PMOPG/E/2025/0184858
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संबंधित मंत्रालय : विधि/नीति आयोग
भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत भाषायी एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना एवं संचालन का अधिकार प्रदान किया गया है। इसी संवैधानिक संरक्षण के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाएँ संचालित होती हैं, जिनमें मदरसे सर्वाधिक चर्चा में रहते हैं ।
वर्तमान परिस्थितियों में यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि क्या अल्पसंख्यक-शैक्षिक संस्थाओं से जुड़े प्रावधान समय-समय पर समीक्षा नहीं होनी चाहिए? —विशेषकर तब, जब जनसांख्यिकीय संरचना (तीन गुना मुस्लिम आबादी), शिक्षा नीति, और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताएँ पिछले 70 वर्षों में उल्लेखनीय रूप से परिवर्तित हो चुकी हैं तथा अनेक रिपोर्टों एवं जाँचों में यह पाया गया है कि बहुत से मदरसों में प्रशासनिक अनियमितताएँ, अपर्याप्त निगरानी तथा बहुत सारी अवैध गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों की पहचान हुई है। ऐसी स्थितियाँ इन शैक्षिक संस्थानों के संदर्भ में पूरे समाज के लिए चिंता का विषय होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि जिन संस्थानों को सरकारी सहायता प्राप्त हो, वे पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय कानूनों के पूर्ण अनुपालन के मानकों पर खरे उतरें।
मदरसे पुरातन भारतीय सभ्यता व संस्कृति के द्योतक नहीं हैं अतएव कई राज्य सरकारों—जैसे उत्तर प्रदेश, असम और उत्तराखंड—ने मदरसों से संबंधित प्रशासनिक सुधारों के अनेक कदम उठाए हैं। ये कदम मुख्यतः शिक्षा की गुणवत्ता, आधुनिक विषयों के समावेश, रिकॉर्ड-व्यवस्था, राष्ट्र वाद की भावना को प्रखर करने, और निगरानी को बेहतर बनाने की दिशा में हैं। किंतु ऐसा प्रतीत होता है की मुस्लिम समाज द्वारा इस दिशा में कोई सकारात्मक स्वीकारोक्ति या पहल नहीं की जा रही है।
एक राष्ट्र वादी करदाता नागरिक के रूप में मेरा विनम्र निवेदन है कि:
अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों से संबंधित नीतियों की प्रति 3 वर्ष में समीक्षा की जाए,
सरकारी सहायता प्राप्त किसी भी संस्थान के लिए समान मानक, सख्त निरीक्षण, और पारदर्शिता के नियम लागू हों,
मदरसों को आर्थिक सहायता प्रदान करने संबंधी नियमों का पुनर्मूल्यांकन किया जाए
चूंकि आजादी से अब तक मुस्लिम समाज की जन संख्या तीन गुना हो चुकी है, उनके अल्प संख्यक अलंकार, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है, को रद्द किया जाए।
पूरे देश में आठवीं कक्षा तक समान एवं वैज्ञानिक पाठ्यक्रम लागू करने की दिशा में कदम उठाए जाएँ, ताकि सभी विद्यार्थियों को समान आधारभूत शिक्षा उपलब्ध हो।
मेरी प्रार्थना है कि संविधान और शिक्षा-नीतियों में आवश्यकतानुसार ऐसे सुधारों पर विचार किया जाए जो राष्ट्रीय एकता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और दीर्घकालिक राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ कर सकें।