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2024 के विधानसभा चुनाव में जरांगे की प्राथमिकता
शरद पवार, मराठा पार्टी और मराठा मुख्यमंत्री थे!
ओबीसी की प्राथमिकता सुरक्षा, महायुती सरकार
और फडणवीस मुख्यमंत्री थे!
ब्राह्मण-मराठा संघर्ष में ओबीसी निर्णायक
लेकिन फिर भी अस्तित्वहीन सत्वहीन कैसे?
ओबीसीनामा- 40. भाग-3. लेखकः प्रोफे. श्रावण देवरे
ओबीसी के विरोध में मराठा ध्रुवीकरण पहले कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण ने और बाद में फडणवीस ने भाजपा के फायदे के लिए 2016-17 से फिर शुरू किया था, फिर भी वे इसे नियंत्रण में रखने में सफल हुए थे। लाखों के मोर्चे के भयग्रस्त वातावरण में भी उन्होंने कहीं भी हिंसाचार नहीं होने दिया था। लेकिन 29 नवंबर, 2018 को फडणवीस द्वारा मराठा आरक्षण अधिनियम पारित करने के कारण, ओबीसी ने 2019 के चुनावों में फडणवीस को जबर्दस्त झटका दिया। 17 सीटें गंवाईं, मुख्यमंत्री पद गंवाया और सरकार भी गंवाई। परिणामस्वरूप उन्होंने अपने पहले के मराठावादी नारे को बदल दिया और ओबीसी को खुश करने के लिए एक नया नारा लेकर आए। ‘‘भाजपा का ‘डी.एन.ए’ ओबीसी ही है,'' उन्होंने बारंबार यह घोषणा की और ओबीसी को प्रसन्न किया।
फडणवीस द्वारा 2022 में माविआ सरकार तोड़ने के बाद महायुति की सरकार अस्तित्व में आई। मराठा आरक्षण के हथियार को हाईजैक करने के लिए शरद पवार ने जरांगे फैक्टर की निर्मिर्ती की। वडी-गोद्री व आंतरवली सराटी में जरांगे को उपोषण पर बिठाया गया। शुरुआत में ज्यादा प्रतिसाद भी नहीं मिला और मीडिया ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन कुछ दिनों बाद जब शरद पवार की पार्टी की रसद आने लगी तो भूख हड़ताल पर ध्यान दिया जाने लगा.
इस बढ़ती और लंबी होती जा रही भूख हड़ताल को नियंत्रण में लाया जाना चाहिए, इसके लिए फडणवीस, जो उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री भी थे, ने उपोषण मंडप पर पुलिस बल का उपयोग करके भूख हड़ताल को समाप्त करने का प्रयास किया। शरद पवार भले ही सत्ता में न हों, लेकिन प्रशासन पर उनकी पकड़ हमेशा बनी रहती है। फडणवीस के पुलिस हमले का करारा जवाब देने के लिए, उन्होंने जरांगे के मंडप में अपने लोगों को घुसाया और पुलिस वालों की जमकर धुनाई की। 70 से 80 पुलिसकर्मी घायल कर दिए गए। इस दंगे में दो मराठा कार्यकर्ताओं के पास दो भरी हुई पिस्तौलें मिलीं, इससे साफ हो जाता है कि आखिर शरद पवार करना क्या चाहते थे।
उपोषण मंडप में दंगे के बाद, सभी लोग तितर-बितर हो गए और जरांगे ने खुद अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और घर चले गए। लेकिन शरद पवार द्वारा नियुक्त जरांगे-संयोजक राजेश टोपे साहब जारांगे के घर जाकर और उन्हें उठाकर लाए और फिर से उपोषण मंडप में बिठा दिया और पार्टी के नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए उपोषण फिर से शुरू करवा दिया। चूंकि मीडिया को दंगाग्रस्त और हिंसक माहौल में बहुत सारा माल-मसाला मिल रहा था, इसलिए टीआरपी के लिए इस उपोषण का खूब प्रचार हुआ। यहीं से जरांगे फैक्टर बेकाबू हो गया। ओबीसी नेताओं को भद्दी-भद्दी व अश्लील गालियां देना, फडणवीस को असभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हुए अपमानित करना, मुख्यमंत्री शिंदे को अपशब्द कहना, उसे गाड़ दो, इसे गिरा दो, उसे रौंद दो, उसे सबक सिखाओ जैसे हिंसक बयान हर दिन जरांगे के मुंह से उल्टी की तरह लगातार निकल रहे थे।
