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स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है की भारत का धर्म है की वो विश्व का अध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन करे.
2010/11/16 Rajesh Tripathi <rajes...@gmail.com>
ॐ
शशंक जी
यह भारतीय आध्यात्मिकता ही है जो विश्व को नयी दिशा देगी | केवल भौतिकवाद /भोगवाद जिसमे मनुष्य, समाज, मानवता का हित अनदेखा कर केवल "Greed is good" पर आधारित , लाभ ही सब कुछ है, की व्यवस्था विश्व के लिए बहुत खतरनाक है | शायद यही सब देख कर Arnold Toynbee ने कहा था |
It is already becoming clearer that a chapter which has a western beginning will have to have an Indian ending if it is not to end in the self destruction of the human race. At this supremely dangerous moment in history the only way of salvation for mankind is the Indian way
जय भारत
राजेश
2010/11/15 Surendra Kumar <kumarsu...@gmail.com>
जय भारत,आज के परिपेक्ष्य में जब कि हम भारत के पुनर्निमाण कि और अग्रसर हो रहें इस तरह का चिंतन अत्यंत आवश्यक तथा दूर्गामीं प्रभाव रखेगा. ऐसा चिंतन आज ही नहीं हमेशा अपनी सार्थकता बनाये रखता है.ये विषय प्रारम्भ करने के लिए शशांक जी को साधुबाद.जय भारत.
2010/11/15 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .प्रथम प्रविष्टि FIRST POST
ॐइस नवीन विषय अंतर्गत हम चर्चा करेंगे की भारत में वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए और भवितव्य का मनन करते हुए हम भारत के लिए,कौन से पथ को अधिक श्रेष्ठ समझें और उसे अपनाने के लिए न केवल स्वयं प्रेरित हों अपितु समाज के अन्य सदस्यों को भी इस चिंतन पथ पर अग्रसर करें.
इस पहली प्रविष्टि में थोड़ी सी भूमिका रखूंगा और आगे होने वाले चिंतन के लिए दिशा पर भी प्रकाश डालने की चेष्टा करूंगा.
हमारे सामने वर्तमान में कुछ परिस्थितियां हैं जिनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही गुण दिखलाई देते हैं,चूँकि हम मुख्यतः तीनों ही स्तर यानि समाज देश और राष्ट्र पर चिंतन करना चाहते हैं साथ ही सार्वभौमिक (अंतर्राष्ट्रीय) स्तर पर भी सोचना चाहते हैं,इसलिए हमें जाना कहाँ है, कैसे जाना है और हम अभी कहाँ हैं, इसका ज्ञान कर लेना होगा.इस सब के लिए प्रथमतया हमको ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैं इत्यादि इत्यादि...जिस प्रकार संसार में हर जड़ वस्तु या चेतन जीव समूह का एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) यानि (लक्षण, विशेषता स्वभाव जो भी कहें) होता है,उसी प्रकार प्रत्येक मानव, मानव समूह (यानि समाज), समाज समूह (यानि राज्य), राज्य समूह (यानि देश) और देश समूह (यानि राष्ट्र),का भी एक नैसर्गिक चरित्र (तत्व) होता है, जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र पर्यंत और अन्यान्य राष्ट्रों में भी विद्यमान रहता है.
बाकी सभी राष्ट्रों को अगर बाद के लिए छोड़ दें तो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?
इस भारत नामक वृक्ष पर वैसुधैव कुटुम्बकम , तत त्वम असि, सर्वेषाम सुखिनः भवन्तु जैसे अनगिनत फल लगे जिनसे मानव मात्र अनगिनत वर्षों से इस संसार को,
न केवल आनंददायक स्थान बनाया अपितु दैनिक जीवन में आत्मसात की जा सकने वाले ऐसे तत्व को स्थापित किया जिससे की मानव इस आनंद को इस देह में भी,
और इस देह से परे अनंत आनंद को प्राप्त करे. ( ये तत्व क्या है इसकी चर्चा से अगली प्रविष्टि में हमारा मुख्या चिंतन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि यही तत्व जब भारत का चरित्र
है तो यही तत्व न केवल भारत बल्कि अन्यान्य राष्ट्र और विश्व के सभी मानवों के लिए भी उस अनंत प्रगति और आनंद का मार्गनिर्देशक भी है.)
चूँकि हम मुख्यतः तीनों ही स्तर यानि समाज देश और राष्ट्र पर चिंतन करना चाहते हैं साथ ही सार्वभौमिक (अंतर्राष्ट्रीय) स्तर पर भी सोचना चाहते हैं,इसलिए हमें जाना कहाँ है, कैसे जाना है और हम अभी कहाँ हैं, इसका ज्ञान कर लेना होगा.
