18-10-2025 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' | मधुबन |
“मीठेबच्चे - आत्म-अभिमानी होकर बैठो, अन्दर घोटते रहो - मैं आत्मा हूँ.... देही-अभिमानी बनो, सच्चा चार्ट रखो तो समझदार बनते जायेंगे, बहुत फायदा होगा'' | |
प्रश्नः- | बेहद के नाटक को समझने वाले बच्चे किस एक लॉ (नियम) को अच्छी रीति समझते हैं? |
उत्तर:- | यह अविनाशी नाटक हैं, इसमें हर एक पार्टधारी को पार्ट बजाने अपने समय पर आना ही है। कोई कहे हम सदा शान्तिधाम में ही बैठ जाएं - तो यह लॉ नहीं है। उसे तो पार्टधारी ही नहीं कहेंगे। यह बेहद की बातें बेहद का बाप ही तुम्हें सुनाते हैं। |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यथार्थ रीति बाप को याद करने वा आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है, सच्चाई से अपना चार्ट रखना है, इसमें ही बहुत-बहुत फायदा है।
2) सबसे बड़ा दु:ख देने वाला कांटा काम विकार है, इस पर योगबल से विजय प्राप्त कर पतित से पावन बनना है। बाकी किन्हीं भी बातों से तुम्हारा कनेक्शन नहीं।
वरदान:- | प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ देने वाले धर्मयुद्ध में विजयी भव अभी धर्म युद्ध की स्टेज पर आना है। उस धर्म युद्ध में विजयी बनने का साधन है आपकी प्रैक्टिकल जीवन क्योंकि परमात्म ज्ञान का प्रूफ ही प्रैक्टिकल जीवन है। आपकी मूर्त से ज्ञान और गुण प्रैक्टिकल में दिखाई दें क्योंकि आजकल डिसकस करने से अपनी मूर्त को सिद्ध नहीं कर सकते लेकिन अपनी प्रैक्टिकल धारणा मूर्त से एक सेकण्ड में किसी को भी शान्त करा सकते हो। |
स्लोगन:- | आत्मा को उज्जवल बनाने के लिए परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त करो। |
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
“योग से ही मुक्त होने की शक्ति मिलती है''
पहले-पहले तो अपने को एक मुख्य प्वाइन्ट ख्याल में अवश्य रखनी है, जब इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज रूप परमात्मा है तो उस परमात्मा द्वारा जो नॉलेज प्राप्त हो रही है वो सब मनुष्यों के लिये जरूरी है। सभी धर्म वालों को यह नॉलेज लेने का अधिकार है। भल हरेक धर्म की नॉलेज अपनी-अपनी है, हरेक का शास्त्र अपना-अपना है, हरेक की मत अपनी-अपनी है, हरेक का संस्कार अपना-अपना है लेकिन यह नॉलेज सबके लिये हैं। भल वो इस ज्ञान को न भी उठा सके, हमारे घराने में भी न आवे परन्तु सबका पिता होने कारण उनसे योग लगाने से फिर भी पवित्र अवश्य बनेंगे। इस पवित्रता के कारण अपने ही सेक्शन में पद अवश्य पायेंगे क्योंकि योग को तो सभी मनुष्य मानते हैं, बहुत मनुष्य ऐसे कहते हैं हमें भी मुक्ति चाहिए, मगर सजाओं से छूट मुक्त होने की शक्ति भी इस योग द्वारा मिल सकती है।
“अजपाजाप अर्थात् निरंतर ईश्वरीय याद''
यह जो कहावत है श्वांसो श्वांस अजपाजाप जपते रहो उसका यथार्थ अर्थ क्या है? जब हम कहते हैं अजपाजाप तो इसका यथार्थ अर्थ है जाप के बिगर श्वांसो-श्वांस अपना बुद्धियोग अपने परमपिता परमात्मा के साथ निरंतर लगाना और यह ईश्वरीय याद श्वांसो-श्वांस कायम चलती आती है, उस निरंतर ईश्वरीय याद को अजपाजाप कहते हैं। बाकी कोई मुख से जाप जपना अर्थात् राम राम कहना, अन्दर में कोई मंत्र उच्चारण करना, यह तो निरंतर चल नहीं सकता। वो लोग समझते हैं हम मुख से मंत्र उच्चारण नहीं करते लेकिन दिल में उच्चारण करना, यह है अजपाजाप। परन्तु यह तो सहज एक विचार की बात है जहाँ अपना शब्द ही अजपाजाप है, जिसको जपने की भी जरूरत नहीं है। आंतरिक बैठ कोई मूर्ति का ध्यान भी नहीं करना है, न कुछ सिमरण करना है क्योंकि वो भी निरंतर खाते पीते रह नहीं सकेंगे लेकिन हम जो ईश्वरीय याद करते हैं, वही निरंतर चल सकती है क्योंकि यह बहुत सहज है। जैसे समझो बच्चा है अपने बाप को याद करता है, तो उसी समय बाप का फोटो सामने नहीं लाना पड़ता है लेकिन मन्सा-वाचा-कर्मणा बाप के सारे आक्यूपेशन, एक्टिविटी, गुणों सहित याद आता है बस, वह याद आने से बच्चे की भी वो एक्ट चलती है, तब ही सन शोज़ फादर करेंगे। वैसे अपने को भी और सबकी याद दिल भीतर से मिटाए, उस एक ही असली पारलौकिक परमपिता परमात्मा की याद में रहना है, इसमें उठते-बैठते, खाते-पीते निरंतर याद में चल सकते हैं। उस याद से ही कर्मातीत बनते हैं। तो इस नेचुरल याद को ही अजपाजाप कहते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।
अव्यक्त इशारे - स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ, योग का प्रयोग करो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे। अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो। लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त करेंगे।