| 07-12-25 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' | रिवाइज: 02-02-08 मधुबन |
सम्पूर्ण पवित्रता द्वारा रूहानी रॉयल्टी और पर्सनालिटी का अनुभव करते, अपने मास्टर ज्ञान सूर्य स्वरूप को इमर्ज करो
चारों ओर के डबल तख्तनशीन, बापदादा के दिलतख्तनशीन, साथ में विश्व राज्य तख्त अधिकारी, सदा अपने अनादि स्वरूप, आदि स्वरूप, मध्य स्वरूप, अन्तिम स्वरूप में जब चाहे तब स्थित रहने वाले सदा सर्व खजानों को स्वयं कार्य में लगाने वाले और औरों को भी खजानों से सम्पन्न बनाने वाले सर्व आत्माओं को बाप से मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले ऐसे परमात्म प्यार के पात्र आत्माओं को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुआयें और नमस्ते।
| वरदान:- | साथी और साक्षीपन के अनुभव द्वारा सदा सफलतामूर्त भव जो बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं वह साक्षी स्वत: बन जाते हैं क्योंकि बाप स्वयं साक्षी होकर पार्ट बजाते हैं तो उनके साथ रहने वाले भी साक्षी होकर पार्ट बजायेंगे और जिनका साथी स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है वे सफलता मूर्त भी स्वत: बन ही जाते हैं। भक्ति मार्ग में तो पुकारते हैं कि थोड़े समय के साथ का अनुभव करा दो, झलक दिखा दो लेकिन आप सर्व सम्बन्धों से साथी हो गये - तो इसी खुशी और नशे में रहो कि पाना था सो पा लिया। |
| स्लोगन:- | व्यर्थ संकल्पों की निशानी है - मन उदास और खुशी गायब। |
अव्यक्त इशारे - अब सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ
बहुतकाल अचल-अडोल, निर्विघ्न, निर्बन्धन, निर्विकल्प, निर-विकर्म अर्थात् निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी स्थिति में रहो तब कर्मातीत बन सकेंगे। सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो।