Fwd: Pressure Cooker का भोजन ना करें |

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गिरिराज डागा

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Jul 21, 2015, 11:10:55 PM7/21/15
to admi...@acharyakulam.org, in...@rajivdixit.net, JAAGO INDIA !! JAAGO STOP CORRUPTION..SAVE INDIA !!, JANOKTI : जनोक्ति : राज-समाज और जन की आवाज, Yuva Bharath (Official), (swamee shree ji ) swamee shree param chetana nand ji, Ajit Rajput, AMIT MISHRA, ARYA NIRMAN RASHTRA NIRMAN, Ayushi Garg, Bhagat Singh Kranti Sena, BHARAT BHARTIYA, Bharat Nirman Sena, BHARAT SWABHIMAN, bharat-chintan, bharat-jagruti-morcha, BHARATIYA YUVA KRANTIKARI SANGATHAN, bharatswabhiman.raipurcity, bharatswabhimantrust, bishnupriya dash, BST- Swami Ramdev Fan, BST-Moderator, bstbilaspurcg, bstchhattisgarh, budh pal singh Chandel, CITIZEN Forum, damodarshetty, debakanta sandha, Deepak Sharma, dilip makwana, Dinesh Bisht, Dinesh Jakhar, dinesh pandey, dona...@divyayoga.com, Dr ved partap vaidik, fight-against-corruption-in-india, Ganesh Sharma, Girish Chaturvedi, Gurudutt Marathe, headoffice bharatswabhiman, hindusthankiaawaz, india-against-corruption-nagpur, JAAGO BHAARAT JAAGO, jainsamaj, Jugal Kishore Somani, Krantikari, Krishna Kumar, Latha Purushotham, National Spirit, Navneet Singhal, Nitin Sonawane, Oum Bharti, Patanjali Yog Peeth Haridwar, Patanjali Yogpeeth, pinki jan, prahlad mewada, Prem Sagar, protect your freedom, Rahul Mehta, sandesh, santosh vishwakarma, satyapravah, sawdeshi bharat pitham, Shiwshankar Chavan, Subroto Mukherjee, sudhir sahni, swadeshibharatpeethamtrust, VBtech, vrg....@nic.in, yashpal.genius, Zakir Naik, प्रदीप दीक्षित, भाजपा संवाद प्रकोष्ठ - मुम्बई, भारत स्वाभिमान आन्दोलन, राजीव दीक्षित स्मृति स्वदेशी उत्थान संस्था, सम्पूर्ण भारत २.० - सिर्फ हिन्दू, स्वदेशी मेला

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भोजन को बनाते समय, पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश अगर नहीं मिला, किसको ? भोजन को, जिस भोजन को आप बना रहें है, पका रहे हैं, उसे पकाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश नहीं मिलें तो वो भोजन कभी नहीं करना । कयों? ये भोजन नहीं विष हैं और दुनिया में 2 तरह के विष हैं, एक ऐसे विष होते हैं जो तत्काल असर करते हैं और एक ऐसे विष होते हैं, जो धीरे-धीरे असर करते हैं । तत्काल असर वाले विष आप जानते हैं, जीभ पे एक drop डालों और मर जाए और धीरे-धीरे असर करने वाले विष, माने 2 साल में, 5 साल में, 10 साल में, 15 साल में, 20 साल में असर करेंगे और आपको मरने के स्थिति में पहुँचा देंगे ।

pressure cooker का भोजन ना करें, कयोंकि pressure cooker एक ऐसी तकनीक हैं जिसमें भोजन बनाते समय ना तो सूर्य का प्रकाश जा सकता हैं ना तो उसको पवन का स्पर्श उसको मिलेगा । प्रेशर कुकर से वो जो भी हैं, हवा बाहर तो आ सकती हैं; बाहर की हवा अन्दर जाने में कोई device नहीं है, कोई रास्ता नहीं हैं । सूर्य का प्रकाश उसमें अन्दर जाएँ ऐसी कोई technology develop नहीं हुईं है।

हमारे देश में CRDI नाम की एक बड़ी laboratory हैं, Central Drug Research Institute वहाँ के 2 scientist ने कहाँ की यार ये काम तो हमने करके देखा हैं बात सहीं है । ये pressure cooker companies गर्दन काट देगी हमारी, इसलिए T.V पर नहीं बोल सकते हम । Research कहती हैं की ये जो pressure cooker हैं वो ज्यादा से ज्यादा या 99% aluminium के है, aluminium आप जानते हैं और वो यह कहते हैं की भोजन बनाने का और रखने का सबसे खराब metal अगर कोई है तो aluminium ही हैं । सबसे खराब metal खाना बनाने काaluminium और दोनों वैज्ञानिक कहते हैं, नाम नहीं लेना हमारा इसलिए में नहीं ले रहाँ हूँ, वो कहते हैं हमारा 18 साल का research वो यह कहता हैं की अगर बार बार ईस aluminium के pressure cooker का खाना बार बार आप खाते जाए तो guarantee हैं की आपको diabetes तो हो ही जाएगा, arthritis तो हो ही जायेगा bronchitis भी होने की पूरी संभावना है और सबसे ज्यादा T.B होने की संभावना है ।