इधर जरांगे के आंतरवली सराटी में उपोषण पर बैठने के दिन से ही उधर चन्द्रपुर में ओबीसी नेता रवींद्र टोंगे अनशन पर बैठे थे, लेकिन वहाँ कोई बडा नेता, मीडिया और सरकारी प्रतिनिधि आदि कुछ खास नजर नहीं आये जो दलित, ओबीसी और प्रगतिशील-वामपंथी नेता उपोषण मंडप में जरांगे के चरणों में बैठकर अनशन का समर्थन कर रहे थे, उनमें से एक भी नेता चंद्रपुर में ओबीसी अनशन को समर्थन देने के लिए नहीं गया। मीडिया ने तो उसे पूरी तरह अनदेखा ही कर दिया. क्योंकि ओबीसी का अन्शन लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था, इसलिए कहीं कोई तोड़फोड़ नहीं, कोई हिंसा नहीं, गाड़ दो, गिरा दो, तोड़ दो जैसी कोई हिंसक भाषा भी नहीं थी। इसलिए वहाँ क्या टीआरपी मिलेगी? इस आशंका से मीडिया ने चन्द्रपुर के ओबीसी उपोषण पर कोई ध्यान ही नहीं दिया, मीडिया ही नहीं तो प्रचार भी नहीं मिलेगा, इसलिए दलित-प्रगतिशील नेता भी वहां नहीं गये।
जरांगे ने जरांगे के अनशन का समर्थन करने पहुंचे दलित-ओबीसी-प्रगतिशील-वामपंथी नेताओं को विशेष 'पुरस्कार' देने की घोषणा की। उनकी सराहना करते हुए जरांगे ने कहा- "दलित, आदिवासी और ओबीसी नाकाबिल लोग हैं, उन्हें मिलने वाले आरक्षण के कारण हम 96 कुली श्रेष्ठ लोगों को इन नालायक लोगों के अधीन काम करना पड़ता है, यह मराठों के लिए बड़ी शर्मनाक बात है। जरांगे द्वारा दिया गया यह पुरस्कार जरांगे को समर्थन देने गए दलित,ओबीसी और प्रगतिशील नेताओं ने सहर्ष स्वीकार किया और साबित कर दिया कि दलित , ओबीसी नेता कितने निर्लज्ज हैं।
इस बीच, जबकि कोई चुनाव भी नहीं था, शरद पवार भुजबल और धनंजय मुंडे के निर्वाचन क्षेत्रों में 7 जुलै 2023 को गए और ओबीसी विरोधी सभाएं लेकर वातावरण को और ज्यादा गर्म कर दिया। इससे जरांगे को प्रोत्साहन मिलते गया। जरांगे-समर्थकों ने बीड में समता परिषद नेता सुभाष राउत के 8 करोड़ रुपये के भव्य होटल को आग लगा दी उसे जलाकर राख कर दिया। तेली-साहू जाती के ओबीसी विधायक क्षीरसागर के घर में आग लगा दी गई, जिसमें विधायक की पत्नी, बच्चे और बूढ़े माता-पिता जलकर राख हो गए होते, लेकिन पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम भाई अपनी जान जोखिम में डालकर आग में कूद गए और पूरे परिवार को बचा लिया गया। म्हाडा निर्वाचन क्षेत्र के तुलसी गांव के सेन-नाई जाती के ओबीसी भाइयों के घर जला दिए गए, पुरुषों और महिलाओं को बेरहमी से पीटा गया। इसके बाद, बीड जिले में पंकजा मुंडे के निर्वाचन क्षेत्र में ओबीसी के बीच दहशत पैदा करने के लिए माजलगांव तहसील के गंगामसला गांव में नाई-सेन भाइयों की हेयर कटिंग सलून की दुकानों को उध्वस्त कर दिया गया। बीड शहर में सुनार-ओबीसी जाति के लोळगे बंधुओं की शुभम ज्वैलर्स की दुकान जलाकर खाक कर दी गई। जरांगे के विरोध में या ओबीसी आरक्षण के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले डॉक्टरों, प्रोफेसरों आदि बुद्धिजीवियों पर गाली-गलौज करने, स्याही फेंकने और मारपीट जैसी हिंसक घटनाएं गांव-गांव में शुरू हो गईं। मराठा संस्था संचालकों द्वारा कुछ ओबीसी प्रोफेसरों को नौकरी से निकाल दिया गया। गाँव गाँव के ओबीसी कार्यकर्ता या आम ओबीसी आदमी भी दहशत में आ गए थे।
