर इस भयावह समस्या को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा सकता है।