Navratra prayers Hawan

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subodh kumar

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Oct 15, 2012, 10:27:24 PM10/15/12
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Dear All Ved lovers,
On the auspicious occasion of beginning of Navaratras, kindly allow me to share with all my loved   Vedic sookt  praying for blessings and bounties  from Rig ved 10.128 repeated in Atharv Ved as 5.2. These mantras are excellent mantras for prayer as well as for Agnihotra.

Yajna mantras for prosperity

AV5.3, RV10.128,

(ऋषि: - विहव्य आंगरस – विहव्य  =विशिष्ट हवि का उपदेश करने वाला, आंगिरस – विलासी न होने वाला )

देवता: - विश्वेदेवा: = विश्व के समस्त देवता  

 

ममाग्ने वर्चो विहवेष्वस्तु वयं त्वेंधानास्तन्वयं पुषेम !

प्रदिशश्चतस्रस्त्वयाध्यक्षेण पृतना जयेम !! अथर्व 5.3.1, ऋ10.128.1

यज्ञाग्नि की दीप्ति मेरे हृदय में प्रकाश स्थापित करके मुझे वर्चस्वी बनाए. (वातावरण और शरीर की  स्वच्छता से )  मेरे शरीर  (स्वस्थ) पौष्टिक बने   जिस से मैं जीवन संग्राम में आप (परमेश्वर ) की अध्यक्षता में चारों  दिशाओं की  सब बाधाओं  को निम्न कर के विजयी बनूं . 

 

अग्ने मन्युं प्रतिनिदन्‌ परेषां त्वं नो गोपा: परि पाहि विश्वत: ।

अपाञ्चो यन्तु निवता दुरस्यवो sमैषां  चित्तं प्र बुधां वि नेशत्‌ ॥AV 5.3.2, RV 10.128.6

 

 

 

मम देवा विहवे सन्तु  सर्वइन्द्रवन्तो  मरुतो  विष्णुरग्नि: ।

ममान्तरिक्षमुरुलोकमस्तु मह्यं वात: पवतां कामे अस्मिन्‌ ॥ अथर्व 5.3.3. , ऋ10. 128.2 

 

मह्यं यजन्तां मम यानीष्टाकूति: सत्या मनसो मे अस्तु !

एनो मा नि गां कतमच्चनाहं विश्वे देवा अभि रक्षन्तु मेह!! अथर्व5.3.4, 10/128/4

 

मम- मेरे, यानि इष्टा -जो अभीष्ट सुख दायक पदार्थ  हैं वे,मह्यम- मुझे

यजन्ताम्- प्राप्त हों,मे- मेरे,मनस: आकूति: -मन का सन्कल्प,सत्या अस्तु - सत्य सिद्ध हो,अहं मैं,कतमत् चन -किसी भी,एन:- पाप को,मा निगाम् -न प्राप्त करूं,विश्वे देवा: - सब देवता ,इह यहां, अभिरक्षंतु- मेरी रक्षा करें

 मेरे अभीष्ट जो सुख दायक पदार्थ हैं  वे मुझे प्राप्त हों. मेरे संकल्प सत्य सिद्ध हों.मैं ऐसे कर्म  करूं जिन   का फल दुखदायी न हो.

 

मयि देवा द्रविणमा यजन्तां मय्याशीरस्तु मयि देवा हूति: !

दैवा होतार: सनिषन् ना एतदरिष्टा: स्याम तन्वा सुवीरा: !! अथर्व5/3/5 ,

10/128/3

देवा:- देवगण,मयि -मेरे लिए,द्रविणम् - धन बल सामर्थ्य,आयजन्ताम्- प्रदान करें,मयि आशी: -मुझ पर मेरे यज्ञों के फल का आशीर्वाद बना रहे, मयि देवहूति: -मुझ मे यज्ञादि मे देवताओं का आह्वान  करने की श्रद्धा ,अस्तु- बनी रहे ,दैव: होतार: -यज्ञ करने वाले होता गण,न एतत् सनिषन्- हमारे समीप हों,तन्वा- शरीर से ,अरिष्ट: - निरोग तथा,सुवीरा:-  वीर पुत्रों वाले,स्याम - होवें

दैवी: षडवीरु रु न: कृणोत विश्वे देवास इह मादयध्वम!

मा नो विददभिभा मो अशस्तिर्मा नो विदद् वृजिना द्वेष्या या !! अथर्व 5/3/6,  

 

सृष्टि की छह दैवी सम्पदाएं ( पृथ्वी, आकाश, जल, औषधि,दिन और रात्रि) हमारी विस्तृत सम्पदा बन कर हमें आनन्दित करें. हम उन का तिरस्कार करने का पाप न करें

Nature’s six majestic gifts Earth, Atmosphere, Waters, Herbal medicines, Days and Nights should be available as our wealth for our welfare and prosperity. May we never junk them.

