ओबीसी आरक्षण के लिए इंपेरिकल डेटा मतलब 'नकटी की शादी में सत्रह सौ बाधाएं'...........! (E3)

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Shrawan Deore

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Jul 18, 2022, 12:45:08 AM7/18/22
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इंपेरिकल डेटा मतलब 'नकटी की शादी में सत्रह सौ  बाधाएं'...........!

 

प्रोफे. श्रावण देवरे

 

इंपेरिकल डेटा इकट्ठा करने में शुरुआत से ही जो टालमटोल चल रहा है वह अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है,2016 से देवेन्द्र फडणवीस ने जो टाइमपास सत्र शुरू किया उसी की पुनरावृत्ति महाविकास आघाड़ी सरकार कर रही है भरपूर टाइमपास करने के बाद .वि..सरकार ने डेटा जमा करने का काम राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपा था , इस आयोग ने डेटा जमा करने के लिए महाराष्ट्र सरकार से 435 करोड़ रुपए मांगा था, डेटा जमा करना मतलब यह एक प्रकार की मिनी जनगणना ही है।

उसके लिए 435 करोड़ रुपए खर्च होना स्वाभाविक ही है, परन्तु पैसा देने वाला मंत्रालय अजीत पवार के पास होने के कारण पैसे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को मिलना संभव ही नहीं है ऐसा  महाराष्ट्र का कोई भी जागरूक व्यक्ति छाती ठोककर सहजता से बता सकता है। क्योंकि अजीत पवार की और पूरी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की छवि दलित - ओबीसी विरोधी होने के कारण पैसे नहीं मिलेंगे सबको यह विश्वास है। इसलिए जबजब यह मुद्दा गले में अटकता था तब तब अध्यादेश निकालकर समय निकाल दिया जाता था, उससे ये सभी ओबीसी नेता राजनीतिज्ञ मुंह बंद करके अपनी फजीहत करा रहे थे।

कुछ भी करके टाइमपास करने की मानो स्पर्धा ही चल रही थी, चुनाव आयोग का अधिकार छीनने की मूर्खता भी करके देख लिया. वहां भी मुंह की खानी पड़ी। पैसे होने के कारण राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को ऐसी वैसी कैसी भी रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया इस रिपोर्ट में ओबीसी की जनसंख्या लगभग 39% तक गई अर्थात रोग से भयंकर दवा हो गई, सुप्रिम कोर्ट ने यह रिपोर्ट खारिज कर दिया और उसके साथ ही आयोग का थोबड़ा भी लाल कर दिया।

इतनी बेइज्जती होने के बाद समर्पित आयोग (डेडिकेटेड कमीशन) नियुक्त करने की अकल आई, काम करने वाला कोई भी हो वह राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग करे या समर्पित आयोग करे पैसे तो लगेंगे ही! अभी तक अजीत पवार ने इस काम के लिए एक रूपया भी नहीं दिया है, ग्राम विकास विभाग ने केवल 24 करोड़ रुपए देना ही मंजूर किया है इतने कम पैसों में काम पूरा करना मतलब किसी तरह काम करने की औपचारिकता पूरी कर देना।

समर्पित आयोग की जो कार्यपद्धति है वह केवल अशास्त्रीय है इतना ही नहीं है बल्कि मूर्खता की पराकाष्ठा है! मतदाता सूची से सरनेम के आधार पर ओबीसी की जनसंख्या तय करना मतलब निरी मूर्खता है! मेरी "बलीराजा" पर लिखी पुस्तक में मैंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि महाराष्ट्र में 96 कुल (सरनेम) ब्राह्मण जाति छोड़कर सभी दलित ओबीसी जातियों में हैं।