इस भारत नामक वृक्ष पर वैसुधैव कुटुम्बकम , तत त्वम असि, सर्वेषाम सुखिनः भवन्तु जैसे अनगिनत फल लगे जिनसे मानव मात्र अनगिनत वर्षों से इस संसार को,न केवल आनंददायक स्थान बनाया अपितु दैनिक जीवन में आत्मसात की जा सकने वाले ऐसे तत्व को स्थापित किया जिससे की मानव इस आनंद को इस देह में भी,और इस देह से परे अनंत आनंद को प्राप्त करे. ( ये तत्व क्या है इसकी चर्चा से अगली प्रविष्टि में हमारा मुख्या चिंतन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि यही तत्व जब भारत का चरित्र
क्या भारत मर जाये? तो इस संसार से सारी आध्यात्मिकता विलुप्त हो जाएगी, विलुप्त हो जाएगी सारी नैतिक पूर्णता,विलुप्त हो जाएगी मानव धर्म के प्रति सम्वेदना, सारे आदर्श विलुप्त हो जायेंगें, और इनके स्थान पर कामलालसा और विलासिता,इसके देवता और देवी होंगे, पैसा इनका पुजारी होगा, छल बल और प्रतियोगिता इसके समारोह होंगे, और आत्मा इसकी बलि होगी. "
भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION .
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सभी का धन्यवाद________________________________________________________अगली प्रविष्टि से पहले एक टिप्पणी -ये बात बिलकुल ठीक है की सरकार का नियंत्रण सर्वत्र नहीं होना चाहिए लेकिन हमें एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा,की सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा. लेकिन यहाँ केवल उल्लेख करना उचित है की हमारे भारतीयमनीषियों ने राज्य रूप की अपेक्षा राज्य तत्व को ज्यादा महत्व दिया है क्योंकि राज्य रूप चाहे कुछ भी हो लेकिन अगर राज्य तत्व नहीं बदलतातो सामाजिक , शासनिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं प्रगति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पढता है.उदाहरण के लिए -१) महर्षि परशुराम ने २१ बार भारत के कुटिल शासकों का अंत किया लेकिन उन्होंने राज्य का रूप नहीं बदला केवल तत्व बदला.२) श्री राम ने लंका विजय के पश्चात लंका का राज्य रूप नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.३) श्री कृष्ण ने भी महाभारत के पश्चात इन्द्रप्रस्थ का राज्य रूप नहीं बदला केवल राज्य तत्व बदला.कहने का तात्पर्य है की राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है.जैसा की आजकल हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं. अमेरिका की जनता संवैधानिक लोकतंत्र से खीज रही है, भारत समाजवाद से, यूरोप संसदीय लोकतंत्र से, मध्य पूर्व पूर्ण राजशाही से,और अन्यान्य देश भी धीमे धीमे अपने अपने तंत्रों को विफल मानने की ओर अग्रसर होते प्रतीत हो रहे हैं.हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देश काल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.विजय जी आपसे अनुरोध है आप भी थोडा मनन करें की तंत्र कोई विफल नहीं होता केवल उस को चलाने वालों और उस तंत्र के उपयोग के अर्थों में विपरीतता हो तो इसमें तंत्र का कोई दोष नहीं होता.औए एक बात है गौर करने वाली की पहले तो भारत के अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद जो अर्थव्यवस्था के हालात थे उनकी वजह से और १००० वर्ष के अँधेरे भरे समय से गुजरने के कारणभारतीय आमजन के मानसिक संयम ने बहुत हानि उठाई जिसको संक्षेप में आप इस कहावत से समझ सकते हैं."नंगे को मिल गयी पीतर बाहर धरे या भीतर"अर्थ - किसी को भी अनायास मिलने वाली वस्तु या शक्ति का अर्थ और उपयोग की जानकारी न होने से हानि ही होती है और अज्ञान का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.
सैकड़ों वर्षो के परराज्य, ६० वर्षों के पाशव साम्यराज्य ( सोशलिज्म ) में रहने के बाद भारतीय जनमानस को अनायास ही 1991 से पूँजीवाद की तरफ धकेलना भारत के लिए न केवल नकारात्मक सिद्ध हो रहा है,
अपितु आगे चलकर ये ऐसा विकराल सुरसा मुख फैलाएगा की समाज इसकी शक्तियों से परिचित न होने के कारण अपने मार्ग मूल्यों और अंतिम में स्वतंत्रता पूर्णरूपेण खो बैठेगा.दूसरी प्रविष्टि अगली चिट्ठी में आरही है.
