अपने आपको वाल्मीकि (भंगी) समाज का समाज सेवक बताने वाले संत दर्शन रत्न रावण का ये लेख पढने के लिए भेज रहा हूं। इन्हे अंबेडकर भी चाहिए राम भी। वे अंबेडकर वादियों पर कडी टिप्पणी करते है खास कर वे दिवंगत प्रसिध्द दलित लेखक एडवोकेट भवानदास, एस एल सागर तथा संजीव खुदशाह पर धमकी भरे शब्दों का प्रयोग करते है।
650 वर्ष से पूर्व भंगी जाति के साथ वाल्मीकि व स्वपच शब्द जुड़ा है।
-दर्शन 'रत्न' रावण
बुद्ध हमारे लिए उस वक्त एक आदर्श बनने लगे थे जब हम अभी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर रहे थे। उनका तर्क को प्रधानता देना और खुद की बुद्धि पर तर्क को कस कर देखना यह सब प्रभावित करता था और जब यह पढ़ा कि माँ सुजाता ने केवल खीर नहीं ज्ञान भी दिया था तो और भी अच्छा लगा।
अचानक हमारा सामना कुछ ऐसे लोगों से हुआ जो स्वयं को असली बौद्धि कहते थे मगर आचार-व्यवहार से किसी खिस्याए हुए ब्राह्मण जैसे। एकदम मूढ़ व जड़। किसी दूसरे को बात करने ही नहीं देनी और किसी बात पर तर्क नहीं करना। बस जो वो कहे उसे मानों ! यह कैसा बुद्धिज़्म ? हो ही नहीं सकता ये बुद्धिज़्म।
थाईलैंड की बाघों की खाल का धन्दा करने वाली ख़बर पर हमें तर्क दे रहे हैं कि वो कुछ लोगों की करतूत हो सकती है और उन्हें गिरफ्तार करने वाले भी बौद्ध ही हैं। भारत के हिन्दू संत नित्यानंद,आसाराम हो या प्रज्ञा ठाकुर इनको पकड़ने वाले अधिकारी भी हिन्दू ही थे। मगर फिर भी मुद्दा बनाया जाता है।
हमारा भी दुःख है। हम भी निरंतर कहते रहे हैं कि सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान पर बिना वजह ऊँगली मत उठाओ। मगर किसी ने हमारी बात न सुनी न मानी। अब जब अकारण ही हमारे द्वारा सवाल उठा दिए गए तब सभी को तर्क याद आने लगे। तर्क की बात तो आदिकवि वाल्मीकि दयावान भी कहते हैं कि किसी खरे कुँए का पानी इसलिए मत पियो कि वह आपके बुज़ुर्गों का लगाया है।
क्या कहते हैं ये सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान के बारे में ?
रामायण मिथिया है।
रावण एक महात्मा व महान योद्धा है। बताइए दोनों बाते साथ-साथ कैसे हो सकती हैं ?
1. महामुनि शम्बूक का कातिल राम है।
2. महामुनि शम्बूक के दोषी हैं वाल्मीकि।
कौन सी बुद्धि की कसौटी पर ये बात कही जा रही है ? मुझे तो पूरी तरह मूर्खता नज़र आती है।
न आदिकवि वाल्मीकि कहीं महामुनि शम्बूक की हत्या को जायज़ ठहराते मिलते हैं। न राम को इस कुकृत्य को करने को कहते हैं। फिर दोषी कैसे ? सिर्फ इसलिए कि वो इस घटना को उजागर करते हैं ? अगर पर्दा डालते तो कोई बात होती।
जबकि दोषी खुद हैं, बड़े-बड़े साहित्यकार कहलाने वाला भी "शम्बूक-वध" लिखता है। इन्हें इतनी समझ नहीं कि वध होता है जायज़ क़त्ल। जैसे फाँसी या जेहाद। अभी तक एक भी दलित लेखक इस बात को समझ नहीं पाया। बस मक्खी पर मक्खी मार रहे हैं बेचारे।
कुछ मूर्ख हैं या बड़े शातिर हैं। सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान को बार-बार ब्राह्मण साबित करने का कुप्रयास करते हैं। जबकि कबीर साहिब और संत रविदास जी ने अपनी वाणी में माना है कि उस वक्त {लगभग। उनकी वाणी पिछले 400 वर्ष से गुरु ग्रन्थ साहिब में सुरक्षित है, जिसके साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है।
हमें सवाल करते हैं। वाल्मीकि का काल बताओ ? रामायण कब लिखी गई ? योगविशिष्ट की रचना कब हुई ? ये सब तो बहुत पुरानी बातें हैं। आप बुद्ध का जन्म अभी तक तय नहीं कर पा रहे हो। रोज़ नया शिलालेख या प्रतिमा निकलती है और बिना सोचे ये बुद्ध से जोड़ते हैं। देखिए ! बुद्ध कोई 2600 वर्ष पूर्व हुए और प्रतिमा 3000 वर्ष पुरानी पर भी दवा कर देते हैं। {वैसे हमें पता है हम अभी नहीं कहेंगे इन प्रतिमयों का सच}
हमारे एतराज़ हैं वो रहेंगे। क्यों बुद्ध अपनी शिक्षाओं को "आर्य" शब्द से जोड़ते हैं ? क्यों सुनीत बुद्ध के घर में भी एक सफाई वाला ही बना रहता है ? हम सवालों का हमला भी करेंगे कि गाँधी के तीन बन्दर समझ कर बहुत ऊँचे-ऊँचे तर्क देने वाले अब क्यों चुप हैं जब पता चल गया कि ये तीन बन्दर का सिद्धांत बुद्ध का था ?