 

 

दैवी: षडवीरु रु न: कृणोत विश्वे देवास इह वीरयध्वम्‌

मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रधामा द्विषते सोम राजन् ॥ ऋ10/128/5

सृष्टि की छह दैवी सम्पदाएं ( पृथ्वी, आकाश, जल, औषधि,दिन और रात्रि) हमारी विस्तृत सम्पदा बन कर हमें आनन्दित करें. हम पुत्रादि सन्तान से वञ्चित न हों , हमारे अहित करने वाले ज्ञानी शत्रु हमारे वश में रहें .

तिस्रो देवीर्महि न: शर्म यच्छत प्रजायै नस्तन्वे3 यच्च पुष्टम् !

मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रधाम द्विषतेसो मा राजन् !! अथर्व 5/3/7

 

तीनों दैवी सम्पदाएं वाणी,पृथ्वी और सरस्वती हम को प्रचुर सुख प्रदान करें.  पुष्टीकारक अन्नादि पदार्थ  हमारे स्वास्थ्य, शारीरिक बल , की वृद्धि करें. हम पुत्रादि सन्तान से वञ्चित न हों , हमारे अहित करने वाले ज्ञानी शत्रु हमारे वश में रहें.

Three great blessings the faculties of Speech, Culture of civilization, and Mother Earth, enabled by good rule of law, may provide us  and our progenies, with (health, strength  and vigor) with good nutrition.

उरूव्यचा नो महिष: शर्म यच्छत्वस्मिन् हवे पुरुहूत: पुरुक्षु !

स न: प्रजायै हर्यश्व मृडेन्द्र मा नो रीरिषो मा परा दा: !! अथर्व  5/3/810/128/8

 इस मानव जीवन की रणभूमि में वह परमपिता परमेश्वर हमें और हमारे परिवारों को सुखदायक  आवास, आहार से तृप्त रखे और अनिष्टों से सुरक्षित रखें

धाता विधाता भुवनस्य यस्पतिर्देव: सविता भिमातिषाह:!

आदित्या रुद्रा अश्विनोभा देअवा: पांतु यजमानं निरृथात् !! अथर्व 5/3/9. 10/128/7

सब का धारक  धाता, सब का रचयिता ब्रह्मा और सब भुवनों की पालन हारि दैवी शक्तियां, अभिमानक शत्रुओं के विनाश में रुद्र और आदित्य अश्विनी देव यजमान को अनिष्ट कारी पाप से बचाएं.

ये न: सपत्ना अपा ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामह एनान् !

आदित्या रुद्रा उपरिस्पृशो न उग्रं चेत्तारमधिराजमक्रत !! अथर्व 5/3/10

ये न: सपत्ना अप ते भवन्ति न्द्राग्निभ्यामवा बाधामहे तान् !

वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशं मोग्रं चेत्तरमधिराजमक्रन् !! 10/128/9

अपनी आत्मा में अग्नि और इन्द्र के स्थापत्य से हम अपने शत्रुओं को नष्ट करें, रुद्र और आदित्य हमारी चेतना  मे  स्थापित  हो कर हमें , उग्र , बुद्धि से संसार मे प्रतिष्ठित पद पर आसीन करें

अर्वाञ्चमिन्द्रममुतो हवामहे यो गोजिद् धनजिदश्चजिद् य: !

इमं नो यज्ञं विहवे शृणोत्वस्माकमभूर्हर्यश्व मेदी !! अथर्व 5/3/11

इंद्र से प्राप्त सामर्थ्य से हम गोधन, सम्पन्नता  से  युक्त होने के यज्ञ मे प्ररित रहें. हमें हर्यश्व प्राप्त हों

 



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Subodh Kumar,
C-61 Ramprasth,
Ghaziabad-201011
Mobile-9810612898
Maharshi Dayanand Gosamwardhan Kendra , Delhi-96
A bird sitting on a tree is never afraid of  the branch breaking, because his trust  is NOT  on the branch but on it's own WINGS !!
Believe in yourself & WIN the world..
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subodh kumar

unread,
Oct 16, 2012, 12:01:56 AM10/16/12
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This Ved Sookt is being reposted with my aplogies for having failed to include my interpretation of a few mantras.
The complete sookt is sent here again.
Subodh Kumar

2012/10/16 subodh kumar <subod...@gmail.com>
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