उन्होंने कहाँ, 48 बीमारियों को हम detect कर चुके हैं जो pressure cooker के खाने से ही होती है । और ये दोनो researcher, सबसे ज्यादा इन्होंने research किया जेलों मे, जेल है ना हमारी, वहाँ कैदियों को अॅल्युमिनिअम की बर्तनों में ही खाना मिलता है, आप जानते है । आसपास की जेलों मे इन्होंने बहुत काम कियाँ । वो जेलों मे जाते है और जो कैदी aluminium के बर्तनों मे खाना खाते है, उनके उपर उन्होंने बहुत काम कियाँ और उन्होंने कहाँ सबका जीवन कम होता है और जीवन की शक्ती कम होती है, प्रतिकारक शक्ती कम होती है । बाद मे एक छोटा सा काम इसमे add कर दिया, वो report लेने के बाद कि पता करो, ये aluminium कब से आया; कयोंकि ये ज्यादा पुरानी चीज नहीं है ।


तो पता चला 100 - 125 साल पहले आया । १०० - १२५ साल पहले अंग्रेजों की सरकार थी । अंग्रेजों की सरकार ने aluminium को हिंदुस्थान मे introduce कराया । और आपको हैरानी होगी की, अंग्रेजों की सरकार का पहला notification आया, अॅल्युमिनिअम के बर्तन बनाने का, वो जेल में कैदियों के लिए ही आया । और उनका ये तय हो गया था कि जेल के कैदियों को aluminium के बर्तन में ही भोजन दिया जाए कयोंकि, ये सब भारत के क्रांतिकारी है और अंग्रेजों को इन्हे मारना है । उस जमाने मे आप जानते है, भगतसिंग हो या उदमसिंग, चंद्रशेखर हो या अश्पाक उल्ला, राजेंद्रनाथ हो या ठाकूर रोशनसिंग, ये सब क्रांतिकारी थे अंग्रेजों के जमाने में, इनको जान-बूझकर aluminium के बर्तन में ही खाना देना है, ताकि ये जल्दी मरें, या मरने के स्थिती मे आ जाए । तो समझ-बूझकर अंग्रेजों की सरकार ने aluminium के बर्तन इस देश में introduce कर दिए ।


अब परिणाम क्या हुआ ? अंग्रेज तो चले गये, लेकिन जेलों मे आज भी ये नियम चल रहा है । और अब मुश्किल ये हो गयी है की, अब वो जेलों से हमारे घर मे आ गया । और हमारे घर से ज्यादा गरिबों के घर मे आ गया, ज्यादा गरीब लोगों के भोजन तो सारे aluminium के बर्तनों में ही बन रहे है, और बेचारे बिना जाने-बूझे tuberculosis और asthma जैसी बिमारियों के शिकार हो रहे है ।



मेरा बहुत सारी माताओ से और बहनों से तर्क हुआ है, वो यह कहते है cooker में खाना बनाने से समय बचता हैं । तो मैंने उनसे पूंछता हूँ की ठीक हैं, समय बचता हैं, तो बचे हुए समय का क्या करती हैं ? तो ज्यादातर माताओं, बहनों का उत्तार है, साँस भी कभी बहू देखते हैं । इधर pressure cooker मैं खाना बनाके समय बचाओ और फिर हमने t.v के सामने वो समय invest कर दिया; तो net result क्या हैं ?.. तो मैं उनको समझाता हूँ की आपने जो आधा- एक घंटा समय बचाया भोजन पकाने में, ये आपका घंटो-घंटो अस्पताल मैं खराब कराएगा तब? दो घंटे रोज के हिसाब से मान लो, बचा लिया और साल भर मैं आपने 70 - 80 घंटे बचा लिए, कल्पना करो । फिर एक दिन अस्पताल में भरती हो गए, और 2 - 4 महीने वहाँ निकल गया तो, net result क्या? वहीँ शून्य का श्यून्य ।

तो ये एक सूत्र हैं जिस पर में आपसे बात कर रहाँ हूँ की भोजन को बनाते समय
, पकाते समय, कोई ऐसी वस्तू जहाँ सूर्य का प्रकाश ना जाता हों, पवन का स्पर्श ना होता हों तो वो ना करे । अब इसमें विश्लेषण की जरूरत हैं । अब ये कयों ? का जवाब हमें ढूंढऩा हैं । और इसमें जरूरत हो तो आधुनिक विज्ञान की जरूरत मदद भी लेनी हैं । Modern science ने कुछ logic develop किये हैं, कुछ observations उन्होंने दिए है तो उनकी मदद से ये कयूँ ना करे ? क्या कारण हैं? यहाँ से अब मैं बात शुरू करता हूँ । आधुनिक विज्ञान क्या कहता हैं, pressure cooker के बारे में? ये जाने.. pressure cooker एक ऐसी technology है, जो खाना जल्दी पकाती हैं, ये सीधा सा मतलब ।

