BJP OBC Relation: History, Present and Future (E3)

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Shrawan Deore

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Jul 16, 2023, 4:40:41 AM7/16/23
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हिंदी मे भाग-1 और भाग-2 एकसाथ पढीए… प्रोफे. श्रावण देवरे

ओबीसी और भाजपा: एक अटूट संबंध  (भाग 1)

ओबीसी राजनीतिक मोर्चे के निमित्त:-

लेखक प्रो. श्रावण देवरे

 

6 जून 2023 को ‘ओबीसी राजनीतिक मोर्चे’ की पुणे जिला शाखा स्थापित करके पुणे लोकसभा क्षेत्र उपचुनाव लड़ने की घोषणा ओबीसी परिषद में और बाद में लिए गए पत्रकार परिषद में की गई, उसके बाद पुणे की राजनीति में हलचल मच गई। इस घोषणा का पहला परिणाम यह हुआ कि, पुणे के भाजपा कार्यकर्ता चुनाव रद्द कराने के लिए उनके बडे नेताओंपर दबाव बनाना शुरू कर दिए। वास्तव में आठ दिन पहले ही भाजपा के अध्यक्ष बावनकुळेजी ने पुणे में भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मेलन लेकर 'उपचुनाव जल्दी ही होगा, काम पर लग जाओ!' ऐसा आदेश देकर गए थे। जिसके अनुसार भाजपा के कार्यकर्ता पुणे लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव की तैयारी में लग भी गए थे। परंतु अपने ओबीसी राजनीतिक मोर्चे के चुनाव लड़ने की घोषणा से माहोल ही बदल गया।

दूसरा परिणाम यह हुआ कि, ओबीसी परिषद बाद हुए पत्रकार परिषद में जो ओबीसी नेता मेरे अगल-बगल में बैठे थे उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस भाजपा के पुणे के नेताओं के फोन आने लगे। उनमें से एक को बीस हजार रुपए देकर स्वतंत्र ओबीसी कार्यक्रम आयोजित करने को कहा गया। जिसके कारण ओबीसी राजनीतिक मोर्चे में फूट होगी ऐसी उन्हें अपेक्षा थी।

लातूर में भाजपा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हमारे मोर्चे के एक दूसरे नेता को मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रित किया गया।

इस प्रकार के सारे प्रयत्न करने के बावजूद पुणे का ओबीसी राजनीतिक मोर्चा अभेद्य है, फलस्वरूप पुणे लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव उन्हें रद्द करना पड़ रहा है।

यह कोई पहला अनुभव है ऐसा नहीं है। फरवरी 2023 में कसबा विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में हमें यही अनुभव मिला था। कसबा उपचुनाव की घोषणा के पहले ही 23 जनवरी 2023 को सपना माळी नाम की महिला कार्यकर्ता जो ओबीसी जनगणना के मुद्दे पर पुणे जिलाधिकारी कार्यालय के सामने अनशन पर बैठी थी, उसे समर्थन देने के लिए मैं भी उस अनशन में एक दिन के लिए शामिल हुआ था। उस अनशन के मंडप में भाषण करते हुए मुख्यत: एक ही मुद्दे पर जोर देते हुए मैंने कहा था कि, "बस अब बहुत हुए आंदोलन, मोर्चे, धरने, प्रदर्शन और भाषण, सभी प्रस्थापित पार्टियां उलट पलट कर सत्ता में आती रहती हैं किन्तु ओबीसी की एक भी मांग कभी पूरी नहीं की जाती। हम ओबीसी पांच साल आंदोलन करते रहें और चुनाव आने पर इन्हीं प्रस्थापित पार्टियों को वोट देकर उन्हें सत्ता में बिठाते रहें। इस तरह यदि ओबीसी की तरफ से फुकट  में सत्ता मिल रही हो तो हम सत्ता में आकर ओबीसी का काम क्यों करें? ऐसा प्रस्थापित पार्टियों का मानना है। आप लोग जब तक एकजुट होकर इनके वोटबैंक पर चोट नहीं करेंगे तबतक ये पार्टियां ओबीसी को गंभीरता से नहीं लेंगी। इसलिए हम ओबीसी जनगणना के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए ओबीसी उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से खड़ा करेंगे, उसकी शुरुआत कसबा विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव से करेंगे, जल्दी ही कसबा के उपचुनाव की घोषणा होने वाली है आप लोग काम पर लग जाइए।’’ सपना माळी इस उपचुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ी हों यह भी मैंने सुझाव दिया।

मेरे इस भाषण का परिणाम क्या हुआ देखिए - पिछले 28 सालों से संघ-भाजपा का गढ़ रहे कसबा विधानसभा क्षेत्र से सिर्फ गिरीश बापट जैसे संघी ब्राह्मण उम्मीदवार ही चुनकर आते रहने के बावजूद इस उपचुनाव में भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार के बजाय ओबीसी उम्मीदवार क्यों खड़ा किया? भाजपा ने ओबीसी उम्मीदवार दिया इसलिए कांग्रेस ने भी ओबीसी उम्मीदवार दिया, यह चमत्कार कैसे हुआ? यानी ओबीसी जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस भाजपा दोनों की नाक कटी हुई है, दोनों नकटे हैं। इसलिए हमारी की गई घोषणा के कारण दोनों पार्टीयों को ओबीसी उम्मीदवार देना पड़ा। ओबीसी जनगणना के मुद्दे पर स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा रहा तो अपना ब्राह्मण - मराठा उम्मीदवार पराजित हो सकता है, इस डर से दोनों पार्टियों को मजबूरी में ओबीसी उम्मीदवार देना पड़ा।

