१९०१ ई. के अप्रैल में विरजानन्द केदार-बदरीनाथ तीर्थों के दर्शन करने गए थे। उनके साथ गुरुभाई ज्ञान महाराज भी थे। बदरीनाथ के भावभीने परिवेश में ध्यानप्रिय विरजानन्द और भी अधिक अन्तर्मुखी हो उठे। परिव्राजक संन्यासी की इस तीर्थ-परिक्रमा के दौरान उनके पास केवल पाँच रुपए थे। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से अद्वैत आश्रम की परिकल्पना को साकार करने में समर्पित कर दिया।
मायावती से प्रकाशित होनेवाले 'प्रबुद्ध भारत' और स्वामीजी द्वारा संकल्पित आदर्श के अनुरूप वेदान्त के व्यापक प्रचार हेतु विरजानन्द ने मदर सेवियर तथा स्वरूपानन्द के साथ स्वयं को पूर्ण रूप से लगा दिया था। १९०१ ई. के अक्तूबर में 'प्रबुद्ध भारत' पत्रिका के प्रचार हेतु उन्होंने उत्तरी तथा पश्चिमी भारत का दौरा किया। इसी सिलसिले में वे उत्तरप्रदेश, पंजाब, सिन्ध, गुजरात तथा महाराष्ट्र के अनेक स्थानों में गए और अनेक प्रकार के लोगों के सम्पर्क में आए तथा तरह-तरह के अनुभव प्राप्त किए। श्रीरामकृष्ण- विवेकानन्द का भाव किस प्रकार धीरे-धीरे लोगों को यथार्थ कल्याण की ओर प्रेरित कर रहा है, इसे प्रत्यक्ष देखकर वे आशा से उद्दीप्त हो उठे।
साथ ही भारतीय समाज के अति निकृष्ट पहलू के साथ भी उनका यथेष्ट परिचय हुआ। शिक्षित धनिक-वर्ग का जघन्य स्वरूप देखकर वे विस्मित हुए थे। एक ओर जहाँ उन्हें श्रद्धा, प्रीति, स्वागत सत्कार, सरलता देखने को मिले, वहीं दूसरी ओर उन्हें तिरस्कार तथा अपमान के घूँट भी पीने पड़े। यहाँ तक कि किसी-किसी ने उन्हें जूते मारने तक की धमकी दी थी। समदर्शी विरजानन्द ने मान-अपमान - दोनों को ही समान रूप से स्वीकार किया।
--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र {
Katha : Vivekananda Kendra }
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"
Follow Vivekananda Kendra on
blog
twitter
g+
facebook
rss koo
youtube
Donate Online
मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment,
non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by
success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four
outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26