इन सबके बावजूद हम टकराव नहीं चाहते। मगर सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान पर कटाक्ष चाहे भगवान दास करे या एस.एल.सागर हो या संजीव खुदशाह हम किसी को सहन नहीं करेंगे। खुलेआम नंगा करेंगे। ये हमारे लिए नए नव-बौद्ध नहीं अपितु नए पोंगा-पंडित हैं। ललई सिंह वाल्मीकि रामायण पेश कर ही हाई-कोर्ट से बचे थे। क्यों लिया रामायण का सहारा ?
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने लिखा है--"मैं इतना हठधर्मी भी नहीं हूं कि यह सोचूं कि मेरा कथन ब्रह्म वाक्य है या इस विचार- विमर्श में योगदान से बढ़कर कुछ है।.......मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने जातिप्रथा के बारे में एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है। यदि यह आधारहीन लगेगा तो मैं इसे तिलांजलि दे दूंगा।"
हमने बाबा-ए-कौम वंशदानी डॉ अम्बेडकर के नाम और काम दोनों से एक विशाल जन-समूह को भली-भांति अवगत करवाया है जबकि ये नव-बौद्ध लोगों में भ्रान्ति और ज्ञान-प्रतीक डॉ अम्बेडकर से दूरी बनाते रहे। बाबा साहिब ने अगर बुद्ध धर्म अपनाने का फैसला लिया तो वो उस वक्त जरुरी था।बुद्धिज़्म से सम्राट अशोक और बाबा साहिब डॉ अम्बेडकर दोनों के समय नुकसान ही हुआ।
आज जो लोग बुद्ध धम्मा को अपना रहे हैं उनमें से कुछ मंशा तो राजनीतिक है। ज्यादा पलायनवादी हैं। जिन्हें आफिस की सीट पर बैठे एक सरल व सुगम रास्ता मिल गया परिचय देने को। जब कोई पूछे कि आप कौन झट से कह दें कि मैं 50 देशों में फैले बुद्ध धर्म का हूँ। यह अपने आपको छोटा समझने की सोच है। हम आदिकवि वाल्मीकि से शम्बूक, माँ शबरी, माँ कैकसी, महात्मा रावण, एकलव्य से लेकर कबीर साहिब, संत रविदास व वंशदानी डॉ अम्बेडकर तक आदि-आरम {धम्म} की सोच रखते हैं।इसी में हमारा इतिहास और पहचान है। डॉ अम्बेडकर जी को अगर समय मिलता तो वो भी यही करते।
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यह लेख आपको प्रकाशन के लिए भेज रहा हूँ, लेख के साथ मेरा ईमेल भी प्रकाशित करेगे तो मुझे खुशी होगी।
भवदीय
संजीव खुदशाह
Sanjeev Khudshah
MIG-II/156, Phase-1,
Near St Thomas School,
Kabir Nagar, Raipur (C.G.) 492099
Cell No. 09977082331
http://www.sanjeevkhudshah.com/
(संक्षिप्त परिचय:-संजीव खुदशाह का जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हुआ। आपने एम.ए. एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किये जाते है और प्रगतिशील विचारक, कवि,कथा कार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते है। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। "सफाई कामगार समुदाय" एवं "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग" आपकी चर्चित कृतियों मे शामिल है। आपकी किताबें मराठी, पंजाबी, एवं ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनूदीत हो चुकी है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी है। आपको देश के नामचीन विश्वविद्यालयों द्वारा व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया जाता रहा है। आप कई पुरस्कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके है।)