महाराष्ट्र की डबल इंजन सरकार व ओबीसी के सवाल ----
ओबीसी राजकीय आघाड़ी का नया पर्याय---
(पूर्वार्ध और उत्तरार्ध एकसाथ पढीए)
सुपर पावर शक्ति से सम्पन्न शिंदे - फडणवीस की डबल इंजन सरकार महाराष्ट्र में नई नई
स्थापित हुई है और हमें यानी (ओबीसी) को कुछ ज्यादा ही आनंद महसूस हो रहा है। सरकार अस्तित्व
में आते ही हमें इसके सुपर पावर का एहसास होने लगा। जिस तरीके से सुप्रिम कोर्ट, संविधान,
राज्यपाल तीनों संवैधानिक सुपर पावर्स को जेब में रखकर नई सरकार स्थापित करने में फडणवीस
को सफलता मिली वह तरीका देखकर किसी भी भोलेभाले व्यक्ति को फडणवीस के सुपर पावर का
विश्वास होना ही चाहिए।
हम ओबीसी एक नंबर के भोलेभाले! हमें तो विश्वास भी हुआ और आनंदित भी हुए! आनंदित
होने के दो कारण हैं - पहला कारण है कि कोई भी नई सरकार स्थापित होते ही अपनी आइडेंटिटी
सिद्ध करने के लिए शपथग्रहण के बाद ताबड़तोड़ बड़े निर्णय लेती आई हैं। उदाहरण कम्युनिस्ट
पार्टी का दे सकते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियां जब भी पूंजीवादी पार्टियों को हराकर अपनी सरकार बनाती
हैं तब वे सरकारें अपनी आइडेंटिटी सिद्ध करने के लिए मेहनतकशों के हित में नए कार्यक्रम घोषित
करती रहती हैं, पश्चिम बंगाल और केरल में हम यह देख चुके हैं। मेहनतकश वर्ग में सबसे ज्यादा
संख्या में छोटे किसान व औद्योगिक कामगार होते हैं। उन राज्यों में कम्युनिस्ट पार्टियों की सरकार
स्थापित होते ही जमीन का पुनर्वितरण, कामगार कानूनों में सुधार वगैरह कार्यक्रम ताबड़तोड़ हाथ में
लिए जाते हैं।
महाराष्ट्र की मविआ सरकार में हिन्दुत्व खतरे में आ गया था और वह बचाने के लिए एकनाथ
शिंदे एवं उनके कामरेड (?) साथियों ने मंत्री पद को लात मारकर बगावत की व कट्टर हिन्दुत्ववादी
पार्टी भाजपा के साथ मिलकर सरकार स्थापित की। अब यह सरकार हिन्दुत्व के लिए कुछ क्रांतिकारी
कार्यक्रम हाथ में लेगी इस आशा में हम खुश हुए। हिन्दू में सबसे ज्यादा संख्या ओबीसी की है इसलिए
ओबीसी के हित में कुछ घोषणा होगी ही, ऐसी हमारी भोलीभाली आशा! अर्थात ओबीसी महामंडल को
पांच हजार करोड़ की निधि देंगे, अथवा ओबीसी की संस्था महाज्योति को आफिस के लिए कम से
कम अच्छी जगह व कर्मचारी तो देंगे ही।
नई सरकार आने से आनंदित होने का दूसरा कारण भी ऐसा ही महत्वपूर्ण है।
मविआ आघाड़ी सरकार रहते हुए बांटिया आयोग ने सरनेम देखकर जाति की पहचान करने व उसके
आधार पर ओबीसी की संख्या गिनने का अनाड़ीपन किया, आयोग के इस कुकृत्य का जोरदार विरोध
करने वाले फडणवीस ये पहले राजनेता थे। तब वे विरोधी पक्ष नेता थे अब वे उपमुख्यमंत्री हैं।
शपथग्रहण के बाद पहली शासकीय बैठक ओबीसी के मुद्दे पर ली। इस पर हमारे भोलेभाले ओबीसी
को लगा कि फडणवीस ओबीसी मुद्दे पर गंभीर हैं। इस बैठक में एक भी ओबीसी संगठन नहीं था