उनमें से अकेले मेरा देवरे सरनेम उदाहरण के लिए लिया तो भी पर्याप्त है।

हमने समर्पित आयोग को दिए आवेदन में प्रत्यक्ष चर्चा में भी बताया है कि यह इंपेरिकल डेटा ग्राम सेवक, लेखपाल, ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य पदाधिकारी और उसी प्रकार नगरपालिका महानगरपालिका कमिश्नरों के कार्यालयों में है, ग्रामीण क्षेत्रों में जाति ढूंढ़ने में कोई खास दिक्कत नहीं आएगी क्योंकि गांवों में जातिवार बस्तियां होती हैं। अपने अपने मतदान क्षेत्र में जाति कौन सी है? कौन सी जाति राजनीतिक रूप पिछड़ी हुई हैं इस प्रकार की सब जानकारी ग्रामीण से जिला स्तर के यशस्वी राजनीतिज्ञों के दिमाग के कम्प्यूटर में फीड होता है, ग्रामीण से लेकर जिला पंचायत के चुनावों में ओबीसी चुनाव क्षेत्रों से अब तक सैकड़ों ओबीसी प्रतिनिधि जीतकर आए हैं, एवं पराभूत भी हुए हैं इन सभी वर्तमान भूतपूर्व ओबीसी जनप्रतिनिधियों की मदद से ग्रामीण क्षेत्रों की मतदाता सूचियों का जातिवार वर्गीकरण आसानी से हो सकता है। जहां तक शहरी क्षेत्रों के ओबीसी डेटा का प्रश्न है वहां जातिवार बस्तियां नहीं हैं, तो भी ओबीसी वार्ड से चुनकर आए वर्तमान एवं भूतपूर्व प्रतिनिधियों की मदद लेकर मतदाता सूचियों का जातिवार वर्गीकरण करना आसान हो जाएगा।

जहां जहां जाति की अड़चन आये उस क्षेत्र के स्कूल कालेज के रिकार्ड से जाति खोजी जा सकती है क्योंकि शहर में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम एक दिन के लिए स्कूल जाता ही है! उसके लिए आपको स्कूल कालेज के मुख्याध्यापक, प्राचार्य मदद करेंगे! इन सभी स्थानीय स्वराज संस्थाओं के कार्य क्षेत्र में वास्तव में कौन सी जाति पिछड़ी है उसका आंकड़ा क्या है, उनमें से कौन सी जाति राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है, उसकी जनसंख्या कितनी है और उसी प्रकार 50% की मर्यादा संभालते हुए कितने वार्ड और मतदान क्षेत्र सुरक्षित किए जा सकते हैं, इसकी सटीक जानकारी प्रस्तुत करना अर्थात इंपेरिकल डेटा इकट्ठा करना है! सिर्फ उसके लिए संबंधित शासकीय अधिकारी, उन्हें मदद करनेवाले सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता संबंधित स्कूल कालेज के मुख्याध्यापक - प्राचार्य इन सबको ट्रेनिंग देकर उन्हें इंपेरिकल डेटा मतलब क्या और कैसे इकट्ठा करना है इसकी विस्तृत जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण देना जरूरी है। इसके लिए बड़े पैमाने पर मैन पावर लगेगा, कम्प्यूटर विशेषज्ञ वगैरह लगेंगे उन्हें ट्रेनिंग देना पड़ेगा इसके लिए ही तो राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने 435 रुपए मांगा था, वह पैसा यदि समय पर अजीत पवार ने दिया होता तो अब तक पिछड़ा वर्ग आयोग ने ही यह काम पूरा कर दिया होता ओबीसी आरक्षण गंवाना पड़ा होता।

ओबीसी आरक्षण नष्ट होने से जिस मराठा जाति को सबसे ज्यादा फायदा होने वाला है उनमें से कुछ के हितसंबंधी लोग संबंधित अधिकारियों को फोन कर रहे हैं और डेटा संबंधित गलत जानकारी दे रहे हैं ऐसा बड़े पैमाने पर होने की जानकारी सामने रही है।

समर्पित आयोग जिस पद्धति से काम कर रहा है उसमें इस प्रकार के गलत प्रयास होंगे ही। इस प्रकार इस आयोग के कारण ओबीसी आरक्षण पर आने वाला संकट टलेगा, ऐसा लगता नहीं। आयोग की इस कार्य पद्धति को ही सुप्रिम कोर्ट में चुनौती दी गई तो क्या करेंगे? सरनेम के आधार पर जाति खोजने का अनाड़ीपन तो अड़चन बनने ही वाला है! समर्पित आयोग के एक सदस्य ने मुझे फोन करके बताया कि अब यह जाति खोजने की जिम्मेदारी ओबीसी संगठनों की है। मैंने उससे कहा कि, इन कार्यकर्ताओं को अधिकृत रूप से अधिकार पत्र दो, कार्यपद्धति समझाकर बताने के लिए उन्हें ट्रेनिंग दो संबंधित अधिकारियों को कार्यकर्ताओं की लिस्ट दो! परंतु ऐसा कुछ भी करते हुए समर्पित आयोग का मनमानी कारोबार चल रहा है वैसे दोष उनका नहीं है! उन्हें जो कुछ भी नाममात्र साधन सामग्री  उपलब्ध कराई गई है उसमें ही उन्हें किसी तरह काम पूरा करना है सरकारी नौकर होने के कारण वे सरकार की कमियों, मनमानियों पर बोल भी नहीं सकते।

