१९०६ से १९१३ ई. तक विरजानन्द अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष रहे। इस आश्रम के लिए यह सचमुच ही एक विशिष्ट समय सिद्ध हुआ। मायावती आश्रम उन दिनों अर्थाभाव के संकट से गुज़र रहा था। विरजानन्द जैसे मितव्ययी, प्रबन्ध-कुशल, धैर्यवान तथा सहिष्णु अध्यक्ष के नेतृत्व की विशेष आवश्यकता थी। उनके कुशल संचालन में आश्रम क्रमशः स्वावलम्बी हो उठा और 'प्रबुद्ध भारत' पत्रिका के प्रसार में भी काफी वृद्धि हुई।
स्वरूपानन्द द्वारा परिकल्पित स्वामी विवेकानन्द के सम्पूर्ण साहित्य का पाँच खण्डों में संकलन तथा प्रकाशन का कठिन उत्तरदायित्व भी उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया। उक्त ग्रन्थमाला (Complete Works of Swami Vivekananda) के अतिरिक्त स्वामीजी की बृहत् अँग्रेज़ी जीवनी (The Life of Swami Vivekananda by his Eastern and Western Disciples) का चार खण्डो में सम्पादन तथा मुद्रण भी स्वामी विरजानन्द का एक अन्य महान योगदान है।
उन दिनों उन्हें सुबह से लेकर देर रात तक कठोर परिश्रम करना पड़ता था। स्वामीजी की जीवनी की पाण्डुलिपि को जब स्वामी सारदानन्द के पास संशोधन हेतु भेजा गया, तो उन्होंने कोलकाता से एक पत्र में लिखा था, 'स्वामीजी की जीवनी के विषय में तुमने जो लिखा है, उसे जहाँ तक सम्भव होगा देख लूँगा। उसके संशोधन का उत्तरदायित्व में स्वीकार करता हूँ, परन्तु कह नहीं सकता कि मैं उसमें विशेष कुछ जोड़ सकूँगा या नहीं।... तुमसे विशेष अनुरोध है कि तुम अत्यधिक परिश्रम करके अपने स्वास्थ्य को चौपट मत कर देना। तुम्हारे न रहने से मायावती आश्रम निश्चित रूप से बन्द हो जाएगा।... मेरी यही प्रार्थना है कि ठाकुर तुम्हें सकुशल रखें।'
विरजानन्द ने अपने गुरुदेव के आशीर्वाद की अलौकिक शक्ति से उत्साहित होकर इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया था। यह कार्य सचमुच ही समग्र राष्ट्र के लिए उनकी एक चिर-स्मरणीय भेंट है।
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कथा : विवेकानन्द केन्द्र {
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सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment,
non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by
success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four
outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26