कश्ती क्या होती गर पतवार न होता
हस्ती क्या होती गर यार न होता
नार कया होती गर शिंगार न होता
समंदर क्या होता गर कोई तलबगार न होता
ख़रीदार न होते गर तो बाज़ार कया होता
वहार कया होती गर गुलज़ार न होता
शायर क्या होता गर आशार न होता
प्रेमी कहॉं होते गर प्यार न होता
बंदा कया होता ग़र परवरदिगार न होता
“मस्त” कया होता गर गुरू दुआर न होता।