क्‍या रावण यदि दलित या ओबीसी होते तो दशहरा मातम में बदल जाता?

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sanjeev khudshah

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Oct 17, 2017, 9:15:29 PM10/17/17
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क्‍या  रावण यदि दलित या ओबीसी होते तो दशहरा मातम में बदल जाता?

संजीव खुदशाह

मुझे इस पर लिखने का ख्‍याल तब आया, जब कॉलोनी के एक WhatsApp ग्रुप पर ब्राह्मण मित्र ने मैसेज भेजा उसका मजमून कुछ इस तरह था की रावण ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखता था। बावजूद इसके उसे प्रति वर्ष बुराई का प्रतीक कहकर जलाया जाता है। यह ब्राम्‍हण के साथ शोषण जैसा है। यदि यही रावण किसी दलित या ओबीसी जाति का होता, तो लोग उसके विरोध में खड़े हो जाते। और रावण को जलाने का उत्सव मातम में बदल जाता हम यदि वाल्‍मीकि रामायण की माने तो रावण सारस्‍वत ब्राम्‍हण पुलस्‍त्‍य ऋषि के पौत्र एवं विश्रवा ऋषि के पुत्र थे।

मैं आज इस पर बात करना चाहता हूं। इस बात पर नहीं कि रावण ऐतिहासिक है या नहीं । या सचमुच उसका जन्म नरक चौदस के दिन हुआ था या नही।  मैं इस पर भी बात नहीं करूंगा की रावण की जाति क्या रही होगी। मै इस विषय पर बात करूंगा कि रावण को क्यों जलाते हैं? उसका मकसद क्या है? और कौन लोग रावण को जलाते हैं?

आजकल बहुजन-अंबेडकर वादियों के बीच रावण को मूल निवासियों का राजा कहकर प्रचारित किया जा रहा है। दरअसल यह ब्राह्मण वादियों के समानांतर बेहद जातिवादी सिद्धांत है। जब आप किसी जातिवादी सिद्धांत को मानते हैं तो आप केवल जाति को ही मानते हैं। सिद्धांत आपके लिए कोई मायने नहीं रखता। बहुजन मूवमेंट में भी यही बातें जोरों से घर कर रही हैं। कई मिथको को अपनाया जा रहा है उन्‍हे नये शिरे से गढा जा रहा है। इसके पहले महिषासुर पर भी बहुजन आंदोलन जोरों पर था। कुछ लोग जो इन बातों को थोड़ा बहुत समझते रहे हैं वह आरोप संघ के माथे पर मढ़ कर कान में रूई डालकर सो जाते।

अब मैं उस WhatsApp पोस्ट की तरफ पुनः जाना चाहूंगा जो एक ब्राम्हण मित्र ने ग्रुप में भेजी थी। दरअसल उस पोस्ट ने मुझे हद तक परेशान कर दिया। और यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया की ब्राम्हण कुमार रावण को आखिर जलाया क्यों जाता है। मैंने अपने अपने स्तर पर इसकी तहकीकात की। ऐतिहासिक स्तर पर जांच पड़ताल की। तो मुझे यह बात छनकर सामने आती हुई नजर आई की दरअसल यह लड़ाई किसी जाति के विरोध के बजाय सच के साथ झूठ की है। और यह लड़ाई आज भी चल रही है। मैं अगर संकुचित शब्दों में कहूं तो ब्राह्मणवाद की लड़ाई यथार्थवाद से चल रही है। यहां पर आप ब्राह्मणवाद को सीधे किसी जाति से जोड़ कर ना देखें। अगर आप ऐसे दृष्टिकोण से देखेंगे तो आप भ्रमित हो जाएंगे और सच्चाई का पता लगाने में मुश्किल आएगी।