अब खाने को जल्दी पकाने के लिए ये pressure cooker क्या करता हैं
? जो भोजन आपने उसमें अन्दर रखा हैं, पकने के लिए उस पर अतिरिक दबाव डालता हैं, ये हैं pressure । प्रेशर माने दबाव! तो अतिरिक्त दबाव डालने की technology हैं ये pressure cooker । और ये अतिरिक्त दबाव कहाँ से आता हैं? प्रेशर कुकर में आपने दाल डाली, ऊपर से उसमें पानी डाला, थोड़ा हल्दी-मसाले डालकर बंद करके रख दिया । अब उसमें वो सीटी लगा दी । वो सीटी लगा दी वो ही सबसे खतरनाक चीज हैं पुरे pressure cooker में । सीटी ना लगाये तो आपका pressure cooker आपके लिए अच्छा हैं, सीटी लगाते ही क्या करता हैं; पानी गरम होगा आप जानते हैं, पानी गरम करने से बाष्पीकरण शुरू होता है, vaporization होता है, तो पानी की बाष्पpressure cooker में चारो तरफ इक_ी हुई, वो बाष्प जो हैं या, वो दबाव डालती है किसपर ? दाल पर, चावल पर, सत्तजी पर ।


ये दबाव डाल के होता क्या है? डाल एक कल्पना करिए, अरेहर की दाल । अरेहर की दाल के छोटे छोटे टुकड़े, एक दाल को तोडक़र दो टुकड़े, जिसको द्विदल कहते हैं, जैन समाज के लोग तुरंत समझ में आ जायेंगे ये द्विदल । चने की दाल, अरेहर की दाल, द्विदल हैं, इसको तोडक़र आपने दाल बनाई है अब ये दाल पानी में पड़ी हैं, नीचे से गरम और ऊपर से वाफ का दबाव, तो ये दाल जो हैं ? ना, फट जाती हैं, फँटना समझते हैं? वो दरकना शुरू हो जाती है । उसके अंदर के जो molecules है, दाल के अंदर जो अणू हैं वो अणू, जो एक दुसरे को जकडक़र बैठे हुए है, ये पानी का pressure उन अणूओं को तोड़ता हैं । और दाल दरकना शुरू होती हैं । वो दाल दरक जाती हैं और पानी इतना गरम हो जाता हैं, तो उबल जाती हैं, पकती नहीं है; उबलती है ।

पकना और उबलने में अंतर हैं । तो उबल जाती है और दरक जाती है । आप खोलते हैं
, 5 मिनट बाद, आपको लगता है दाल पक गयी है । पक नहीं गयी है वो थोड़ी soft हो गयी है, नरम हो गयी है कयोंकि नीचे से गर्मी पड़ीं और उपर से pressure पड़ा बाष्प का । वो पकती नहीं है । उबल गयी है और उसका softness बढ़ गई है, तो आपने खाना खा लिया तो आपने कहाँ, पकी हुई दाल खा ली, माफ़ करिये ! दाल पकी हुई नहीं है । फिर आप बोलेंगे की, पकी हुई दाल और इस दाल में क्या अंतर हैं? पकी हुई दाल का आयुर्वेद में वैसी सभी सिद्धांत है उसमें से आप से बता रहाँ हूँ ।

आयुर्वेद चिकित्सा ये कहती है की
, जिस वस्तू को पकने को खेत में जितना ज्यादा समय लगता हैं, भोजनरूप में पकने में भी उसे ज्यादा समय लगता है । अब अरेहर के दाल की बात करे । आप में ये थोड़ा भी गाँव से जोड़ा हुआ कोई व्यक्ति होगा तो आप जानते है, अरेहर की दाल को खेत में पकने में कम से कम 7 से 8 महिना लगता है । कयूँ ? अरेहर की दाल में जो कुछ भी है जिसको आप nutrition के रूप में जानते है, micro nutrients के रूप में जानते है, सूक्ष्मपोषक तत्व के रूप में जानते है । वो मिट्टी से दाल में आने के लिए सबसे ज्यादा समय लगता है ।

ये जो मिट्टी है ना खेत की, ये micro nutrients का खजाना है । खेत की मिट्टी में calcium है, खेत के मिट्टी में iron हैं, खेत के मिट्टी में silicon है, कोबोल्ट है, झिप्टन है, झोरोन है । ये सब micro nutrients खेत के मिट्टी में है । ये पौधे की जड़ में आते हैं, जड़ से तणे में आते हैं, तणे से फल में आते हैं, इस पूरी क्रिया में बहुत समय लगता है, तो इसलिए दाल को पकने में समय लगता है । तो आयुर्वेद यह कहता है की जिस दाल को खेत में पकने में ज्यादा समय लगा तो उसको घर में पकने को भी ज्यादा समय लगना चाहिए । कयूँ ? ये जो micro nutrients धीरे-धीरे दाल में absorb हुए हैं दाल में, खींचकर आये हैं दाल में, इनको dissolve होने में भी धीरे धीरे ही समय लगता है ।

