(भ्रान्तियों का निवारण और मेरा मत)
- कुशाग्र अनिकेत
कुछ लोग कहते हैं कि “दशमी” शब्द स्त्रीलिंग है, जिसके कारण उसका विशेषण “विजया” भी स्त्रीलिंग होना चाहिए। इस प्रकार “विजयादशमी” की निष्पत्ति होती है। किन्तु सोचिए - संस्कृत के शब्दों की सिद्धि में संस्कृत का व्याकरण काम आएगा अथवा हिन्दी का? इस भ्रान्ति से मुक्त हुए बिना इस प्रश्न का समाधान संभव नहीं है।
सबसे पहले विचारणीय है कि क्या “विजय” दशमी का विशेषण है? हाँ, इसे बहुव्रीहि समास (विशिष्टो जयो यस्य सः) के रूप में देखकर “विजय” को विशेषण माना जा सकता है। यदि “विजय” विशेषण है, तो इसका स्त्रीलिंग रूप “विजया” होगा। किन्तु “दशमी” के साथ समस्त पद में पुनः स्त्री-प्रत्यय का लोप होकर “विजयदशमी” बन जाएगा।
वहीं दूसरी ओर यदि “विजय” दशमी का विशेषण नहीं है, तो स्त्रीलिंग में “विजया” बनने का प्रश्न नहीं उठता, उसी प्रकार जैसे व्यक्तिवाचक संज्ञा “राम” का स्त्रीलिंग “रामा” नहीं बनता। इस मार्ग से चलने पर पुनः “विजयदशमी” ही प्राप्त होता है।
इस प्रकार दोनों मार्ग बन्द हो गए किन्तु विजयादशमी का पर्व आ गया। समाधान यह है कि यहाँ नामवाचक संज्ञा “विजय” नहीं, अपितु “विजया” है। विशिष्ट जय से सम्बद्ध तिथि को विजया कहते हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी का नाम ही “विजया” है - “आश्विने शुक्लदशमी विजया सा प्रकीर्तिता”*।
इसके अतिरिक्त जो देवी विशिष्ट जय से संपन्न हैं, उन्हें विजया कहते हैं। देवी का यह नाम अनेक पुराणों में आया है।-
विजित्य पद्मनामानं दैत्यराजं महाबलम् ।
विजया तेन सा देवी लोके चैवापराजिता ॥**
इस प्रकार “विजया” नामक देवी से संयुक्त दशमी को भी “विजयादशमी” (विजयाया दशमी अर्थात् विजया की दशमी) कहते हैं।
अब हमने दोनों शब्द - “विजयदशमी” और “विजयादशमी” - सिद्ध कर लिए। प्रश्न है कि इनमें शुद्ध कौन है? व्याकरण की दृष्टि से दोनों शुद्ध हैं - विजयदशमी का अर्थ है विजय की दशमी और विजयादशमी का अर्थ है विजया देवी की दशमी।*** केवल “विजया” अथवा “विजया दशमी” (दो भिन्न शब्द) लिखना भी शुद्ध है।
कहा गया है “प्रयोगशरणा वैयाकरणाः” अर्थात् वैयाकरण भाषा के प्रयोग की शरण लेते हैं। पुराणों में प्रायः “विजया” और “विजया दशमी” के अतिरिक्त वीरमित्रोदय (१७ वीं शताब्दी) के समयप्रकाश में स्पष्ट आया है - “आश्विनशुक्लदशमी विजयादशमी” अर्थात् आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी ही विजयादशमी है। यहाँ समस्त पद प्रयोग द्रष्टव्य है। सामान्य वार्तालाप में भी यह शब्द प्रचलित है।
ध्वनि की दृष्टि से भी “विजयादशमी” अधिक हृदयङ्गम प्रतीत होता है। “आ”-प्रत्यय का लोप नहीं होने के कारण इस शब्द का उच्चारण करते ही इसके अर्थ से अभिज्ञ सहृदयों के सम्मुख देवी विजया की छवि प्रस्फुटित हो जाती है। पुनश्च “विजयादशमी” कहने पर “विजयदशमी” के गुणों की हानि नहीं होती। “विजयदशमी” में क्रमशः पाँच लघु वर्ण आ जाने के कारण इसका श्लोकों में प्रयोग न्यून दिखता है। इस प्रकार विचारने पर भी “विजयादशमी” में काव्यात्मकता का आधिक्य दिखता है।
इस “विजयादशमी” पर्व का नाम कहीं कहीं “विजयोत्सव” भी मिलता है। कालान्तर में यही पर्व “दशहरा” के नाम से प्रसिद्ध हो गया, यद्यपि प्राचीन काल में ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाए जाने वाले गंगा के पर्व को “दशहरा” कहते थे। इन शब्दों पर बहुत विचार करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि ये इस पर्व के लिए प्रचलित भी हैं और व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध भी।
यह सत्य है कि कुछ ग्रन्थों में “विजयादशमी” के स्थान पर “विजयदशमी” प्राप्त होता है। “विजयदशमीनिर्णय” नामक एक कर्म-काण्ड का ग्रन्थ भी मिलता है। प्रयोग और व्याकरण से पुष्ट होने के कारण “विजयदशमी” को भी ग्रहण कर सकते हैं किन्तु उपर्युक्त प्रमाणों और तर्क के आधार पर “विजयादशमी“ प्रामाणिक, प्रचलित और प्राचीन प्रयोग है - यह मेरा मत है।
* नारदपुराण, पूर्वार्धः, ११९.२०
* शब्दकल्पद्रुम में उद्धृत देवीपुराण ४५ अध्याय।
**विजयस्य / विजयाय दशमी। विजयाया दशमी।
On Oct 14, 2024, at 2:11 AM, Rangachari Sridharan <sridh...@gmail.com> wrote:
Will Panini 6.3.34 not apply in this case and the pumvad form vijaya be the purvapada in the samasa?
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अति आनंददायक व्याख्या🙏
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Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Chair Professor (Retd.), IIT-Madras.
Former Director, Karnataka Samskrit
University, Bangalore.
Former Head, Dept. of Sanskrit, The
National Colleges, Bangalore.
On Nov 3, 2024, at 8:29 PM, K S Kannan <ks.kann...@gmail.com> wrote:
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