कोई भी ओबीसी नेता इस बैठक में नहीं था कम से कम राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष व
बांटिया आयोग के अध्यक्ष को तो इस बैठक में होना ही चाहिए था।
सबसे आवश्यक प्रश्न था बांटिया आयोग की कार्यशैली का। क्योंकि इस कार्यशैली द्वारा सम्पूर्ण
ओबीसी की लोकसंख्या कम करने का षड्यंत्र किया गया था! ऐसी टिप्पणी स्वयं फडणवीस ने विरोधी
पक्ष नेता रहते हुए की थी इसलिए उपमुख्यमंत्री होने के बाद ओबीसी के मुद्दे पर ली गई पहली बैठक
में कुछ उपाय योजना करेंगे ऐसा हमें लगा था।
सरनेम देखकर जाति खोजने का अनाड़ीपन बांटिया आयोग क्यों कर रहा है इसका कारण
मीमांसा मैंने 19 जून के अपने लेख "सुप्रिम कोर्ट की तरफ से ओबीसी की कमर पर एक और लात"
में की थी। लेख का एक पैरा -
"1)इन षड्यंत्रकारी कामचोरों में सबसे ऊपर नंबर आता है अजीत पवार का! "न रहेगा बांस न
बजेगी बांसुरी" यह उनका सूक्त वाक्य! *डेटा इकट्ठा करने वाले बांटिया आयोग को पैसे न देने पर
वह अचूक तरीके से सटीक काम ही नहीं कर पायेगा। परंतु आयोग नियुक्त किया है तो कुछ काम तो
करना पड़ेगा इसलिए जैसे तैसे किसी तरह सच्चा झूठा डेटा इकट्ठा करके गलत रिपोर्ट प्रस्तुत करना
और सुप्रिम कोर्ट की लात पड़ने पर चिल्लाते बैठना! इसी प्रकार की नौटंकी का प्रयोग राज्य पिछड़ा
वर्ग आयोग से लेकर समर्पित आयोग तक चलते आ रहा है सुप्रिम कोर्ट की लात न शासन की कमर
पर पड़ रही है न आयोग की कमर पर वह पड़ रही है ओबीसी जनता की कमर पर। ओबीसी का
राजनीतिक आरक्षण खत्म हुआ तो उसका सीधा फायदा अपनी मराठा जाति को होगा यह बात
अजीत पवार को पता है इसलिए वे इस षड्यंत्र के अगुवा बने हुए हैं।
(दै. लोकमंथन, 19 जून 22 संपादकीय पेज पर श्रावण देवरे का लेख)
उपरोक्त पैरा में मैंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि बांटिया आयोग डेटा इकट्ठा करने का काम ठीक
ढंग से अचूक तरीके से कर ही न सके इसलिए उसे पैसा ही नहीं देना यह षड्यंत्र था। दलित ओबीसी के
शत्रु के रूप में कुख्यात अजीत पवार ने यह षड्यंत्र सफलतापूर्वक पूरा किया। परंतु फडणवीस तो उठते
बैठते ओबीसी ओबीसी की माला जपते रहते हैं। इसलिए उपमुख्यमंत्री के रूप में ली गई पहली बैठक
में बांटिया आयोग के संदर्भ में वे निम्नलिखित कार्यक्रम घोषित करेंगे ऐसा हमें लगा था -
1) बांटिया आयोग ने ओबीसी की लोकसंख्या 37% दिखाया है इससे यह सिद्ध होता है कि आयोग
ने गलत व अनाड़ीपन का तरीका अपनाया है। बांटिया आयोग की यह उल्टी सीधी रिपोर्ट
तत्काल प्रभाव से रद्द होनी चाहिए।
2) पक्षपाती, आरक्षण विरोधी व ओबीसी के शत्रु के रूप में पहले से ही सिद्ध हो चुके बांटिया को
हटाकर उस पद पर ओबीसी वर्ग के किसी निवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की जानी चाहिए।
3) सरनेम के आधार पर जाति खोजने पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