आप दाल कयूँ खाना चाहते हैं
? आप दाल खाना चाहते है protein के लिए, protein कहाँ से आएगा, ये जो micro nutrients का collection दाल में इक_ा हैं, इनके टूंट जाने पर, बिखर जाने पर । तो वो बिखरने में और टूटने में उसको देरी लगने वाली हैं कयोंकि आने में देरी लगीं हैं । ये प्रकृति का सिद्धांत है, आयुर्वेद का नहीं कहना चाहिए, प्रकृति का सिद्धांत है । बच्चे को पेट के अंदर गर्भाशय में विकसित होने में समय लगता है । दुनिया में हर चीज को विकसित होने में समय लगता हैं, जल्दी कुछ नहीं होता इसलिए दाल भी जल्दी नहीं पकती, बच्चा भी जल्दी नहीं होता ।

सभी चिजों मे ये है
, प्रकृति का नियम हैं, और प्रकृति का ये दूसरा नियम है जिन चीजों को पकने में, बड़ा होने में ज्यादा समय लगा हैं, उनको dissolve होने में भी ज्यादा समय लगेगा । और दाल जब dissolve होगी तब आपको उसके protein मिलेंगे भोजन में, इसीलिए आप दाल खा रहें है ताकि आपको protein की कमी पूरी हों । कुछ vitamins आपको चाहिए, कुछ protein आपको चाहिए और दुसरे अंश आपको चाहिए तो आयुर्वेद का नियम बिलकुल सीधा है, दाल ज्यादा देर में पकी हैं, तो घर में भी ज्यादा देर में पके । अब मेरे समझ में आया की हमारे पुराने लोग जो थे,बुजुर्ग थे वो कितने बड़े वैज्ञानिक थे ।

में एक बार जगन्नाथ पूरी गया था
, आप भी गये होंगे, तो वहाँ भगवान् का प्रसाद बनाते हैं, तो pressure cooker में नहीं बनाते, आप जानते है । हालाखी, वो चाहे तो pressure cooker रख सकते हैं कयोंकि जगन्नाथ पूरी के मंदिर के पास करोडो रुपयों की संपत्ति हैं । तो मैंने मंदिर के महंत को पूँछा की ये भगवान का प्रसाद, माने वहाँ दाल-चावल मिलता हैं प्रसाद के रूप में, वो मिट्टी के हांडी में कयूँ बनाते है ? आप में से जो भी जगन्नाथ पूरी गए हैं, आप जानते हैं की वो मिट्टी की हांडी में दाल मिलती है और मिट्टी के हांडी में चावल मिलता है या खिचड़ी मिलती है । जो भी मिलता है प्रसाद के रूप में । तो उसने एक ही वाकय कहाँ, मिट्टी पवित्र होती है । तो ठीक है, पवित्र होती है ये हम सब जानते है, लेकिन वो जो नहीं कह पाया महंत वो मैं आपको कहना चाहता हूँ, की मिट्टी ना सिर्फ पवित्र होती हैं, बल्कि मिट्टी सबसे ज्यादा वैज्ञानिक होती हैं । कयोंकि हमारा शरीर मिट्टी से बना है, मिट्टी में जो कुछ हैं, वो शरीर में है, और शरीर में जो है वह मिट्टी में है ।

हम जब मरते हैं ना
, और शरीर को जला देते हैं, तो 20 gram मिट्टी में बदल जाता है पूरा शरीर, 70 kilo का शरीर, 80 kilo का शरीर मात्र 20 gram मिट्टी में बदल जाता है जिसको राख कहते है । और इस राख का मैंने विश्लेषण करवाया, एक laboratory में , तो उसमें केल्शियम निकलता है, phosphorus निकलता है, iron निकलता है, zinc निकलता हैं, sulphur निकलता हैं, 18 micro nutrients निकलते हैं, मरे हुए आदमी की राख में । ये सब वहीँ micro nutrients है जो मिट्टी में हैं । इन्ही १८ मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स से मिट्टी बनी हैं । यही 18 micro nutrients शरीर मैं है, जो मिट्टी में बदल जाता है, तो महंत का कहना है की मिट्टी पवित्र है वो, वैज्ञानिक statement है, बस्स इतना ही है की वो उसे explain नहीं कर सकता ।