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तमसो माँ ज्योतिर्गमय
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शशांक
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मै विजय जी के इस कथन से सहमत हूँ कि देश में औद्योगिक स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी देश में उद्योगों का पूरा विकास हो पायेगा . राज्य का काम केवल कर वसूल करना होना चाहिए . इसके अलावा न्याय करना भी राज्य का काम होगा. लेकिन आज कि परिस्थिति में मुझे लगता है कि राज्य का नियंत्रण कुछ मुद्दों पर होना चाहिए जैसे :
१. बड़ी बहुरास्ट्रीय देशी या विदेशी कंपनियों को ऐसे छेत्र में व्यापार की अनुमति नहीं होनी चाहिए जिसे देश में आम जनता आसानी से सदियों से करती आ रही है एवं जो उनके रोजगार का साधन है मसलन देश में खुदरा व्यापार, मछली पालन (मांसाहारी भोजन खाना या ना खाना अलग विषय है), फल एवं सब्जियों का उत्पादन एवं विक्रय. बड़ी कंपनियों के इन परंपरागत छेत्रों में आने से करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो रहे हैं एवं होंगे क्योंकि ये बड़ी साधन संपन्न कंपनियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते . जिस रफ़्तार एवं जितनी संख्या में लोग अपने व्यवसाय से बेरोजगार होंगे उसके 5% के बराबर लोगों को भी बड़ी कम्पनी की बड़ी दुकान में रोजगार नहीं मिलेगा . बड़ी कंपनियों को विदेशी व्यापार (export oriented), नए शोध के छेत्रों,large scale production, capital intensive undertaking मसलन तेल उत्खनन एवं शोधन, खनन एवं धातु निर्माण, आदि सभी तरह के उत्पादन से सम्बंधित कामो के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि ये सब काम देश का आम आदमी नहीं कर सकता .उदाहरण के लिए - खुदरा व्यवसाय तो आम आदमी आसानी से कर ही रहा है अगर एक बड़ी कम्पनी इस छेत्र में आकर उसे बेदखल कर रही है तो देश एवं समाज के स्तर पर हमें हानि हो रही है क्योंकि इससे GDP में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा . उपभोग भी बराबर ही हो रहा है परन्तु देश में बेरोजगारी बढ़ रही है एवं संसाधन का वितरण समाज में असमान होता जा रहा है . इस स्थिति की तुलना एक दूसरी स्थिति से करें . मान लीजिये की बड़ी कम्पनी खुदरा व्यापार में आने की बजाय एक बड़ा कारखाना लगाती है स्टील उत्पादन या तेल सोधन के लिए. अब ये काम पहले कोई नहीं कर रहा था सो किसी का औद्योगिक विस्थापन नहीं होगा (कुल औद्योगिक उत्पादन बढ़ने से हमारा आयत घटेगा या निर्यात बढेगा जो दोनों स्थिति में हमारे लिए फायदेमंद रहेगा ) . देश की GDP बढ़ेगी एवं पैसे का सृजन होगा एवं खुदरा व्यापारी भी पहले के मुकाबले ज्यादा कमा पायेगा बनिस्पद बेरोजगार होने के.