4) डेटा इकट्ठा करने के लिए सटीक व अचूक तरीका अपनाना है तो उसके लिए संबंधित
शासकीय अधिकारी- कर्मचारी उस क्षेत्र के ओबीसी संगठनों के पदाधिकारी और स्थानीय निकाय
संस्थाओं में चुनकर आए वर्तमान व भूतपूर्व ओबीसी लोकप्रतिनिधि आदि की समन्वय समिति
स्थापित करना।
5) इस प्रकार विभिन्न जिलों की समन्वय समितियों का संयुक्त कैडर कैंप लेकर उन्हें डेटा इकट्ठा
करने की कार्यपद्धति समझाकर बताना।
6) इस प्रकार कैडर कैंप, स्टेशनरी, वाहन व अन्य साधन सामग्री के लिए लगने वाली निधि जो
435 करोड़ है यह प्रारूप राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने तैयार किया है।
7) डेटा इकट्ठा करने वाली समन्वय समिति में जो लोकप्रतिनिधि काम करेंगे उन्हें उनके कार्यक्षेत्र
के अनुसार मानधन दिया जाना चाहिए। यह मानधन प्रतिव्यक्ति कम से कम 5000,7000 व
10000 रूपए तक होने चाहिए। इसी प्रकार का मानधन कम्प्यूटर आपरेटर, साफ्टवेयर इंजीनियर
व तात्कालिक आवश्यकतानुसार नियुक्त किए गए कर्मचारी वर्ग को दिया जाना चाहिए।
8) बांटिया आयोग को सही तरीके से काम करने के लिए मार्गदर्शन करने वाली व आदेशानुसार
काम हो रहा है या नहीं यह देखने के लिए राज्यस्तरीय ओबीसी विद्वानों की सलाहकार समिति
स्थापित की जानी चाहिए।
9) इस प्रकार डेटा इकट्ठा करने का काम हुआ तो उसका कुल खर्च 435 करोड़ रुपए होगा ही।
10) फडणवीस को आयोग के लिए यह निधि ताबड़तोड़ मंजूर करनी चाहिए। अभी भी समय
गया नहीं है। कुछ चुनाव विदाउट ओबीसी आरक्षण होते हैं तो होने दो किन्तु जो डेटा इकट्ठा हो वह
अचूक व सटीक इकट्ठा होना चाहिए जिससे वह सुप्रिम कोर्ट में टिके व पक्के मजबूत स्वरूप में
सतत आरक्षण ओबीसी वर्ग को मिलना चाहिए।
अभी भी समय है, शिंदे - फडणवीस की डबल इंजन सरकार गतिशील होकर ताबड़तोड़
435 करोड़ रुपए की निधि इस समर्पित आयोग को देगी हम ऐसी अपेक्षा करते हैं यदि यह सरकार इस
प्रकार की कोई उपाय योजना करके ओबीसी को न्याय नहीं देना चाहती तो ओबीसी के नाते हमें क्या
उपाय योजना करनी चाहिए व तुरंत कौन से कृति कार्यक्रम हाथ में लेना चाहिए इस पर चर्चा हम
कल लेख के उत्तरार्ध में करेंगे।
तब तक के लिए जय ज्योती, जय भीम, सत्य की जय हो!*
-उत्तरार्ध-
ओबीसी राजकीय आघाड़ी का नया पर्याय---
बांटिया आयोग ने ओबीसी की लोकसंख्या कम दिखाया और तुरंत कुछ मराठा नेता ओबीसी की थाली में से टुकड़ा मांगने लगे, यह कोई संयोग नहीं है। बांटिया साहेब की नियुक्ति के पीछे अजीत पवार का यही उद्देश्य था,उसी के अनुसार यह सब नौटंकी हो रही है।