Explain कयूँ नहीं कर सकता
? आधुनिक विज्ञान उसने नहीं पढ़ा या उसको मालुम नहीं है, लेकिन आधुनिक विज्ञान का result मालूम है; पवित्रता! result उसे मालूम है विश्लेषण मालूम नहीं हैं । वो हमारे जैसे मूर्खों को मालूम हैं, मैं आपने को उस महंत की तुलना से मुर्ख मानता हूँ कयूँ ? कयोंकि मुझे विश्लेषण करने में 3 महीने लग गये, वो बात ३ मिनट में समझा दिया की मिट्टी पवित्र है । तो ये मिट्टी की जो पवित्रता है, उसकी जो micro nutrients की capacity या capability है, उसमें से आई है, तो मिट्टी में दाल आई है, दाल आपने पकाई है, तो वो महंत कहता है की मिट्टी पवित्र है इसलिए हम मिट्टी के बर्तन में ही दाल पकाते है, भगवान् को पवित्र चीज ही देते हैं । अपवित्र चीज भगवान को नहीं दे सकते ।

अच्छा, में वो दाल ले आया, और भुवनेश्वर ले के गया, पूरी से भुवनेश्वर । भुवनेश्वर में ष्टस्ढ्ढक्र का एक laboratory है । council of science & industrial research का laboratory है, जिसको regional research laboratory कहते है । तो वहाँ ले गया, तो  कुछ वैज्ञानिको से कहाँ की ये दाल है, तो उन्होंने कहाँ की हाँ-हाँ ये पूरी की दाल है, मैंने कहाँ की इसका विश्लेषण करवाना है की दाल में क्या हैं ? तो उन्होंने कहाँ की, यार ये मुश्किल काम है, 6 - 8 महीने लगेगा मैंने कहाँ ठीक है फिर भी; तो उन्होंने कहाँ की हमारे पास पुरे instruments नहीं है, जो-जो चाहिए वो नहीं है, आप दिल्ली ले जाए तो बेहतर है । तो मैंने कहाँ दिल्ली ले ज्ञान तो खराब तो नहीं होंगी ? तो उन्होंने कहाँ की नहीं होंगी कयोंकि ये मिट्टी में बनी है । तो पहली बार मुझे समझ में आया मिट्टी में बनी है तो खराब नहीं होंगी ।

तो मैं ले गया दिल्ली तक
, सच में ले गया । और भुवनेश्वर से दिल्ली जाने को आप जानते है, करीब-करीब 36 घंटे से ज्यादा लगता है । दिल्ली में दिया, कुछ वैग्यनिको ने उस पे काम किया, उनका जो result है, जो research है, जो report है, वो यह है की इस दाल में एक भी micro nutrients कम नहीं हुआ, पकाने के बाद भी, फिर मैंने उन्ही वैज्ञानिकों को कहाँ की भैया pressure cooker की दाल का भी जरा देख लो तो उन्होंने कहाँ की ठीक है, वो भी देख लेते हैं ।

तो
pressure cooker की दाल को जब उन्होंने research किया, तो उन्होंने कहाँ की, इसमें micro nutrients बहुत ही कम हैं, मैं पूँछा percentage बता दो, तो उन्होंने कहाँ की, अगर अरेहर की दाल को मिट्टी के हांड़ी में पकाओ और 100 प्रतिशत micro nutrients है, तो cooker में पकाने में 13 प्रतिशत ही बचते हैं, 87 प्रतिशत नष्ट हो गये । मैं पूँछा, कैसे नष्ट हो गये, तो उन्होंने कहाँ की ये जो pressure पड़ा है ऊपर से, और इसने दाल को पकने नहीं दिया, तोड़ दिया, moleculars टूट गए हैं, तो दाल तो बिखर गई है, पकी नहीं है, बिखर गयी है, soft हो गयी है । तो खाने में हमको ऐसा लग रहाँ है की ये पका हुआ खा रहें है, लेकिन वास्तव में वो नहीं है । और पके हुए से ये होता है कीmicro nutrients आपको कच्चे रूप में शरीर को उपयोग नहीं आते, उनको आप उपयोगी बना ले, इसको पका हुआ कहते है, आयुर्वेद में ।

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जो सूक्ष्मपोषक तत्व कच्ची अरेहर की दाल खाने पे शरीर को उपयोग में नहीं आएँगे, वो उपयोगी आने लायक बनाये उसको पका हुआ कहाँ जाता है या कहेंगे । तो उन्होंने कहाँ की, ये मिट्टी के हांडी वाली दाल quality में बहुत-बहुत ऊँची हैं बशर्ते की आपके pressure cooker के, और दूसरी बात तो आप सभी जानते है, मुझे सिर्फ repeat करनी है, की मिट्टी के हांड़ी की बनाई हुई दाल को खा लीजिये, तो वो जो उसका स्वाद है वो जिंदगी भर नहीं भूलेंगे आप । इसका मतलब क्या है ? भारत में चिकित्सा का और शास्त्र पाक कला का ऐसा विज्ञान विकसित हुआ है, जहाँ quality भी maintain रहेगी और स्वाद भी maintain रहेगा । तो मिट्टी की हांड़ी में बनायीं हुई दाल को खाए तो स्वाद बहुत अच्छा है, और शरीर की पोषकता उसकी इतनी जबरदस्त है, की दाल का सहीं खाने का मतलब उसमें हैं ।

