करजैनी कोशी इलाके की एक जंगली और लत्तीनुमा घास थी। जंगली झाड़ियों में
यह अपने-आप उग आती थी। बरसात के बाद इसमें फूल लगते थे। नवंबर में फूल फल
में बदल जाते और इन्हीं फलों के बीच होता था- करजैनी का मोतीनुमा बीज।
इसी बीज के हम बच्चे दीवाने होते थे। ऐसे लगता था जैसे किसी सिद्ध कलाकार
हाथ ने पत्थर की रंगीन मोती पर इत्मीनान से नक्काशी उकेर दिया हो।
गहन छानबीन के बावजूद मैं आज तक नहीं जान सका कि वनस्पति विज्ञान में इसे
किस नाम से जाना जाता है। मैं यह भी नहीं जानता कि हिंदी में इसे क्या
कहते हैं और कोशी के अलावा कहीं और यह घास उगती है या नहीं। कोशी में भी
शायद अब इसका अस्तित्व नहीं है।
दरअसल, हाल के कुछ वर्षों से कोशी इलाके की जैव-विविधता तेजी से घटती जा
रही है। कोशी द्वारा हिमालय के हजारों वर्ग किलोमीटर से लाकर लगायी गयीं
वनस्पतियां अब इलाके से गायब हो चुकी हैं। यही हाल इलाके के जीवों का भी
है।
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सधन्यवाद
रंजीत