दशहरे के समय तमाम ब्राम्हणवादी मीडिया, ब्राह्मणवादी लोग रावण को बुराई एवं अहंकार का प्रतीक कहकर और राम को सच्चाई का प्रतीक कहकर प्रचारित करते हैं। और रावण की हत्या को जायज ठहराते हैं। मैं काफी समय पहले से यह कहता आया हूं कि ब्राह्मणवादी लोग जातिवादी नहीं होते हैं। जातिवादी होते हैं गैर ब्राह्मणवादी लोग। ब्राह्मणवादी लोग केवल ब्राम्‍हण एवं ब्राह्मणवाद को सर्वोपरि मानते हैं। ब्राम्हण जाति को नहीं। यदि एक शूद्र, ब्राह्मणों की उच्चता, एवं उनके अंधविश्वास को स्‍वीकारता है, तो वह उसे सिर आंखों का पर बैठाते हैं। लेकिन एक बहुजन वादी लोग एक ब्राह्मण की प्रगतिशीलता को देखते हैं। तो उसको शंका की निगाह से देखते हैं उसे तिरस्कृत करते हैं। वही दूसरी ओर एक ब्राम्हण वादी व्यक्ति अपने विचारधारा पर इतना अडीग होता है की यदि स्वयं ब्राम्हण भी उसका विरोध करेगा तो उसे, उस का सर कलम करने में तनिक भी देरी नहीं लगाएगा। अब मैं आपको बताना चाहूंगा की राम जाति क्षत्रिय था। लेकिन ब्राम्‍हण की उच्‍चता को स्‍वीकारता था। इसीलिए ब्राह्मणों ने उसे सिर आंखों पर बिठाया और नायक बना दिया। वही रावण वंश के हिसाब से ब्राह्मण था। लेकिन यथार्थवादी था। ब्राह्मणवाद का विरोधी था। तो उन्हीं ब्राम्हणों ने उसकी हत्या करवाई और उसे राक्षस घोषित कर दिया। यही नहीं प्रतिवर्ष उस ब्राम्हण व्यक्ति रावण के पुतले को जलाया जाता है। इतना धृणित व्‍यवहार तो ब्राम्‍हणो ने एक शूद्र से भी नही किया। मौत, दर साल मौत की सजा।

यह मामला यहीं तक नहीं रुकता या और आगे बढ़ता है। ब्राह्मणवाद के विरोधी जितने भी लोग रहे हैं। उन्हें खत्म किया जाता रहा है। चाहे वह ब्राह्मण ही क्यों ना रहे हो। विगत कुछ सालों पहले चाहे वह नरेंद्र दाभोलकर की हत्‍या हुई वे ब्राम्हण जाति से ताल्‍लुख रखते थे। उसी प्रकार कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश लिंगायत ब्राम्‍हण समप्रदाय से आते थे। बावजूद इसके ब्राह्मणवादियों ने इन्हें बर्दाश्त नहीं किया और इन तीनों प्रगतिशील तर्कशील विद्वानों को जान से हाथ धोना पड़ा। उसी प्रकार नरेन्‍द्र नायक प्रसिध्‍द तर्कशील विद्वान जो की चितपावन ब्राम्‍हण से ताल्‍लुख रखते है। उन्‍हे कट्टरवादियों द्वारा जान से मारने की धमकी दी गई है। इसी कड़ी में आप गांधी, कबीर, रयदास की हत्‍या को जोड़ सकते है।

रावण को प्रतिवर्ष जलाने का मकसद यह है की ब्राह्मणवाद यानी जाति से ब्राह्मण होना सर्वोपरि है यह दर्शाया जाए। साथ साथ शस्त्रधारी जाति क्षत्रिय, ब्राह्मणों की भक्‍त है। यह बात बार-बार सामने आए ताकि बाकी बनिया समेत शूद्र जातियां प्रश्‍न उठाएं और उसी तरह ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को मानते रहे। उन्हें कोई चुनौती ना दे सके। इसी कोशिश में प्रतिवर्ष प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन किया जाता है। यह ना सिर्फ पुतले का दहन है। बल्कि गैर ब्राह्मणवादी दुश्मनों को ललकार भी है। उनके भीतर भय पैदा करना भी है। ब्राह्मणवादी लोगों का मनोबल बढ़ाना भी है। और अंधविश्वास को स्थापित करना भी इसके पीछे एक महत्वपूर्ण मकसद है।

