कितना मुश्किल हो गया

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मेरे अपने अहसास

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Nov 19, 2006, 3:40:12 PM11/19/06
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ग़ज़ल: ४७

आँसुओं का रोक पाना कितना मुश्किल हो गया
मुस्करहट लब पे लाना कितना मुश्किल हो गया.१

बेखुदी में छुप गई मेरी खुदी कुछ इस तरह
ख़ुद ही ख़ुद को ढूंढ पाना कितना मुश्किल हो गया.२

जीत कर हारे कभी, तो हार कर जीते कभी
बाज़ियों से बाज़ आना कितना मुश्किल हो गया.३

बिजलियूँ का बन गया है वो निशाना आज कल
आशियाँ अपना बचाना कितना मुश्किल हो गया.४

हो गया है दिल धुआँ सा कुछ नज़र आता नहीं,
धुंध के उस पार जाना कितना मुश्किल हो गया.५

यूँ झुकाया अपने क़दमों पर ज़माने ने मुझे
बंदगी में सर झुकना कितना मुश्किल हो गया.६

साथ देवी आपके मुश्किल भी कुछ मुश्किल न थी
आपके बिन मन लगाना कितना मुश्किल हो गया.७

**

ग़ज़ल: ४८

दोस्तों का है अजब ढ़ब, दोस्ती के नाम पर
हो रही है दुश्मनी अब, दोस्ती के नाम पर.१

इक दिया मैने जलाया, पर दिया उसने बुझा
सिलसिला कैसा ये या रब, दोस्ती के नाम पर.२

दाम बिन होता है सौदा, दिल का दिल के दर्द से
मिल गया है दिल से दिल जब, दोस्ती के नाम पर.३

जो दरारें ज़िंदगी डाले, मिटा देती है मौत
होता रहता है यही सब, दोस्ती के नाम पर.४

किसकी बातों का भरोसा हम करें ये सोचिए
धोखे ही धोखे मिलें जब, दोस्ती के नाम पर.५

कुछ न कहने में ही अपनी ख़ैरियत समझे हैं हम
ख़ामुशी से है सजे लब, दोस्ती के नाम पर.६

दिल का सौदा दर्द से होता है देवी किसलिए
हम समझ पाए ना ये ढ़ब, दोस्ती के नाम पर.७

**
ग़ज़ल: ४९
उस शिकारी से ये पूछ पैर क़तरना भी है क्या?
पर कटे पंछी से पूछो उड़ना ऊँचा भी है क्या?

आशियाँ ढूंढते है, शाख से बिछड़े हुए
गिरते उन पतों से पूछो, आशियाना भी है क्या?

अब बायाबान ही रहा है उसके बसने के लिए
घर से इक बर्बाद दिल का यूँ उखाड़ना भी है क्या?

महफ़िलों में हो गई है शम्अ रौशन , देखिए
पूछो परवानों से उसपर उनका जलना भी है क्या?

वो खड़ी है बाल बिखेरे आईने के सामने
एक बेवा का संवरना और सजना भी है क्या.
पढ़ ना पाए दिल ने जो लिखी लबों पे दास्ताँ
दिल से निकली आह से पूछो कि लिखना भी है क्या.

जब किसी राही को कोई राहनुमां ही लूट ले
इस तरह देवी भरोसा उस पे रखना भी है क्या.

**
ग़ज़ल: ५०

यूँ मिलके वो गया है कि मेहमान था कोई
वो प्यार नहीं मुझपे इक अहसान था कोई.१

वो राह में मिला भी तो कुछ इस तरह मिला
जैसे के अपना था न वो, अनजान था कोई.२

घुट घुट के मर रही थी कोई दिल की आरज़ू
जो मरके जी रहा था वो अरमान था कोई.३

नज़रें झुकी तो झुक के ज़मीन पर ही रह गई
नज़रें उठाना उसका न आसानं था कोई.४

था दिल में दर्द, चेहरा था मुस्कान से सज़ा
जो सह रहा था दर्द वो इन्सान था कोई. ५

उसके करम से प्यार-भरा, दिल मुझे मिला
देवी वो दिल के रूप में वरदान था कोई.६


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