२. औद्योगीकरण के लिए एक नीति होनी चाहिए जो नयी green field projects के लिए पुरे दिशानिर्देश दे . मसलन - क्या उपजाऊ कृषि भूमि पर क्या कारखाने लगाये जा सकते है ? यदि हाँ तो किन परिस्थितियों पर ? उद्योग का असर उस स्थान के पर्यावरण पर क्या होगा एवं उस इलाके के निवासियों को वातावरण ख़राब होने का मुवावजा किस तरह दिया जायेगा ? विस्थापन की क्या नीति होगी ? पुराने बंद पड़े कारखाने एवं अनुपजाऊ बंजर भूमि को किस प्रकार नए उधोग लगाने के लिए प्राथमिकता सूचि में रखा जायेगा ?३. मुक्त व्यापार के आपके तर्क से मै सहमत हूँ परन्तु यदि प्रतिस्पर्धा में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य कम होने के बजाये सम्बंधित उधोग अपना संगठन बना लें एक मोनोपली में दाम बढ़ने लगे तो सरकार के पास इसके खिलाफ क्या उपाय होंगे ? (ऐसा हम कुछ समय पहले चीनी के सम्बन्ध में देख चुके हैं जब गन्ने की कीमत बढे बिना चीनी के दाम बढ़ा दिए गए थे). ऐसा हम आज चिकित्सा एवं शिक्षा के सम्बन्ध में भी देख रहे हैं . प्रतिस्पर्धा में कीमत घटाने की जगह अंग्रेजी माध्यम के सभी विद्यालय एवं प्राइवेट अस्पताल मनमाने ढंग से फ़ीस बढ़ा रहे हैं .४. आपके सरकार द्वारा शिक्षा ना देना बल्कि नगद रूपए दे देने के विचार को मैंने पढ़ा था . ये पश्चिमी देशों में सफल है परन्तु भारत में ये व्यावहारिक नहीं है. अगर सरकार नगद रूपए देगी तो अधिकांस गरीब उस रूपए से अपनी अन्य जरूरतें मसलन रोटी, कपडा एवं माकन की जरुरत पूरी करेंगे, कई लोग शराब, एवं नशे में लुटा देंगे. अधिकांस गरीब बच्चे उस पैसे से पढ़ ही नहीं पाएंगे . आपको पता है आज भारत में जितने भी गॉव हैं उसमे बच्चे केवल व केवल दोपहर के मुफ्त भोजन के लिए विद्यालय जाते हैं . जिस दिन खाना नहीं विद्यालय में कोई दिखाई नही देता .
ॐमै आपकी बातों से सहमत हूँ. पहले जमीन लीज पर ही उद्योगों को दी जाती थी . जमशेदपुर में टाटा की सारी जमीन लीज पर ही है. permanent रूप से देने का प्रचलन अभी कुछ वर्षों से ही प्रारंभ हुआ है जो सच में खतरनाक है .जय भारत2010/11/19 Sudhir Sahni <sudhirs...@gmail.com>
MAIN point is land is the actual source of generation of wealth .Its ownership should not go permanently into the hands of few .That is a dangerous sign for any nation in the long run.
---------- Forwarded message ----------
From: विक्की हिन्दुस्तानी <hindust...@gmail.com>
Date: 2010/11/19
Subject: Re: [BST] Re: पारिवारिक चित्र टाटा समूह का
To: bharatswab...@googlegroups.com
ॐटाटा के बारे में , उनकी ईमानदारी , सामाजिक जिम्मेदारी आदि के बारे में अगर आपको जानना है तो कभी जीवन में मौका मिले तो एक बार जमशेदपुर जरुर आइयेगा . ये शहर झारखण्ड राज्य में स्थित है जिसे टाटा ने १०३ वर्ष पूर्व बसाया था . आज इस शहर की जनसँख्या लगभग २० लाख से अधिक है व यह शहर पूरी तरह से टाटा की कम्पनी पर निर्भर है . इस शहर के रख रखाव की सारी जिम्मेदारी टाटा उठाती है. शहर को देखने पर आपको इसका अंदाजा लगेगा कि planned city किसे कहते हैं एवं वातावरण को संजोय हुए रखकर उद्योग कैसे लगाया जा सकता है .रही बात मेहनतकश लोगों के शोषण की तो ये बात आप टाटा के किसी कर्मचारी से पुछ कर देखें . आपकी सारी ग़लतफ़हमी दूर हो जाएगी .संभव है इन सब चीजों को जानने के बाद आपको अपने विचारों के लिए शर्मिंदगी महसूस हो कि आपने अनजाने में ही किसी के बारे में अपनी राय दे दी .और एक बात, मुझे लगता है कि हमें किसी और के कार्यों के बारे में टिपण्णी करने का तब तक कोई नैतिक अधिकार नहीं जब तक हम उस व्यक्ति या संस्था के काम या योगदान का १% भी नहीं कर रहे .
