आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 14

11 views
Skip to first unread message

Katha Vivekananda Kendra

unread,
Oct 26, 2024, 10:40:17 AM10/26/24
to daily-katha
अध्यक्ष होने के शीघ्र बाद ही विरजानन्दजी हृदय तथा यकृत के रोगग्रस्त हो गए। पर उन्हें कर्म से भला कहाँ विश्राम था ! मठ तथा मिशन के विभिन्न दायित्वपूर्ण कार्यों में लगे रहने के बावजूद संघ-संचालन की विभिन्न छोटी-मोटी बातों पर भी उनकी सदा सतर्क दृष्टि लगी रहती थी। संघ के संन्यासियों के आध्यात्मिक जीवन के नियोजन के लिए विशेष प्रयत्न करना भी संघनायक विरजानन्दजी का एक प्रमुख लक्ष्य था। उनके निरभिमान नेतृत्व में एक अद्भुत आकर्षण था। संघगुरु होकर भी सभी संन्यासियों के श्रेष्ठ सेवक के रूप में अपना परिचय देते हुए उन्हें एक असाधारण गौरव-बोध होता था। अपने संन्यासी-शिष्यों को उपदेश देते समय उन्हें यह कहते सुना गया है, 'अपने संघ के संन्यासी-सेवकों के प्रमुख संन्यासी-सेवक के रूप में, मैं अपने प्रेम और उससे भी अधिक अपने कर्तव्य द्वारा, अपने जीवन की अन्तिम साँस तक तुम सबकी सेवा करने को बाध्य हूँ।'

अपने गुरुदेव के आदेश का अक्षरशः पालन करना ही विरजानन्दजी के जीवन का व्रत था। इसीलिए उनके बाद के जीवन में पग-पग पर, उनके हर वाक्य में, स्वामीजी का आदेश तथा इच्छा को साकार करने की कामना ही व्यक्त हुई है। स्वामीजी द्वारा परिकल्पित संघ की कार्यप्रणाली के वे ही सर्वश्रेष्ठ धारक तथा वाहक थे। स्वामीजी की कल्पना का भारत उनके भी ध्यान में प्रकट हुआ था। 'सम्पूर्ण विश्व की मुक्ति भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण पर ही निर्भर है' स्वामीजी के इस सन्देश का प्रचार करते हुए वे सारे भारत का दौरा करते रहे। उनके गुरुदेव की आकांक्षाएँ उनके मनश्चक्षुओं के समक्ष मानो वास्तविक रूप धारण कर लेती थी। स्वामीजी की जन्म शताब्दी के अवसर पर बेलूड़ मठ में जिस 'विवेकानन्द विश्वविद्यालय' की स्थापना का प्रयास हुआ था, उसके काफ़ी पूर्व ही विरजानन्दजी ने एक व्याख्यान में उसकी परिकल्पना देते हुए कहा था, 'मैं निश्चित रूप से विश्वास करता हूँ कि मेरे परम प्रिय आचार्य की जाग्रत भारत की आकांक्षा अवश्य पूर्ण होगी। कुछ वर्ष पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि स्वामीजी के निर्देश के अनुरूप गंगा के तट पर श्री रामकृष्ण की स्मृति में एक भव्य मन्दिर इतनी शीघ्र स्थापित हो सकेगा। और अब मिशन स्वामीजी की भविष्य दृष्टि के अनुरूप एक कॉलेज स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, जो सम्भवतः विश्वविद्यालय का केन्द्र-स्वरूप हो।'

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages