भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .

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शशांक उपाध्याय

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Nov 15, 2010, 1:14:46 PM11/15/10
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भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा  BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .
प्रथम प्रविष्टि FIRST POST
इस नवीन विषय अंतर्गत हम चर्चा करेंगे की भारत में वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए और भवितव्य का मनन करते हुए हम भारत के लिए,
कौन से पथ को अधिक श्रेष्ठ समझें और उसे अपनाने के लिए न केवल स्वयं प्रेरित हों अपितु समाज के अन्य सदस्यों को भी इस चिंतन पथ पर अग्रसर करें.
 
इस पहली प्रविष्टि में थोड़ी सी भूमिका रखूंगा और आगे होने वाले चिंतन के लिए दिशा पर भी प्रकाश डालने की चेष्टा करूंगा.
 
हमारे सामने वर्तमान में कुछ परिस्थितियां हैं जिनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही गुण दिखलाई देते हैं,
चूँकि हम मुख्यतः तीनों ही स्तर यानि समाज देश और राष्ट्र पर चिंतन करना चाहते हैं साथ ही सार्वभौमिक (अंतर्राष्ट्रीय) स्तर पर भी सोचना चाहते हैं,
इसलिए हमें जाना कहाँ है, कैसे जाना है और हम अभी कहाँ हैं, इसका ज्ञान कर लेना होगा.
 
इस सब के लिए प्रथमतया हमको ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैं इत्यादि इत्यादि...
 
जिस प्रकार संसार में हर जड़ वस्तु या चेतन जीव समूह का एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) यानि (लक्षण, विशेषता स्वभाव जो भी कहें) होता है,
उसी प्रकार प्रत्येक मानव, मानव समूह (यानि समाज), समाज समूह (यानि राज्य), राज्य समूह (यानि देश) और देश समूह (यानि राष्ट्र),
का भी एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) होता है, जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र पर्यंत और अन्यान्य राष्ट्रों में भी विद्यमान रहता है.
 
बाकी सभी राष्ट्रों को अगर बाद के लिए छोड़ दें तो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?
इस चरित्र (तत्व)  को जानने के लिए बहुत ही सरल कुंजी है की (फल की पहचान उसके बीज से और बीज की पहचान उसके फल से होती है )
 
इस भारत नामक वृक्ष के क्या बीज हैं ये इस पर लगे फल बता सकते हैं चूँकि जब बीज बोये गए तब हम सब नहीं थे तो फल से बीज तक पहुंचा जा सकता है,
तो वे फल क्या हैं? आप सभी बहुत अच्छी प्रकार से इन फलों से परिचित हैं और इन सुफलों की संख्या इतनी अधिक है की इक चर्चा सत्र में उल्लेख संभव नहीं,
फिर भी कुछ एक सर्वश्रेष्ठ फलों का उल्लेख ठीक रहेगा.
 
इस भारत नामक वृक्ष पर वैसुधैव कुटुम्बकम , तत त्वम असि, सर्वेषाम सुखिनः भवन्तु जैसे अनगिनत फल लगे जिनसे मानव मात्र अनगिनत वर्षों से इस संसार को,
न केवल आनंददायक स्थान बनाया अपितु दैनिक जीवन में आत्मसात की जा सकने वाले ऐसे तत्व को स्थापित किया जिससे की मानव इस आनंद को इस देह में भी,
और इस देह से परे अनंत आनंद को प्राप्त करे. ( ये तत्व क्या है इसकी चर्चा से अगली प्रविष्टि में हमारा मुख्या चिंतन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि यही तत्व जब भारत का चरित्र
है तो यही तत्व न केवल भारत बल्कि अन्यान्य राष्ट्र और विश्व के सभी मानवों के लिए भी उस अनंत प्रगति और आनंद का मार्गनिर्देशक भी है.)
 
तो भारत का चरित्र क्या है इसका संकेत हमें  लग गया. मानव मात्र को उस पथ पर ले जाने वाले पथ की भूमिका जो उसे अनंत आनंद के स्रोत तक ले जाये.
अमिट और अनंत स्रोत की भूमिका भी अनंत और अमित होनी चाहिए इसलिए ये भारत भी और इसकी सभ्यता भी इसी एक कारण से ही अमिट और अनंत है.
 
भारत का ये जो चरित्र है जो मानव मन को सदैव इसी और अग्रसर करने में लगा हुआ है की तुम अमृत पुत्र हो न की केवल भौतिक पञ्च तत्वों से बने मिटटी के पुतले.
इसी चरित्र के कारण ही भारत और इसकी सभ्यता काल पर विजय पाकर सदैव अक्षुण्ण और सनातन रही है.
 
अगर इस चारित्रिक गुण से अगर भारत हटा या यूँ कहें की भारतीय ( भारत का राज्य, समाज और मानव समूह ) हटा तो काल और परिथिति इस संसार में  क्या हो सकती है,
इसको स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों में सुनें
" Shall India die? Then from the world all spirituality will be extinct; all moral perfection will be extinct;
all sweet-souled sympathy for religion will be extinct; all ideality will be extinct;
and in its place will reign the duality of lust and luxury as the male and female deities,
with money as its priest, fraud, force and competition its ceremonies and the human soul its sacrifice.
क्या भारत मर जाये? तो इस संसार से सारी आध्यात्मिकता विलुप्त हो जाएगी, विलुप्त हो जाएगी सारी नैतिक पूर्णता,
विलुप्त हो जाएगी मानव धर्म के प्रति सम्वेदना, सारे आदर्श विलुप्त हो जायेंगें, और इनके स्थान पर कामलालसा और विलासिता,
इसके देवता और देवी होंगे, पैसा इनका पुजारी होगा, छल बल और प्रतियोगिता इसके समारोह होंगे, और आत्मा इसकी बलि होगी. "
 
इन्हीं शब्दों को ध्यान में रखते हुए में आप सभी से अनुरोध करूंगा की आप अपने विचार रखें.
अगली प्रविष्टि से मुख्य केंद्र बिंदु पर और उससे आगे चर्चा करेंगें.
जय भारत
 
 
--
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
--
शशांक

Surendra Kumar

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Nov 15, 2010, 11:58:42 PM11/15/10
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जय भारत,
        आज के परिपेक्ष्य में जब कि हम भारत के पुनर्निमाण कि और अग्रसर हो रहें इस तरह का चिंतन अत्यंत आवश्यक तथा दूर्गामीं प्रभाव रखेगा. ऐसा चिंतन आज ही नहीं हमेशा अपनी सार्थकता बनाये रखता है. 
 
ये विषय प्रारम्भ करने के लिए शशांक जी को साधुबाद.
 
जय भारत.

2010/11/15 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>

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Rajesh Tripathi

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Nov 16, 2010, 12:56:10 AM11/16/10
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शशंक जी
यह भारतीय आध्यात्मिकता ही है जो विश्व को नयी दिशा देगी | केवल भौतिकवाद /भोगवाद जिसमे मनुष्य, समाज, मानवता का हित अनदेखा कर केवल "Greed is good" पर आधारित , लाभ ही सब कुछ है, की व्यवस्था विश्व के लिए बहुत खतरनाक है | शायद यही सब देख कर Arnold Toynbee ने कहा था |
It is already becoming clearer that a chapter which has a western beginning will have to have an Indian ending if it is not to end in the self destruction of the human race. At this supremely dangerous moment in history the only way of salvation for mankind is the Indian way

जय भारत
राजेश

2010/11/15 Surendra Kumar <kumarsu...@gmail.com>



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निशांत

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Nov 16, 2010, 1:47:58 AM11/16/10
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स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है की भारत का धर्म है की वो विश्व का अध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन करे.


2010/11/16 Rajesh Tripathi <rajes...@gmail.com>

Vijay Mohan

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Nov 16, 2010, 1:56:41 AM11/16/10
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ॐ,

ॐ , 
भारत सदा से ही विश्व का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करता आ रहा है और करता रहेगा !

परन्तु सरकार का यह कार्य नही है , और ना ही यह सरकार कर सकती है ! श्री श्री रवि शंकर , स्वामी रामदेव और बहुत से साधू इस प्रथा को अपने बल बूते पर ही आगे ले जा रहे है और ले जाते रहेंगे 

स्वामी विवेकानंद , जी ने भी यह अदभुत कार्य किया और पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का बिगुल बजाया !

जय भारत 

१६ नवम्बर २०१० २:४७ अपराह्न को, निशांत <nisha...@gmail.com> ने लिखा:
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है की भारत का धर्म है की वो विश्व का अध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन करे.


2010/11/16 Rajesh Tripathi <rajes...@gmail.com>


शशंक जी
यह भारतीय आध्यात्मिकता ही है जो विश्व को नयी दिशा देगी | केवल भौतिकवाद /भोगवाद जिसमे मनुष्य, समाज, मानवता का हित अनदेखा कर केवल "Greed is good" पर आधारित , लाभ ही सब कुछ है, की व्यवस्था विश्व के लिए बहुत खतरनाक है | शायद यही सब देख कर Arnold Toynbee ने कहा था |
It is already becoming clearer that a chapter which has a western beginning will have to have an Indian ending if it is not to end in the self destruction of the human race. At this supremely dangerous moment in history the only way of salvation for mankind is the Indian way

जय भारत
राजेश

2010/11/15 Surendra Kumar <kumarsu...@gmail.com>

जय भारत,
        आज के परिपेक्ष्य में जब कि हम भारत के पुनर्निमाण कि और अग्रसर हो रहें इस तरह का चिंतन अत्यंत आवश्यक तथा दूर्गामीं प्रभाव रखेगा. ऐसा चिंतन आज ही नहीं हमेशा अपनी सार्थकता बनाये रखता है. 
 
ये विषय प्रारम्भ करने के लिए शशांक जी को साधुबाद.
 
जय भारत.

2010/11/15 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा  BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .
प्रथम प्रविष्टि FIRST POST
इस नवीन विषय अंतर्गत हम चर्चा करेंगे की भारत में वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए और भवितव्य का मनन करते हुए हम भारत के लिए,
कौन से पथ को अधिक श्रेष्ठ समझें और उसे अपनाने के लिए न केवल स्वयं प्रेरित हों अपितु समाज के अन्य सदस्यों को भी इस चिंतन पथ पर अग्रसर करें.
 
इस पहली प्रविष्टि में थोड़ी सी भूमिका रखूंगा और आगे होने वाले चिंतन के लिए दिशा पर भी प्रकाश डालने की चेष्टा करूंगा.
 
हमारे सामने वर्तमान में कुछ परिस्थितियां हैं जिनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही गुण दिखलाई देते हैं,
चूँकि हम मुख्यतः तीनों ही स्तर यानि समाज देश और राष्ट्र पर चिंतन करना चाहते हैं साथ ही सार्वभौमिक (अंतर्राष्ट्रीय) स्तर पर भी सोचना चाहते हैं,
इसलिए हमें जाना कहाँ है, कैसे जाना है और हम अभी कहाँ हैं, इसका ज्ञान कर लेना होगा.
 
इस सब के लिए प्रथमतया हमको ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैं इत्यादि इत्यादि...
 
जिस प्रकार संसार में हर जड़ वस्तु या चेतन जीव समूह का एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) यानि (लक्षण, विशेषता स्वभाव जो भी कहें) होता है,
उसी प्रकार प्रत्येक मानव, मानव समूह (यानि समाज), समाज समूह (यानि राज्य), राज्य समूह (यानि देश) और देश समूह (यानि राष्ट्र),
का भी एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) होता है, जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र पर्यंत और अन्यान्य राष्ट्रों में भी विद्यमान रहता है.
 
बाकी सभी राष्ट्रों को अगर बाद के लिए छोड़ दें तो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?

ajay mehta

unread,
Nov 16, 2010, 6:50:47 AM11/16/10
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
"ओम"
शुरुआत बहुत हीं सधी व तार्किक  ढंग से हुई हें.
में चाहूंगा कि अब कुछः ऐसा होना चाहिये कि लगे कि सच में कुछः विचारक महान भारत के लिये अपना सर्वस्त्र लगा कर एक ऐसी आर्थिक नीति को समाने लायेंगे जिससे न केवळ भारत महान अपितु पूरी दुनिया का कल्याण होगा.
  
इस भारत नामक वृक्ष पर वैसुधैव कुटुम्बकम , तत त्वम असि, सर्वेषाम सुखिनः भवन्तु जैसे अनगिनत फल लगे जिनसे मानव मात्र अनगिनत वर्षों से इस संसार को,
न केवल आनंददायक स्थान बनाया अपितु दैनिक जीवन में आत्मसात की जा सकने वाले ऐसे तत्व को स्थापित किया जिससे की मानव इस आनंद को इस देह में भी,
और इस देह से परे अनंत आनंद को प्राप्त करे. ( ये तत्व क्या है इसकी चर्चा से अगली प्रविष्टि में हमारा मुख्या चिंतन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि यही तत्व जब भारत का चरित्र
है तो यही तत्व न केवल भारत बल्कि अन्यान्य राष्ट्र और विश्व के सभी मानवों के लिए भी उस अनंत प्रगति और आनंद का मार्गनिर्देशक भी है.)
भारत सच में एक ऐसा वट वृक्ष हें जिसकी जडे पूरे विश्व में गेहराई तक फैली हुई हें. जब भी विश्व में किसी प्रकार कि कोई समस्या आती हें तो भारत ऑर भारतीयो का उसको सुलझाने में सवसे अधिक योगदान होता हें या  यू कहे  कि भारतीये अपने अध्यातम के चलते उसको सुलझाने में सवसे ज्यादा तत्पर रहते हें.
चूँकि हम मुख्यतः तीनों ही स्तर यानि समाज देश और राष्ट्र पर चिंतन करना चाहते हैं साथ ही सार्वभौमिक (अंतर्राष्ट्रीय) स्तर पर भी सोचना चाहते हैं,
इसलिए हमें जाना कहाँ है, कैसे जाना है और हम अभी कहाँ हैं, इसका ज्ञान कर लेना होगा.
आज कि समस्या तो भारत ऑर भारतीयो के लिये ज्यादा हें इसलिये हम सव को इसे बहुत हीं गंभीर हो कर लेना होगा तथा विचार भी बहुत हीं सोच समझकर प्रस्तुत करने होंगे.
 
इस भारत नामक वृक्ष पर वैसुधैव कुटुम्बकम , तत त्वम असि, सर्वेषाम सुखिनः भवन्तु जैसे अनगिनत फल लगे जिनसे मानव मात्र अनगिनत वर्षों से इस संसार को,
न केवल आनंददायक स्थान बनाया अपितु दैनिक जीवन में आत्मसात की जा सकने वाले ऐसे तत्व को स्थापित किया जिससे की मानव इस आनंद को इस देह में भी,
और इस देह से परे अनंत आनंद को प्राप्त करे. ( ये तत्व क्या है इसकी चर्चा से अगली प्रविष्टि में हमारा मुख्या चिंतन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि यही तत्व जब भारत का चरित्र
विचार ऑर नीति को भारतीये परिपेक्ष में हीं आगे बढाना होगा तथा इस बात ध्यान भी रखना होगा कि कही कोई चूक न हो जाये.
 
क्या भारत मर जाये? तो इस संसार से सारी आध्यात्मिकता विलुप्त हो जाएगी, विलुप्त हो जाएगी सारी नैतिक पूर्णता,
विलुप्त हो जाएगी मानव धर्म के प्रति सम्वेदना, सारे आदर्श विलुप्त हो जायेंगें, और इनके स्थान पर कामलालसा और विलासिता,
इसके देवता और देवी होंगे, पैसा इनका पुजारी होगा, छल बल और प्रतियोगिता इसके समारोह होंगे, और आत्मा इसकी बलि होगी. "
वर्तमान में जिन आर्थिक नितिओ कि वजह से भोग-विलासिता, हवस, मारामारी, आपाधापी, चोरी-चाकरी, रीश्वात्खोरी, भ्रष्टाचार, इत्यादि का जो जाल सभी को अपने में जकडे हुये हें अब उनसे से छूटना  हें ऑर
इसी को मध्य नजर कर ऐसा कुछः समाज, देश ऑर विश्व को देने का प्रयास करना हें जिससे हम सव को भी एक पल ऐसा लगे कि कुछः तो भारत महान ऑर विश्व का कर्ज चुकाया.
 
जय भारत  

2010/11/15 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा  BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .

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शशांक उपाध्याय

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Nov 16, 2010, 12:48:53 PM11/16/10
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सभी का धन्यवाद
________________________________________________________
अगली प्रविष्टि से पहले एक टिप्पणी -
ये बात बिलकुल ठीक है की सरकार का नियंत्रण सर्वत्र नहीं होना चाहिए लेकिन हमें एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा,
की सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
 
इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा. लेकिन यहाँ केवल उल्लेख करना उचित है की हमारे भारतीय
मनीषियों ने राज्य रूप की अपेक्षा राज्य तत्व को ज्यादा महत्व दिया है क्योंकि राज्य रूप चाहे कुछ भी हो लेकिन अगर राज्य तत्व नहीं बदलता
तो सामाजिक , शासनिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं प्रगति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पढता है.
 
उदाहरण के लिए - 
१) महर्षि परशुराम ने २१ बार भारत के कुटिल शासकों का अंत किया लेकिन उन्होंने राज्य का रूप नहीं बदला केवल तत्व बदला.
२) श्री राम ने लंका विजय के पश्चात लंका का राज्य रूप नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.
३) श्री कृष्ण ने भी महाभारत के पश्चात इन्द्रप्रस्थ का राज्य रूप  नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.
कहने का तात्पर्य है की राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता  राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है.
जैसा की आजकल हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं. अमेरिका की जनता संवैधानिक लोकतंत्र से खीज रही है, भारत समाजवाद से, यूरोप संसदीय लोकतंत्र  से, मध्य पूर्व पूर्ण राजशाही से,
और अन्यान्य देश भी धीमे धीमे अपने अपने तंत्रों को विफल मानने की ओर अग्रसर होते प्रतीत हो रहे हैं.
हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देश काल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.
 
विजय जी आपसे अनुरोध है आप भी थोडा मनन करें की तंत्र कोई विफल नहीं होता केवल उस को चलाने वालों और उस तंत्र के उपयोग के अर्थों में विपरीतता हो तो इसमें तंत्र का कोई दोष नहीं होता.
औए एक बात है गौर करने वाली की पहले तो भारत के अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद जो अर्थव्यवस्था के हालात थे उनकी वजह से और १००० वर्ष के अँधेरे भरे समय से गुजरने के कारण
भारतीय आमजन के मानसिक संयम ने बहुत हानि उठाई जिसको संक्षेप में आप इस कहावत से समझ सकते हैं.
"नंगे को मिल गयी पीतर बाहर धरे या भीतर"
अर्थ - किसी को भी अनायास मिलने वाली वस्तु या शक्ति का अर्थ और उपयोग की जानकारी न होने से हानि ही होती है और अज्ञान का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.
सैकड़ों वर्षो के परराज्य, ६० वर्षों के पाशव साम्यराज्य ( सोशलिज्म ) में रहने के बाद भारतीय जनमानस को अनायास ही 1991 से पूँजीवाद की तरफ धकेलना भारत के लिए न केवल नकारात्मक सिद्ध हो रहा है,
अपितु आगे चलकर ये ऐसा विकराल सुरसा मुख फैलाएगा की समाज इसकी शक्तियों से परिचित न होने के कारण अपने मार्ग मूल्यों और अंतिम में स्वतंत्रता पूर्णरूपेण खो बैठेगा.
 
दूसरी प्रविष्टि अगली चिट्ठी में आरही है.
_______________________________________________________

Vijay Mohan

unread,
Nov 16, 2010, 11:59:56 PM11/16/10
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ॐ,

शशांक जी , मै आपके उल्लेखों को अच्छी तरह से पड़कर  उसे समझने का प्रयास कर रहा हूँ !

आपने जो उदाहरन दिए उनमें से प्रजा तंत्र कहाँ था , राजा का चुनाव उसके परिवार में से ही होता था , यह एक प्रकार की तानाशाही थी , जिसमे हमें भगवान् के अवतरित होकर ही छुटकारा मिलता था  , इसका अर्थ प्राचीन तंत्र  में मनुष्य का संस्कारवान होना , चरित्रवान होना या भगवान् सामान होना अनिवार्य था !  अब मै ये कह रहा हूँ के भगवान् तो समय के अनुसार ही आयेंगे और ये कलयुग भी है , जिसके अंतर्गत मनुष्य प्रवृति को बहुत ही नीच बताई गयी है !

अभी तक आपने जो कहा उसका अर्थ यह है के , तंत्र सब ठीक है , मनुष्य मनुष्य पर निर्भर करता है , जो मनुष्य शासन करेगा , तो केवल कुछ गिने चुने  मनुष्य स्वभाव बाकी करोरों लोगों का वर्तमान और भविष्य तेय करेगा ! और इसका मतलब है के भारत में तंत्र ठीक है , चालाने वाले लोग खराब है , इसके तेहत भारत का ये हाल है ! तो येदी हम अच्छे लोगों को चुन कर ले आयें तो हाल सुधर जाएगा ????

विभिन्न तंत्रों में नागरिकों को कम और ज्यादा स्वतंत्रता होती है ! तो इस स्वतंत्रता का भी विफल या सफल होने से कोई फरक नहीं पड़ता !

तो स्वामीजी का यह कहना के तंत्र में अमूल चूल परिवर्तन की ज़रुरत है यह भी गलत है तो बस हम अच्छे लोग चुनें ( पता नही ये कैसे होगा ) सब ठीक हो जाएगा !

यह बिलकुल सही है के मुग़ल या अंग्रेजी शासन में भारतीय स्वतंत्रता का रथ ही भूल चुकें है , ( इसमें हम लोग भी शामिल है ) !

अब मुझे यह बताइए के जब भारत का १/३ हिस्सा था पूरे विश्व  के उद्योगों में , उस समय कौन से economic policies थी  देश में ! मै बताता हूँ उस समय प्रशासन केवल कुछ कर वसूलता था , और येदी कोई उद्योगपति कुछ गड़बड़ करता था तो न्याय करता था !

अब हमारी सरकार ने हज़ारों इकोनोमिक पोलिसिएस बनाई , राज्य को इतनी ताक़त के वे किसी को भी उद्योग करने दें और किसी को भी रोक दें ! परिणाम आपके सामने है  जब सरकारी ताक़तें कम थीं , तब उद्योग फल फूल रहे थे , और जब ताक़तें ज्यादा तब सिर्फ गिने चुने उद्योग ! मै ऐसा तंत्र चाहूँगा के कोई भी  industrial policies  ना हो पर हाँ न्याय तंत्र बहुत पक्का हो !

रही बात १९९० के economic reforms की तो यह एक अलग से सन्देश होना चाहिए ! क्यूंकि उनमे किया किया हुआ यह बहुत से लोगों को पता ही नही है !  उसको सरकारों ने अपने लिए एक धन एकत्र करने का जरिया बना लिया है ! उसे किया होना चाहिए था और किया है  यह एक विभिन्न विषय है ! 

हां इसके द्वारा हमें BSNL  की अत्यंत धीमी गति से छुटकारा मिला , हमें बैंकों में  ATM और बहुत सी सुविधायें मिली , हमारे पास गाडी लेने के लिए अच्छे  options  आ गए ,
आम आदमी के लिए उद्योग लगाना आसान हो गया , इस उद्योग को लगाकर उनसे रोज़गार भी दिए !  आज कल हमारे देश के IIT and IIM  वाले देश से बहार ना जाकर ओने देश में ही उद्योग चलाना चाहते है !  प्राइवेट colleges में बढोतरी हुई , बहुत से लोगों के लिए उच्च शिक्षा पाना आसान हो गया  और भी बहुत कुछ ! computer and IT  के क्षेत्रों में हज़ारों pratibhaayein सामने aayi  और khoob लोगों को accha रोज़गार मिला ! 

हां कुछ dushparinaamon से भी है वाकिफ हूँ , क्यूंकि ये सब प्रो बिज़नस था ना के प्रो मार्केट .. 

बाकी विषय ज़ारी रखिये , मेरे हिसाब से वेह तंत्र जिसमें अधिक स्वतंत्रता हो प्रत्येक मनुष्य के पास .. वही श्रेष्ठ है , मै सब सुन रहा हूँ पर ग्रहन करने का प्रयास कर रहा हूँ !

जय भारत 



१७ नवम्बर २०१० १:४८ पूर्वाह्न को, शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com> ने लिखा:
सभी का धन्यवाद
________________________________________________________
अगली प्रविष्टि से पहले एक टिप्पणी -
ये बात बिलकुल ठीक है की सरकार का नियंत्रण सर्वत्र नहीं होना चाहिए लेकिन हमें एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा,
की सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
 
इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा. लेकिन यहाँ केवल उल्लेख करना उचित है की हमारे भारतीय
मनीषियों ने राज्य रूप की अपेक्षा राज्य तत्व को ज्यादा महत्व दिया है क्योंकि राज्य रूप चाहे कुछ भी हो लेकिन अगर राज्य तत्व नहीं बदलता
तो सामाजिक , शासनिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं प्रगति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पढता है.
 
उदाहरण के लिए - 
१) महर्षि परशुराम ने २१ बार भारत के कुटिल शासकों का अंत किया लेकिन उन्होंने राज्य का रूप नहीं बदला केवल तत्व बदला.
२) श्री राम ने लंका विजय के पश्चात लंका का राज्य रूप नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.
३) श्री कृष्ण ने भी महाभारत के पश्चात इन्द्रप्रस्थ का राज्य रूप  नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.
कहने का तात्पर्य है की राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता  राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है.
जैसा की आजकल हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं. अमेरिका की जनता संवैधानिक लोकतंत्र से खीज रही है, भारत समाजवाद से, यूरोप संसदीय लोकतंत्र  से, मध्य पूर्व पूर्ण राजशाही से,
और अन्यान्य देश भी धीमे धीमे अपने अपने तंत्रों को विफल मानने की ओर अग्रसर होते प्रतीत हो रहे हैं.
हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देश काल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.
 
विजय जी आपसे अनुरोध है आप भी थोडा मनन करें की तंत्र कोई विफल नहीं होता केवल उस को चलाने वालों और उस तंत्र के उपयोग के अर्थों में विपरीतता हो तो इसमें तंत्र का कोई दोष नहीं होता.
औए एक बात है गौर करने वाली की पहले तो भारत के अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद जो अर्थव्यवस्था के हालात थे उनकी वजह से और १००० वर्ष के अँधेरे भरे समय से गुजरने के कारण
भारतीय आमजन के मानसिक संयम ने बहुत हानि उठाई जिसको संक्षेप में आप इस कहावत से समझ सकते हैं.
"नंगे को मिल गयी पीतर बाहर धरे या भीतर"
अर्थ - किसी को भी अनायास मिलने वाली वस्तु या शक्ति का अर्थ और उपयोग की जानकारी न होने से हानि ही होती है और अज्ञान का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.
सैकड़ों वर्षो के परराज्य, ६० वर्षों के पाशव साम्यराज्य ( सोशलिज्म ) में रहने के बाद भारतीय जनमानस को अनायास ही 1991 से पूँजीवाद की तरफ धकेलना भारत के लिए न केवल नकारात्मक सिद्ध हो रहा है,
अपितु आगे चलकर ये ऐसा विकराल सुरसा मुख फैलाएगा की समाज इसकी शक्तियों से परिचित न होने के कारण अपने मार्ग मूल्यों और अंतिम में स्वतंत्रता पूर्णरूपेण खो बैठेगा.
 
दूसरी प्रविष्टि अगली चिट्ठी में आरही है.
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तमसो माँ ज्योतिर्गमय
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शशांक

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Ved Prakash Agnihotri

unread,
Nov 17, 2010, 12:52:25 AM11/17/10
to bharatswab...@googlegroups.com
Sashank ji dhanyawad aapke lekh ke karan main is group bheje gaye  aur bhi lekh padhne ke liye prerit ho raha hoon . Ek aap jaise hi prakhar aur ojashwi mitra Sashank mere saath Patel chest delhi me rahte they jinhone professor Gilani ko khule aam chalange kiya tha , lagta hai sabhi Sashank aisey ho ojashwi hote hain .

2010/11/17 Vijay Mohan <evija...@gmail.com>



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Regards
Ved Prakash
+919738861567

विक्की हिन्दुस्तानी

unread,
Nov 17, 2010, 10:23:56 AM11/17/10
to bharatswab...@googlegroups.com
पश्चिम की भोगवादी संस्कृति अपने चरम पर आने लगी है I  अब यदि इस धरती को अपना अस्तित्व बचाना है तो उसे पुरातन भारतीय ज्ञान एवं दर्शन  की ओर लौटना ही होगा I  इस महान भारत के विषय में मैं श्री अरविन्द के निम्नलिखित विचार आपके साथ बाँटना चाहूँगा :
युगों का भारत अभी मृत नहीं हुआ है और न ही उसने अपना अंतिम सृजनात्मक शब्द उच्चारित ही किया है; वह जीवित है और उसे अभी भी स्वयं अपने लिए और मानव लोगों के लिए बहुत कुछ करना है I और जिसे अब जागृत होना आवश्यक है, वह अंग्रेजियत अपनाने वाले पूरब के लोग नहीं, जो पश्चिम के आज्ञाकारी शिष्य हैं, बल्कि आज भी वही पुरातन अविस्मरणीय शक्ति, जो अपने गहनतम स्वत्व को पुनः प्राप्त करे, प्रकाश और शक्ति के परम श्रोत की और अपने सिर को और ऊपर उठाये और अपने धर्म के सम्पूर्ण अर्थ और व्यापक स्वरुप को खोजने के लिए उन्मुख हो I’ 
जय भारत

2010/11/16 ajay mehta <sga...@gmail.com>



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आपका मित्र ,
विक्की हिन्दुस्तानी
विषिस्ट सदस्य , भारत स्वाभिमान    

http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/vyavstha%20parivartan.pdf
भारत स्वाभिमान के व्यवस्था परिवर्तन का दस्तावेज देखने के लिए उपरोक्त लिंक क्लिक करें I

विक्की हिन्दुस्तानी

unread,
Nov 19, 2010, 8:47:56 AM11/19/10
to bharatswab...@googlegroups.com
मै विजय जी के इस कथन से सहमत हूँ कि देश में औद्योगिक स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी देश में उद्योगों का पूरा विकास हो पायेगा . राज्य का काम केवल कर वसूल करना होना चाहिए . इसके अलावा न्याय करना भी राज्य का काम होगा. लेकिन आज कि परिस्थिति में मुझे लगता है कि राज्य का नियंत्रण कुछ मुद्दों पर होना चाहिए जैसे :
१. बड़ी बहुरास्ट्रीय देशी या विदेशी कंपनियों को ऐसे छेत्र में व्यापार की अनुमति नहीं होनी चाहिए जिसे देश में आम जनता आसानी से सदियों से करती आ रही है एवं जो उनके रोजगार का साधन है मसलन देश में खुदरा व्यापार, मछली पालन (मांसाहारी भोजन खाना या ना खाना अलग विषय है), फल एवं सब्जियों का उत्पादन एवं विक्रय. बड़ी कंपनियों के इन परंपरागत छेत्रों में आने से करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो रहे हैं एवं होंगे क्योंकि ये बड़ी साधन संपन्न कंपनियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते . जिस रफ़्तार एवं जितनी संख्या में लोग अपने व्यवसाय से बेरोजगार होंगे उसके 5% के बराबर लोगों को भी बड़ी कम्पनी की बड़ी दुकान में रोजगार नहीं मिलेगा . बड़ी कंपनियों को विदेशी व्यापार (export oriented), नए शोध के छेत्रों,large scale production, capital intensive undertaking मसलन तेल उत्खनन एवं शोधन, खनन एवं धातु निर्माण, आदि सभी तरह के उत्पादन से सम्बंधित कामो के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि ये सब काम देश का आम आदमी नहीं कर सकता .
उदाहरण के लिए  - खुदरा व्यवसाय तो आम आदमी आसानी से कर ही रहा है अगर एक बड़ी कम्पनी इस छेत्र में आकर उसे बेदखल कर रही है तो देश एवं समाज के स्तर पर हमें हानि हो रही है क्योंकि इससे GDP में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा . उपभोग भी बराबर ही  हो रहा है परन्तु देश में बेरोजगारी बढ़ रही है एवं संसाधन का वितरण समाज में असमान होता जा रहा है . इस स्थिति की तुलना एक दूसरी स्थिति से करें . मान लीजिये की बड़ी कम्पनी खुदरा व्यापार में आने की बजाय एक बड़ा कारखाना लगाती है स्टील उत्पादन या तेल सोधन के लिए. अब ये काम पहले कोई नहीं कर रहा था सो किसी का औद्योगिक विस्थापन नहीं होगा (कुल औद्योगिक उत्पादन बढ़ने से हमारा आयत घटेगा या निर्यात बढेगा जो दोनों स्थिति में हमारे लिए फायदेमंद रहेगा ) . देश की GDP बढ़ेगी एवं पैसे का सृजन होगा एवं खुदरा व्यापारी भी पहले के मुकाबले ज्यादा कमा पायेगा बनिस्पद बेरोजगार होने के.
२. औद्योगीकरण के लिए एक नीति होनी चाहिए जो नयी green field projects के लिए पुरे दिशानिर्देश दे . मसलन - क्या उपजाऊ कृषि भूमि पर क्या कारखाने लगाये जा सकते है ? यदि हाँ तो किन परिस्थितियों पर ? उद्योग का असर उस स्थान के पर्यावरण पर क्या होगा एवं उस इलाके के निवासियों को वातावरण ख़राब होने का मुवावजा किस तरह दिया जायेगा ? विस्थापन की क्या नीति होगी ? पुराने बंद पड़े कारखाने एवं अनुपजाऊ बंजर भूमि को किस प्रकार नए उधोग लगाने के लिए प्राथमिकता सूचि में रखा जायेगा ?
३. मुक्त व्यापार के आपके तर्क से मै सहमत हूँ परन्तु यदि प्रतिस्पर्धा में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य कम होने के बजाये सम्बंधित उधोग अपना संगठन बना लें एक मोनोपली में दाम बढ़ने लगे तो सरकार के पास इसके खिलाफ क्या उपाय होंगे ? (ऐसा हम कुछ समय पहले चीनी के सम्बन्ध में देख चुके हैं जब गन्ने की कीमत बढे बिना चीनी के दाम बढ़ा दिए गए थे). ऐसा हम आज चिकित्सा एवं शिक्षा के सम्बन्ध में भी देख रहे हैं . प्रतिस्पर्धा में कीमत घटाने की जगह अंग्रेजी माध्यम के सभी विद्यालय एवं प्राइवेट अस्पताल मनमाने ढंग से फ़ीस बढ़ा रहे हैं .
४. आपके सरकार द्वारा शिक्षा ना देना बल्कि नगद रूपए दे देने के विचार को मैंने पढ़ा था . ये पश्चिमी देशों में सफल है परन्तु भारत में ये व्यावहारिक नहीं है. अगर सरकार नगद रूपए देगी तो अधिकांस गरीब उस रूपए से अपनी अन्य जरूरतें मसलन रोटी, कपडा एवं माकन की जरुरत पूरी करेंगे, कई लोग शराब, एवं नशे में लुटा देंगे. अधिकांस गरीब बच्चे उस पैसे से पढ़ ही नहीं पाएंगे . आपको पता है आज भारत में जितने भी गॉव हैं उसमे बच्चे केवल व केवल दोपहर के मुफ्त भोजन के लिए विद्यालय जाते हैं . जिस दिन खाना नहीं विद्यालय में कोई दिखाई नही देता . 
अभी विराम करता हूँ.. ... आगे चर्चा जारी रहेगी...
जय भारत
2010/11/17 Ved Prakash Agnihotri <ved...@gmail.com>



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ajay mehta

unread,
Nov 19, 2010, 9:14:48 PM11/19/10
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
"ओम"
विक्कीजी में आपकी ऑर दूसरे सभी स्वभिमनिओ कि भावना ऑर देश के लिये सोच पर आप सव का साधुवाद करता हू.
मित्रो मुझे व आप सवको भी यह मालूम हें कि हमारे विचार ज्यादातर समान हें ऑर भारत को महान  बनाने के लिये हें, कही कही यदि थोडी बहुत भिन्नता भी हें उसे हम बहुत व्यावहारिक होकर सुलझाने कि कोशिश कर रहे हें. यह सच में भारत को महान बनाने के रास्ते में हम सवकी बडी उपलब्धी हें.
अब हम बात करते हें कि चर्चा को कैसे बहुत हीं स्टीक व व्यावहारिक ऑर पुर्णरुपेन भारतीये परिपेक्ष में आगे बदया जाये कि यह एक ऐसे ग्रंथ में परिवर्तीत हो जिससे न केवळ भारत महान ऑर भरत्वसिओ का बल्की पूरे विश्व का कम से कम ५०० वर्षो तक कल्याण हो.
हम सव को इस बात का ध्यान रखना हें कि यदि आचार्य चाणक्य (कौटिल्या) ऐसा ग्रंथ रच सकते हें जो १५०० वर्षो तक विना किसी परिवर्तन के मानव जाति का कल्याण कर सकता हें ऑर आज भी इस पूरी तरह से पिटे हुये समाज (यहा  अब बच्च्हो को सिरीयल के नाम पर राखी सावंत का इन्साफ ऑर बिग बास, मैने ऑर मेरे परिवार ने  ये दोनो सिरियल कभी नही देखे ऑर जो कुछः भी सुना हें वह आम लोगो कि चर्चा से) में कुछः न कुछः सार्थकता हें तो क्या हम सव (एक समान सोचने वाले ऐसे बन्दुओ का समूह जो सिर्फ ऑर सिर्फ भारत ऑर विश्व के लिये अपनी शिक्षा ऑर व्याहारिक व व्यवसायिक  सारी  अन्य विधाओ को लगाने के लिये तत्पर हो) नही कर सकते.
आओ एक प्रयास करे.
मीन यहा स्पष्ट कर देना चाहता हू कि मित्रो मीन एक वित्त (फायनेंस) से जुडा लागभाग २०-२३ वर्ष के अनुभव  का व्यक्ती हू इसी लिये किसी भी औद्योगपती या व्यक्ती विशेष के विरोध नही हू या कभी कभी उनके कार्य करने के ढंग को अपने आय समाज के लिये सार्थक ना पा कर मन विचलित हो जाता हें.
चर्चा आगे जारी राखुगा. समय का कुछः अभाव आ गया हें.
 
जय भारत
 
 
 
 
2010/11/19 विक्की हिन्दुस्तानी <hindust...@gmail.com>

Vijay Mohan

unread,
Nov 20, 2010, 12:34:45 AM11/20/10
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ॐ,

धन्यवाद विक्की जी ,

आपका चिंतन बहुत सार्थक है, विचार  करने  योग्य   है 

आपके शिक्षा के सुझाव में यह पक्ष रखना चाहूँगा के , सरकार यह फीस सीधे स्कूलों को देगी ना के नागरिकों को ,हर वर्ष के अंत में स्कूल ने कितने बच्चों को पडाया इसके हिसाब से उन्हें फीस मिलेगी ! येदी ऐसा हुआ तो स्वयं विद्यालय उन्हें भोजन देंगे या कुछ भी करेंगे जिससे बच्चे पड़ने  आयें !
gaaon में अधिक फीस दी जा सकती है , जिससे अधिक प्रोफिट के लिए गाँव में ज्यादा और अच्छे विद्यालय चलेंगे !

इस पद्धति से विद्यालय फ्री मार्केट की श्रेणी में आ जायेंगे और हम राजा हो जायेंगे की हम किस स्कूल में बच्चों को पढाएं ! इस पद्धति से शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा उठ जाएगा !

बाकी सुझाव चिन्त्निये है , इन पर सर्व सम्मति से राय बनानी चाहिए !

परन्तु अभी तक की मेरी study में , फ्री मार्केट में छोटे उद्योग घरेलु उद्योग ज्यादा फलते फूलते है ,और मुझे आज तक एक भी ऐसी पोलिस्य नही मिली  जिससे लघु उद्योगों को फायदा हुआ हो ,सरकार इन पोलिसिएस के आड़ में उल्टा इन्हें बर्बाद करती चलती है ! पोलिस्य बनाकर सरकार अपने आप को इन व्यक्तियों से बड़ा समझने लगती है ,मेरे हिसाब से जो उद्योग चलता है , वेह इन सब समस्याओं से निपट सकता हैऔर वो सरकार से ज्यादा बुद्धिमान है  !

हाँ "Equality of opportunity" बहुत ज़रूरी है , इसी के लिए oopar बताई हुई शिक्षा पद्धति है ! १९९०  ke baad हमारे देश में कुछ वर्गों को फायदा नही बल्कि घाटा हुआ , इसकी जिम्मेदार हमारी सरकार है क्यूंकि "equality of opportunity" nahi  है , इतने अनपद , इतने लोग गरीबी स्तर के नीचे !

मै नही चाहता की जिन कारणों की वजह से ऐसा हुआ है , फिर वे उन्ही को इस्तेमाल में लाया जाए ! पर यह चर्चा का विषय है , और चर्चा जारी रखेंगे 

"protectionism"  is a killer  .. इससे ज्यादा नुक्सान भारतीय उद्योगों को और किसी से नही  हुआ 

ये जो बहुराश्त्रिये कोम्पनिएस है वे सरकारी और policy की  मदद  से ही फलतो फूलती है , येदी  इन्हें मदद ना मिले तो ज़बरदस्त competetion के चलते इनका इतना बड़ा  होना बहुत मुश्किल है 

जय भारत 

१९ नवम्बर २०१० ७:१७ अपराह्न को, विक्की हिन्दुस्तानी <hindust...@gmail.com> ने लिखा:
मै विजय जी के इस कथन से सहमत हूँ कि देश में औद्योगिक स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी देश में उद्योगों का पूरा विकास हो पायेगा . राज्य का काम केवल कर वसूल करना होना चाहिए . इसके अलावा न्याय करना भी राज्य का काम होगा. लेकिन आज कि परिस्थिति में मुझे लगता है कि राज्य का नियंत्रण कुछ मुद्दों पर होना चाहिए जैसे :
१. बड़ी बहुरास्ट्रीय देशी या विदेशी कंपनियों को ऐसे छेत्र में व्यापार की अनुमति नहीं होनी चाहिए जिसे देश में आम जनता आसानी से सदियों से करती आ रही है एवं जो उनके रोजगार का साधन है मसलन देश में खुदरा व्यापार, मछली पालन (मांसाहारी भोजन खाना या ना खाना अलग विषय है), फल एवं सब्जियों का उत्पादन एवं विक्रय. बड़ी कंपनियों के इन परंपरागत छेत्रों में आने से करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो रहे हैं एवं होंगे क्योंकि ये बड़ी साधन संपन्न कंपनियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते . जिस रफ़्तार एवं जितनी संख्या में लोग अपने व्यवसाय से बेरोजगार होंगे उसके 5% के बराबर लोगों को भी बड़ी कम्पनी की बड़ी दुकान में रोजगार नहीं मिलेगा . बड़ी कंपनियों को विदेशी व्यापार (export oriented), नए शोध के छेत्रों,large scale production, capital intensive undertaking मसलन तेल उत्खनन एवं शोधन, खनन एवं धातु निर्माण, आदि सभी तरह के उत्पादन से सम्बंधित कामो के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि ये सब काम देश का आम आदमी नहीं कर सकता .
उदाहरण के लिए  - खुदरा व्यवसाय तो आम आदमी आसानी से कर ही रहा है अगर एक बड़ी कम्पनी इस छेत्र में आकर उसे बेदखल कर रही है तो देश एवं समाज के स्तर पर हमें हानि हो रही है क्योंकि इससे GDP में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा . उपभोग भी बराबर ही  हो रहा है परन्तु देश में बेरोजगारी बढ़ रही है एवं संसाधन का वितरण समाज में असमान होता जा रहा है . इस स्थिति की तुलना एक दूसरी स्थिति से करें . मान लीजिये की बड़ी कम्पनी खुदरा व्यापार में आने की बजाय एक बड़ा कारखाना लगाती है स्टील उत्पादन या तेल सोधन के लिए. अब ये काम पहले कोई नहीं कर रहा था सो किसी का औद्योगिक विस्थापन नहीं होगा (कुल औद्योगिक उत्पादन बढ़ने से हमारा आयत घटेगा या निर्यात बढेगा जो दोनों स्थिति में हमारे लिए फायदेमंद रहेगा ) . देश की GDP बढ़ेगी एवं पैसे का सृजन होगा एवं खुदरा व्यापारी भी पहले के मुकाबले ज्यादा कमा पायेगा बनिस्पद बेरोजगार होने के.
२. औद्योगीकरण के लिए एक नीति होनी चाहिए जो नयी green field projects के लिए पुरे दिशानिर्देश दे . मसलन - क्या उपजाऊ कृषि भूमि पर क्या कारखाने लगाये जा सकते है ? यदि हाँ तो किन परिस्थितियों पर ? उद्योग का असर उस स्थान के पर्यावरण पर क्या होगा एवं उस इलाके के निवासियों को वातावरण ख़राब होने का मुवावजा किस तरह दिया जायेगा ? विस्थापन की क्या नीति होगी ? पुराने बंद पड़े कारखाने एवं अनुपजाऊ बंजर भूमि को किस प्रकार नए उधोग लगाने के लिए प्राथमिकता सूचि में रखा जायेगा ?
३. मुक्त व्यापार के आपके तर्क से मै सहमत हूँ परन्तु यदि प्रतिस्पर्धा में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य कम होने के बजाये सम्बंधित उधोग अपना संगठन बना लें एक मोनोपली में दाम बढ़ने लगे तो सरकार के पास इसके खिलाफ क्या उपाय होंगे ? (ऐसा हम कुछ समय पहले चीनी के सम्बन्ध में देख चुके हैं जब गन्ने की कीमत बढे बिना चीनी के दाम बढ़ा दिए गए थे). ऐसा हम आज चिकित्सा एवं शिक्षा के सम्बन्ध में भी देख रहे हैं . प्रतिस्पर्धा में कीमत घटाने की जगह अंग्रेजी माध्यम के सभी विद्यालय एवं प्राइवेट अस्पताल मनमाने ढंग से फ़ीस बढ़ा रहे हैं .
४. आपके सरकार द्वारा शिक्षा ना देना बल्कि नगद रूपए दे देने के विचार को मैंने पढ़ा था . ये पश्चिमी देशों में सफल है परन्तु भारत में ये व्यावहारिक नहीं है. अगर सरकार नगद रूपए देगी तो अधिकांस गरीब उस रूपए से अपनी अन्य जरूरतें मसलन रोटी, कपडा एवं माकन की जरुरत पूरी करेंगे, कई लोग शराब, एवं नशे में लुटा देंगे. अधिकांस गरीब बच्चे उस पैसे से पढ़ ही नहीं पाएंगे . आपको पता है आज भारत में जितने भी गॉव हैं उसमे बच्चे केवल व केवल दोपहर के मुफ्त भोजन के लिए विद्यालय जाते हैं . जिस दिन खाना नहीं विद्यालय में कोई दिखाई नही देता . 

ajay mehta

unread,
Nov 20, 2010, 1:35:35 AM11/20/10
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
"ओम"
 
हम यहा चर्चा कर रहे हें कि आनें वाले दिनो में भारत कि और्धोगिक ऑर आर्थिक नीति कैसी हो ऑर हमारे औद्योगपतियो का चरित्र व व्यवहार कैसा हो. इसी के मध्यानजर, एक विशेष औद्योगिक घराने का नाम चर्चा में शामिल हो गया.
 
मै इस घराने के स्वर्गीये  पूर्वजो  का बहुत सम्मान करता हू ऑर उनको अपना एक आदर्श भी मानता हू. लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल भी नही हो सकता कि मै पूरे टाटा समूह में कुछः भी ऐसा  न  देखू  जिससे मै अपने व्यक्तित्व में कोई सुधार कर सकू. यदि मै अच्छाइयो को लेने कां प्रयास कर रहा हू तो दुसरी ऑर भी देखणे में कोई बुराई नही हें. चलो इसे यही विराम देते हें ऑर आगे बढते हें. 
  
आप सभी इस बात को जानते होंगे ऑर मानेगे भी कि अंग्रेजी व्यवस्था में भारतीये मूल के व्यापारियो को व्यवसाय को आगे बढाना तो दूर वर्तमान व्यवसाय को चलाने के लिये भी एडी-चोटी का जोर लगाना पडता था. 
भारतीये व्यवसायिक व्यवस्था सच में महान थी (अब इस बात को कोई कैसे भी ले ).
और इसी बात का लाभ दूसरे मूल के  व्यक्तियो खासतोर पर युरोपिये ऑर अंगेरज लोगो  ने भारतीये संसाधनो को दोहने में खूब लिया.
ऑर भारत में युनिलीवर, आई टी सी, एल एंड टी सीमोन्स, जैसी दसियो कम्पनियो  के साथ-साथ ऐसे कुछः समूह (जो बाद में भारत में हीं बस गे कारण कोई भी हो ) का भी पर्दार्पण हुआ (1860 - 1925 के मध्य)  से लेकर.
 
अब अपने कार्यो को आगे बढाने व भारत महान कि सदियो से संजोई संपदा को इस्तेमाल  (या यू कहे लुटने-घसुटने) करने के लिये ढांचागत सुविधायो कि आवश्यकता तो होगी हीं (क्योंकी अंग्रेज कोई एक दो दिन कि योजना बनकर तो आये नही थे उनका तो मानना  था कि अब कम से कम १००० वर्ष तो हम भारत में रहेगे हीं (जैसा कि उनको ज्ञात था कि पिछले  ५०० वर्षो से मुगल यहा वसे हुये हें ऑर भारतावास्सियो ने अब तो (उस समय ) न केवळ उनको अपना लिया हें बल्की बहुतो ने तो डर कर या भावाभेष में आकर  उनका धर्म ऑर रहन सहन भी ले लिया हें तो फिर हम (अंग्रेज व अन्य युरोपिये) क्यो नही रह सकते ऑर इनको अपना गुलाम नही बना सकते).
 
तो साथियो भारतीये बनिया (श्रेष्ठी  लिखुगा आगे से ) समाज के व्यवसायो ऑर जमीनदारो  व किसानो के कार्यो को इतना तुच्छ  बता या बना दिया गया कि आम भारतीये का जिना भी दुर्भर हो गया.
अब बो मरता क्या नही करता,
बस इसी से विवश  होकर उन्होने अपना सारा ज्ञान ऑर सामर्थ्य इन विदेशी व्यापारियो के सामने डाल दिया. 
 
अब शुरू हुआ लुट  का सिलसिला तो सवसे पहले थोडी बहुत ढाचागत व्यवस्था भी चाहिये थी (जिसे  हमारे  ईमानदार प्रधानमन्त्री भी इंग्लंड में जा कर गां आये हें कि यदि अंग्रेज भारतभूमि  पर न आये होते तो आज भारत का क्या होता). 
अब देखिये नाटक ...............
ज्ञान भारतीयो का, सामर्थ्य भारतीयो का, मेहनत भारतीयो कि.......ऑर सव कुछः भारतीयो का ..........लेकिन गुणगान अंग्रेजो का, युरोपियो का ऑर सारी कि सारी शिक्षा का ढोल उनका. 
 
इसी दोरान, भारतीयो को इन सारी कारगुजारियो में अपना खान-पान भी ढूढना था तो बन गे इन के कर्मचारी (ये सर्वथा वो लोग थे कभी बडे व्यवसायी या ज्ञान पूंजी के मालिक थे पर अब तो गुलाम थे जैसा ये विदेशी ऑर इनके तथाकतीथ भारतीये बने बेहरुपिये कहते थे वैसा हीं करते थे).
अब भारत महान को मिली ढाचागत व्यवस्था ऑर भारतीयो को नौकरिया.
यह कोई भारत ऑर भारतीयो पर बहुत बडा एहसान नही था क्योंकी यदि ऐसा नही करते तो भारत महान कि संपदा को लुटा कैसे जाता.  हां यह जरूर था कि भारतीयो कि मानसिकता को कुछः इस हद तक गिरा दिया जाये कि उनको लगे हम ऑर हमारे पूर्वज तो कुछः करने लायक हीं नही थे. जो हम आज भी गाहे- बगाहे पढ-  सुन लेते हें.
 
अब इन्ही कर्मचारियो में से कुछः का मषतिक चला  ऑर अंग्रेजी व्यवस्था के अनुरूप अपने को ढालने में कोई गुरेज न करते हुये उनकी जैसी शिक्षा लेनी आरंभ कर दी. 
इससे इन अंग्रेजो का दोगुना लाभ हुआ कि जड का ज्ञान तो भारतीये था जो नित नये  प्रयोग  करता  था ऑर उपरी ज्ञान अंग्रेजी हो गया जो अपने हीं लोगो का शोषण करवाने में काम आनें लगा.
बहुत से अंग्रेज ऑर युरोपिये तो भारतीयो के लिये देवता बन गे ऑर ये विदेशी शिक्षा के अंधे भारतीये आपनो के हीं दुश्मन.
 
क्योंकी समय तेजी से बदल रहा था ऑर भारतीयो में लाल लाजपत राय, सुरेंद्र नाथ बनेर्जी, .....जैसे  सेंकडॉ विशुद्ध भारतीय जिनमे शहीद भगत सिंह के परिवार जैसे दसियो परिवार भी शामिल हें एक बार फिर से (यांनी १८५७ के बाद ) भारत को महान भारत बनाने में लग गे तो कुछेक 
अंगेरजो व युरोपियो ने भारत को अपनाने में हीं बुदिमानी समझी (यहा यह भी हो सकता हें कि कुछः को भारतभूमि  से भी सच्चा प्यार हो गया हो या समय रहते ऐसा संभव हो ) ऑर बन गे हम सवके प्रिये भारतवासी.
 
भारतीये  श्रेष्ठी ( व्यवसायी) तो 1935 के वाद फिर से सक्रीय हुये पर यहा भी वे लोग ज्यादा  सवल बने जिन्होने अंग्रेजी व्यवस्था को जल्दी में अपनाया ऑर भारतीये उसूलो को ताक पर रखा. ये लोग कुछः ज्यादा हीं समझदार निकले ऑर विदेशियो के साथ साथ, सभी महान आंदोलन क्रांतीकारियो का भी इस्तेमाल अपने व्यापार को बढाने में करने लगे.
 
वैसे ऐसे भी बहुत से  श्रेष्ठी थे जो विदेशियो कि प्रताडना को तो सहते थे पर कभी  भारत महान के उसूलो को नकार नही सके.
 
