तुम परमहंस हो जाओगे - 7

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Nov 10, 2024, 9:44:33 AM11/10/24
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महाराज की दिनचर्या

प्रतिदिन प्रातःकाल नाश्ते के बाद मैं उनके कमरे में जाता। फिर हम रोगियों के कक्षों में जाते, वहाँ से बगीचे में, वहाँ काम में लगे लोगों को देखते; फिर गोशाला में; इसके बाद पुस्तकालय में और फिर मन्दिर में जाते। बाद में हम रसोईघर में जाते और सम्भवतः रसोइये को कुछ बताते; फिर वे धीरे धीरे लौट आते। इसके बाद वे कुछ आहार लेते और रोगियों को एक एक कर देखने पुनः अस्पताल जाते। इसमें सन्देह नहीं कि रोगियों को देखने के लिये वहाँ डॉक्टर था। परन्तु डॉक्टर के अतिरिक्त वे स्वयं प्रत्येक रोगी से जान-पहचान रखते थे कि उसे क्या दिया गया है, और वह कैसा अनुभव कर रहा है। वे रोगी के पास बैठ जाते तथा उसका स्पर्श करते हुए कहते, 'कल रात तुम अच्छी तरह सोये थे?' और वे उसका हाल- चाल पूछते। यह सब वे बहुत अच्छे ढंग से पूछते। प्रत्येक रोगी के पास वे काफी समय बिताते। हमारे पास पैंतीस से चालीस रोगी रहते थे - इससे अधिक नहीं। वे प्रत्येक रोगी से बातचीत किया करते थे। यदि कुछ आवश्यकता होती तो वे मुझे कहते कि जाकर अमुक दवाई ले आओ या डाक्टर को बुलाने को कहते। यह हर रोज का नित्यक्रम था।

(स्वामी कल्याणानंद तथा कनखल सेवाश्रम की स्मृतियाँ - स्वामी सर्वगतानन्द)

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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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