 

यहां पर, जैसा कि पिछले साल से एक परंपरा चालू हुई है। नरक चौदस के दिन रावण का जन्मदिन बहुजन और आंबेडकरी विचारधारा के लोगो मनाने की शुरूआत किया गया है। अगर वह यह सोच कर इस जन्म दिन को मनाने की शुरुआत कर रहे हैं की रावण असुर है, मूल निवासी है। तो मेरा ख्याल है कि यह एक धोखा होगा। बहुजन आंदोलन के साथ एक धोका होगा। यह धोका होगा स्वयं रावण के साथ। अगर हम यह जन्म दिन इस मकसद से मना रहे हैं की रावण एक यथार्त वादी एवं गैर ब्राह्मणवादी विचारधारा का व्यक्ति था, तो मैं यह समझता हूं की भविष्य में इसके पीछे कुछ सकारात्मक होने की गुंजाईश छुपी हुई है।

अगर बहुजन आंदोलन, अंबेडकरवादी आंदोलन अपने जातिवादी होने के दुर्गुण से निजात पा लें, तो इस संसार में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो उन्हें रोक सकेगी। क्योंकि जिस प्रकार ब्राह्मणवादी होना किसी एक जाति की बपौती नहीं है। उसी प्रकार प्रगतिशील होना भी किसी खास जातियों का एकाधिकार नहीं है। इस बात को समझना होगा और जातिवाद से निकलकर सिद्धांतवाद की ओर जाना होगा। तब कहीं जाकर रावण की जयंती को मनाने का सही मकसद पूर्ण हो सकेगा।


 

भवदीय

 

संजीव खुदशाह

Sanjeev Khudshah

09977082331


 