फिर आया 1947  ऑर बाद में 1956 .
सवको मालूम होगा कि भारतीये कंपनी अधिनियम 1956  में हीं अपने स्वरूप में आया था वह बात अलग हें कि दूसरे कानून कि तरह यह भी अंग्रेजी व्यवस्था कि हीं नकल था.
तो मित्रो यह सही हें कि आज १०० वर्षो से भी ज्यादा कुछः औधोगिक घराने भारतवर्ष में कार्यरत हें ऑर भारतीये (मोडरण इडिया ) के बनाये हुये नियमो के तहत हीं सव कुछः कर रहे हें पर जव हम अपने भारतीय समाज में एक  ऐसा अमूलचूल परिवर्तन करने कि बात कर रहे हें यो विशुद्ध भारतीय हो ऑर कम  से कम 500 - 1000 वषो के लिये मान्य हो तो हमे दूर द्रष्टी से कार्य करना होगा. 
 
आप सव सोच रहे होगे कि भारतीये उसूल कि बात  (राग) तो गां रहे हें पर इनके अनुसार ये हें क्या.......
मैने अपने  श्रेष्ठी समाज के एक मित्र के दादाजी से बात करते हुये जाना कि भारतीये  श्रेष्ठी समाज के व्यवसाय करने क क्या उसूल होता था ऑर कैसे यह संभव था तो आप लोगो के साथ शुरुआती कथन बांट  रहा हू.........
 
उनके अनुसार भारतीये श्रेष्ठी अपना व्यवसाय प्रभु कि इच्छा मानकर कि उससे मुझे इस समाज में इसी लिये जन्म दिया हें कि में व्यापारिक गतिविधिया करू व इससे दूसरे समुदायो के कल्याण हेतू ज्यादा से ज्यादा धर्मानुसार आगे बढू. 
जहां लाभ को सवसे आखिर में रख सवसे प्रथम अपने कर्मचारियो  कां भाग (भाग्य में जो उनके हें उनकी योग्यता के अनुसार),
अपने पारिवार के लिये (यांनी अपना मेहताना ) 
फिर देश के लिये (कर) ऑर
समाज के दूसरे वर्गो के लिये ऑर
बाद में जो भाग (भाग्य) में प्रभु ने मेरे लिये छोडा हें उससे व्यापार कि ऑर उन्नती करू.
उन्होने एक बडे हीं ज्ञान कि बात बताई थी कि  श्रेष्ठी समाज में
कोई भी बुजर्ग तब तक प्राण नही त्याग सकता था या धर्मराज के दूत तव तक उसके प्राण नही लेते थे जबतक कि वह 
किसी धर्मशाला (जो आजकल के होटल हो गये हें), किसी विध्यालया (प्राइवेट शिक्षा संस्थान) ऑर किसी औषोध्यालाया या वेधशाला (प्राइवेट हासपिटल) में दान नही दे देता था.
 
तो मित्रो भारतीये व्यवस्था में सव को रोटी, सव को वस्त्र, सवको मकान, सवको यथासंभव शिक्षा ऑर सवको स्वास्थ्य सुविधायो को सर्वोपरी रखा जाता था. 
ऑर आज इन्ही क्षत्रो में सारा व्यापार हो रहा हें जरा एक नजर मार कर तो देखो अपनेआप  स्तीथी समझ में आ जायेगी.    
 
चलो ठीक हें.
पर यहा एक बात ऑर बाटना  चाहूंगा कि जो लोग भारतीयो कां विदेशो में बसना ऑर वहा जाकर कोई कार्य करना ऑर फिर अपने ज्ञान के बल पर कुछः प्राप्त कर लेना को इस कडी में लेते हें तो वह पहले गेहराई में  जाये.
भारतीयो में ज्यादातर या तो अपने परिवार, समाज, व्यवस्था ऑर देश से परेशान होकर या फिर अपनी घुम्क्कड  मानसिकता के चलते हीं पलायन करते हें.
उन्हे अपने परिवार, समाज ऑर देश कि याद भी तभी आती हें जब जहा कोई ऑर अवसर मिलने कि संभावना होती हें. आज जो भी ज्यादातर एन. आर. आई भारतीये जहा आनें को हें या फिर इसका गुणगान कर रहे तो तो इसमे भी उन्हे कही उनके मतलब कां भारत दिखाई दे रहा हें.
वे शुरुआती दूर में वहा भी उन लोगो के कर्मचारी बनकर हीं अपना समय गुजरते हें.  उन लोगो में भारत से ज्यादा समर्पण उस भूमि के लिये होता हें. वे वहा किसी को हेय कि द्रष्टी से नही देखते बल्की उनके हीं अपमान को सहते हें. 
अब वर्षो वर्षो से वहा रह कर या बहुत सी जगहो को तो बसाया हीं भारतीयो ने हें में कुछः स्थान प्राप्त कर भी लेते हें तो इसमे भी जहा भारत वर्ष में उन जैसी सोच वाले उनका गुणगान ज्यादा कर अपने को हीन समझते हें.
अब बात अमेरिका कि क्या करे. वे लोग तो अपने काले महामहीम (जो सवसे सर्वोच्य स्थान हें वहा)  को हीं नही पचा पा रहे तो भारतीयो को कितना मान सम्मान मिलता होगा ये तो वही जाने.
अभी हाल हीं में अमेरिका के वर्तमान महामहीम ने एक सेमिनार में कहा था कि विरोधी  पार्टी के लोग उन्हे कुत्ता समझते हें. अब आप हीं सज्ञान किजिय किसे कितना सम्मान मिलता होगा.
पर भारत में न तो यह कभी हुअ हें ऑर न हीं कोई सच्चा भारतीये ऐसा करेगा. चाहे कोई कितना भी कोसे पर प्रथीवीराज चौहान ने तो लूटेरे को भी अंत तक मौका हीं दिया था.
 
मैने बहुत हीं सोच समझ कर अपने विचार रखें हें इस लिये निवेदन करुगा  कि कोई भी भारत स्वाभिमानी इस पर अपना मत देने से पहले लेख कि गंभीरता को जरूर समझे. मै आशा करुंगा कि अब हम सव मिलकर एक नई दिशा कि ऑर आगे बढेगे.
 
जय भारत
       
      

2010/11/19 विक्की हिन्दुस्तानी <hindust...@gmail.com>
मै आपकी बातों से सहमत हूँ. पहले जमीन लीज पर ही उद्योगों को दी जाती थी . जमशेदपुर में टाटा की सारी जमीन लीज पर ही है. permanent रूप से देने का प्रचलन अभी कुछ वर्षों से ही प्रारंभ हुआ है जो सच में खतरनाक है .
जय भारत

2010/11/19 Sudhir Sahni <sudhirs...@gmail.com>

MAIN point is land is the actual source of generation of wealth .Its ownership should not go permanently into the hands of few .That is a dangerous sign for any nation in the long run.


---------- Forwarded message ----------
From: विक्की हिन्दुस्तानी <hindust...@gmail.com>
Date: 2010/11/19
Subject: Re: [BST] Re: पारिवारिक चित्र टाटा समूह का
To: bharatswab...@googlegroups.com


टाटा के बारे में , उनकी ईमानदारी , सामाजिक जिम्मेदारी आदि के बारे में अगर आपको जानना है तो कभी जीवन में मौका मिले तो एक बार जमशेदपुर जरुर आइयेगा . ये शहर झारखण्ड राज्य में स्थित है जिसे टाटा ने १०३ वर्ष पूर्व बसाया था . आज इस शहर की जनसँख्या लगभग २० लाख से अधिक है व यह शहर पूरी तरह से टाटा की कम्पनी पर निर्भर है . इस शहर के रख रखाव की सारी जिम्मेदारी टाटा उठाती है. शहर को देखने पर आपको इसका अंदाजा लगेगा कि planned city किसे कहते हैं एवं वातावरण को संजोय हुए रखकर उद्योग कैसे लगाया जा सकता है .
रही बात मेहनतकश लोगों के शोषण की तो ये बात आप टाटा के किसी कर्मचारी से पुछ कर देखें . आपकी सारी ग़लतफ़हमी दूर हो जाएगी .
संभव है इन सब चीजों को जानने के बाद आपको अपने विचारों के लिए शर्मिंदगी महसूस हो कि आपने अनजाने में ही किसी के बारे में अपनी राय दे दी .
और एक बात, मुझे लगता है कि हमें किसी और के कार्यों के बारे में टिपण्णी करने का तब तक कोई नैतिक अधिकार नहीं जब तक हम उस व्यक्ति या संस्था के काम या योगदान का १% भी नहीं कर रहे .
इस विषय पर मै आप सब का एवं अपना ज्यादा वक़्त जाया नहीं करना चाहता सो यही पर विराम लेता हूँ .
जय भारत

2010/11/19 manoj peetamber <peet...@rediffmail.com>


मरी मेल नजाने पंकज अगरवाल जी में केसे हो गयी कृपया ध्यान दे और टाटा समूह का पारिवारिक चित्र भी गायब हो गया कृपया जाचे धन्यवाद *******
प्रिय गुरु मित्र
श्री अजय जी आपके विचार देश आत्मा से जुडा होते है ! जो जड़ से आध्यंन करते है वो मूल को भी जानते है और जो किसी विचारधारा से प्रेरित होते है ! वो मूल को नहीं जानते*** आपका अपना और दूसरी विचारधारा का आध्यंन से ही सच का पता लगता है ! अंग्रेजो के जाने के बाद जिन लोगो ने देश की अर्थवेयवस्था जिनके हाथ आई वो अंग्रेजो के चापलूस ही थे जिन्हें अंग्रेजो ने सर की उपाधि दी हम पर सासन किया जिनमे टाटा, हिंदुस्तान-लीवर, बाटा, ITC , फिलिप्स, हिदुस्तान-मोटर्स, फिएट्स, आदि कम्पनियों ने देश को कुछ नहीं दिया ये केवल अंग्रेजो की टेक्नोलोगी से व्यापर करते थे ! इनके व्यापारिक गठ्बंदन से देश तरक्की नहीं कर पाया ! इन्द्रा, राजीव , के मरने के बाद ही भारतीय वयापार बड़ा ***राजीव की विदेशी पसंद व योरोपियन वयापार निति की कुंडली नर्शिम्बा-राव ने उलट दी ! भारतीय चाणक्य वाही थे ! ने अंग्रेजो के बजाये एशियन संबंद बनाये ! जिससे पैसा अंग्रेजो के बजाए भारतीयों के पास रहने लगा ! न अब इनकी कार खरीदता है न जूते, न सामान जिससे इनकी हालत तो ख़राब हुयी ही साथ अंग्रेज भी कंगाल होने लगे ! अब हालत आपके सामने है !बाद-किस्मती से देश आजादी के बाद इमानदार लोगो के हात होता तो देश की तशवीर चीन और जापान से आगे होती ! आजादी से देश कभी अंग्रेज चापलूस नेहरु तो कभी चूडियो के सहारे देश चला विदेशी मानसिकता की आजादी के बाद नर्शिम्बा-राव , अटल बिहारी बाजपेयी जी ने देश को नयी दिशा दी !जिसका परिणाम आपके सामने है ! ॐ जाए भारत वन्दे मातरम

भवदीय ,

पीताम्बर 09868420933
विशिष्ट सदस्य, भारत स्वाभिमान



2010/11/18 manoj peetamber


 प्रिय मित्रो

टाटा समूह की बेहेश में हम काफी समय बर्बाद कर रहे है ! हमें सोचना पड़ेगा की जो अपने जीवन भर अंग्रेजो की मदद अपने देश का बेश कीमती लोहा दे कर  करता आया हो उस विदेशी मूल के परिवार पर केसे भरोसा करे ! मे एक पारिवारिक चित्र टाटा समूह का भेज रहा हु ! जिसमे इनका खून विदेशी ,सदश्य विदेशी , सोच विदेशी , और व्यापर विदेशी हो वेह भारत का कैसे हो सकता है ! जिनका लालन पालन switzerland  में विदेशी माँ suzanna  (फ्रेंच) के द्वारा हो वेह भारतीय केसे होगा !  जिन्होंने पूरी जिंदगी अंग्रेजो की रेल के लिए पूरी दुनिया में लोहा बेच कर मदद की हो ! और नेहरु समेत पुरे परिवार की मदद वोह आजादी से पहलेसे करते आए है ! चाहे चुनाव हो या आर्थिक मदद विदेशो में करते आए है ! की मानसिकता अंदाजा लगाया जा सकता है ! १९८७ से पहले भारत में केवल सिर्फ अंग्रेजो द्वारा विदेशी नियंत्रित व्यापर होता था ! जिसमे कार, मशीनरी, रेडियो, सेनिक सामान , केमिकाल्स , मेडिकल का सामान आदि सभी नजाने कितनी वस्तुए प्रियोग में लायी जाती थी क्यों**** और भारतीय वैज्ञानिक डोक्टोर्स, इंजीनियर्स, जितना भी ज्ञान भारतीय दिमाग हो विदेशो में भेजा जाता था ! ताकि विदेशी मदद की जा सके ! जरा ध्यान गया क्यों **** १९४८ में JRD  टाटा एयर इंडिया INTERNATIONAL  में CHIRMEN  थे! तभीसे इनकी तमन्ना विदेशियों के साथ मिल भारतीय विमान सेवा को अपने आधीन करने की थी ! अब इनका बयान १५ करोड़ के घुश लेने का राजनीती से प्रेरित है ! जरा सोचिये की कभी भारत के चुनाव में इन्होने किसीकी मदद नहीं करी होगी !**** अगर की होगी तो किसकी ? क्या सरकारों से इन महासय ने मदद नहीं लि होगी क्या टेक्स चोरी नहीं करी होगी ! पुरे देश का ७०% उत्तम किशम का लोहा विदेश निरियात करते है क्या उस हेरा-फेरी में सरकार की मदद नहीं चाही होगी ! अब सोचिये की वोह कोन सी सरकार होगी ! जो इनकी मदद करती है ! जब घोटालो में घिरी सरकार को बचने वाला कोई नहीं तब  बयान दे डाला की ऐसे घोटाले और भी सरकारों में होते है ! मतलब साफ है ? अब समए बदल गया अब एशिया के लगभग सभी देश बिना योरोपियन मदद के सभी वस्तुए बनाते है ! अंग्रेज समाज  बिकने पर आगये है इनका साम्राज्य खोखले ताना-शाही पर खड़ा है ! और हमें ग्लोबल क्रिसेस बता देश को घोटालो से लुट कर महगाई दिखाई जा रही है ! और विदेशो में जमा दुनिया का बेशकीमती धन इन्ही देश द्रोहियों का है ! हम गरीब नहीं ! देश की सारी कमाई  घोटालो के द्वारा लूट कर विदेश भेज दिया जाता है ! ताकि अंग्रेजो की मदद हो और रूपये का मूल्य गिरा रहे ! और हम पर राज करते रहे ! मित्रो इन दुष्टों की हर बात की गहरायी में जाना होगा ! की क्यों करोडो रूपये कॉमनवेल्थ गेम्स में खर्च किये ? क्यों IPL होता है ? कितने घोटाले नजाने कितने ? कहा जाता है यह पैसा ? हम आम जनता को बेवकूफ बनाया जाता है हर्षद-मेहता राजू, तेलगी, क्रतोची, रजा, कलमाड़ी, नजाने कितने ये यह देश द्रोहियों के पियादे है !


पर देश की सचाई कुछ और है दिल्ही के लक्ष्मी नगर में एक विशाल छे मंजिला ईमारत गिरने से २५० भारतीय माशूम परिवार दब गए ! मै वहा गया कलेजा फट गया बच्चे तड़फ रहे थे जो बच गए जिनका कोही नहीं उनकी चीत्कार से दिल काप रहा था कोई मदद नहीं कोई पानी पिलाने वाला नहीं इतनी ठण्ड व बारिश में खुले मैदान के-निचे  तड़फ रहे है ! यह भारतीय है जिनका कोई नहीं ! और २४ घंटे में नजाने कितने परिवार बे-घर किये जाये गे अनुमान नहीं ! दूसरी तरफ  विदेशी मेहमानों को खुश करने १.५ कर्रोड़ की गेश गुब्बारे में भरी सिर्फ १५ दिनों की लिए? पर तड़फते भारतीयों को पानी तक नसीब नहीं ! यह जिंदगी गुलामो से बत्तर है वो परिवार जो ईमानदारी से महनत कर देश में जीते हो उनकी हालत ऐसी ?  उठा लेनी चाहिए बंदूके इन दुस्तो का सर्व-नाश करने केलिए**** अपना हक़ देश से मांगने का अधिकार  किशको नहीं ! अगर इनका हक़ कोई पहले ही लूट ले उसको मौत के घाट उतर देना चाहिए ! और वोह मौत देनी चाहिए की पूरी दुनिया ही कापजाये ! मित्रो हमभी उन्ही में है ! फर्क इतना है की हमपर कहर नहीं टुटा ! इसलिए दर्द नहीं होता ? सोचता हु की जब दिल्ली में ऐसा है तो देश में नजाने कितने हादसे होते है कभी भोपाल कभी रेल दुर्घटना कभी बाड़, तो कभी भूकम  हम भारतीयों की यही दुर्दशा होती  ! और देश द्रोही हम भारतियो को लूट चेन की नींद सोते है ! मित्रो हमें बहुत बड़ा कार्य करना है जागो  अपनी गुलाम मानसिकता को प्रखर बनाओ छोटी छोटी बातो में समय नजाए अपने अपने अस्त्र चाहे किशी भी रूप में हो प्रयोग करो ! और जगाओ और जगाओ **********


रविवार १४ नवम्बर को हमने भ्रस्टाचारी सांड की नाक में नकेल डालने का प्रयाश किया है ! उससे भी जादा ख़ुशी मुझे भारतीय इमानदार बुध्जिवियो को साथ लाने का प्रयाश लगा ! उसमे विवादित अग्निवेश भी थे जो अंग्रेजो द्वारा नियंत्रित बहरूपिया है ! महा-रास्त्र के राज ठाकरे की तरह , अभी बहुत लोगो को साथ लाना है ! बहुत प्रयाश करना है ! अभी हमारी सेलेब्रिटी और देश द्रोहियों की सेलेब्रिटी कही जादा है ! एशे कई बड़े आयोजन करने की आवस्यकता है जिशसे स्कूल , कालेज , गाव शहर गली बश्ती धधक जाए और अपना हक़ पापियों के हलक से निकल ले ॐ जय भारत ****

भवदीय ,

पीताम्बर 09868420933
विशिष्ट सदस्य, भारत स्वाभिमान




2010/11/20 Vijay Mohan <evija...@gmail.com>

शशांक उपाध्याय

unread,
Nov 20, 2010, 4:30:03 PM11/20/10
to bharatswab...@googlegroups.com
विजय जी
आपको एक उदाहरण देता हूँ, बुरा मत मानना,
मेरा एक मित्र और मैं आज से कई साल पहले कानपूर में एक ब्रूस ली की फिल्म देखने एक सिनेमा में गए थे, उस समय ब्रूस ली जैसा सुपरफास्ट  योद्धा केवल किताबों या इतिहास के पन्नों में ही था, हालांकि वो अपने वास्तविक जीवन में कितना सुपरफास्ट था वो भी बाद में पता चला, लेकिन मुद्दा ये है की फिल्म देखने के बाद मैं और मेरे दोस्त उस सुपरफास्ट तेजी में इतने अभिभूत हो गए की हमारे अन्दर ब्रूस ली की आत्मा समाने लगी मैंने किसी तरह अपने आप को नियंत्रित कर लिया लेकिन मेरा मित्र ब्रूस ली की आत्मा से  आवेशित हो गया सिनेमा से घर तक और फिर घर से शाम को हलवाई की दूकान तक और शाम को मोहल्ले की नुक्कड़ सभा में वो बात बात में केवल कराटे चौप्स और ब्रूस ली से सम्बंधित ही सारे कार्य करता रहा, लेकिन अंत में जब भूत उतरा तो समझ आया की सत्यता क्या है?
 