बांटिया ये आरक्षण विरोधी रहे ओबीसी के शत्रु के रूप में कुख्यात हैं, ओबीसी विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति बंद करने का महापाप इसी बांटिया के नाम जमा है। समर्पित आयोग के अध्यक्ष पद पर बिठाने के पहले उनकी यही ओबीसी विरोधी मेरिट देखी गई। बांटिया की नियुक्ति करते समय ही मंत्रिमंडल के ओबीसी मंत्रियों को उसका विरोध करना चाहिए था। किंतु अजीत पवार के सामने दुम हिलाने वाले हमारे दोनों ओबीसी मंत्री अब रिपोर्ट बाहर आने पर चिल्ला रहे हैं। अब तो सरकार भी गई और मंत्री पद भी गया अर्थात मंत्री रहते हुए उनका मूर्ख व नामर्द होना कई बार सिद्ध हो चुका है। राजनीति के ये दोनों ओबीसी नेता कई बार मूर्ख व नामर्द सिद्ध होने के बाद भी हमारे कुछ ओबीसी कार्यकर्ता उन्हें ही मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए बुलाते हैं। जब तक तुम घर के पुराने व काम के न रह गए फर्नीचर घर से बाहर निकालकर भंगार में नहीं देते तब तक तुम घर में नया उपयुक्त फर्नीचर ला ही नहीं सकते, यह सादा कामन सेन्स है। ओबीसी पर अन्याय करने के लिए बांटिया की नियुक्ति राष्ट्र वादी कांग्रेस के अजीत पवार ने किया। अजीत पवार द्वारा किए गए अन्याय के विरुद्ध जो मोर्चा निकाला जा रहा है उसका नेतृत्व करने के लिए राष्ट्र वादी कांग्रेस के ही ओबीसी नेता को बुलाया जा रहा है। यह राष्ट्र वादी कांग्रेस का ओबीसी नेता मोर्चे में भाषण करते समय बांटिया के विरोध में खूब बोलेगा लेकिन बांटिया को नियुक्त करने वाले अजीत पवार के विरोध में नहीं बोल सकेगा क्योंकि अजीत पवार इस ओबीसी नेता का मालिक है और तुम्हारा ओबीसी नेता अजीत पवार का गुलाम! ऐसी परिस्थिति में तुम समस्या की जड़ तक जा ही नहीं सकते और अन्याय जड़ से उखड़ ही नहीं सकता। मराठा- ब्राह्मणों ने तुम पर जो ओबीसी नेता थोपा है, वे सिर्फ भाषणबाजी करने के लिए और चुनाव में तुम्हारा वोट लेकर फिर से अजीत पवार- फडणवीस जैसों को सत्ता में बिठाने के लिए हैं। इन दोनों दलाल नेताओं को तुम ओबीसी कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाते हो, यही दलाल नेता तुम्हारे ओबीसी मोर्चे का नेतृत्व करते हैं। इन दोनों नेताओं को तुम्हारे मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए जरूर बुलाओ लेकिन उनसे पूछो कि अजीत पवार जब बांटिया को नियुक्त कर रहे थे तो तुम दोनों ओबीसी मंत्री कहां नींद ले रहे थे? इंपेरिकल डेटा इकट्ठा करने के लिए 435 करोड़ रुपए की जरूरत होते हुए अजीत पवार ने यह निधि दिया ही नहीं तब तुम अजीत पवार से यह निधि क्यों नहीं दिला पाए? ओबीसी आरक्षण कम करके वह मराठा को देने का षड्यंत्र अजीत पवार - फडणवीस द्वारा रचे जाने के बाद भी ये दोनों मंत्री पवार - फडणवीस की गुलामी क्यों कर रहे हैं? मुझे पता है अपने ही नेता से सवाल करने के लिए मर्दानगी की जरूरत होती है मोर्चे का आयोजन करने वालों में ऐसे सवाल करने की हिम्मत नहीं है तो उन्होंने ओबीसी जनता को भ्रमित करने के लिए मोर्चा निकाला है उसका यही अर्थ होगा। जबतक ये दलाल लोग तुम्हारे नेता बने रहेंगे, तबतक पवार - फडणवीस उलट पलट कर सत्ता में आते रहेंगे और ओबीसी पर अन्याय का सिलसिला जारी रहेगा!
