आप किस श्रेणी के आतंकवादी हो

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Tausif Hindustani

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Oct 27, 2010, 4:06:51 AM10/27/10
to चिट्ठा चर्चा
आज हम अधिकांश लोगों द्वारा ये वाक्य सुनते हुए मिल जायेंगे की " हर
मुसलिम आतंकवादी नहीं होता किन्तु हर आतंकवादी मुसलिम होता है "
लेकिन अभी जब प्रणब मुखर्जी और मीडिया द्वारा भगवा आतंकवाद या हिन्दू
आतंकवाद का नाम लिया गया तो पुरे हिंदुस्तान से इसके विरुद्ध आवाज़ उठने
लगी ,
आखिर हम आतंकवादियों को किस श्रेणी में रखें , धार्मिक श्रेणी में या
भौगोलिक श्रेणी में , क्योंकि ये जो बिहार, बंगाल, आँध्रप्रदेश ,
असम , छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखण्ड , उड़ीसा , और न जाने किते राज्यों
में माओवादी ,नक्सलवादी बेगुनाहों को आये दिन मार रहे हैं , वोह कौन से
श्रेणी के आतंकवादी हैं , हिन्दू या मुस्लिम , जो पंजाब में इतने सिख
आतंकवाद के नाम पर मारे गए उनको किस आतंकवादी के नाम से बुलाएँगे , ये
श्रीलंका में जो इतने तमिल लोगों ने राजीव गाँधी की हत्या की तथा इतना
बम धमाके किये, न जाने कितने बेगुनाहों को बम से उड़ाया, तथा दुनिया कि
सबसे अधिक फिदायीन दस्ते बनाये ,वो कौन से आतंकवाद के श्रेणी में आता
है .जिन सिखों ने इन्द्रा गांधी जी को गोलियों से भुना , उनको किस
आतंकवाद के नाम से बुलाएँगे , जिस आर एस एस के स्वयं सेवक नाथूराम
गोडसे ने गाँधी जी को गोली मारी, उसको आतंकवाद के किस श्रेणी में
रखेंगे . हद तो यह है कि हमेशा , ऐसे लोगों को दोगले नज़र से देखा
गया , एक अगर अपराधी मुस्लिम है तो पक्का आतंकवादी , जैसे
सोहराबुद्दीन ,और अगर वो गैर मुसलिम है तो छोटा मोटा अपराधी, अगर दाऊद
है तो देशद्रोही , छोटा राजन है तो गैंगेस्टर . मीडिया से लेकर सरकारी
तंत्र तक इस दोगलेपन में भागीदार है, अगर अपने देश के लिए भगत सिंह जैसे
महान क्रातिकारी व देशभक्त लड़े तो शहीदे आज़म कि पदवी , और अगर कोई
फलिस्तीनी अपने देश के लिए लड़े अपना हक जो उस से छीन लिया गया है पाने
के लिए लड़े तो मिलिटेंट , उग्रवादी है , वाह रे वाह क्या इन्साफ है !
अगर कश्मीरी अपनी आजादी के लिए लड़े तो दहशतगर्द और अगर पूर्वी तिमोर के
लोग लड़े इंडोनेशिया से तो यही संयुक्त राष्ट संघ उसको अलग देश घोषित
करके आजादी दिलवाता है क्योंकि पूर्वी तिमोर कि बहुसंख्यक आबादी इसाई है
( यहाँ मैं कश्मीर कि आजादी की बात नहीं कर रहा हूँ केवल दोगलापन
दिखाने के लिए उदहारण मात्र है)
ऐसे दोगलेपन से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं फिर भी हमारे मन व मस्तिष्क में
इस के विरुद्ध कोई विचार नहीं आता क्योंकि हम भी इसके आदी हो चुके हैं ,
आज दौर है मीडिया का विज्ञापन का जो वो हमें दिखाते हैं वही हम देखते
हैं ,
आइये हम इस दोगलेपन के खिलाफ आवाज़ उठाये वरना ऐसा न हो जाये कि हमें
विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ते हुए धर्म इस्लाम और विश्व कि दोसरी सबसे
बड़ी जनसख्या हम से ही इतनी दूर न हो जाये कि सभी मुसलिम अपने को
आतंकवादी समझने लगे , ये किसी भी समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं है
हमें आतंकवादी और अपने देश के लिए तथा अपना हक प्राप्त करने के लिए
लड़ने वालो में अंतर करना सीखना होगा
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