आप के ऊपर भी पूंजीवाद की आत्मा आवेशित हो गयी लगता है, उस पर ये दो पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिखी किताबों का मुल्लमा चढ़ गया है? ये कब उतरेगा ?
यहाँ कोई भी समाज वाद को अच्छा नहीं कह रहा है, और कोई कम्युनिज्म को भी नहीं सपोर्ट कर रहा है, लेकिन आप पता नहीं क्यों इस बात को समझ नहीं पा रहे है की पूँजी वाद भी फेल हो चूका है, लेकिन साथ ही पूँजी वाद के परिणाम इतने घटक हैं जो विश्व के, मानसिक, पर्यावरणिक और अध्यात्मिक संतुलन को खतरनाक आघात पहुंचा है.
 
भाई विजय जी जिस शब्द  कॉम्पिटिशन को आप इतना जोर जोर से दोहरा रहे हैं, ज़रा अपने महान पुरुषों , विचारकों, या समाज शास्त्रियों, को पूछ लें ,
प्रतिस्पर्धा से केवल द्वेष, वैमनस्य, भेद और छल आधारित बलात कर्म उत्पन्न होते हैं.
कम्पीटीशन का आपको उदाहरण दूं- ??
 
महाभारत,
एक और महाभारत चाहते हो क्या भैया?
 
बुरा लगा हो तो माफ़ करना लेकिन ध्यान रखना पूँजी वाद भारत को कहीं का नहीं छोड़ेगा. 
 मैं दूसरी प्रविष्टि इसलिए नहीं प्रेषित कर रहा हूँ क्योंकि चर्चा के शुरुआत में ही कहा था की जो  भी सज्जन भाग लें वे अपने मन से पूँजी वाद का पूर्वाग्रह निकाल दें.
 
--
तमसो माँ ज्योतिर्गमय,
--
शशांक

Vijay Mohan

unread,
Nov 21, 2010, 12:11:08 AM11/21/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ.

शशांक जी , धन्यवाद !

आप अपना चिंतन और चर्चा जारी रखिये , मै खुले दिमाग से सब कुछ ग्रहण कर रहा हूँ और अपना मत रख रहा हूँ ! चर्चा दोनों तरफ से होगी दोनों पक्ष आयेंगे तभी सफल होगी !

मैंने कुछ समय से सिर्फ स्वतंत्रता पर जोर दिया है ! पूंजीवाद पर नहीं ! 

रही बात उन किताबों की तो मैंने कम से कम १०० बिन्दुओं पर बहुत लम्बी बहस की है उनके लेखक से , और अभी भी मै पूरी तरह सहमत नही हूँ ! जिन बातों से सहमत हूँ उन बातों को सबके सामने रख रहा हूँ , ताकि हर बिंदु के सकारात्मत और नकारात्मक पहलूँ पर सोच विचार कर सकूं , अभी तक चर्चा बहुत सकारात्मक है ! मनुष्य का दिमाग हर पहलूँ को अपनी नज़र से देखता है अपने अनुभवों के हिसाब से , मै बहुत सी बातों पर आप सब के विचार जानकार , अपना ज्ञान और विचारों को परखना चाहता हूँ ! चर्चा के बाद सर्व सहमति से हम अपने विचारों पर एकमत हो सकते है !

आप चर्चा जारी रखें !

जय भारत 

२१ नवम्बर २०१० ५:३० पूर्वाह्न को, शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com> ने लिखा:
विजय जी
आपको एक उदाहरण देता हूँ, बुरा मत मानना,
मेरा एक मित्र और मैं आज से कई साल पहले कानपूर में एक ब्रूस ली की फिल्म देखने एक सिनेमा में गए थे, उस समय ब्रूस ली जैसा सुपरफास्ट  योद्धा केवल किताबों या इतिहास के पन्नों में ही था, हालांकि वो अपने वास्तविक जीवन में कितना सुपरफास्ट था वो भी बाद में पता चला, लेकिन मुद्दा ये है की फिल्म देखने के बाद मैं और मेरे दोस्त उस सुपरफास्ट तेजी में इतने अभिभूत हो गए की हमारे अन्दर ब्रूस ली की आत्मा समाने लगी मैंने किसी तरह अपने आप को नियंत्रित कर लिया लेकिन मेरा मित्र ब्रूस ली की आत्मा से  आवेशित हो गया सिनेमा से घर तक और फिर घर से शाम को हलवाई की दूकान तक और शाम को मोहल्ले की नुक्कड़ सभा में वो बात बात में केवल कराटे चौप्स और ब्रूस ली से सम्बंधित ही सारे कार्य करता रहा, लेकिन अंत में जब भूत उतरा तो समझ आया की सत्यता क्या है?
 
आप के ऊपर भी पूंजीवाद की आत्मा आवेशित हो गयी लगता है, उस पर ये दो पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिखी किताबों का मुल्लमा चढ़ गया है? ये कब उतरेगा ?
यहाँ कोई भी समाज वाद को अच्छा नहीं कह रहा है, और कोई कम्युनिज्म को भी नहीं सपोर्ट कर रहा है, लेकिन आप पता नहीं क्यों इस बात को समझ नहीं पा रहे है की पूँजी वाद भी फेल हो चूका है, लेकिन साथ ही पूँजी वाद के परिणाम इतने घटक हैं जो विश्व के, मानसिक, पर्यावरणिक और अध्यात्मिक संतुलन को खतरनाक आघात पहुंचा है.
 
भाई विजय जी जिस शब्द  कॉम्पिटिशन को आप इतना जोर जोर से दोहरा रहे हैं, ज़रा अपने महान पुरुषों , विचारकों, या समाज शास्त्रियों, को पूछ लें ,
प्रतिस्पर्धा से केवल द्वेष, वैमनस्य, भेद और छल आधारित बलात कर्म उत्पन्न होते हैं.
कम्पीटीशन का आपको उदाहरण दूं- ??
 
महाभारत,
एक और महाभारत चाहते हो क्या भैया?
 
बुरा लगा हो तो माफ़ करना लेकिन ध्यान रखना पूँजी वाद भारत को कहीं का नहीं छोड़ेगा. 
 मैं दूसरी प्रविष्टि इसलिए नहीं प्रेषित कर रहा हूँ क्योंकि चर्चा के शुरुआत में ही कहा था की जो  भी सज्जन भाग लें वे अपने मन से पूँजी वाद का पूर्वाग्रह निकाल दें.
 
--
तमसो माँ ज्योतिर्गमय,
--
शशांक

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शशांक उपाध्याय

unread,
Nov 21, 2010, 4:37:10 PM11/21/10
to bharatswab...@googlegroups.com
प्रतिस्पर्धा में स्वास्थ्य ढूढ़ रहे हैं क्या ?
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा केवल एक अंग्रेजी भ्रम है . क्योंकि इस शब्द की उत्पत्ति ही अंग्रेजी में है, हेल्थी कॉम्पिटिशन एक भ्रम है.

स्वस्थ केवल सहकार है, हमारे यहाँ विकास की नीव प्रतिस्पर्धा नहीं सहकार है.

ॐ सहना बवतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यं करवा वहै तेजस्विना वधि तमस्तु मा विद्विषावहै
.
ये मन्त्र आधार है सारे विकास का

अगर आपमें से एक को भी इसमें अगर शंका है तो अपने मन को प्राणवायु द्वारा पूरित करें.
कृपया बताएं दुनिया के सारे श्रेष्ठ आविष्कार क्या किसी प्रतिस्पर्धा के कारण जन्म लेते है.
साइकिल बनाने वाले से लेकर हवाई जहाज बनाने वाले तक ,
शुन्य की खोज करने से लेकर आकाशगंगा के परे जीवन खोजने वाले तक,
क्या ये सब प्रतिस्पर्धा की देन हैं.

कदापि नहीं,

पूँजी वाद केवल गलाकाट प्रतिस्पर्धा लायेगा, पहले गला कटेगा हमारा फिर गला कटेगा भारत माता का.
अभी पूंजीवाद की चकाचौंध में पैसा पैसा करने वालों को कुछ और नहीं सुनाई देगा लेकिन इन्ही कानों को अंत में ऐसा
मरण क्रंदन, मरण चीत्कार सुनना होगा जिसको सुन आत्मा अन्नंत काल तक कांपती रहेगी.

पूंजीवाद के हिमायती मेरे भाइयों से अनुरोध है पहले मेरा गला काट दो , क्योंकि पूंजीवाद की आंधी में में जीवत नहीं रहना चाहता
--
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
--
शशांक

Vijay Mohan

unread,
Nov 21, 2010, 11:56:27 PM11/21/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ,

शशांक जी ,

सभी अपने विचार प्रकट कर रहे है , आप उन्हें राह दिखा रहे है !  अपनी चर्चा ज़ारी रखें ! 

अभी मुझे  वो नही पता जो आप बताने जा रहे है , इसीलिए ( अभी के अनुसार मेरी समझ के अनुसार मैंने स्वतंत्रता या पूंजीवाद का समर्थक हूँ  क्यूंकि समाजवाद में रोज़ हज़ारों लाखों के गले कट रहे है ) ! आपकी चर्चा से कुछ नया सार्थक सीखने को मिले तो इससे अच्छा किया होगा !

जय भारत 

२२ नवम्बर २०१० ५:३७ पूर्वाह्न को, शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com> ने लिखा:
प्रतिस्पर्धा में स्वास्थ्य ढूढ़ रहे हैं क्या ?
--

शशांक उपाध्याय

unread,
Nov 22, 2010, 11:00:46 AM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com
मेरी इतनी सामर्थ्य नहीं की मैं राह दिखाऊँ,
 
मेरा केवल इतना अनुरोध है की सभी इस बात को ध्यान में रखें की जैसे पेंडुलम जिस तरफ जोर से झूल जाता है फिर दूसरी तरफ उतने ही आवेग से झूल जाता है वैसे ये एक शाश्वत नियम है ,
लेकिन ये नियम निर्जीव निर्वीर्य वस्तुओं के लिए है, मानव के लिए ये नियम नहीं है, 
हमको पहले छदम समाजवाद ने जकडे रखा उसके प्रभाव स्वरूओप हम घोर विलासिता के रास्ते चलना चाहते हैं .
क्या यही जीवटता बची है अब भारतियों में.
हमारे  भारत के लिए इन तंत्रों में से कोई तंत्र नहीं है.
और जैसा की मैंने कहा था की अगर चर्चा में भाग लेने वाले अगर पूंजीवाद के प्रति पूर्वाग्रह रखेंगे तो मैं शायद आगे साथ न दे पाऊँ.
इस के लिए माफ़ करें, 
अब विराम लूँगा. 

राजेश त्रिपाठी

unread,
Nov 22, 2010, 4:37:00 PM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com

विजय जी
मैंने कुछ दिनों पहले Arnold Toynbee का quote दिया था | शायद आपने पढ़ा नहीं या ध्यान नहीं दिया | कोई बात नही एक बार फिर से लिखता हूँ
It is already becoming clearer that a chapter which has a western beginning will have to have an Indian ending if it is not to end in the self destruction of the human race. At this supremely dangerous moment in history the only way of salvation for mankind is the Indian way
 
अब जरा सोचिये की एक इतिहासकार जो विश्व की सभी सभ्यताओं,  दर्शनों , इतिहास का जीवन भर अध्ययन करने के बाद ऐसा क्यों कह रहा है | शायद आप इस वाक्य की गहराई को नहीं समझ पा रहे है क्योंकि जिस दिन आपको इसकी गहराई समझ आजायेगी , आपको सरे प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा| 
आपको शायद उनके कथन में अतिश्योक्ति लग रही होगी कि "Human race ka self destruction" कैसे हो जायेगा ? में आपको उदाहण दे कर समझाने की कोशिश करूंगा

जब कोई व्यक्ति आजकल की तथाकथित उन्मुक्त जीवनशैली (शराब पीना , नशा करना , मांस खाना , व्यभिचार करना ) अपनाता है तो उसे इससे अच्छा कुछ नहीं लगता| उसके मत से ये सब कुछ अच्छा है और जो अच्छा लगे उसे करने में वह पूर्ण स्वतंत्रता चाहता है किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं | कुछ वर्षों बाद देह में घातक रोगों(कैंसर इत्यादि) का जन्म हो जाता है | प्रारंभ में इन रोगों के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं और यदि इन लक्षणों को उपेक्षित किया जाये तो यही उसकी  म्रत्यु का कारण  बनते है

अब मुख्य बात पर आते है | Greed is good पर आधारित  consumerism, materialism या पूंजीवाद अभी प्रारंभिक दौर में है (यदि युग के स्तर पर देखें तो 432000 वर्ष के कलियुग में ये १००/५० वर्ष की विचारधारा शशंकि जी अनुसार प्रसव काल में ही है ) और इसके कुछ लक्षण अभी से दिखाई देने लगे हैं | इस विचारधारा पर चलने वाले भी उन्मुक्त जीवनशैली वालों की तरह किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं चाहते | लाभ के लिए उन्हें कुछ भी करने की छूट  होनी चाहिए यह उनक मूल मंत्र है | इस सबका परिणाम वैसे तो सभी छेत्रों में हानिकारक  है लेकिन स्वस्थ्य में ये बहुत घातक है | मैं कुछ लक्षणों  को बता रहा हूँ
- कुछ दशकों पहले 100-140 ka bllod pressure normal मन जाता था लेकिन स्वस्थ्य उद्योग ने इसे 80-१२० करवा दिया और अब इसे और भी कम करने के लिए माहौल बनाया जा रहा है ताकी अधिक से अधिक लोगों को BP की दवा के घेरे मैं लाया जा सके | वास्तव मैं ह्रदय रोग पिछली शताब्दी मैं ही आया है , पहले नहीं था
http://www.healingdaily.com/conditions/heart-disease.htm

- विज्ञापनों द्वारा लोगों मैं भ्रम पैदा किया जाता है की और अच्छे स्वस्थ्य के लिए विटामिन की गोली खाओ | अब यह पता चल चुका है की ये सब छलावा है और पैसे कमाने के लिए लोगों के स्वस्थ्य से खिलवाड़
http://www.rd.com/living-healthy/are-vitamins-really-that-good-for-you-/article46647.html

ये देखिये कैसे भोजन उद्योग को हाइजैक किया जाता है 
-http://www.nytimes.com/2007/01/28/magazine/28nutritionism.t.html

एक तरफ भारतीय संस्कृति है जिसके ऋषि मुनि योग , आयुर्वेद का ज्ञान मानवता की भलाई के लिए सबको निशुल्क दे रहे हैं और दूसरी तरफ मानवता की भलाई को तक पर रख कर हल्दी, योग और भी ना जाने क्या क्या को पेटेंट कर के लूट का जरिया बनाया जाता है |

इस सब का नतीजा क्या हो रहा है | रोग कम होने की वजय बढ़ रहे हैं क्योंकि अब उद्देश्य रोगमुक्त करना नहीं , रोगी रख कर उपभोक्ता बनाना है |

ये सब उसी मूल विचारधारा के प्रारंभिक लक्षण हैं और कुछ शताब्दियों मैं या उससे पहले ही  यही लक्षण विकराल रूप धारण करके मानवता के लिए विनाशकारी हो जायेंगे | मानवता को भारतीय संस्कृति ही बचा सकती है जो सर्वे भवन्तु सुखिनः और वसुधैव कुटुम्बकम  की बात करती है | यही Toynbee कहना चाह रहे हैं |

लेकिन ये सब आपको शायद अभी समझ मैं नहीं आ रहा है क्योंकि शशांक जी के इतना समझाने के बाद भी आप अभी भी वहीँ अटके हुए हैं |  मेरे विचार से इसकी वजह यह है की आपकी वर्तमान विचारधारा मूल चिंतन पर आधारित ना होकर एक दो पुस्तकों से ली हुयी है | आपको अपने विचारों को उन पुस्तकों की परिधि से स्वतंत्र  करना होगा और ये आसान नहीं होगा |

अभी कुछ दिन पहले शशांक जी ने राज्य तत्त्व और राज रूप पर बहुत सुन्दर व्याख्या की थी लेकिन शायद आपने उस पर पूरा ध्यान नहीं दिया | में बताता हूँ |
यदि राज्य तत्त्व ठीक हो जाये तो वर्त्तमान राज्य रूप या तंत्र भी बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है | फिर स्वामी रामदेव जी तंत्र को बदलने की बात क्यों करते है ? वह इसलिए क्योंकि वर्त्तमान तंत्र लूट , भ्रस्टाचार को फूलने फलने का मौका देता है | आगे सदियों तक भ्रस्टाचार  पनप ना सके इसलिए तंत्र को बदलना जरूरी है |
एक उदाहरण बिहार का सामने है | तंत्र वही है | स्वतंत्रता वही है | भ्रस्ट तत्वों ने विहार को विकास में कितना गिरा दिया था और वही विहार पिछले पांच वर्षों में बहुत बदल चुका है | गुजरात में भी ऐसा ही हुआ है |

आपकी सहायता के लिए मैं ये दो पुस्तकों को अनुमोदित करूंगा
http://www.nalanda.nitc.ac.in/resources/english/etext-project/history/gautier/chapter1.html
http://rajpatel.org/2009/10/27/the-value-of-nothing/

