यतो धर्म: ततो जय:

स्वामीजी का आवाह्वान
मार्गरेट तथा उसके कुछ साथी,उन लोगों में से
थे, जो बिना एक भी दिन नागा किये स्वामीजी के भाषणों में उपस्थित
रहते । खुले और उदार मस्तिष्क के धनि, ये लोग स्वामीजी के
वेदान्त-विषयक उपदेशों की सत्यता को स्वीकार करने के लिए पूरी
तरह से तैयार थे ।
एक दिन प्रश्न-उतर की कक्षा के दौरान स्वामीजी
एकाएक खड़े हुए और जोरदार गर्जना करते हुए बोले -'क्या इस
इतने बड़े संसार में २० ऐसे स्त्री-पुरुष भी नहीं है,जो किसी
शहर के मुख्य मार्ग पर सबके समक्ष खड़े होकर यह बोलने की
हिम्मत करें कि उनमें ईश्वरीय अंश मौजूद है। बोलिए आप में से
कौन खड़ा होकर सबके समक्ष यह स्वीकार करेगा ?'
फिर वे बोले - 'क्यों हमें यह स्वीकार करने में डरना चाहिये ?
यदि यह सत्य है कि ईश्वर हममें मौजूद है, यदि हमारा ईश्वर,
सान्निध्य सत्य है, तो फिर हमारे जीवन का क्या लाभ ? ऐसा जीवन
जीने से क्या लाभ ?'
स्वामीजी के कहे ये शब्द मानो उन वास्तविकताओं के संचयित रूप थे,
जो वास्तविकता या सच्चाई स्वामीजी विश्व को सिखाने आये थे।
इन्हीं शब्दों ने मार्गरेट के ह्रदय को अन्दोलित कर दिया तथा वह
स्वामीजी का साथ देने के लिए तत्पर हो उठी। इन्हीं शब्दों ने
उसे इतना प्रोत्साहित किया कि स्वामीजी के नेतृत्व में, उनका
अनुसरण करने की इच्छा उसके मन में तीव्र रूप से जाग्रत हो उठी।