अंततः 17 नवंबर, 2023 को भुजबल साहब ने अंबड में ओबीसी की एक विशाल क्रांतिसभा करके आतंक से भरे आसमान को साफ कर दिया और ओबीसी ने राहत की सांस ली। इसके लिए भुजबल साहब को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. बेशक, भुजबल के तेवर व जन समर्थन को देखते हुए मुख्यमंत्री शिंदे और दोनों उपमुख्यमंत्रियों में भुजबल का इस्तीफा स्वीकार करने की हिम्मत नहीं थी।
ओबीसी- मराठा के बीच जो हिंसक ध्रुवीकरण हुआ वह केवल माननीय शरद पवार के कारण हिंसक हुआ, आज कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति यही कहेगा! 2024 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी के सामने सबसे बड़ा और पहला अहम मुद्दा 'सुरक्षा' का था। यह अलग से कहने की जरूरत नहीं कि अगर माविआ सत्ता में आई तो इस पर पूरा नियंत्रण शरद पवार का ही रहने वाला है। जब शरद पवार सत्ता में नहीं थे तब भी उन्होंने जरांगे फैक्टर को हिंसक बना दिया था, यदि शरद पवार सत्ता में आये तो जरांगे फैक्टर को सत्ता का बल देंगे। पवार के समर्थन से जरांगे फैक्टर और अधिक हिंसक हो जाएगा, हरियाणा और मणिपुर जैसे जातीय दंगों में महाराष्ट्र के ओबीसी का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा। इस सच्चे डर की वजहसे की ओबीसी की पहली प्राथमिकता थी शरद पवार के नेतृत्व वाले मविआ को चुनाव में सफाचट करना और भाजपा प्रणीत महायुति को सत्ता में बिठाना। ओबीसी की दूसरी प्राथमिकता थी फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाना। अगर फडणवीस मुख्यमंत्री बने तो ओबीसी को कम से कम सुरक्षा तो मिलेगी। क्योंकि उन्होंने गृह मंत्री के पद का उचित उपयोग करके जरांगे फैक्टर को नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था। जिसके कारण जरांगे ने फडणवीस की छवि "मराठों का खलनायक" के रूप में बनाई थी। इसलिए, "ब्राह्मण बर्दाश्त है, लेकिन मराठा नहीं" इस फॉर्मूले के अनुसार, फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाना ओबीसी मतदाताओं की दूसरी प्राथमिकता थी। इसके लिए ओबीसी ने भाजपा के मराठा उम्मीदवारों को भी चुना है और गठबंधन में शामिल मराठा पार्टियों शिंदेसेना और अजित पवार की एनसीपी के उम्मीदवारों को भी भारी वोट देकर चुना है। क्योंकि बीजेपी तभी सत्ता में आएगी जब महायुति के पास बहुमत होगा और अगर बीजेपी के लिए ओबीसी वोटों की सुनामी बनी तो शिंदे की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी खत्म हो पाएगी और फडणवीस मजबूती के साथ मुख्यमंत्री बनेंगे।
इस चुनाव में, ओबीसी ने जरांगे की तरह "पूर्ण जाति-द्वेष" का पालन नहीं किया। ओबीसी ने वंचित बहुजन अघाड़ी के ओबीसी उम्मीदवारों को भी खारिज कर दिया। क्योंकि वंचित बहुजन आघाडी के चुने गए ओबीसी विधायकों का नियंत्रण बालासाहेब प्रकाश अंबेडकर के पास ही रहता। और बालासाहेब शुरू से ही जरांगे के कट्टर समर्थक थे और हैं. चुनावी दौर में उन्होंने चुनावी जुमले के तौर पर ओबीसी का पक्ष लेने की शुरुआत की थी। ओबीसी को यकीन था और है कि चुनाव के बाद वे फिर से जरांगे को अपने सिर पर रखकर ओबीसी के खिलाफ नाचेंगे। ओबीसी यह कैसे भूल सकते हैं कि दलित-ओबीसी के खिलाफ जरांगे प्रणित 'सगे-सोयरे' मुद्दे पर प्रकाश अंबेडकर द्वारा दिया गया खुला समर्थन आज भी कायम है? इसलिए इस चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। जरांगे का समर्थन करने वाले हर नेता को इस चुनाव में ओबीसी मतदाताओं ने ऐसा फटका दिया है कि वे जीवन भर इन जख्मों को नहीं भूलेंगे.
