यहाँ स्मरणीय है कि विद्या मन्दिर तथा सारदापीठ के नाम से जो विशाल शिक्षा-केन्द्र रामकृष्ण मिशन द्वारा परिचालित हो रहे हैं, उसकी नींव जिन लोगों के आशीर्वाद से सिंचित हुई है, उनमें स्वामी विरजानन्द ही प्रमुखतम हैं। स्वामीजी के आदर्श के अनुसार रामकृष्ण मिशन का यह विशेष शिक्षा-प्रयास स्वामी विमुक्तानन्द की कार्य-कुशलता तथा साधना के फलस्वरूप ही साकार हो सका था। स्वामी विरजानन्द के निरन्तर प्रोत्साहन तथा प्रेरणा ने ही स्वामी विमुक्तानन्द में कर्मशक्ति उत्पन्न की थी। स्वामी विरजानन्द प्रायः ही कहते, 'स्वामीजी विमुक्तानन्द के ऊपर सवार हो गए हैं।' प्रायः अपने हर पत्र में स्वामी विरजानन्द उन्हें प्रेरणा देते हुए इस प्रकार लिखते, 'तुम कॉलेज के लिए जो इतना प्रयास कर रहे हो, यह देखकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होती है। श्रीठाकुर और स्वामीजी की इच्छा से यह कार्य सम्पन्न हो जाए, तो सबको बड़ा आनन्द होगा।'
३१ जनवरी १९४० ई. को, स्वामीजी की पुनीत आविर्भाव-तिथि के अवसर पर, मठाधीश विरजानन्दजी के कर कमलों द्वारा ही रामकृष्ण मिशन के सर्वप्रथम कॉलेज - विद्या मन्दिर का शिलान्यास हुआ। १९४१ई. की ४ जुलाई को, स्वामीजी के महाप्रयाण दिवस पर, इस संस्था का कार्य आरम्भ हुआ। श्यामलाताल से विरजानन्दजी का आशीर्वाद तार के माध्यम से आया था - 'इसकी उज्ज्वल सफलता के लिए श्रीरामकृष्ण तथा स्वामीजी की कृपा तथा आशीर्वाद इस पर वर्षित हों। इसके साथ ही मैं अपनी प्रार्थना भी भेजता हूँ।'
-- कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment,
non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by
success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four
outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26