इस विषय पर मै आप सब का एवं अपना ज्यादा वक़्त जाया नहीं करना चाहता सो यही पर विराम लेता हूँ .जय भारत2010/11/19 manoj peetamber <peet...@rediffmail.com>
मरी मेल नजाने पंकज अगरवाल जी में केसे हो गयी कृपया ध्यान दे और टाटा समूह का पारिवारिक चित्र भी गायब हो गया कृपया जाचे धन्यवाद *******
प्रिय गुरु मित्र
श्री अजय जी आपके विचार देश आत्मा से जुडा होते है ! जो जड़ से आध्यंन करते है वो मूल को भी जानते है और जो किसी विचारधारा से प्रेरित होते है ! वो मूल को नहीं जानते*** आपका अपना और दूसरी विचारधारा का आध्यंन से ही सच का पता लगता है ! अंग्रेजो के जाने के बाद जिन लोगो ने देश की अर्थवेयवस्था जिनके हाथ आई वो अंग्रेजो के चापलूस ही थे जिन्हें अंग्रेजो ने सर की उपाधि दी हम पर सासन किया जिनमे टाटा, हिंदुस्तान-लीवर, बाटा, ITC , फिलिप्स, हिदुस्तान-मोटर्स, फिएट्स, आदि कम्पनियों ने देश को कुछ नहीं दिया ये केवल अंग्रेजो की टेक्नोलोगी से व्यापर करते थे ! इनके व्यापारिक गठ्बंदन से देश तरक्की नहीं कर पाया ! इन्द्रा, राजीव , के मरने के बाद ही भारतीय वयापार बड़ा ***राजीव की विदेशी पसंद व योरोपियन वयापार निति की कुंडली नर्शिम्बा-राव ने उलट दी ! भारतीय चाणक्य वाही थे ! ने अंग्रेजो के बजाये एशियन संबंद बनाये ! जिससे पैसा अंग्रेजो के बजाए भारतीयों के पास रहने लगा ! न अब इनकी कार खरीदता है न जूते, न सामान जिससे इनकी हालत तो ख़राब हुयी ही साथ अंग्रेज भी कंगाल होने लगे ! अब हालत आपके सामने है !बाद-किस्मती से देश आजादी के बाद इमानदार लोगो के हात होता तो देश की तशवीर चीन और जापान से आगे होती ! आजादी से देश कभी अंग्रेज चापलूस नेहरु तो कभी चूडियो के सहारे देश चला विदेशी मानसिकता की आजादी के बाद नर्शिम्बा-राव , अटल बिहारी बाजपेयी जी ने देश को नयी दिशा दी !जिसका परिणाम आपके सामने है ! ॐ जाए भारत वन्दे मातरम
भवदीय ,
पीताम्बर 09868420933विशिष्ट सदस्य, भारत स्वाभिमान2010/11/18 manoj peetamberप्रिय मित्रोभवदीय ,
टाटा समूह की बेहेश में हम काफी समय बर्बाद कर रहे है ! हमें सोचना पड़ेगा की जो अपने जीवन भर अंग्रेजो की मदद अपने देश का बेश कीमती लोहा दे कर करता आया हो उस विदेशी मूल के परिवार पर केसे भरोसा करे ! मे एक पारिवारिक चित्र टाटा समूह का भेज रहा हु ! जिसमे इनका खून विदेशी ,सदश्य विदेशी , सोच विदेशी , और व्यापर विदेशी हो वेह भारत का कैसे हो सकता है ! जिनका लालन पालन switzerland में विदेशी माँ suzanna (फ्रेंच) के द्वारा हो वेह भारतीय केसे होगा ! जिन्होंने पूरी जिंदगी अंग्रेजो की रेल के लिए पूरी दुनिया में लोहा बेच कर मदद की हो ! और नेहरु समेत पुरे परिवार की मदद वोह आजादी से पहलेसे करते आए है ! चाहे चुनाव हो या आर्थिक मदद विदेशो में करते आए है ! की मानसिकता अंदाजा लगाया जा सकता है ! १९८७ से पहले भारत में केवल सिर्फ अंग्रेजो द्वारा विदेशी नियंत्रित व्यापर होता था ! जिसमे कार, मशीनरी, रेडियो, सेनिक सामान , केमिकाल्स , मेडिकल का सामान आदि सभी नजाने कितनी वस्तुए प्रियोग में लायी जाती थी क्यों**** और भारतीय वैज्ञानिक डोक्टोर्स, इंजीनियर्स, जितना भी ज्ञान भारतीय दिमाग हो विदेशो में भेजा जाता था ! ताकि विदेशी मदद की जा सके ! जरा ध्यान गया क्यों **** १९४८ में JRD टाटा एयर इंडिया INTERNATIONAL में CHIRMEN थे! तभीसे इनकी तमन्ना विदेशियों के साथ मिल भारतीय विमान सेवा को अपने आधीन करने की थी ! अब इनका बयान १५ करोड़ के घुश लेने का राजनीती से प्रेरित है ! जरा सोचिये की कभी भारत के चुनाव में इन्होने किसीकी मदद नहीं करी होगी !