मविआ की हार और महायुति की जीत का विश्लेषण करने वाले अधिकांश पत्रकार, विद्वान और नेता हमेशा की तरह ईवीएम, लाडली बहना और पैसे बांटने जैसे फालतू मुद्दे आगे कर रहे हैं। अब इस विश्लेषण का विश्लेषण, सरकार बनाने के लिए महायुति की रस्साकशी, उसके असली कारण और ओबीसी के अगले कदम पर चर्चा के लिए इस लेख के चौथे भाग का इंतजार करें!
तब तक के लिए, जय ज्योति, जयभीम, सत्य की जय हो!
- प्रोफे. श्रावण देवरे, संस्थापक-अध्यक्ष,
ओबीसी राजकीय आघाडी,
मेरा नया व्हाट्सएप नंबर- 75 88 07 2832
आपके व्हाट्सप गृप मे इस नये नंबर को सामील कर सकते है।
ईमेल: obcp...@gmail.com
लिखने की तारीख: 2-3 दिसंबर 2024
मराठी से हिन्दी अनुवाद
चन्द्रभान पाल
*महत्वपूर्ण नोट: 1) लेखाचा हा भाग तिसरा Forward Press Magazine ने ‘‘हिन्दी भाषेत’’ दिनांक 6 डिसेंबर 2014 रोजी प्रकाशित केलेला आहे, त्याची लिंक पुढीलप्रमाणे-
ओबीसी-मराठा के बीच जो हिंसक ध्रुवीकरण हुआ, वह केवल शरद पवार के कारण हुआ। आज कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति यही कहेगा! 2024 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी के सामने सबसे बड़ा और पहला अहम मुद्दा ‘सुरक्षा’ का था। पढ़ें, श्रावण देवरे के विश्लेषण का तीसरा भाग-
https://www.forwardpress.in/2024/12/news-analysis-maharashtra-assembly-election-result-3/
2) लेखाचा हा भाग तिसरा Forward Press ‘‘English’’ Magazine ने ‘‘इंग्रजी भाषेत’’ दिनांक 9 डिसेंबरबर 2024 रोजी प्रकाशित केलेला आहे, त्याची लिंक पुढीलप्रमाणे- Every informed knows that it was Sharad Pawar who polarized the Marathas against the OBCs. In the 2024 Assembly Elections, safety in the face of Maratha aggression was the key issue before the OBCs, writes Shrawan Deore
3) इस आर्टिकल P-3 की ‘‘हिन्दी’’ pdf copy की लिंक-
https://drive.google.com/file/d/1IF2VxnTl-qmAicOS5XQlMj0tduuCa9oz/view?usp=drive_link
4) लेखाच्या या तिसर्या भागाची ‘‘मराठी’’ pdf copy ची लिंक पुढीलप्रमाणे-
https://drive.google.com/file/d/1dqhDHSwhoOhFqfbwBGfEA5ipqQmfplI-/view?usp=drive_link
5) लेखाचा हा भाग तिसरा दैनिक बहुजन सौरभ ने ‘‘मराठी भाषेत’’ दिनांक 5 डिसेंबर 2024 रोजी प्रकाशित केलेला आहे.
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