तो जब में गाँव-गाँव घूमता रहता हूँ तो पूँछना शुरू किया
, तो लोग कहते है की ज्यादा नहीं 300-400 साल पहले सब घर मे मिट्टी की हांडी की ही दाल थी । मेरी दादी को पूछा तो मेरी दादी कहती है की, हमारी पूरी जिंदगी भर मिट्टी के हांडी की दाल ही खाते रहें तब मेरे समझ में आया के मेरी दादी को diabetes कयूँ नहीं हुआ, तब मुझे समझ में आया की उसको कभी घुटने का दर्द कयूँ नहीं हुआ ?, तब मुझे समझ में आया के उसके 32 दाँत मरने के दिन तक सुरक्षित थे, कयोंकि हमने उसका अंतिम संस्कार किया, अगले दिन जब राख ही लेने गये तो सारे उसके दाँत ३२ के 32 ही निकले । तब मेरे समझ में आया की 94 वे साल की उम्र तक मरते समय तक चश्मा कयूं नहीं लगन उसकी आंखों पर । और जीवन के आखिरी दिन तक खुद आपने कपडे आपने हाथों से धोते हुए मरी ।

ये कारण है की
, शरीर को आवश्यक micro nutrients की पूर्ति अगर नियमित रूप से होती रहे तो आपका शरीर ज्यादा दिन तक, बिना किसी के मदद लेते हुए, काम करता रहता है । तो मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स का पूरा supply मिला दाल में, वो खाई थी उसने मिट्टी की हांड़ी में पका पका के । और ना सिर्फ वो दाल पकाती थी मिट्टी की हांड़ी में बल्कि वो दूध भी पकाती थी मिट्टी की हांड़ी में, घी भी मिट्टी की हांड़ी से निकलती थी, दही का मठ्ठा भी मिट्टी के हांड़ी में ही बनता था । अब मेरे समझ में आया की, 1000 सालो से मिट्टी के ही बर्तन कयूँ इस देश में आये ?

हम भी aluminium बना सकते थे, अब ये बात में आपसे कहना चाहता हूँ की वो यह की हिंदुस्तान भी 2000 साल पहले, 5000 साल पहले, 10000 साल पहले aluminium बना सकता थाaluminium का raw-material इस देश में भरपूर मात्रा में है । bauxite, हिंदुस्तान में बोकसाईट के खजाने भरे पड़े हैं । कर्नाटक बहुत बड़ा भंडार, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश bauxite के बड़े भंडार है । हम भी बना सकते थे, अगर बोकसाईट है तो aluminium बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन हमने नहीं बनाया कयोंकि उसकी जरूरत नहीं थी । हमको जरूरत थी मिट्टी के हंडे की इसलिए हमने मिट्टी की हांड़ी बनाई और उसी पे सारे research, experiment किये ।

इसलिए कुम्भारों की पूरी की पूरी जमात इस देश में खड़ी की गई
, तुमको भैया मिट्टी के ही बर्तन बनाने है, जो तुमसे बड़ा वैज्ञानिक कौन.. । अब ये कुम्भार जो इतने बड़े वैज्ञानिक है इस देश के जो मिट्टी के बर्तन बना के दे रहें है हजारों सालो से दे रहे है, हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए, हमने उनको नीची जाती बना दिया । हम कैसे मुर्ख लोग । वो नीचे कहाँ है जरा बताइए, अगर pressure cooker की कंपनी जो बनाते है वो उचा आदमी है तो ये कुम्भार तो नीचा कैसे हो गया । ऊँचा-नीचाँ दाल दिया हमने इस देश में, इसी ने देश का सत्यानाश कर दिया । ये ऊँचा-नीचाँ कुछ तो अंग्रेजो ने डाला, कुछ अंग्रेजों के पहले जो मुसलमान थे उन्होंने डाला, और कुछ अंग्रेजों और वो कुछ अंग्रेजों के और मुसलमानों के जाने के बाद हम काले इंग्रजो ने उसे ऐसा पक्का बना दिया की कुम्भार इस देश में backward class है ।

जो सबसे बड़ा वैज्ञानिक काम कर रहाँ हैं
, जो मिट्टी के बर्तन बना-बना कर आपके micro nutrients को, आपके सूक्ष्मपोषक तत्वों को कम नहीं होने देने के लिए मिट्टी का selection करता है वो । आपको मालूम है, हर एक मिट्टी से बर्तन नहीं बनते, एक ख़ास तरह की मिट्टी है, वही बर्तन बनाने में काम आती है और एक ख़ास तरह की मिट्टी है, जो हांडी बनाती है । दुसरे खास तरह की मिट्टी से कुल्हड़ बनता है, तीसरे खास तरह के मिट्टी से कुछ और बनता है । ये मिट्टी को पहचानना; इसमें calcium ज्यादा, इसमें magnesium ज्यादा इसलिए हांड़ी इससे बनाओ, और इसमें calciummagnesium कम है इसलिए इसका कुल्हड़ बनाओ, ये तो बहुत बहुत बारीक़ और विज्ञान का काम है; ये कुम्भार कर रहें हैं हजारों सालों से कर रहें है, बिना किसी university में पढ़े हुए कर रहें है, तो हमें तो वंदन करना चाहिए, उनके सामने नतमस्तक होना चाहिए, कितने महान लोग हैं । दुर्भाग्य से सरकार की कटागरी में वो backward class में आते है ।