**** अगर की होगी तो किसकी ? क्या सरकारों से इन महासय ने मदद नहीं लि होगी क्या टेक्स चोरी नहीं करी होगी ! पुरे देश का ७०% उत्तम किशम का लोहा विदेश निरियात करते है क्या उस हेरा-फेरी में सरकार की मदद नहीं चाही होगी ! अब सोचिये की वोह कोन सी सरकार होगी ! जो इनकी मदद करती है ! जब घोटालो में घिरी सरकार को बचने वाला कोई नहीं तब बयान दे डाला की ऐसे घोटाले और भी सरकारों में होते है ! मतलब साफ है ? अब समए बदल गया अब एशिया के लगभग सभी देश बिना योरोपियन मदद के सभी वस्तुए बनाते है ! अंग्रेज समाज बिकने पर आगये है इनका साम्राज्य खोखले ताना-शाही पर खड़ा है ! और हमें ग्लोबल क्रिसेस बता देश को घोटालो से लुट कर महगाई दिखाई जा रही है ! और विदेशो में जमा दुनिया का बेशकीमती धन इन्ही देश द्रोहियों का है ! हम गरीब नहीं ! देश की सारी कमाई घोटालो के द्वारा लूट कर विदेश भेज दिया जाता है ! ताकि अंग्रेजो की मदद हो और रूपये का मूल्य गिरा रहे ! और हम पर राज करते रहे ! मित्रो इन दुष्टों की हर बात की गहरायी में जाना होगा ! की क्यों करोडो रूपये कॉमनवेल्थ गेम्स में खर्च किये ? क्यों IPL होता है ? कितने घोटाले नजाने कितने ? कहा जाता है यह पैसा ? हम आम जनता को बेवकूफ बनाया जाता है हर्षद-मेहता राजू, तेलगी, क्रतोची, रजा, कलमाड़ी, नजाने कितने ये यह देश द्रोहियों के पियादे है !
पर देश की सचाई कुछ और है दिल्ही के लक्ष्मी नगर में एक विशाल छे मंजिला ईमारत गिरने से २५० भारतीय माशूम परिवार दब गए ! मै वहा गया कलेजा फट गया बच्चे तड़फ रहे थे जो बच गए जिनका कोही नहीं उनकी चीत्कार से दिल काप रहा था कोई मदद नहीं कोई पानी पिलाने वाला नहीं इतनी ठण्ड व बारिश में खुले मैदान के-निचे तड़फ रहे है ! यह भारतीय है जिनका कोई नहीं ! और २४ घंटे में नजाने कितने परिवार बे-घर किये जाये गे अनुमान नहीं ! दूसरी तरफ विदेशी मेहमानों को खुश करने १.५ कर्रोड़ की गेश गुब्बारे में भरी सिर्फ १५ दिनों की लिए? पर तड़फते भारतीयों को पानी तक नसीब नहीं ! यह जिंदगी गुलामो से बत्तर है वो परिवार जो ईमानदारी से महनत कर देश में जीते हो उनकी हालत ऐसी ? उठा लेनी चाहिए बंदूके इन दुस्तो का सर्व-नाश करने केलिए**** अपना हक़ देश से मांगने का अधिकार किशको नहीं ! अगर इनका हक़ कोई पहले ही लूट ले उसको मौत के घाट उतर देना चाहिए ! और वोह मौत देनी चाहिए की पूरी दुनिया ही कापजाये ! मित्रो हमभी उन्ही में है ! फर्क इतना है की हमपर कहर नहीं टुटा ! इसलिए दर्द नहीं होता ? सोचता हु की जब दिल्ली में ऐसा है तो देश में नजाने कितने हादसे होते है कभी भोपाल कभी रेल दुर्घटना कभी बाड़, तो कभी भूकम हम भारतीयों की यही दुर्दशा होती ! और देश द्रोही हम भारतियो को लूट चेन की नींद सोते है ! मित्रो हमें बहुत बड़ा कार्य करना है जागो अपनी गुलाम मानसिकता को प्रखर बनाओ छोटी छोटी बातो में समय नजाए अपने अपने अस्त्र चाहे किशी भी रूप में हो प्रयोग करो ! और जगाओ और जगाओ **********
रविवार १४ नवम्बर को हमने भ्रस्टाचारी सांड की नाक में नकेल डालने का प्रयाश किया है ! उससे भी जादा ख़ुशी मुझे भारतीय इमानदार बुध्जिवियो को साथ लाने का प्रयाश लगा ! उसमे विवादित अग्निवेश भी थे जो अंग्रेजो द्वारा नियंत्रित बहरूपिया है ! महा-रास्त्र के राज ठाकरे की तरह , अभी बहुत लोगो को साथ लाना है ! बहुत प्रयाश करना है ! अभी हमारी सेलेब्रिटी और देश द्रोहियों की सेलेब्रिटी कही जादा है ! एशे कई बड़े आयोजन करने की आवस्यकता है जिशसे स्कूल , कालेज , गाव शहर गली बश्ती धधक जाए और अपना हक़ पापियों के हलक से निकल ले ॐ जय भारत ****
