थोड़ी-सी सेवा भी अर्थपूर्ण है
एक बार दोपहर के समय एक ऐसा रोगी लाया गया जिस की अवस्था बड़ी खराब थी। उस समय अस्पताल बंद था। रोगी को लानेवाले लोग उसे अस्पताल के बाहर वाली सड़क के पास छोड़ गये। मैं गंगास्नान से लौट रहा था और मैंने उसे सड़क के पास पड़े देखा। मैंने डाक्टर को बुलाया, उन्होंने आकर रोगी की जाँच-परख की और कहा, 'यह जल्दी ही मर जायेगा; अस्पताल में भर्ती करने से कोई लाभ न होगा।' इतना कहकर डाक्टर चले गये। मैं वहाँ से हिल न सका, मैं वहीं रोगी को देखते हुए खड़ा रहा। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये, क्योंकि डाक्टर का आदेश अन्तिम माना जाता था। उस समय मैंने स्वामी कल्याणानन्दजी को देखा जो भीतर से मेरी ओर देख रहे थे। उन्होंने मुझे इशारे से बुलाया ताकि मैं उनके पास जाऊँ और बताऊँ कि क्या बात है। मैंने अन्दर जाकर कहा, 'एक मरीज बाहर सड़क के पास पड़ा है। डाक्टर ने कहा है कि वह किसी भी समय मर सकता है इसलिये उसे भर्ती करने की क्या आवश्यकता है।'
महाराज ने कहा, 'नहीं, दरवाजा खोलो, एक बिस्तर तैयार करो और उसे अन्दर रखो। यदि वह मरे भी तो उसे शान्ति से मरने दो। कम से कम तुम उसकी कुछ सेवा तो कर सकते हो। हम नहीं जानते कि कौन कब मरेगा। यह सेवाश्रम है, सेवा का स्थान है। चाहे तुम दो मिनट की सेवा करो, या दो घण्टे, दो दिन या दो महीने की, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। तुम्हें तो बस उनकी सेवा करनी है। उसे मरने के लिये सड़क पर छोड़ देना! (यह कैसी बात है)?' तुरन्त ही दौड़कर मैंने दरवाजा खोला और अन्य दो लड़कों की सहायता से रोगी को एक खाली कमरे में रखा। महाराज ने आकर उसे देखा। उन्होंने कुछ दवाइयाँ देने के लिये बतायीं और उसे थोड़ा ग्लूकोज का पानी तथा नीम्बू का शरबत देने के लिये मुझे कहा। मैंने उसे ये दिये। चार घण्टे बाद वह चल बसा। फिर महाराज ने आकर कहा, 'देखो, अब यह देखना तुम्हारा उत्तरदायित्व है कि अन्त्येष्टि अनुष्ठानों का पालन हो। अतः अब तुम इस देह को गङ्गा के किनारे ले जाओ और दाहकर्म सम्पन्न करो। ये सभी बातें लोगों के लिये सहायक हैं। वे दूर गाँवों से आते हैं। वे और कहाँ जा सकते हैं?' इसलिये हमने दाहसंस्कार का भी प्रबन्ध किया और इस बारे में उसे लानेवाले दो व्यक्तियों को बताया। वे बड़े प्रसन्न थे। नहीं तो वे उसे लेकर जाते भी कहाँ ? इस प्रकार महाराज यह बात विशेष ध्यान से देखते थे कि अल्पतम सेवा भी की जाये। यदि आप केवल कुछ ही मिनटों के लिये सेवा करते हैं तो वह भी महत्त्वपूर्ण है। बात यह नहीं कि आप कितनी देर सेवा कर रहे हैं जिसकी जरुरत है वह अवश्य ही करना होगा।