आपसे  अनुरोध है की थोडा विश्राम ले कर , इन सब बिन्दुओं पर मनन करें और शशांक जी जैसे ज्ञानी और विद्वान् को रोक टोक ना करके समझने का प्रयत्न  करिए |

अंत मैं मैं एक बात और कहना चाहूँगा की मैं आपकी कुछ बातों से प्रभावित हूँ. जो बात आपको सही लगती है उसको सिद्ध करने के लिए आपका अनवरत प्रयास और अधिक से अधिक लोगों तक उसे पहुचने की कोशिश | मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वाश है की जिस दिन आप भारत स्वाभिमान की , शशांक जी की, भारतीय दर्शन की  विचारधारा को पूरी तरह से समझ जायेंगे ,   उस दिन आप भारत स्वाभिमान का प्रचार व प्रसार करने वाले योधाओं में अग्रणी पंक्ति में होंगे |

जय भारत
राजेश त्रिपाठी








2010/11/21 Vijay Mohan <evija...@gmail.com>



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राजेश त्रिपाठी

unread,
Nov 22, 2010, 4:54:31 PM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ  
शशांक जी
मेरा आपसे अनुरोध है आप अपने ज्ञान से हम सभी को अनुग्रहीत करें और यदि कोई आप की ज्ञानमय चर्चा को ग्रहण नहीं कर पा रहा है, तो आप उन बातों से व्यथित मत होईये | उनके तरफ से में आपसे क्षमा मांग लेता हूँ |
कृपया अपनी ज्ञान गंगा प्रवाहित रखिये |

जय भारत
राजेश त्रिपाठी
 

2010/11/22 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
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subodh kumar

unread,
Nov 22, 2010, 7:22:46 PM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com

बंधुवर मैं कुछ समय से यही अध्ययन करने में लगा  हूँ  कि क्या हमारे वेद शास्त्रों रामायण इत्यादि के अध्ययन से  हमारा कोइ भारतीय  तन्त्र भी देखाई  दे सकता है. ऐसा तन्त्र जिसे  मानव तन्त्र कहा जा सके , जिस में पर्यावरण, प्रकृती , समाज किसी का शोषण न होता हो. जिस मे सब आधुनिक तंत्रों -समाज तन्त्र, प्रजातंत्र, पूंजीवाद, इत्यादि के गुण हों और अवगुणों से दूर रहने  की अपने में सामर्थ्य हो. यह एक वास्तव में गहरी चुनौती भरा विषय है. परन्तु असम्भव नहीं है.
इस प्रयास में मैंने सर्वप्रथम गोपालन विषय से कुछ पढ़ना और अपने अनुभव के अनुसार समझना आरम्भ किया. इस की प्रेरणा पूज्य स्वामी जी के दिखाए मार्ग के अनुरूप हमारे वेद शास्त्रों से जैसे हमारे दैनिक जीवन, स्वास्थ्य, आहार, विचार के मूल स्रोत योग द्वारा  वैदिक परम्परा से  मिलते हैं वैसे ही हमें महर्षि दयानंद के  मूलमंत्र वेदों की ओर लौटो से मिलती  है.
एक विषय  पर वेदों से क्या ज्ञान प्राप्त होता है नीचे केवल उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ . इसी प्रकार और अनेक विषयों पर चिंतन करा है. उन्हें एक एक कर के प्रस्तुत कर सकता हूँ.  अन्य विद्वान बंधुओं को इस प्रयास में अपना योगदान दे कर एक भारती आधुनिक व्यवस्था के लिए मार्ग दर्शक सोच बन सकेगी ऐसा मेरा सोचना है .
अलाक्ष्मीनाशन -दरिद्रता नाशन  

अलक्ष्मीघ्नम्‌   सूक्त
Social Responsibility

ऋग वेद 10.155  दारिदृय नाशन विषय

 

presented  by  Er. Subodh Kumar

 

Alakshminashan  Sookt 
       Social awareness सामाजिक चेतना 

Rig Ved  10.155 Sookt is Alakshmi Nashan Sookt.

It explains that personal Greed, of  being blind to human suffering in Society and not sharing one’s blessings with Society is the root cause for disparity, poverty and suffering in society. Such societies are self destructive- not sustainable.  Economic system based on Cow is the only remedy. It reduces Food Miles to ensure most universally available healthy unadulterated organic food and simple life style for every body.

( Lest an impression is created that by promoting this rural culture, we are not taking in to account the developed Urban society, It is pointed out that the Vedic strategies take very good account of urban and developed city life and strategies on that subject also follow very clearly)

Social responsibility सामाजिक दायित्व 

1.अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदान्वे !

शिरिम्बिठस्य सत्वभि स्तोभिष्ट्वा चातयामसि !! ऋ10.155.1

Banish the attitudes to be miser and selfish, of not being disposed to give money in charity, and not sharing their bounties with others. Being blind to suffering & deprivation  brings   misery  upon society. The resulting deluge of famines and social misery  drowns every one

Charity & Simple Living दान और सात्विक जीवन

2. चत्तो इतश्चत्तामुतः सर्वा भ्रूणन्यारूपी !

अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्णशृङ्गोदृषन्नहि !! ऋ10.155.2

The life style of not sharing with others around us is destroyer of all creative activities before their inception. Strong social leadership should work to destroy such insensitive tendencies

Consumerist Society भोगवादी स्वार्थी समाज

3. अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो पारे अपूरुषम्‌ !

तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम्‌ !! 10.155.3

Such unguided people are like an aimlessly floating piece of wood in the river of the society.

It becomes the duty of elders in society to provide guidance to such people.( to motivate them by setting an example in public welfare)

Social Discontent सामाजिक असंतोष

4. यद्ध प्राचीर्जगन्तोरो मण्डूरधणिकीः!

हता इन्द्रस्य शत्रवः सर्वे बुब्दुदयाशवः!!ऋ 10.155.4

When such abominable situations, potentially violent, forces which  cause poverty  by selfishness of some  in society  get to be known, they require to be crushed very strongly by positive social forces.

Cow based Decentralized Economy-  गो  आधारित अर्थ व्यवस्था

5.परीमे गामनेषत प्र्यग्निमहृषत !

देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ आ दधर्षति !! 10.155.5

When society takes steps to rehabilitate cows in  local households and enables people  to grow their own agriculture produce, no body can stop public prosperity.

भवदीय ,

सुबोध कुमार


 

 

2010/11/22 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
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शशांक उपाध्याय

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Nov 22, 2010, 10:19:18 PM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com
राजेश जी
क्षमा न मांगें. हम लोग एक परिवार हैं. मैं कोई ज्ञानी नहीं सब ज्ञान उधार है कभी ऋषियों का तो कभी गुरुओं का तो कभी आप जैसे भाई बहिनों का.
विजय जी बहुत ही लम्बे समय से आन्दोलन से जुड़े हुए हैं और विजय जी के व्यकत्व्य देखते हुए इनकी देश निष्ठा पर और देश के प्रति शुभ चिंतन पर चिड़िया के पंख  के हजारवें भाग के बराबर भी संदेह नहीं है. बस मेरा तो ये ही मत है भैया इस देश को बड़ा दूर जाना है, अपने ही लोगों को नहीं अपितु संसार के समस्त लोगों को परमानंद के स्रोत तक लेजाने का द्वार बनना है. इसलिए बहुत जतन से करना है जोकरना है. फेल तंत्र नहीं लाना. अपितु दुनिया को श्रेष्ठ तंत्र देना है. अभी तक ऐसा नहीं हुआ की भारत में ज्ञान उल्टा आये.
और आगे भी ऐसा नहीं होगा. ज्ञान भारत से ही जाएगा.
 
मैं जारी रहूँगा और विजय जी से भी करबद्ध अनुरोध करूंगा की चर्चा में बने रहें.
जय भारत

राजेश त्रिपाठी

unread,
Nov 22, 2010, 11:52:20 PM11/22/10
to bharatswab...@googlegroups.com

शशांक जी
    आप चर्चा जरी रखेंगे यह जान कर वहुत प्रसन्नता हुई और राहत मिली |
विजय जी
  मुझे ऐसा लगा था की शशांक  जी आपकी वजह से चर्चा छोड़ रहे है इसलिए मुझे वह सब कहना पड़ा और शायद में कुछ ज्यादा कह गया | जैसा शशांक जी ने कहा , हम सब एक परिवार हैं और यदि मेरी किसी बात  से आपको कोई कष्ट हुआ हो तो क्षमा  करियेगा |

जय भारत
राजेश

2010/11/22 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
राजेश जी
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ajay mehta

unread,
Nov 23, 2010, 12:08:29 AM11/23/10
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
"ॐ"
अब हमे चर्चा को आगे बढना चाहिए.
यहा सुवोधजी भी हम लोगो को बहुत अच्छी दिशा प्रदान कर सकते हे.
मुझे नही मालूम की आप सव जानते हे की नही,
पर मेरी सुवोधजी से एक बार बात हुई हे और उनके कुछ विचारो से असहमत होने के  वावजूद मैंने पाया की एक बहुत ही अनुभवी (उनकी आयु ७५ वर्ष के आसपास हे और वः पेशे से एक इंजिनीअर हे पर आजकल भारतीय वेदों के अनुसार गौ पालन पर कार्यारत हे ) व्यक्तित्व से में और भारतीय समाज बहुत कुछ ग्रहण कर सकता हे.
मेरे विचार से जब हम चर्चा को एक भारतीय औधोगिक और आर्थिक व् चरित्र निर्माण के ग्रन्थ के रूप में आगे बढ़ाएंगे तो हमे सुवोध्जी, अनिलजी, जैसे और बहुत से और व्यक्तित्व मिलेंगे जिनको हमे जल्द से जल्द अब अपने साथ ले लेना चाहिए. 
आओ सव मिलकर एक बार माँ भारती की आरधना हेतु वोले 
 
जय भारत.  

2010/11/23 राजेश त्रिपाठी <rajes...@gmail.com>

Vijay Mohan

unread,
Nov 23, 2010, 12:08:22 AM11/23/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ,

यह जानकार प्रसन्नता हुई चर्चा जारी रहेगी , ज्ञान वर्षा होती रहेगी !

राजेश जी और शशांक जी ,  चर्चा में विवाद उत्पन्न होना स्वाभाविक है , इससे ज्ञान वर्धन ही होता है ! लेकिन चर्चा से मूह मोड़ लेना ठीक नही ! ये चर्चा अत्यंत उपयोगी है !

हम सबका उद्देश्य एक ही है जो की पवित्र है ! मुझे हर पहलू का नकारात्मक और सकारात्मक पहलू जान ना ही होता है , इसीलिए मै इधर उधर जो मिलता है उसका अध्ययन करता हूँ , और इस परिवार में चर्चा करता हूँ !

मेरा यह कहना है के , जब तक मै जान ना लू अच्छे से की हम किस तंत्र की और जा रहे है , मै उसे कैसे मान लूं !  मैंने बताया के वर्तमान के आधार पर मैंने अपनी समझ से पूंजीवाद का समर्थन किया ! अब जब शशांक जी मुझे उससे बेहतर तंत्र बताएँगे तो अवश्य मै उसपर पूर्ण अध्ययन करूंगा , और साफ़ कहता हूँ के जो भी मुझे लगेगा मै कहूँगा और उसके लिए अभी से ही क्षमा चाहूँगा ! 

जय भारत 

२३ नवम्बर २०१० १२:५२ अपराह्न को, राजेश त्रिपाठी <rajes...@gmail.com> ने लिखा:

शशांक जी
    आप चर्चा जरी रखेंगे यह जान कर वहुत प्रसन्नता हुई और राहत मिली |
विजय जी
  मुझे ऐसा लगा था की शशांक  जी आपकी वजह से चर्चा छोड़ रहे है इसलिए मुझे वह सब कहना पड़ा और शायद में कुछ ज्यादा कह गया | जैसा शशांक जी ने कहा , हम सब एक परिवार हैं और यदि मेरी किसी बात  से आपको कोई कष्ट हुआ हो तो क्षमा  करियेगा |


जय भारत
राजेश

2010/11/22 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
राजेश जी
क्षमा न मांगें. हम लोग एक परिवार हैं. मैं कोई ज्ञानी नहीं सब ज्ञान उधार है कभी ऋषियों का तो कभी गुरुओं का तो कभी आप जैसे भाई बहिनों का.
विजय जी बहुत ही लम्बे समय से आन्दोलन से जुड़े हुए हैं और विजय जी के व्यकत्व्य देखते हुए इनकी देश निष्ठा पर और देश के प्रति शुभ चिंतन पर चिड़िया के पंख  के हजारवें भाग के बराबर भी संदेह नहीं है. बस मेरा तो ये ही मत है भैया इस देश को बड़ा दूर जाना है, अपने ही लोगों को नहीं अपितु संसार के समस्त लोगों को परमानंद के स्रोत तक लेजाने का द्वार बनना है. इसलिए बहुत जतन से करना है जोकरना है. फेल तंत्र नहीं लाना. अपितु दुनिया को श्रेष्ठ तंत्र देना है. अभी तक ऐसा नहीं हुआ की भारत में ज्ञान उल्टा आये.
और आगे भी ऐसा नहीं होगा. ज्ञान भारत से ही जाएगा.
 
मैं जारी रहूँगा और विजय जी से भी करबद्ध अनुरोध करूंगा की चर्चा में बने रहें.
जय भारत
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तमसो माँ ज्योतिर्गमय
--
शशांक

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शशांक उपाध्याय

unread,
Nov 23, 2010, 6:57:06 PM11/23/10
to bharatswab...@googlegroups.com
सदस्य गणों
बीच में थोडा विषयांतर हो गया इसलिए सभी को विषय पर लाने के लिए सूचित कर दूं की हम चर्चा उस तत्व की कर रहे थे,
जो की भारत का मूल तत्व (चरित्र) है. जिसके बिना भली भाँती समझे कोई भी तंत्र ऊपर से आरोपित करने पर विकृति ही होगी,
जैसे आम के पेड़ में किसी बाहरी आवेषण से अमरुद के बीज को आरोपित करने की कोशिश की जाए तो न तो आम ही रहेगा न अमरुद ही.
 
वैसे ही कुछ दुर्दशा भारत की देखने को मिलती है आजकल. जिन लोगों को विषयांतर हो गया हो वे नीचे की प्रविष्टि  को फिर पढ़ लें और इसके बाद
अगली चिट्ठी में आगे की चर्चा आ रही है. कृपया अनुरोध है अगली प्रविष्टि तक अतिआवश्यक न हो तो टिप्पणियों को बचा कर रखें.
अगली प्रविष्टि के बाद टिप्पणियां करेंगें.
 
पिछली प्रविष्टि इस प्रकार संक्षेप में-
-----------------------------------------------------------------------------------------
प्रथमतया हमको *ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैं
तो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?
इस चरित्र (तत्व)  को जानने के लिए बहुत ही सरल कुंजी है की (*फल की पहचान उसके बीज से और बीज की पहचान उसके फल से होती है* )
तो भारत का चरित्र क्या है* इसका संकेत हमें  लग गया. मानव मात्र को उस पथ पर ले जाने वाले पथ की भूमिका जो उसे अनंत आनंद के स्रोत तक ले जाये.
अमिट और अनंत स्रोत की भूमिका भी अनंत और अमित होनी चाहिए *इसलिए ये भारत भी और इसकी सभ्यता भी इसी एक कारण से ही अमिट और अनंत है*.
*भारत का ये जो चरित्र है* जो मानव मन को सदैव इसी और अग्रसर करने में लगा हुआ है की *तुम अमृत पुत्र हो न की केवल भौतिक पञ्च तत्वों से बने मिटटी के पुतले*.
*इसी चरित्र के कारण ही भारत और इसकी सभ्यता काल पर विजय पाकर सदैव अक्षुण्ण और सनातन रही है*.
 
*अगर इस चारित्रिक गुण से अगर भारत हटा या यूँ कहें की भारतीय ( भारत का राज्य, समाज और मानव समूह ) हटा तो काल और परिथिति इस संसार में  क्या हो सकती है,*
सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं  १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता  राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है. हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देश
काल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.
१) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

Vijay Mohan

unread,
Dec 8, 2010, 5:55:15 AM12/8/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ,

शशांक जी , 

आपके आगे के संदेशों की राह में !

जय बहरत 

२४ नवम्बर २०१० ७:५७ पूर्वाह्न को, शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com> ने लिखा:
सदस्य गणों
बीच में थोडा विषयांतर हो गया इसलिए सभी को विषय पर लाने के लिए सूचित कर दूं की हम चर्चा उस तत्व की कर रहे थे,
जो की भारत का मूल तत्व (चरित्र) है. जिसके बिना भली भाँती समझे कोई भी तंत्र ऊपर से आरोपित करने पर विकृति ही होगी,
जैसे आम के पेड़ में किसी बाहरी आवेषण से अमरुद के बीज को आरोपित करने की कोशिश की जाए तो न तो आम ही रहेगा न अमरुद ही.
 
वैसे ही कुछ दुर्दशा भारत की देखने को मिलती है आजकल. जिन लोगों को विषयांतर हो गया हो वे नीचे की प्रविष्टि  को फिर पढ़ लें और इसके बाद
अगली चिट्ठी में आगे की चर्चा आ रही है. कृपया अनुरोध है अगली प्रविष्टि तक अतिआवश्यक न हो तो टिप्पणियों को बचा कर रखें.
अगली प्रविष्टि के बाद टिप्पणियां करेंगें.
 
पिछली प्रविष्टि इस प्रकार संक्षेप में-
-----------------------------------------------------------------------------------------
प्रथमतया हमको *ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैं
तो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?
इस चरित्र (तत्व)  को जानने के लिए बहुत ही सरल कुंजी है की (*फल की पहचान उसके बीज से और बीज की पहचान उसके फल से होती है* )
तो भारत का चरित्र क्या है* इसका संकेत हमें  लग गया. मानव मात्र को उस पथ पर ले जाने वाले पथ की भूमिका जो उसे अनंत आनंद के स्रोत तक ले जाये.
अमिट और अनंत स्रोत की भूमिका भी अनंत और अमित होनी चाहिए *इसलिए ये भारत भी और इसकी सभ्यता भी इसी एक कारण से ही अमिट और अनंत है*.
*भारत का ये जो चरित्र है* जो मानव मन को सदैव इसी और अग्रसर करने में लगा हुआ है की *तुम अमृत पुत्र हो न की केवल भौतिक पञ्च तत्वों से बने मिटटी के पुतले*.
*इसी चरित्र के कारण ही भारत और इसकी सभ्यता काल पर विजय पाकर सदैव अक्षुण्ण और सनातन रही है*.
 