Shrawan Deore

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Oct 18, 2017, 3:55:27 AM10/18/17
to DMA Group
Dear Sanjiv ji, आपने इस आर्टिकल मे बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे रखे है... जैसे..''जातिवाद से निकलकर सिद्धांतवाद की ओर जाना होगा। '' और ''जातिवादी होते हैं गैर ब्राह्मणवादी लोग।'' ... मै आपके इस मुद्दों से सहमत हुं..... बस्स! रावण के बारे कुछ कहना चाहता हुं...  रावण जो की शुर्पणखां का भाई है... वो आर्य- ब्राह्मण नही हो सकता है... उस समय मे भारत मे कई क्षेत्र मे (दक्षिण) दो वर्ण की समाजव्यवस्था थी...खेती-जमिन का  'क्षत्र वर्ण' स्त्रियों का और आकाश-ब्रह्मका  'ब्रह्मण वर्ण' पुरूषौका ... शुर्पणखा का गणसमाज मातृसत्ताक समाजव्यवस्था का था... खेती स्त्रीया करती थी... इसलिए सत्ता भी उनकीही थी... शुर्पणखा का गण क्षेत्र (महाराष्ट्र) मे रावण राजा नही बन सकता था .. शुर्पणखा ही राणी बन सकती थी कारण मातृसत्ताकता.... लंका एक ऐसा क्षेत्र था जो मातृसत्ताकता से विकासित होकर पुरूषसत्ताकता की और बढ रहा था... उस क्षेत्र मे तिसरा वर्ण जो दास (गुलाम) का था ... रावण 'ब्रह्मण' वर्ण के रुप मे लंका क्षेत्र मे गया और वहा मंदोदरी राणी के साथ शादि करके राजा बन गया... लंका क्षेत्र मंदोदरी का गण-राज था.. केरल मे मातृसत्ताकता बहुत ज्यादा पक्की थी जो आजतक स्वतंत्र भारत मे भी चल रही थी... धर्म परिवर्तन  (ख्रिस्ती होने) के बावजूद वो केरल के पुरूष शादि के बाद बीबी के घर जाकर जीवन व्यतीत करते थे...... तो रावण ऐसेही एक मातृसत्ताकता से पुरुषसत्तकता के तरफ बढनेवाले (विकसित होनेवाले) राज्य के राजा बने... जो मंदोदरी का गणसमाज था.. इसी संधीकाल मे आर्यों का आक्रमण शुरू हुआ... भारतीय समाजव्यवस्था मे सम्मिलीत होने के लिए उन्होने ब्रह्मण वर्णपर कब्जा किया और ब्राह्मण कहलाने लगे विश्वामित्र और वसिष्ठ की लढाई इसी तरह की थी..... खेती स्त्रीयों के हाथ से निकलकर पुरूषों के हाथ मे चली गयी वो क्षेत्रपती याने क्षत्रिय हो गये   तो रावण 'ब्रह्मण' वर्ण  के थे और पुर्णतः भारतीय मुल के थे.. मगर वो विद्वान थे, शिवभक्त थे... लेकीन आर्य नही थे... 
आपकी बात सही है की, ब्राह्मणवाद के खिलाफ काम करनेवाले 'ब्राह्मण जाती के व्यक्ती को भी ब्राह्मण खतम कर देते है... अस्विनीकुमार आर्य था और देवों का डॉक्टर था .. मगर जैसे ही वो  अनार्य लोगों की सेवा करने लगा तो उसे ब्राह्मणोने खतम कर दिया .... चार्वाक ब्राह्मण भी थे उनको जिंदा जला दिया... लेकीन उनको याद रखने के लिए वो कतई सण-त्यौहार नही मनाते... गांधी-खुन को याद करने के लिए 31 जनवरी मनाते है और छुटी भी मिलती है क्यों की गांधी शूद्र थे... लेकीन दाभौळकर-खून याद करने के लिए कुछ नही मनाएंगे.. क्यों की दाभोळकर उनकी जाती मे पैदा हुए थे... रावण 'ब्राह्मण' (आर्य) नही था... इसलिए उसको हरसाल जलाया जाता है...
और भी बहुत लिखा जा सकता है... मगर आपके सामने कुछ मुद्दे रखने थे... 
धन्यवाद... चर्चा आगे बढेगी तो आणंद होगा.... जयभीम जयजोती

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sanjeev khudshah

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Oct 18, 2017, 11:16:20 PM10/18/17
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अपनी राय व्यक्त करने के लिए देवरे जी आपका बहुत ही शुक्रिया। मैंने जल्दबाजी में यह लेख लिखा है। क्योंकि कल ही रावण जयंती में मुझे वक्ता के रुप में आमंत्रित किया गया था। वहां तमाम वक्ताओं से बातचीत के बाद मुझे यह लगता है कि यदि हम पौराणिक गाथाओं कि ओर जाएंगे तो सिद्धांत और विज्ञान दोनों को पीछे छोङते जाएंगे। हालांकि पौराणिक नायकों को लेकर चलने से तुरंत सफलता मिल रही है। ऐसा भ्रम होता है लेकिन एक भ्रम से निकलकर दूसरे भ्रम में जाने जैसा है। ऐसा मेरा विश्वास है। आप सफाई कामगार चुहड़ा जातियों द्वारा वाल्मीकि ऋषि को गुरु मानने से लेकर बली राजा महिषासुर सभी में ऐसे उदाहरण देख सकते हैं।
दरअसल इन पौराणिक नायकों की लड़ाई में तेरा मेरा की लड़ाई चल रही है। वह कहीं पर भी विज्ञान, अंधविश्वास भेदभाव मिटाने की बात नहीं हो रही है। यह इसका दुखद पहलू है। शायद इसीलिए डॉक्टर अंबेडकर ने कभी भी पौराणिक नायकों को खड़ा करने की कोशिश नहीं की।

