'मन्दिर तथा अस्पताल में एक समान रहो'
अस्पताल में सेवाकार्य के लिए भेजने से पहले कई बार महाराज हमें कुछ निर्देश देकर प्रेरित किया करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर उन्होंने कहा था, 'देखो, यह मन्दिर है और वह अस्पताल है। जब तुम मन्दिर में जाते हो तो वहाँ फलों, फूलों, स्तोत्रों तथा मन्त्रों सहित जाते हो। जब तुम अस्पताल में जाते हो तो वहाँ भोजन-पथ्य, दवाइयों तथा थोड़े-से सहानुभूतिपूर्ण शब्दों सहित जाते हो। दोनों बिल्कुल एक समान हैं। तुम जो कुछ मन्दिर में करते हो और जो कुछ अस्पताल में करते हो वह एक दूसरे से भिन्त्र नहीं है।। यही स्वामी (विवेकानन्द) जी का आदर्श है। अतः, हमेशा ही ऐसी विचारशीलता का दृष्टिकोण रखो। अपना प्रत्येक व्यवहार अतिसावधानीपूर्वक निर्मल रखो। उनके प्रति स्नेही तथा करुणाशील बनो। वे सभी तुम्हारी सहायता चाहते हैं। जाओ!' इस प्रकार के छोटे छोटे उपदेश देकर वे हमें अस्पताल भेजा करते थे।
एक दिन महाराज ने मुझे बताया, 'इसे "Sick-house" (रुग्ण- शाला) के बजाय "Hospital" (अस्पताल) क्यों कहा जाता है? – इसलिये कि हमें Hospitable (सत्कारशील) होना आवश्यक है। जब लोग आते हैं तो सत्कारशीलता मुख्य बात है। इसे भूलो मत। Patient (रोगी) क्या है? वे सभी रोगग्रस्त लोग हैं। उनसे व्यवहार करते समय तुममें Patience (धीरता) अवश्य होनी चाहिये। वे "Patient" (रोगी) कहे जाते हैं क्योंकि वे तुम्हें यह सिखाते है कि धैर्यवान कैसे बना जाए।'
-- कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment,
non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by
success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four
outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26