अपने ओबीसी नेता फडणवीस - पवार जैसे ब्राह्मण - मराठा नेताओं के गुलाम हैं और वे ओबीसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकते यह मालूम होते हुए भी इन ओबीसी नेताओं को कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में क्यों बुलाया जाता है? मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए इन दलाल ओबीसी नेताओं को क्यों बुलाया जाता है? क्योंकि कार्यक्रमों के आयोजक व मोर्चे के संयोजकों को अपने निजी व्यक्तिगत स्वार्थ इन नेताओं से साधना रहता है। संयोजकों में से किसी को नगरसेवक का टिकट चाहिए होता है, किसी को विधान परिषद में विधायक बनना होता है, एकाध कार्यकर्ता की फाइल मंत्रालय में अटकी होती है, आयोजकों में से एकाध होशियार व्यक्ति को महामंडल अथवा आयोग में सदस्य बनकर जाना होता है। एकाध ओबीसी का कार्यक्रम हुआ, ओबीसी का मोर्चा निकला उसमें ओबीसी नेताओं की चमकोगीरी होती रहती है, मोर्चा आयोजित करने वाले कार्यकर्ता के निजी काम होते रहते हैं। किंतु मोर्चे में आए प्रमाणिक लोगों को सिर्फ फंसाया जाता है! क्योंकि ऐसे मोर्चों को सत्ताधारी बिल्कुल भाव नहीं देते कारण मोर्चे के ये नेता उनके ही गोठे के बैल होते हैं।
ओबीसी वर्ग पर बारंबार होने वाले अन्याय को जड़ से उखाड़ फेंकना है तो तुम्हें तमिलनाडु की तरह व बिहार की तरह स्वतंत्र व स्वाभिमानी नेता तैयार करना पड़ेगा, राष्ट्र वादी कांग्रेस, कांग्रेस, शिवसेना, भाजपा जैसी पार्टियों के ओबीसी नेता ये मराठा - ब्राह्मणों के गुलाम हैं। इन दलाल नेताओं के कारण हम इन्हीं पार्टियों को वोट देते हैं। जिसके कारण यही पार्टियां उलट पलट कर सत्ता में आती रहती हैं और तुम्हारे ऊपर होने वाला अन्याय अत्याचार सतत चालू रहता है। फडणवीस जैसे षड्यंत्रकारी नेता हमें कैसे भ्रमित करते हैं इसका ताजा उदाहरण देखिए --
फडणवीस जब विरोधी पक्ष नेता थे तब उन्होंने बांटिया आयोग की कार्यशैली पर आक्षेप लगाया था परन्तु यही फडणवीस जब सत्ता में आते हैं तब बांटिया आयोग की रिपोर्ट को जैसे का तैसा स्वीकार करते हैं और सुप्रिम कोर्ट में दाखिल भी करते हैं। फडणवीस यदि ओबीसी के सच्चे हितचिंतक होते तो उन्होंने सत्ता में आते ही जो पहली बैठक ओबीसी मुद्दे पर बुलाई उस बैठक में ही बांटिया को हटाने का निर्णय लिया होता उनकी जगह ओबीसी कटेगरी से किसी भूतपूर्व विद्वान न्यायाधीश की नियुक्ति की होती। उसी प्रकार नए सिरे से सर्वेक्षण करने के लिए लगने वाली 435 करोड़ रुपए की निधि त्वरित मंजूर किया होता। फडणवीस ने ऐसा कुछ भी न करते हुए बांटिया आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया इसका अर्थ यह भी हुआ कि अजीत पवार व फडणवीस ये दोनों इस मुद्दे पर एक दूसरे से मिले हुए हैं।
ओबीसी की लोकसंख्या कम (37%) दिखाकर ओबीसी आरक्षण कम करना व कम किए गए ओबीसी आरक्षण का टुकड़ा मराठों की थाली में डालना, इस प्रकार का यह षड्यंत्र निश्चित तौर पर है और इस षड्यंत्र में हमारे दोनों ओबीसी नेता भी शामिल हैं। हमारे ये ओबीसी नेता पवार - फडणवीस के षड्यंत्र में क्यों शामिल हुए हैं? क्योंकि इन नेताओं को ईडी सीबीआई का डर लगता है। बिहार के लालू यादव को अनेक बार जेल में डाला परंतु फिर भी लालूजी आज भी संघ-भाजपा के विरोध में आक्रामक होकर खड़े हैं वे हैं सच्चे मर्द ओबीसी नेता। महाराष्ट्र के हमारे ये ओबीसी नेता कुल्हाड़ी का हत्था बनकर अपने ही कुल का काल बने हुए हैं। यह बात जिस दिन सर्वसाधारण ओबीसी कार्यकर्ताओं के समझ में आ जायेगी वह दिन ओबीसी आंदोलन के लिए वास्तव में मुक्तिदिन होगा।
कुल का काल साबित हो रहे ओबीसी नेताओं को किनारे करके नया प्रमाणिक व वैचारिक नेतृत्व तैयार किया गया तभी ओबीसी की भावी पीढ़ियों का भविष्य उज्वल हो सकेगा। तमिलनाडु व बिहार की तरह स्वाभिमानी ओबीसी नेता तैयार करने के लिए हमें नया राजनीतिक विकल्प देना पड़ेगा, उसके लिए हमने 'ओबीसी राजकीय आघाड़ी ' का गठन किया है इस आघाड़ी में प्रामाणिक ओबीसी कार्यकर्ताओं को शामिल होना है। अपने अपने ओबीसी संगठनों व पार्टियों का अस्तित्व कायम रखते हुए इस राजकीय आघाड़ी में शामिल हुआ जा सकता है, होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में हम राजकीय आघाड़ी की तरफ से प्रमाणिक उम्मीदवार खड़ा कर रहे हैं। जिन्हें वास्तव में ओबीसी पर होने वाले अन्याय के खिलाफ आक्रोश है वे इस राजकीय आघाड़ी में शामिल हों!