ओबीसी राजनीतिक मोर्चे के स्थापना की प्रक्रिया पिछले दो - ढाई सालों से शुरू हैओबीसी की स्वतंत्र राजनीति खड़ी किए बिना प्रस्थापित पार्टियां तुम्हें गंभीरता से नहीं लेंगी इसलिए प्रस्थापित पार्टियों के वोटबैंक पर ही चोट करने की जरूरत है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ओबीसी राजनीतिक मोर्चे की स्थापना करना तय  किया गया, उसके लिए 5 मार्च 2022 को पहली गोलमेज परिषद यवतमाल में ली गई, दूसरी परिषद 20 मार्च 2022 को सांगली में, तीसरी परिषद 9 अप्रैल 2022 को धुले में चौथी परिषद 6 जून 2023 को पुणे में आयोजित की गई। अभी प्रत्येक जिले से आमंत्रण रहे हैं और जल्द ही महाराष्ट्र का दौरा शुरू होगा।

ओबीसी में हलचल होती है तो भाजपा के निर्णय कैसे बदलते हैं, भाजपा ओबीसी की उंगलियों पर कैसे नाचती है यह मैंने कुछ उदाहरण देकर सिद्ध किया। ओबीसी भाजपा के अटूट संबंधों का चढ़ाव उतार लेख के इस भाग में बताया। अब नाते-संबंधों का ट्विस्ट अगले भाग में - तब तक के जय ज्योति, जयभीम, सत्य की जय हो!

 

 

भाग-2

ओबीसी और भाजपा: एक अटूट संबंध  (भाग 2)

ओबीसी राजनीतिक मोर्चा भाजपा की बी टीम?

लेखक- प्रोफे. श्रावण देवरे

 

महाराष्ट्र राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में 5 ओबीसी गोलमेज परिषद लेकरओबीसी राजनीतिक मोर्चे’ की स्थापना की गई। उसी प्रकार पुणे में पत्रकार परिषद लेकर पुणे लोकसभा क्षेत्र उपचुनाव में ओबीसी राजनीतिक मोर्चे की तरफ से स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा की गई। प्रमाणिक ओबीसी कार्यकर्ता और उसी प्रकार विभिन्न प्रस्थापित पार्टियों में मजबूरी में काम करने वाले ओबीसी ने इस निर्णय का स्वागत किया, किन्तु अपवाद स्वरूप दो लोगों ने इसका विरोध भी किया, उनमें 'साप्ताहिक विचार मंच' के संपादक गौतम गेडाम की प्रतिक्रिया प्रतिनिधिक समझनी चाहिए। उन्होंने मुझे फोन करके अपनी नापसंदगी जाहिर की।

गौतम गेडाम ने मेरे अनेक लेख अपने 'साप्ताहिक विचार मंच' में पुनर्प्रकाशित किये है, इसलिए उन्होंने मुझपर  नाराजगी  द्वेष भावना से नहीं बल्कि मैत्री भावना से ही व्यक्त की है यह निश्चित है।

फोन पर हुई चर्चा का विवरण -

गौतम गेडाम ने फोन पर 'जय ओबीसी ' करके बातचीत की शुरुआत की।

"आप चुनाव में स्वतंत्र ओबीसी उम्मीदवार खड़ा करके भाजपा की मदद करेंगे, हां या नहीं?

बाळासाहेब प्रकाश अंबेडकर, ओवैसी केसीआर जैसे आपभी भाजपा की बी टीम बनकर काम करेंगे क्या? कृपया भाजपा को पराभूत करने के लिए कांग्रेस का साथ दीजिए!"

गेडाम की बात खत्म होते ही मैंने उनसे एक प्रश्न पूछा कि- "ओबीसी समाज घटक सबसे ज्यादा किस पार्टी को वोट करता है?"

इस पर गेडाम ने कहा,"ओबीसी बड़े पैमाने पर भाजपा को ही वोट करता है," 

मैंने दूसरा प्रश्न पूछा कि - "दलित किसको मतदान करता है?"

गेडाम ने कहा - "कांग्रेस को।"

मैंने तीसरा प्रश्न पूछा - "मुस्लिम किसको मतदान करता है?"

