प्रेम का चक्कर

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kavyakala

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Nov 19, 2006, 10:35:03 AM11/19/06
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प्रेम के चक्कर में जो इन्साँ पड़ा
बड़ा घनचक्कर उसे कहते हैं हम।
प्रेम से भोजन बड़ा है
बात यह पूरी सही कहते हैं हम।
प्रेम न करने से कोई
मृत्यु को पाता नहीं
किन्तु भोजन के बिना
मर जाओगे निश्चय ही तुम।
प्रेम के चक्कर में यारो पड़े तो
दुःख ही दुःख सदा पाओगे तुम।
लैला मजनू, हीर राँझा
की मिसालें याद हैं।
प्रेम के कारण मरे सब
तुमसे यह फरियाद है।
प्रेम ही करना है यदि तो
प्रेम भोजन से करो।
मरना ही है यदि तो मित्रो
रसमलाई पर मरो।
मुक्ति मिल जाएगी निश्चय
तृप्त होकर यदि मरो।

...लक्ष्मीनारायण गुप्त
...१९ नवम्बर २००६


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