पीताम्बर 09868420933
विजय जीआपको एक उदाहरण देता हूँ, बुरा मत मानना,
मेरा एक मित्र और मैं आज से कई साल पहले कानपूर में एक ब्रूस ली की फिल्म देखने एक सिनेमा में गए थे, उस समय ब्रूस ली जैसा सुपरफास्ट योद्धा केवल किताबों या इतिहास के पन्नों में ही था, हालांकि वो अपने वास्तविक जीवन में कितना सुपरफास्ट था वो भी बाद में पता चला, लेकिन मुद्दा ये है की फिल्म देखने के बाद मैं और मेरे दोस्त उस सुपरफास्ट तेजी में इतने अभिभूत हो गए की हमारे अन्दर ब्रूस ली की आत्मा समाने लगी मैंने किसी तरह अपने आप को नियंत्रित कर लिया लेकिन मेरा मित्र ब्रूस ली की आत्मा से आवेशित हो गया सिनेमा से घर तक और फिर घर से शाम को हलवाई की दूकान तक और शाम को मोहल्ले की नुक्कड़ सभा में वो बात बात में केवल कराटे चौप्स और ब्रूस ली से सम्बंधित ही सारे कार्य करता रहा, लेकिन अंत में जब भूत उतरा तो समझ आया की सत्यता क्या है?
आप के ऊपर भी पूंजीवाद की आत्मा आवेशित हो गयी लगता है, उस पर ये दो पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिखी किताबों का मुल्लमा चढ़ गया है? ये कब उतरेगा ?यहाँ कोई भी समाज वाद को अच्छा नहीं कह रहा है, और कोई कम्युनिज्म को भी नहीं सपोर्ट कर रहा है, लेकिन आप पता नहीं क्यों इस बात को समझ नहीं पा रहे है की पूँजी वाद भी फेल हो चूका है, लेकिन साथ ही पूँजी वाद के परिणाम इतने घटक हैं जो विश्व के, मानसिक, पर्यावरणिक और अध्यात्मिक संतुलन को खतरनाक आघात पहुंचा है.भाई विजय जी जिस शब्द कॉम्पिटिशन को आप इतना जोर जोर से दोहरा रहे हैं, ज़रा अपने महान पुरुषों , विचारकों, या समाज शास्त्रियों, को पूछ लें ,प्रतिस्पर्धा से केवल द्वेष, वैमनस्य, भेद और छल आधारित बलात कर्म उत्पन्न होते हैं.कम्पीटीशन का आपको उदाहरण दूं- ??महाभारत,एक और महाभारत चाहते हो क्या भैया?बुरा लगा हो तो माफ़ करना लेकिन ध्यान रखना पूँजी वाद भारत को कहीं का नहीं छोड़ेगा.मैं दूसरी प्रविष्टि इसलिए नहीं प्रेषित कर रहा हूँ क्योंकि चर्चा के शुरुआत में ही कहा था की जो भी सज्जन भाग लें वे अपने मन से पूँजी वाद का पूर्वाग्रह निकाल दें.--
तमसो माँ ज्योतिर्गमय,--शशांक
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प्रतिस्पर्धा में स्वास्थ्य ढूढ़ रहे हैं क्या ?
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अलक्ष्मीघ्नम् सूक्त
Social Responsibility
ऋग वेद 10.155 दारिदृय नाशन विषय
presented by Er. Subodh Kumar
Alakshminashan
Sookt
Social awareness सामाजिक चेतना
Rig Ved 10.155 Sookt is Alakshmi Nashan Sookt.
It explains that personal Greed, of being blind to human
suffering in Society and not sharing one’s blessings with Society is the root
cause for disparity, poverty and suffering in society. Such societies are self destructive- not sustainable. Economic system based on
Cow is the only remedy. It reduces Food Miles to ensure most universally available healthy unadulterated organic food and simple life style for every body.
( Lest an impression is created that by promoting this rural culture, we are not taking in to account the developed Urban society, It is pointed out that the Vedic strategies take very good account of urban and developed city life and strategies on that subject also follow very clearly)
Social responsibility सामाजिक दायित्व
1.अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदान्वे !