उन्होंने कहा - "कांग्रेस को।"

मैंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा -

‘‘बाळासाहेब प्रकाश अंबेडकर ने यदि उम्मीदवार खड़ा किया तो कांग्रेस के दलित वोट कम होते हैं जिसका फायदा डायरेक्ट भाजपा को होता है। ओवैसी ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया तो कांग्रेस के मुस्लिम वोट कम होते हैं और उसका भी फायदा भाजपा को मिलता है, किन्तु यदि हमने ओबीसी राजनीतिक मोर्चे की तरफ से ओबीसी उम्मीदवार खड़ा किया तो किसके वोट कम होंगे?’’ मेरे इस सवाल पर गौतम जी पशोपेश में पड़ गए।

मैंने कहा ‘‘गौतम जी! आपने पहले ही कहा है कि ओबीसी बड़े पैमाने पर भाजपा को वोट करता है। मैं फिर प्रश्न करता हूं कि हमने यदि ओबीसी उम्मीदवार खड़ा किया  तो किसके वोटों में कमी आयेगी?’’ मुद्दे को अलग मोड़ देने के लिए उन्होंने प्रश्न किया कि ठीक है किंतु इस तरह कितने वोट आपको मिलने वाले हैं?

उसपर मैंने कहा - "यदि हम भाजपा के दस वोट कम करने में कामयाब हुए तो भी खुश हैं

हम भाजपा को हराने के लिए अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं उसके लिए आपको भी इस काम में हमारी मदद करनी चाहिए कम से कम स्वागत तो करना ही चाहिए।

गौतम जी! आप ओबीसी राजनीतिक मोर्चे का विरोध करके एक प्रकार से भाजपा कीबी’ टीम का ही काम कर रहे हैं!"

मेरे ऐसा कहने पर गौतम ने 'शुभेच्छा' देते हुए फोन रख दिया।

यदि ओबीसी राजनीतिक मोर्चे की तरफ से चुनाव लड़ाया गया तो भाजपा के वोट कम होंगे इसका फायदा कांग्रेस को होगा,

इसके लिए मैं एक उदाहरण देता हूं क्योंकि बिना उदाहरण के बहुजनों के समझ में ही नहीं आता। स्वतंत्र रूप से ओबीसी उम्मीदवार खड़ा किया तो भाजपा पराभूत होती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण चन्द्रपूर का है। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में चन्द्रपूर चुनाव क्षेत्र से वंचित बहुजन आघाड़ी की तरफ से एड. राजेन्द्र महाडोळे माळी -ओबीसी उम्मीदवार थे, महाडोळे माली ओबीसी के बीच अच्छे कार्य करने के कारण विदर्भ में सुप्रसिद्ध हैं, इसी एक ही कारण से महाडोळे को एक लाख चालीस हजार वोट मिले। ये सभी वोट भाजपा के थे। इस चुनाव में भाजपा पचास हजार वोटों से हार गई और कांग्रेस चुनकर गई। चन्द्रपुर यह भाजपा का गढ़ था इसे ध्यान रखने की जरूरत है।

2019 में महाराष्ट्र में कांग्रेस का एक ही सांसद चुनकर आया और वह भी चन्द्रपुर से, केवल स्वतंत्र ओबीसी  उम्मीदवार के कारण कांग्रेस का एकमात्र सांसद चुनकर आया। कर्तव्यनिष्ठ महाडोळे ने थोड़ा और जोर लगाया होता तो उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को भी पराजित कर दिया होता और खुद महाडोळे चुनकर आए होते।

ओबीसी जनगणना बंद करनेवाली, कालेलकर आयोग को ठंडे बस्ते में डालने वाली, मंडल आयोग का लोकसभा में खुलकर विरोध करनेवाली जातिवादी कांग्रेस उम्मीदवार को पराभूत करके एकाध फुले साहू अंबेडकरवादी ओबीसी उम्मीदवार चुनकर आया तो उसमें तुम्हारा कुछ नुकसान होनेवाला है क्या?

ओबीसी जब बड़े पैमाने पर जागृत होता है तब वह कांग्रेस - भाजपा सहित संपूर्ण ब्राह्मणवाद को ही उखाड़ फेंकता है, यह तमिलनाडु के ओबीसी ने सिद्ध किया है। उसके लिए रामासामी पेरियार को 1925 से तात्यासाहेब महात्मा फुले द्वारा बताई गई अब्राह्मणी प्रबोधन की लहर का निर्माण करना पड़ा। ओबीसी का राम-कृष्ण पर आधारित ब्राह्मणी प्रबोधन हुआ तो भाजपा ही चुनकर आयेगी और इसी ओबीसी का महात्मा फुले प्रणीत अब्राह्मणी प्रबोधन हुआ तो कांग्रेस भाजपा सहित संघ- आर एस एस सब खत्म हो जाती है।

ओबीसी ही भाजपा को बड़ा करता है और ओबीसी ही भाजपा को खत्म भी करता है, यह अनेक बार सिद्ध हो चुका है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि,"भाजपा ओबीसी एक अटूट संबंध"। लेख के तीसरे भाग में इस संबंध की ऐतिहासिकता, वर्तमानता और भविष्यता देखने वाले हैं,

तबतक के लिए जय जोती, जय भीम, सत्य की जय हो!

 

 

प्रोफे. श्रावण देवरे

मोबाईल- 94 227 88 546

Email- s.deo...@gmail.com

                                                                                    

                                                           मराठी से हिंदी अनुवाद

चन्द्र भान पाल

 


--
Prof. Shrawan Deore
 
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