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Deepika Joshi

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Oct 19, 2017, 2:06:10 AM10/19/17
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"क्योंकि जिस प्रकार ब्राह्मणवादी होना किसी एक जाति की बपौती नहीं है। उसी प्रकार प्रगतिशील होना भी किसी खास जातियों का एकाधिकार नहीं है। इस बात को समझना होगा और जातिवाद से निकलकर सिद्धांतवाद की ओर जाना होगा।"

Badiya lekh Sanjeev ji

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Shrawan Deore

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Oct 19, 2017, 2:28:51 AM10/19/17
to DMA Group
बलीराजा पर मेरी एक किताब मराठी मे है... हिंदी मे भी प्रकाशित करनेकी मांग थी ... मगर पुअर ट्रान्सलेशन की वजहसे किताब हिंदी मे नही हो सकी... मै यह पुअर ट्रान्सलेशन की फाईल्स भेज रहा हुं.. अगर कोई कमर्सियल ट्रान्सलेटर हो तो बताइये... 

KULDIP

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Oct 24, 2017, 6:32:54 AM10/24/17
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Dear Sanjeev Ji and Friends,
Just because it is written in Ramayana that King Ravana was Brahmin, does not make hi as such. The reason being the lines are written in self praise or in a manner as if I am writing for Sanjeev ji. Many of the Sanskrit scholars have raised doubt on the authenticity of those lines. Since long I am working on the theory that the kings mentioned in Hindu scriptures are actually rulers of various cities of Indus Kingdom. I think more than hundred cities have been unearthed so far by the ASI. No historian ever discussed the question as to who ruled over that piece of land. I think it is time we start towards that way.
Is it mere coincidence that the structure / layout of Harappa exactly matches the description of Lanka given in the Sunderkanda? I often wonder, if Raskshas were a bad element, why Valmiki named it "Sunderkanda" and why did he named Ayodhyakanda, Kishkandhakanda to describe Ayodhya and Kishkandha? WHY HE CHOSE THE CITY OF RAKSHAHS LANKA TO BE NAMED AS BEAUTIFUL?

Perhaps the more important issue is: what is King Ravana or Mahishsur or Bali's relationship with the Dalits. I studied many of Hindu scriptures. And of course Baba Sahib. He said the system of marriage is the most important factor to establish blood relationship. Please just compare whose marriage system we Dalits follow. When Ravana was murdered Mandodari was married to Vibhishan, when Baali was murdered his wife Tara was married to Sugreev. BUT when Dashrath, Pandu, Dritrashtra etc etc died none of their widows was re-married. TO THE BEST OF MY KNOWLEDGE NO SC OR BC CASTE HAD EVER A PROBLEM OF WIDOW MARRIAGE. Surprisingly in our family I know two cases where the woman demanded divorce and she got it in Panchayat. The PECULIAR point is she did not even tell reason for divorce. Both of them stuck to the point that they desire separate way from the husband. Such thing is unimaginable in Dwijs. 

So naturally we are following the King Ravana. I do not think we are following his tradition for no reason. A system of marriage we follow because we have relationship with them.


Kuldip
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Dr. Pradeep Solanki

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Oct 24, 2017, 9:54:44 AM10/24/17
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धन्यवाद संजीव जी। जय भीम एवं नमो बुद्धाय।

हम आपको अपने अंतरराष्ट्रीय Whatsapp ग्रुप Global Dalit Solidarity में जोड़ रहे हैं जिससे आपके विचारों से हम सभी Sc St व ओबीसी भाई लाभान्वित हो सकें।

Dr Pradeep Solanki
Guna MP
09425462969

sanjeev khudshah

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Oct 24, 2017, 2:12:50 PM10/24/17
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Dr pradeep ji, prof deoreji, kuldeepji and deepikaji thanks for your comments.
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