एक और बात ध्यान में रखनी चाहिए। मध्यप्रदेश की तरह सटीक रिपोर्ट तैयार की गई तो सुप्रिम कोर्ट उसे तुरंत मान्यता देगी इस भ्रम में कोई मत रहना, मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार है और महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी सरकार है। मध्यप्रदेश को मदद करने वाली महाराष्ट्र को पानी में देखने वाली सरकार केन्द्र में है। ईडी, सीबीआई,सुप्रिम कोर्ट,हाई कोर्ट, चुनाव आयोग,इन सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करके केन्द्र सरकार राज्य की भाजपा सरकारों को मदद करती रहती है इन्हीं सब संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करके राज्यों की गैर भाजपा सरकारों को परेशान किया जाता रहता है यह बात ध्यान में रखें तो महाराष्ट्र के समर्पित आयोग को समर्पित होकर ही  ध्यानपूर्वक रिपोर्ट तैयार करनी होगी और ऐसी अचूक रिपोर्ट तैयार करने के लिए उपरोक्त अनुसार मैन पावर, काम पर लगाना पड़ेगा उन्हें भरपूर साधन सामग्री उपलब्ध करानी होगी और उनके प्रशिक्षण पर भी खर्च करना होगा और इसलिए 435 करोड़ रुपए इस आयोग को देना जरूरी था।

वास्तव में उन्हें भरपूर निधि    साधन सामग्री देने की जिम्मेदारी ओबीसी नेताओं की है,मविआ सरकार में दो दिग्गज ओबीसी नेता कार्यरत हैं, मंत्रिमंडल की बैठकों में ये नेता  भजिया पकौड़ी तलने का काम करते हैं क्या? बाहर पत्रकारों से बोलते समय तोते की तरह बोलते हैं ओबीसी सम्मेलनों में एक एक घंटे का भाषण ठोकते हैं, फिर मंत्रिमंडल की बैठक में इनकी जिह्वा तालू में क्यों चिपक जाती है? अजीत पवार के विरोध में बोलने में इन सभी ओबीसी नेताओं की चड्ढी पीली हो जाती है क्या?

कितने दिन अजीत पवार की दहशत में रहकर ईडी सीडी को घबराकर ओबीसी को गड्ढे में डालते रहोगे? नहीं जम रहा है तो साइड में हो जाओ! पद छोड़ दो! हम ओबीसी नेता नहीं हैं ऐसा घोषित करो! तुम साइड में हो जाओगे तभी  नया तरुण नेतृत्व आगे आयेगा!

एक और महत्वपूर्ण डेवलपमेंट बताता हूं-

मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण के लिए जिस ओबीसी महासभा ने राज्यव्यापी बंद आंदोलन किया था उस ओबीसी संगठन ने वहां के स्थानीय निकाय चुनाव में अपने खुद के कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया है। मध्यप्रदेश में प्रस्थापित राजनीतिक पार्टियों को चुनौती देने वाला ओबीसी आंदोलन है इसलिए वहां ओबीसी आरक्षण बचा हुआ है। महाराष्ट्र में ओबीसी संगठनों को एकत्रित होकर "ओबीसी राजनीतिक मोर्चा" स्थापित करना चाहिए और अपने प्रमाणिक ओबीसी कार्यकर्ताओं को आगामी स्वराज संस्थाओं के चुनाव में उतारना चाहिए। प्रस्थापित राजनीतिक पार्टियों के ओबीसी वोटबैंक को जब तक तुम धक्का लगाकर उनके वोटबैंक को खतरे में नहीं डालोगे  तब तक ओबीसी आरक्षण सुरक्षित नहीं रह सकता,यह काले पत्थर की लकीर समझिए!*

 

लेखक- प्रोफे. श्रावण देवरे

मो- 8830127270

मराठी से हिंदी अनुवाद

चन्द्र भान पाल

7208217141

 


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Prof. Shrawan Deore
 
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