*अगर इस चारित्रिक गुण से अगर भारत हटा या यूँ कहें की भारतीय ( भारत का राज्य, समाज और मानव समूह ) हटा तो काल और परिथिति इस संसार में  क्या हो सकती है,*
सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं  १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
 
राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता  राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है. हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देश
काल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.
१) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जय भारत
--
तमसो मा ज्योतिर्गमय
--
शशांक

--

शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 8, 2010, 9:27:31 AM12/8/10
to bharatswab...@googlegroups.com
विजय जी
राजीव जी की मृत्यु का सन्देश बड़ा झटका था उससे उबर रहा हूँ साथ ही थोडा झिझक भी रहा हूँ क्योंकि आगे का विषय थोडा अनुभव गम्यता की अपेक्षा रखता है, और उन्हीं के समझ में आएगा जिन्होंने थोडा देशाटन किया हो और सम्मिलित परिवार में पले बड़े हों. अन्यथा समझ नहीं आएगा, और लोग विषय की गंभीरता की जगह केवल विद्वद्विलास में उलझ कर केवल वाद विवाद करते रहेंगे जिससे कुछ नहीं हासिल होगा.
आपकी अनुमति हो तो आगे बढूँ. लेकिन जब तक कम से कम तीन चार प्रविष्टि पूरी नहीं हो जाएँ तब तक जिज्ञासा का तो स्थान है लेकिन वाद विवाद का नहीं.

Vijay Mohan

unread,
Dec 8, 2010, 9:35:01 PM12/8/10
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ,

कृपया आगे बढें !

जय भारत 

८ दिसम्बर २०१० १०:२७ अपराह्न को, शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com> ने लिखा:
--

ajay mehta

unread,
Dec 8, 2010, 10:08:06 PM12/8/10
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
"ॐ"
 
आपकी अनुमति हो तो आगे बढूँ. लेकिन जब तक कम से कम तीन चार प्रविष्टि पूरी नहीं हो जाएँ तब तक जिज्ञासा का तो स्थान है लेकिन वाद विवाद का नहीं.
में यहा पर जोड़ना चाहूँगा कि चरित्र निर्माण और वह भी भारतीय मूल्यों के अनुसार (भारतीय तत्व)  अपनेआप में एक गंभीर और गहन चिन्तन का विषय हे.
 इस लिए यहा पर कोई भी मत, विचार और सुझाव बहुत ही सोच समझ कर व अपने में ढालने के बाद ही दिया जाय तो बहुत ही उचित होगा.
में इस चर्चा से किसी बड़े ग्रन्थ कि आशा तो नहीं कर रहा पर इतना समझ रहा हू कि शशांकजी सच में गंभीर हे तथा दुसरे भी सभी बन्दु इस का पूरा ध्यान रखेगे .  
मेरा बी पूरा सेयोग मिलेगा क्योंकि यह मेरा प्रिये विषय तथा संकल्प हे कि भारत देवभूमि पर जन्म हुआ हे तो इसी के मूल्यों को जीवन में अधिक से अधिक अपनाऊ.
 
जय भारत
 

2010/12/8 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
--

subodh kumar

unread,
Dec 8, 2010, 10:16:41 PM12/8/10
to bharatswab...@googlegroups.com
आदरणीय शशांक जी ने जो विद्वाद्विलास में उलझ  कर वाद विवाद की बात कही है वह बड़ी महत्व की बात है.  इसे अंग्रेज़ी मे Paralysis by analysis  कहते हैं . 
 . हम में दूसरे के सुझाव सुनाने का धैर्य काम पाया जाता है. सब अपनी बात आगे बढ़ाना चाहते हैं .
आदरणीय शशांक जी से  प्रार्थना है कि अपनी योजनाएं /प्रस्ताव सुझाव  देने आरम्भ करें.
सुबोध कुमार
2010/12/8 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
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शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 9, 2010, 10:36:27 PM12/9/10
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धन्यवाद सभी को
कल से नियमित रूप से दो प्रविष्टि विषय विशेष के साथ जोडूंगा |
चर्चा में भाग लेने और अनुरोध समझने के लिए धन्यवाद |
जय भारत
शशांक
 

शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 12, 2010, 12:14:48 AM12/12/10
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नमस्कार सभी को
 
तो पिछली प्रविष्टियों से आगे हम अब चर्चा करेंगे राज्य रूप और राज्य तत्व के बारे में.
 
इन दोनों की चर्चा से पहले ये जान लेना आवश्यक है की राज्य , समाज या ऐसे ही किसी भी प्रकार के 
मानव समूह की स्थापना की आवश्यकता मानव विकास के निर्बाध प्रगति के लिए होती है.
भारतीय चिंतन के अनुसार मानव विकास के चार चरण हैं जिनमें से किसी भी एक चरण के अधूरे रह जाने पर मानव विकास पूर्ण रूपेण
सफल नहीं होता और उसका विनाशकारी प्रभाव हो जाता है|
 
ये चार चरण है- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष |
 
ये चार शब्द जितने छोटे हैं उतने ही सर्वव्यापी भी हैं| अगर आप में से किसी को इनके वास्तविक अर्थों के बारे में कोई शंका हो तो बिना संकोच के आप अपना प्रश्न रख सकते हैं|
 
धर्म- जिसके द्वारा धारण किया जाए  
अर्थ- जिससे मूल्यों/संस्कारों का स्थापन हो
काम-जिससे कर्म की दिशा प्रेरणा एवं गति प्राप्त हो
मोक्ष-जिससे फल प्राप्ति और उसके बाद उनसे मुक्ति की प्राप्ति हो
 
ये उपरोक्त परिभाषाएं आध्यात्मिक अर्थों में न होकर केवल सामाजिक सञ्चालन एवं दैशिक अर्थो के लिए है.
 
अब महत्वपूर्ण बात ये है की अगर मानव समूह किसी भी एक चरण पर रुक जाता है तो समाज में अन्यान्य प्रकार की विषमताएं जन्म लेती है|
जैसे अगर आप भोजन की अवधारण करके, उसकी इच्छा करें तत्पश्चात उसे प्राप्त कर ग्रहण करें तत्पश्चात उसे अपने शरीर में उचित उद्देश्य और समय तक संचयन करके उससे निवृति ले लें तो सारा सृष्टि क्रम अत्यंत शुभ है अपरंच आप किसी भी एक क्रम पर अटक जाएँ या अनदेखा करदें तो विषमताएं उत्पन्न होना अवश्यम्भावी है | जैसे केवल इच्छा पर रुकने से अकर्मण्यता उत्पन्न होगी, अवधारणा पर अटक जाने से केवल दिवास्वप्न= मानसिक विलास उत्पन्न होगा, केवल प्राप्ति पर रुकने से प्रमाद और राग उत्पन्न होगा, केवल ग्रहण करने पर रुकने से क्लिष्ट अक्लिष्ट शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होगीं, और केवल त्याग पर रुकने से सामाजिक विमुखता उत्पन्न होगी इत्यादि|
 
तो इन चार मुख्य क्रमों का हर मनुष्य द्वारा उसके गुण और संस्कारों की अभिवृद्धि करते हुए अवश्यमेव पालन न केवल अपेक्षित है बल्कि प्राकृतिक रूप से आवश्यक और अपरिहार्य भी है| इस नियमों में समाज के किसी भी वर्ग को कोई विशेष छूट से विषमताएं उत्पन्न होती ही होती है हालांकि उनसे निपटने के भी उपाय है लेकिन उनकी चर्चा अभी जरूरी नहीं है |
 
अब आगे राज्य रूप और तत्व की चर्चा होगी उससे पहले कोई प्रश्न हो तो करें|
राज्य रूप और तत्व की चर्चा थोड़ी अधिक विस्तृत और व्यापक है इसलिए उससे पहले दो बातें,
१) कोई प्रश्न हो तो अभी कर लें
२) अगर आप युद्ध और आवश्यक हिंसा को देश अथवा विश्व  हित में नहीं समझते तो अभी चर्चा से बाहर हो जाएँ क्योंकि दैशिक विषयों में अनर्गल अहिंसा और छदम करुणा के लिए कोई स्थान नहीं है|
 
धन्यवाद  जय भारत

शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 12, 2010, 4:57:32 PM12/12/10
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नमस्कार सभी को 
 
अब प्रारम्भ करते हैं राज्य रूप और तत्व चर्चा|
राज्य रूप - समाज की शासक-विधान पद्धति यानि शासक बनाने की पद्धति को राज्य रूप कहते हैं.
ये तीन प्रकार का होता है, १) दक्ष, २) प्रतिनिधान, ३) शासकज
 १) दक्ष शासन रूप - जब शासन कार्य साधन में प्रवीण लोगों के हाथ में होता है तो दक्ष साधन कहलाता है इसे आधुनिक काल में मेरिटोक्रेसी या टेक्नोक्रेसी कहा जाता है|
२) प्रतिनिधान रूप - जब समाज के प्रतिनिधियों के हाथ में शासन होता है तो प्रतिनिधान कहलाता है इसे आधुनिक काल में डेमोक्रेसी कहा जासकता है परन्तु प्राचीन प्रतिनिधान रूपों में चुने गए प्रतिनिधि के लिए कुछ आवश्यक शर्तें होती थी उदाहरण के तौर पर उसका सेना, समाजसेवा या और किसी क्षेत्र में आवश्यक समय के लिए काम करना इत्यादि.
३) शासकज रूप - जब शासन वंशपरम्परागत रूप से योग्य व्यक्ति के हाथ में हो तब शासकज कहा जाता है परन्तु इसमें शासक को अपने गुणों, ज्ञान और अन्य योग्यताओं का प्रदर्शन सामान्य समाज के बीच रह कर करना पढता था.
 
इन उपरोक्त रूपों के  मिलन से ७ और ९ अन्य प्रकार के राज्य रूप बनते हैं परन्तु जिस रूप का प्रभाव अधिक होता है उसको ही मुख्य रूप कहा जाता है|
 
लेकिन यहाँ उल्लेख करना उचित है की रूपों की अपेक्षा तत्व का मान अधिक है क्योंकि रूपों को बदलने से तत्व तुरंत नहीं बदलते--
हाँ तत्वों को बदल देने से रूप तुरंत बदल जाते हैं ये ऐसा ही है जैसे मेकअप करने से वास्तविक सुन्दरता नहीं बढती परन्तु उचित आहार विहार , प्राणायाम और जैविक औषधियों के सेवन से प्राकृतिक सुन्दरता अपने आप बढती जाती है|
 
राज्य तत्व
राज्य तत्व पांच प्रकार के हैं{ १) दैव २) आसुर ३) राक्षस ४) पैशाच ५) पाशव } *
*नोट- ऐसे नामों का उल्लेख केवल प्राचीनता का बोध कराने के लिए ही है ऐसे शब्दों का किसी प्रकार की पूजा पद्धति अथवा नवीन प्रचलित पंथ सम्प्रदायों से नहीं है |
जैसा की नामों से प्रतीत होता है की प्रथम प्रकार के तत्व से लेकर और अंतिम प्रकार के तत्व तक कुछ ऐसा परिवर्तन है जो की अपेक्षित नहीं है और न ही श्रेय. उदाहरण के लिए देव गुण परस्पर सहकार और पाशव गुण परस्पर संघर्ष के होते हैं|
 
इन सारे तत्वों की व्याख्या से पहले कुछ शब्दों का अर्थ समझना अतिआवश्यक है|
१) व्यष्टि, २) समष्टि
१) जाति
१) चिति, २) विराट
१) सम्पद
व्यष्टि - एक व्यक्ति को इंगित परन्तु इस शब्द का अर्थ किसी भौतिक व्यक्ति तक सीमित नहीं बल्कि उसकी चेतना, कर्म और समाज से उसके सम्बन्ध का भी व्यापक उल्लेख समझें .
 
समष्टि - सम्पूर्ण समाज समूह को इंगित परन्तु इस शब्द का अर्थ केवल भौतिक समाज तक सीमित नहीं बल्कि उस समाज की सामूहिक चेतना का स्तर, आपस के लिए प्रागैतिक चिंतन, सामूहिक उन्नति के प्रति कार्मिक प्रतिबद्धता, और आध्यात्मिक संबंधों, एवं सारे विश्व के प्रति एकसख्य भाव इत्यादि का उल्लेख समझें|
 
जाति - एक समान योनि और मैथुन से उत्पन्न जीव समूह जिनकी मानसिक प्रवृतियाँ, शील, परश्रेय, और सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक उद्देश्य एक होते हैं को एक जाति समूह कहा जाता है | ये परिभाषा सभी उपनिषदों और वेदोक्त सूक्तियों के आधार पर है इसलिए इस अनुसार सभी मानव किसी न किसी मात्र में एक जाति है परन्तु उनमें चिति के भेद के अनुसार भेद हो जाते हैं इसलिए जाति समूह पर तीन प्रभाव अवश्यमेव पड़ते हैं १) देश २) काल ३) निमित्त इसलिए मानव सब एक जाति बांधव होते हुए भी अलग जाति समूह में भी आते हैं, जैसे चीनी और भारतीय दो जाति है और पूर्वोत्तर में लगभग अधिकांश लोगों के शारीरिक रूप चीनियों से मिलता है लेकिन उनके मानसिक प्रवृति उद्देश्य इत्यादि भारतीयों से मिलते हैं इसलिए वे भारतीय जाति के हैं| इस विषय पर बड़ी प्रविष्टि अलग से दी जाएगी|
*नोट- वर्णव्यवस्था को न समझने वाले व्यक्तियों को अलग से जाति और वर्ण और व्यवस्था धर्मं की प्रविष्टियाँ आगे अनुरोध पर दी जासकती हैं|
 
चिति - एक समान प्रकार के मैथुन से उत्पन्न जीवों के मनस में उनके दायाधर्मानुसार विशेष प्रकार की मानसिक प्रवृति विध्यमान रहती है जो सबमें परम सुख के रूप में विध्यमान रहती है , इस सुख की तुलना में सारे सुख तुच्छ होतें हैं, इसके लिए अन्य सब सुखों का त्याग करने को सदैव तत्पर रहते हैं, इस चिति का निर्देशक तत्व है परश्रेय यानि अपने अलावा प्रथम दूसरे का श्रेय और कल्याण, मनुष्य में अपने अपने दायाधर्मानुसार और कर्मानुसार इस चिति की मात्रा बढती और घटती रहती है| चिति के लोप हो जाने पर उस जीव की अधोगति होकर अपने से नीचे के जीव/ भावना में परिवर्तन हो जाता है| चिति के अंतर्गत सुरक्षा और श्रेय की  भावना भी विध्यमान रहती है| ये दो प्रकार की हो जाति है १)  दैवी २) आसुरी
इसका नाम चिति केवल व्यष्टि के सम्बन्ध में है
 
विराट - समष्टि में चिति से जाग्रत और एकीभूत हुई प्राकृतिक सुरक्षा क्षत्र शक्ति एवं व्यवस्था शक्ति का नाम विराट होता है|
जिस प्रकार वन्य जीवों को खाने के नुकीले दांत प्रकृति ने दिए हैं उसी प्रकार शाकाहारी पक्षियों को चोंच इत्यादि|
जिस प्रकार एकांकी जीवों को विशेष शारीरिक विशेषता उसी प्रकार सामाजिक जीवों को विशेष शारीरिक और मानसिक तेज|
यही मानसिक और शारीरिक तेज व्यष्टि को समाज के हितार्थ आत्मत्याग करने को प्रेरित करता है, ये विराट ही होता है जिससे प्रेरणा पाकर कोई व्यक्ति सेना में भर्ती हो अपने प्राण न्योछावर कर देता है इत्यादि| ये भी दो प्रकार का है १) दैवी २) आसुरी
इस विराट का निर्देशक तत्व परस्पर सहानुभूति और एकात्मता है|
 
सम्पद - इस त्रिगुण रुपी संसार में सर्वत्र अनेकानेक गुणों के मिलन से अनेकानेक वस्तुएं, विभूतियाँ इत्यादि द्रश्यमान हैं, जिनको मनुष्य कर्मों द्वारा अपने अधिकार में करके अपनी संपत्ति बना लेता है.
इसी प्रकार भौतिक वस्तुओं से इतर कुछ सूक्ष्म संपत्तियां होती है जिनसे ऐसे मानसिक भावों और संस्कारों का निर्माण और गुणों का संचयन होता है जिनसे मनुष्य के आगे के कर्मों दशा और दिशा निश्चित होती है, इन संस्कारों और गुणों के निर्माण करने वाली कारण शक्ति का नाम सम्पद है.
ये दो प्रकार के हैं १) दैवी २) आसुरी
 
 
इस प्रविष्टि में रूप व्याख्या एवं तत्व परिचय के साथ तत्व अन्वेषण के लिए जरूरी शब्दों का उल्लेख हो चूका|
आप सभी से अनुरोध है कोई प्रश्न हो  तो जरूर रखें|
साथ ही आगे बढ़ने से पहले आप सभी मेरे एक प्रश्न का जवाब देन की सभी लोग आगे के १००/२०० वर्षों के लिए भारत में कैसा राज्य कहते हैं बड़े ही सीमित शब्दों में लिख दें|

शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 14, 2010, 7:31:07 PM12/14/10
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क्या मेरी प्रविष्टियाँ पहुँच रही हैं ?
कोई पढ़ भी रहा है ?
भैया किसी का कोई प्रश्न जवाब नहीं!!
जय भारत
--

Suresh Sahu

unread,
Dec 15, 2010, 9:14:05 AM12/15/10
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शशांक जी आगे बढिए
संपूर्ण ग्यान से लबालब भरा हुआ है  जो क्वचित मिलता है
जय भारत
धन्यबाद 
 
सुरेश  

2010/12/15 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>

--

राजेश त्रिपाठी

unread,
Dec 15, 2010, 11:49:47 PM12/15/10
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शशांक जी
कृपया अपनी ज्ञानमय  प्रविष्टियाँ भेजिए | मुझे आश्चर्य है की हमारे ऋषियों का ज्ञान कितना विस्तृत, सार्वभौमिक  था और ख़ुशी है की आप जैसे भारत माता से सपूत इस ज्ञान को हम सब तक पहुंचा रहे हैं |

जय भारत
राजेश
2010/12/14 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>

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Vijay Mohan

unread,
Dec 18, 2010, 12:31:49 AM12/18/10
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ॐ,

ज्ञान वर्षा में नहलाते रहिये शशांक जी ,

मै तो अभी के लिए केवल ऐसा भारत और केवल भारत ही क्यूँ , ऐसा विश्व चाहूँगा के , कोई भूखा ना रहे ,  सब के पास रहने के लिए छत  हो , कोई जाती पाती ना हो , सब  सब शिक्षित हो !

