एक बार जब स्वामी विवेकानन्द कलकत्ते में थे तो उन्होंने कल्याण महाराज को हावड़ा स्टेशन से बर्फ लाने के लिये पाँच रुपये दिये। उन्होंने बर्फ का एक बड़ा टुकड़ा सिर पर उठाया, पूरा रास्ता पैदल चलकर स्वामीजी को बर्फ ला दी।
स्वामीजी विस्मित होकर कह उठे, 'तुम इतनी बर्फ को लाये?'
'आपने मुझे पाँच रुपये दिये थे! अतः मैं पाँच रुपये की बर्फ ले आया।'
स्वामीजी ने कहा, 'मैंने तो तुम्हें पाँच रुपये की बर्फ लाने को नहीं कहा।'
स्वामीजी ने उनका सिर बर्फ से पिघले ठण्डे पानी से तर- बतर और उन्हें निश्चल खड़े देखकर कहा,
'कल्याण, अन्त में तुम परमहंस हो जाओगे।'
और कल्याण महाराज वास्तव में ही परमहंस हुए।
वे सर्वदा शान्त, निराडम्बर, तथा प्रशान्त रहे कभी उद्विग्न या घबराहट से व्याकुल नहीं हुए।
वे दृढ़विश्वाससम्पन्न महापुरुष थे।
(स्वामी कल्याणानंद तथा कनखल सेवाश्रम की स्मृतियाँ )
-- कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"
Follow Vivekananda Kendra on
blog
twitter
g+
facebook
rss
delicious
youtube
Donate Online
मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment,
non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by
success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four
outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26