तूने गुलज़ार सजाया जो
महक आती है
तूने था प्यार लुटाया जो
महक आती है
तेरी मुस्कान पे होते थे फिदा
बहुत रोए सब जब हुए थे जुदा
तुने किरदार निभाया जो
जो महक आती है
अब भी तेरी महफ़िल में वही उजाला है
चाबी बदली है पर वही ताला है
तूने दरबार सजाया जो
महक आती है
दूर दूर तक फैली है कहानी तेरी
हर एक दास्तान हैं नूरानी तेरी
इल्म तूने हैं लुटाया
जो महक आती है
अब भी हम भूलें तो समझाता है तू
गुमराह होते हैं तो सँभालता है तू
तूने ऐतबार बनाया जो
महक आती है
“मस्त” वो एहसास ओ विश्वास बनाए रखना
मेरे मुरशिद हमें चरनों से लगाए रखना
तूने सत्कार दिलाया जो
महक आती है।
बाबा हरदेव