तो ये जो मिट्टी के बर्तन की बात हुई
, वो मिट्टी की बात इसलिए कयोंकि
micro nutrients का सब कुछ सामान रहता है । इसलिए हमारे यहाँ aluminium के बर्तन या दुसरे metal के बर्तन का चलन कम है, भगवान् के लिए तो बनाते नहीं, धातुओं के बर्तन में खाना नहीं बनता । सभी मंदिरों में भोजन और प्रसाद ज्यादातर मिट्टी के, तो आप भी आर लीजिये ये काम । pressure cooker निकालिए, मिट्टी की हांडी ले आइये । तो आप कहेंगे जी दाल देर में पकेगी, सिद्धांत ही वही हैं दाल का तो । देर में खेत में पकी है, वो देर में घर में पकेगी । तो आप बोलेंगे की फिर time management कैसे होगा ? मई आपको सरल बता देता हूँ की, दाल को हांड़ी में रखकर ये बाकी सब काम करते रहिये । घंटे- डेढ़ घंटे में पक जाएगी । उतार लीजिये, फिर खा लीजिये । घंटे-डेढ़ घंटे में आपके झाड़ू, पोछा, दुसरे बर्तन साफ़ करना, कपडे साफ़ करना, ये जो भी करना है, पढना, लिखना, बच्चों को पढऩा वो करते रहिये, दाल पक जाएगी ।

ये है बागभट जी का सूत्र की
, ऐसा भोजन नहीं करना जो बनाते समय, पकाते समय, सूर्य के प्रकाश से वंचित हो और पवन के स्पर्श से वंचित हो । ये तभी संभव है, जब आप खुले बर्तन में खाना बनाए, पवन भी अंदर आये और सूर्य का प्रकाश की किरने भी अंदर आये ।खुले बर्तन में; और वो खुला बर्तन सबसे अच्छा मिट्टी का हांड़ी । आप कहेंगे जी मिट्टी के हांडी के बाद अगर कोई चीज है तो ? तो हमारे यहाँ एक metal बनता है जिसको आप लोग कहते है, alloy है, कांसा । कांसा आपने सुना है, शायद देखा भी होगा किसी के घर में । तो दूसरा सबसे अच्छा माना जाता हैं कांसा । तीसरा सबसे अच्छा माना जाता है, पीतल । अब ये कांसे और पीतल में भी हमने काम कर लिया की, हरिहर के दाल को कांसे के बर्तन में पकाए तो उसके सिर्फ 3 प्रतिशत
micro nutrients कम होते हैं, 97% maintain रहते हाँ । पीतल के भगोने में पकाए तो 7 प्रतिशत कम होता है, 93% बचते हैं, लेकिन pressure cooker में बनाये तो सिर्फ 1 प्रतिशत बचते हैं, बाकी ख़तम होते हैं ।


अब आप तय कर लीजिये, आपको life में quality चाहिए तो आपको मिट्टी के हांडी की तरफ ही जाना पड़ेगा । Quality of life की अगर बात आप करेंगे, माने जो खा रहें हे वो पुरे शरीर में पोषकता दे, ये Quality of life की अगर बात आप करे तो मिट्टी के हांडी की तरफ ही जाना पड़ेगा, माने भारत की तरफ वापस लौटना पड़ेगा, India से । अभी हम है India में, जो बना दिया अंग्रेजो ने, या बना दिया अमरिकियो ने; इस India से निकल के भारत की यात्रा करनी पड़ेगी । और मैंने पिछले 1-2 वर्षों मे ये बातें बहुत गावों में कहना शुरू किया है, तो इससे परिणाम पता है क्या ? की कुम्भारों की इज्जत बड़ी हैं गाँव में । गाँववाले समझते हैं की ये तो कोई बड़ा काम कर रहें हे हमारे लिए, और में मानता हूँ की मेरे व्याखयान की अगर कोई सार्थकता है तो वो यह की कुम्भारों की इज्जत इतनी बढ़ जाये की वो पंडीतों के बराबर आ जाये कयोंकि वो किसी से नीचे नहीं है, कयोंकि वो किसी से छोटे नहीं है । भले वो मिट्टी के बर्तन बना रहें है, बहुत वैज्ञानिक काम वो कर रहें है ।