अन्याय सिर्फ ओबीसी पर हो रहा है ऐसा नहीं है। दलित, आदिवासी, मुस्लिम अल्पसंख्यक जाति जमाती पर भी हो रहा है। दलितों के विकास के लिए सामाजिक न्याय विभाग में रखी 108 करोड़ रुपए की निधि निकालकर वह मराठों की "सारथी' को देने वाले अजीत पवार ही हैं। प्रमोशन में आरक्षण किसने खत्म किया? अजीत पवार ने ही! दलित विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व अन्य योजनाएं लागू करने के लिए 'बार्टी' को निधि नहीं दी जाती उसका जिम्मेदार कौन? अर्थात वित्तमंत्री अजीत पवार ही। कांग्रेस की तरफ से बौद्ध चंद्र कांत हंडोरे ये पहले क्रमांक के उम्मीदवार थे व मराठा भाई जगताप ये दूसरे क्रमांक के उम्मीदवार थे फिर भी कांग्रेस के मराठा सामंतवादियों ने पार्टी का आदेश दरकिनार करते हुए केवल मराठा के नाते भाई जगताप को चुनकर लाया व हंडोरे को पराभूत किया।
सरकार फडणवीस - पेशवा की हो या मराठा चव्हाण - पवार की ओबीसी, दलित, आदिवासी, मुस्लिम इन शोषित समाज घटकों पर अन्याय होते ही रहता है। इसलिए कांग्रेस, राष्ट्र वादी कांग्रेस, शिवसेना, भाजपा व इसी तरह मनसे -फणसे जैसे जातीय वादी पार्टियों के विकल्प के तौर पर नयी समतावादी पार्टी तुम्हें खड़ी करनी ही होगी।
हमारे ओबीसी राजकीय आघाड़ी स्थापित करने के बाद कुछ दलित कार्यकर्ताओं का हमें फोन आया और उन्होंने हमारे साथ मिलकर काम करने की इच्छा जाहिर की, किन्तु आघाड़ी के नाम में सिर्फ ओबीसी शब्द है। दलित आदिवासी अल्पसंख्यक जैसी सभी शोषित जाति जमाती को साथ लेने के लिए हम "ओबीसी - रिपब्लिकन राजकीय आघाड़ी" ऐसा नाम परिवर्तन कर रहे हैं, रिपब्लिकन मतलब पुराने प्रस्थापित दलित नेता नहीं बल्कि रिपब्लिकन मतलब ' फुले अंबेडकर को मानने वाले प्रमाणिक कार्यकर्ता, ऐसा उसका अर्थ होता है।
ओबीसी रिपब्लिकन राजकीय आघाड़ी का अस्तित्व पार्टी के रूप में रहेगा क्या? उसका ध्येय धोरण क्या होगा? उम्मीदवार चुनने की कसौटी क्या होगी? इस विषय पर हम अगले सप्ताह में चर्चा करेंगे! तब तक के लिए -- जय ज्योती , जय भीम सत्य की जय हो!
लेखक -प्रो. श्रावण देवरे मोबाईल- 8830127270
मराठी से हिंदी अनुवाद चन्द्र भान पाल |