फिर खुला मैंने दिल का दर रक्खा
खाहिशों से सजा के घर रक्खा.१
मैं निगहबाँ बनी थी औरों की
अपने घर को ही दाव पर रक्खा.२
मँजिलों की तलाश में भटकी
साथ फिर भी न राह पर रक्खा.३
तीर पहुंचा मुकाम पर अपने
यूं निशनाने पे अपना सर रक्खा.४
कुछ कहा और कुछ न कह पाए
जब्त खुद पर उम्र भर रक्खा.५
सोचना छोड़ अब तो ऐ देवी
फैसला जब अवाम पर रक्खा.६