और मजे की बात है की वो हांडी आपको बना कर 20-25 रुपयों मे ही दे रहे हैं
;
pressure cooker तो 250-300 रुपयों का है । और सबसे मजे की बात की ये हांडी जब ख़तम होगी, माने इसकी life पूरी हो जाएगी तो ये हांडी फिर मिट्टी में मिल जाएगी और फिर वही मिट्टी से हांडी बनाई जाएगी; दुनिया में ऐसी कोई वस्तू नहीं हैpressure cooker के बारे में तो नहीं कह सकते । biodegradable है । तो आप कोशिश करे की अपने घर में परिवर्तन करे ।

अब में आखिरी बात
कह रहाँ हूँ वो यह की मैंने पिछले वर्षों में; में homeopathy की भी चिकित्सा करता हूँ । तो बहुत सारे मरिज मुझे फ़ोन करते हैं की ये । तो मैंने कुछ मरिज को खांसकर कहाँ की देखो भैय्या, आपको में कोई दवा नहीं दूंगा तो कहने लगे की बीमारी कैसे ठीक होगी ? तो मैंने कहाँ की मैं एक ही काम करो, मिट्टी की दाल खाना शुरू करो, मिट्टी की हांडी में पकाई हुई दाल खाना शुरू करो; चावल खाना है तो मिट्टी के हांडी का । तो कहने लगे की कौन करेगा ये सब ? तो मैंने कहाँ की आप की बीवी करे या आप करो । अगर जिंदगी चाहिए तो झक मार के आप करो नहीं तो America जाए, Canada जाए, Germany जाए; लाखों रुपये खर्च करो, फिर भी झक मार के वापस आ जाए, डॉक्टर कहेगा इलाज नहीं । तो आप देख लो, तो जो गंभीर मरीज है, तो आप जानते है कुछ भी करेंगे, जो आप कहेंगे ।

तो मेरे पास diabetes के कुछ chronic मरिज है
, बहुत chronic जिनका unit; sugar unit 480 से ऊपर है, ऐसे 100 से ज्यादा मरीज है, कुछ गुजरात में, कुछ राजस्थान में है और कुछ
बम्बई में । मैंने उन को कहाँ, ध्यान से मिट्टी का बर्तन ले आओ और शुरू करो । अब बर्तन लाने में तकलीफ हुई, तो कुम्भार को ढूँढना पड़ा, लेकिन मिल गया । वो 8 से 9 महीना हो गया, और उन्होंने नियमित रूप से मिट्टी की दाल, मिट्टी का चावल, माने हांडी की दाल, हांडी का चावल, हांडी की खिचड़ी नियमित रूप से खां रहें है और अब तो उन्होंने मिट्टी का तवा भी ले आया अपने घर में, रोटी बनाने के लिए, बाजरी की रोटी बहुत अच्छी बनती है इस तवे पे, तो रोटी भी उसी की खा रहें है । 8 महीना के बाद सबका sugar test करवाया है तो वो 480 unit वाला अभी 180 unit पे है । बिना किसी medicine के, बिना किसी injection के, बिना किसी tonic के । और homeopathy की कोई दवा नहीं दी मैंने उनको ।

कुछ लोगों को
, ज्यादा परेशान से थे, दवा भी दो दवा भी दो, मैंने उनको placebo दे दिया । placebo आप समझते है, खाली गोली, दवा नहीं डाली, तो मरिज को लगता है की में दवा खा रहाँ हूँ, दवा खा के अच्छा हो रहा हूँ, तो मुझे मालुम है की वो कोई दवा नहीं है, वो placebo है । वो अच्छा हो रहा है, उस मिट्टी की दाल खा के, मिट्टी का चावल खा के, मिट्टी की खिचड़ी खा के । Result ये है, तब मैंने मान लिया की बागभट सच में महान आदमी है । वो एक सूत्र लिख गए की आप ऐसा भोजन मत करो जिसमें सूर्य का प्रकाश ना जाये और पवन का स्पर्श न हो, तो वो आपके लिए अमृत तत्ता्वा है, भोजन नहीं है वो अमृत जैसा है । आभार । धन्यवाद !





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(swamee shree ji ) swamee shree param chetana nand ji

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Jul 26, 2015, 11:59:43 PM7/26/15
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Namaskar, ap ne bahut hi shram purvak yah mahatv purn ,aur upayogi lekh likha hai, ap ko bahut bahut sadhuvad-
svami param chetana nand 

2015-07-22 17:35 GMT+05:30 Vijay Deshmukh <vijaydes...@gmail.com>:
स्टेनलेस स्टील कुकर बझार मे उपलब्ध है, चिंता कि कोई बात नही.

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 Associate Professor,
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 Sangamner 422605,
 Maharashtra


Vijay Deshmukh

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Jul 26, 2015, 11:59:43 PM7/26/15
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2015-07-16 15:03 GMT+05:30 गिरिराज डागा <cagiri...@gmail.com>:

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Giriraj Daga

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