कोई किसी का गुलाम ना हो , और ऐसी स्तिथि ना हो जिसमे मनुष्य अपने जीवन के लिए किसी की दया  पर निर्भर हो 

जय भारत 

 

शशांक उपाध्याय

unread,
Dec 18, 2010, 12:50:25 PM12/18/10
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सभी  का  धन्यवाद
ये सारा ज्ञान उधार का है( ऋषियों का गुरुओं का ग्रंथों का) मेरा मूलतः नहीं केवल शब्दों को आधुनिकता में व्यवस्थित करके और संक्षिप्त करके अपनी बुद्धि अनुसार कुछ रह न जाये और कुछ गलत जुड़ न जाये इसका प्रयास कर रहा हूँ |
 
आगे बढ़ने से पहले एक बात और थी कि जिसकी वजह से देर हो जाती है कि कई ग्रंथों विचारों और शब्दों के मूल अर्थों को समन्वयित करना होता है साथ ही वे ऐसे न लगें जिनसे उब होने लगे इसका भी ध्यान रखना पढता है |
ये भी ध्यान में रखना पढता है विषय लम्बा न हो, ( उदाहरण के तौर पर अभी तक जितना भी सार प्रस्तुत कर पाया वो अगर पूरा विस्तृत रूप में लिखूं तो शायद ४० पन्नों से अधिक है ) इसलिए देरी के लिए क्षमा करेंगें ऐसी अभिलाषा है |
एक बात और है जिसको अभी साफ़ करदूं शायद प्रारंभ में ही कह देता लेकिन जब हो जाये तब अच्छा |
ये सारा उपक्रम मैं केवल भारत देश के लिए कर रहा हूँ केवल ऐसा नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि इससे देश का कोई लेना देना नहीं है | किसी भी ज्ञान के मंथन में भारत सदैव ही स्रोत रहा है और विश्व उस ज्ञान से लाभान्वित इसलिए मेरी वही कामना है जो ऊपर की प्रविष्टि में विजयमोहन जी की है | लेकिन जैसा सबसे पहली प्रविष्टि में मैंने कहा था की संसार में चमत्कारिक परिवर्तन (ओवरनाईट चेंजेस) मनुष्य के अधिकार में स्वभावतः नहीं होते वे या तो प्रकृति के अधिकार क्षेत्र के होते हैं या ब्रह्मांडीय चेतना ( यानि परमात्मा ) के  और साथ ही हर वैश्विक परिवर्तन के तीन मुख्य निर्देशक तत्व होते हैं ( देश, काल, निमित्त ) जिनके बिना परिवर्तन की दिशा और दशा मालूम नहीं हो सकती |
भारत एक प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है जो अभी कुछ और समय चलेगी |
लेकिन निश्चित है जिस प्रकार की विजयजी , मेरी या हम सभी की कामना है जो विजय जी की प्रविष्टि में व्यक्त हो रही है वो समाज की अंतिम अवस्था है ( सभी अवस्थाओं के बारे में अगली प्रविष्टि में आ रहा है जब तत्व चर्चा होगी ) और कोई भी अंतिम अवस्था बिना क्रम को पार करे आ जाये ऐसा चमत्कार प्रकृति के अधिकार क्षेत्र में है |
खैर आप सभी जतन से पढ़ रहे हैं इसके लिए साधुवाद |
 
अब एक बात थोडा हटकर
जैसे संसार में समस्त पानी अगर ऊपर से देखें तो ऐसे लगता है जैसे बता हुआ है , सागर अलग नदी अलग कुआं अलग घर का नल अलग लेकिन जब गहरे उतरें तो जान जाते है की नीचे सब एक ही स्रोत से जुदा है
ऐसे ही सारा ज्ञान चाहे किसी विषय का हो हमारे उस स्रोत में है जिसमें हम कभी कभी ही जाते हों शायद |
सब से आग्रह है अगर हो सके तो कम से कम केवल तीन मिनट( ३ मिनट = १८० सेकेंड ) प्रतिदिन मौन रह कर आँख बंद करके स्रोत की तरफ बढ़ें हमें सब उस ज्ञान का छोर मिल जायेगा जिसको ढूंढ रहे हैं |
 
कबीर जी महाराज कहते हैं
साधो रे ये मुर्दों का गाँव
पीर  मरे , पैगम्बर  मरी  हैं , मरी  हैं  जिंदा  जोगी  
राजा  मरी  हैं , परजा  मरी  हैं , मरी  हैं  बैद  और  रोगी  
चंदा  मरी  हैं , सूरज  मरी  हैं , मरी  हैं  धरनी  अकासा  
चौदह  भुवन  के  चौधरी  मरी  हैं , इनहूँ  की  का  आसा 
नौ हूँ  मरी  हैं , दस  हूँ  मरी  हैं , मरी  हैं  सहज  अठासी  
तेतीस  कोटि  देवता  मरी  हैं , बड़ी  काल  की  बाजी 
नाम  अनाम  अनंत  रहत  है , दूजा  तत्त्व  न  होई  
कहे  कबीर  सुनो  भाई  साधो , भटक  मरो  मत  कोई 
 
आप कहेंगे इस आध्यात्मिक छंद का देश के अव्यवस्था से क्या लेना देना है ?
है |
 अव्यवस्था और और असहजता कैसी भी क्यूँ न हो एक दिन मरती ही है |
रहती है केवल व्यवस्था और सहजता |
सहज स्वाभाविक अ-परनिर्भर आनंददायक स्वतंत्रता ही बची रहती है |
जिसे कोई राम कोई रहीम कोई नाम कोई अनाम कहता है |

राजेश त्रिपाठी

unread,
Mar 31, 2011, 6:38:48 PM3/31/11
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शशांक जी

कई महीनो से आपका कोई लेख नहीं आया ? आशा करता हूँ सब ठीक है | हो सके तो ज्ञान गंगा पुनः प्रारंभ कीजिए

जय भारत
राजेश

2010/12/18 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
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B P S Chandel

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Apr 1, 2011, 9:07:20 AM4/1/11
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om,
achha likhne ke liye dhanya bad,esi tarah likh ker gyan-berdhan kerte
rahe ,dhanyabad.
Vandematram

>> *पीर मरे , पैगम्बर मरी हैं , मरी हैं जिंदा जोगी


>> राजा मरी हैं , परजा मरी हैं , मरी हैं बैद और रोगी
>> चंदा मरी हैं , सूरज मरी हैं , मरी हैं धरनी अकासा
>> चौदह भुवन के चौधरी मरी हैं , इनहूँ की का आसा
>> नौ हूँ मरी हैं , दस हूँ मरी हैं , मरी हैं सहज अठासी
>> तेतीस कोटि देवता मरी हैं , बड़ी काल की बाजी
>> नाम अनाम अनंत रहत है , दूजा तत्त्व न होई

>> कहे कबीर सुनो भाई साधो , भटक मरो मत कोई *
>>
>> *आप कहेंगे इस आध्यात्मिक छंद का देश के अव्यवस्था से क्या लेना देना है ?*
>> *है |*

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B P S Chandel 09803512991
VISHIST SADASHY
BHARAT SWABHIMAN(TRUST)

शशांक उपाध्याय

unread,
Apr 4, 2011, 9:05:22 PM4/4/11
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राजेश  जी
जय भारत
प्रणाम
 
मैं नियमित रूप से ब्लॉग का अध्ययन करता रहा हूँ | मेरी प्रविष्टियाँ इस लिए नहीं आयीं क्योंकि किसी की रूचि ही नहीं थी | ये विषय समाज के निर्माण के मूल का था इस कारण इसका निरुद्देश्य हो जाना ठीक नहीं समझा |
अगर आप आदेशित करें तो सप्ताह में तीन प्रविष्टियाँ मैं कर सकता हूँ | लेकिन आगरा मेरे सहोदर न पढ़ें तो ठीक नहीं है, ऐसा में समझता हूँ |
बाकी अगर सत्य कहूं तो राजीव जी के आकस्मिक निधन के बाद मेरा मन उचट गया |
लेकिन माँ भारती की सेवा की ज्वाला मेरे मन और ह्रदय में निरंतर निर्विघ्न जलेगी |
 
आपके उत्तर की प्रतीक्षा में,
शशांक

pankaj agarwal

unread,
Apr 4, 2011, 10:41:13 PM4/4/11
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ॐ,
भाई शशांक जी,
मुझे भी आपकी और आपके लेखो की कमी खल रही थी बहुत दिनों से, कृपया अपने लेख और वक्तव्य जारी रखे और ज्ञान प्रवाह लोगो में बाटें | जैसा कि ये सर्व विदित है कि ज्ञान बाटने से बढ़ता है तो सभी से ये प्रार्थना है कि अपने अपने विचार रखे और इस ज्ञान प्रवाह को जहाँ तक संभव हो इस चर्चा को पारस्परिक चर्चा का केंद्र बनाये रखे जिससे शशांक जी को या किसी अन्य भाई को ये न महसूस हो कि चर्चा में कोई भी सम्मिलित नहीं है , मैं भी नियमित रूप से अपने विचार रखने का प्रयास अवश्य करूँगा |
धन्यवाद
पंकज
जय भारत

2011/4/4 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
शशांक

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भवदीय ,

पंकज  अग्रवाल
विशिष्ट सदस्य, भारत स्वाभिमान
Contact  Numbers  :   9810307974
भारत स्वाभिमान व्यवस्था  परिवर्तन पत्रक पढने के लिए :
http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/vyavstha%20parivartan.pdf
 
व्यवस्था परिवर्तन

पिछले 63 सालों से हम सरकारे बदल-बदल  कर देख चुके है..................... हर समस्या के मूल में मौजूदा त्रुटिपूर्ण संविधान है, जिसके सारे के सारे कानून / धाराएँ अंग्रेजो ने बनाये थे भारत की गुलामी को स्थाई बनाने के लिए ...........इसी त्रुटिपूर्ण संविधान के लचीले कानूनों की आड़ में पिछले 63 सालों से भारत लुट रहा है ............... इस बार सरकार नहीं बदलेगी ...................... अबकी बार व्यवस्था परिवर्तन होगा...................
अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये
 
क्या आप जानते है हमारा देश भारत फिर से गुलाम होने वाला है ? . .... ......... अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये
 
Do you know that our country India is going to be a slave again? . .............
 
See AASTHA Channel at night from 08-00 PM to 9.00 PM and SANSKAR Channel from 9.00 PM to 10.00 PM.

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Vikas Kumar Gupta

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Apr 4, 2011, 10:48:12 PM4/4/11
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आपके लेख का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है


विकास कुमार

Ganesh P Sharma

unread,
Apr 4, 2011, 11:48:29 PM4/4/11
to bharatswab...@googlegroups.com

ओम
भाई शशांक जी,
आपके सहित अन्य सभी भारत स्वाभिमानियों से मेरा अनुरोध है की कलियुग की इस महाभारत में हममें से किसी को भी तटस्थ या  निष्क्रिय नहीं रहना है | राजीव जी की क्षति से सभी भारत स्वाभिमानी आहत है और इस अपूर्णीय   क्षति को भुलाना भी संभव नहीं है परन्तु यदि हमारे जैसे स्वामी जी भी मौन हो जाते तो यह यात्रा रुक जाती , असुरत्व विजयी हो जाता और सात्विक खेमा हार जाता जो हममें से किसी को भी स्वीकार्य नहीं है | राजीव जी की क्षति को देखते हुए हमें और अधिक ऊर्जा से इस आन्दोलन को मजबूती देने के लिए यथा सम्भव योगदान जारी रखना है |
याद कीजिए स्वामी जी का कथन - "रुकना नहीं विश्राम नही करना जब तक लक्ष्य नही मिल जाता" |
आपका योगदान आवश्यक और महत्वपूर्ण   है आगे आइये अभी तो भुत कुछ करना है |
जय भारत      वन्दे मातरम
_____________________

Ganesh P Sharma
Phone 09993282227


From: pankaj agarwal <pankaj...@gmail.com>
To: bharatswab...@googlegroups.com
Date: 04/05/2011 08:11 AM
Subject: Re: [BST] Re: भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .
Sent by: bharatswab...@googlegroups.com





ॐ,
भाई शशांक जी,
मुझे भी आपकी और आपके लेखो की कमी खल रही थी बहुत दिनों से, कृपया अपने लेख और वक्तव्य जारी रखे और ज्ञान प्रवाह लोगो में बाटें | जैसा कि ये सर्व विदित है कि ज्ञान बाटने से बढ़ता है तो सभी से ये प्रार्थना है कि अपने अपने विचार रखे और इस ज्ञान प्रवाह को जहाँ तक संभव हो इस चर्चा को पारस्परिक चर्चा का केंद्र बनाये रखे जिससे शशांक जी को या किसी अन्य भाई को ये न महसूस हो कि चर्चा में कोई भी सम्मिलित नहीं है , मैं भी नियमित रूप से अपने विचार रखने का प्रयास अवश्य करूँगा |
धन्यवाद
पंकज
जय भारत

2011/4/4 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
राजेश  जी
जय भारत
प्रणाम
 
मैं नियमित रूप से ब्लॉग का अध्ययन करता रहा हूँ | मेरी प्रविष्टियाँ इस लिए नहीं आयीं क्योंकि किसी की रूचि ही नहीं थी | ये विषय समाज के निर्माण के मूल का था इस कारण इसका निरुद्देश्य हो जाना ठीक नहीं समझा |
अगर आप आदेशित करें तो सप्ताह में तीन प्रविष्टियाँ मैं कर सकता हूँ | लेकिन आगरा मेरे सहोदर न पढ़ें तो ठीक नहीं है, ऐसा में समझता हूँ |
बाकी अगर सत्य कहूं तो राजीव जी के आकस्मिक निधन के बाद मेरा मन उचट गया |
लेकिन माँ भारती की सेवा की ज्वाला मेरे मन और ह्रदय में निरंतर निर्विघ्न जलेगी |
 
आपके उत्तर की प्रतीक्षा में,
शशांक


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भवदीय ,

पंकज  अग्रवाल
विशिष्ट सदस्य, भारत स्वाभिमान

Contact  Numbers  :   9810307974
भारत स्वाभिमान व्यवस्था  परिवर्तन पत्रक पढने के लिए :
http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/vyavstha%20parivartan.pdf
 
व्यवस्था परिवर्तन

पिछले 63 सालों से हम सरकारे बदल-बदल  कर देख चुके है..................... हर समस्या के मूल में मौजूदा त्रुटिपूर्ण संविधान है, जिसके सारे के सारे कानून / धाराएँ अंग्रेजो ने बनाये थे भारत की गुलामी को स्थाई बनाने के लिए ...........इसी त्रुटिपूर्ण संविधान के लचीले कानूनों की आड़ में पिछले 63 सालों से भारत लुट रहा है ............... इस बार सरकार नहीं बदलेगी ...................... अबकी बार व्यवस्था परिवर्तन होगा...................

अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये
 
क्या आप जानते है हमारा देश भारत फिर से गुलाम होने वाला है ? . .... ......... अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल देखिये
 
Do you know that our country India is going to be a slave again? . .............
 
See AASTHA Channel at night from 08-00 PM to 9.00 PM and SANSKAR Channel from 9.00 PM to 10.00 PM.

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विक्की हिन्दुस्तानी

unread,
Apr 6, 2011, 12:27:37 PM4/6/11
to bharatswab...@googlegroups.com
शशांक जी ,
काफी दिनों से आपकी कमी ब्लॉग पर काफी खल रही थी. कृपया कर ज्ञान गंगा के निरंतर प्रवाह को बनाये रखें.
जय भारत

2011/4/5 Ganesh P Sharma <ganesh...@acclimited.com>

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आपका मित्र ,
विक्की हिन्दुस्तानी
विषिस्ट सदस्य , भारत स्वाभिमान    

http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/vyavstha%20parivartan.pdf
भारत स्वाभिमान के व्यवस्था परिवर्तन का दस्तावेज देखने के लिए उपरोक्त लिंक क्लिक करें I

शशांक उपाध्याय

unread,
Apr 8, 2011, 2:33:54 PM4/8/11
to bharatswab...@googlegroups.com
जय भारत
सभी सहोदर इस विषय का एक पुनरावलोकन कर लें इस लिए इस नीचे दी गयी कड़ी पर जाकर अब तक के विषय का सार समझ सकते हैं |
काल से साप्ताहिक रूप से में आगे की टिप्पणियां प्रस्तुत करता रहूँगा|
हमेशा की तरह अपने प्रश्न अपनी राय देते रहें |
इससे विषय की उत्पादकता बनी रहती है |              |पूरे विषय को पढने के लिए यहाँ जाएँ |

अगली प्रविष्टि का आरम्भ जहां से विषय छूटा था वहीँ से करेंगें, यानि

 राज्य रूप और तत्व चर्चा|

विषय इन शब्दों के अर्थ पर समाप्त हुआ था
*१) व्यष्टि, २) समष्टि *
*१) जाति*
*१) चिति, २) विराट *
*१) सम्पद *
और अंत मेरा अनुरोध था की जो भी बन्धु वर आगे बढ़ना चाहें वे
" सभी लोग आगे के १००/२०० वर्षों के लिए भारत में कैसा राज्य कहते हैं सीमित शब्दों में लिख दें| "

तो मेरा आग्रह फिर से है की सभी इच्छुक जन रविवार सुबह तक अपने मन के भारतीय राज्य के परिकल्पना को लिख भेजें फिर हमारे
प्राचीन और नवीन दोनों प्रकार के मनीषियों ने क्या क्या अपना मत रखा है उसकी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए इस विषय को आगे ले जायेंगे |

इसी विषय से सम्बंधित एक और महत्वपूर्ण बात है की भारत देश का नाम राजा भरत के नाम पर पड़ा लेकिन
 भरत शब्द और भारत शब्द का तात्विक अर्थ क्या है
 इसको जान लें तो कई विषयों का मूल मंतव्य समझ आ सकेगा |
अगली संछिप्त टिप्पणी में इसका उल्लेख करूंगा फिर सभी के  भारतीय राज्य के परिकल्पना को पढ़कर मूल विषय को पुनः प्रारम्भ करेंगे |
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