शिरिम्बिठस्य सत्वभि स्तोभिष्ट्वा चातयामसि !! ऋ10.155.1
Banish the attitudes to be miser and selfish, of not being disposed to give money in charity, and not sharing their bounties with others. Being blind to suffering & deprivation brings misery upon society. The resulting deluge of famines and social misery drowns every one
Charity & Simple Living दान और सात्विक जीवन
2. चत्तो इतश्चत्तामुतः सर्वा भ्रूणन्यारूपी !
अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्णशृङ्गोदृषन्नहि !! ऋ10.155.2
The life style of not sharing with others around us is destroyer of all creative activities before their inception. Strong social leadership should work to destroy such insensitive tendencies
Consumerist Society भोगवादी स्वार्थी समाज
3. अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो पारे अपूरुषम् !
तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम् !! ऋ10.155.3
Such unguided people are like an aimlessly floating piece of wood in the river of the society.
It becomes the duty of elders in society to provide guidance to such people.( to motivate them by setting an example in public welfare)
Social Discontent सामाजिक असंतोष
4. यद्ध प्राचीर्जगन्तोरो मण्डूरधणिकीः!
हता इन्द्रस्य शत्रवः सर्वे बुब्दुदयाशवः!!ऋ 10.155.4
When such abominable situations, potentially violent, forces which cause poverty by selfishness of some in society get to be known, they require to be crushed very strongly by positive social forces.
Cow based Decentralized Economy- गो आधारित अर्थ व्यवस्था
5.परीमे गामनेषत प्र्यग्निमहृषत !
देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ आ दधर्षति !! ऋ 10.155.5
When society takes steps to rehabilitate cows in local households and enables people to grow their own agriculture produce, no body can stop public prosperity.
भवदीय ,
सुबोध कुमार
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राजेश जी
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ॐ
शशांक जी
आप चर्चा जरी रखेंगे यह जान कर वहुत प्रसन्नता हुई और राहत मिली |
विजय जी
मुझे ऐसा लगा था की शशांक जी आपकी वजह से चर्चा छोड़ रहे है इसलिए मुझे वह सब कहना पड़ा और शायद में कुछ ज्यादा कह गया | जैसा शशांक जी ने कहा , हम सब एक परिवार हैं और यदि मेरी किसी बात से आपको कोई कष्ट हुआ हो तो क्षमा करियेगा |
जय भारत
राजेश
2010/11/22 शशांक उपाध्याय <sanaata...@gmail.com>
राजेश जी
क्षमा न मांगें. हम लोग एक परिवार हैं. मैं कोई ज्ञानी नहीं सब ज्ञान उधार है कभी ऋषियों का तो कभी गुरुओं का तो कभी आप जैसे भाई बहिनों का.
विजय जी बहुत ही लम्बे समय से आन्दोलन से जुड़े हुए हैं और विजय जी के व्यकत्व्य देखते हुए इनकी देश निष्ठा पर और देश के प्रति शुभ चिंतन पर चिड़िया के पंख के हजारवें भाग के बराबर भी संदेह नहीं है. बस मेरा तो ये ही मत है भैया इस देश को बड़ा दूर जाना है, अपने ही लोगों को नहीं अपितु संसार के समस्त लोगों को परमानंद के स्रोत तक लेजाने का द्वार बनना है. इसलिए बहुत जतन से करना है जोकरना है. फेल तंत्र नहीं लाना. अपितु दुनिया को श्रेष्ठ तंत्र देना है. अभी तक ऐसा नहीं हुआ की भारत में ज्ञान उल्टा आये.
और आगे भी ऐसा नहीं होगा. ज्ञान भारत से ही जाएगा.मैं जारी रहूँगा और विजय जी से भी करबद्ध अनुरोध करूंगा की चर्चा में बने रहें.जय भारत----
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
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शशांक
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सदस्य गणोंबीच में थोडा विषयांतर हो गया इसलिए सभी को विषय पर लाने के लिए सूचित कर दूं की हम चर्चा उस तत्व की कर रहे थे,जो की भारत का मूल तत्व (चरित्र) है. जिसके बिना भली भाँती समझे कोई भी तंत्र ऊपर से आरोपित करने पर विकृति ही होगी,जैसे आम के पेड़ में किसी बाहरी आवेषण से अमरुद के बीज को आरोपित करने की कोशिश की जाए तो न तो आम ही रहेगा न अमरुद ही.
वैसे ही कुछ दुर्दशा भारत की देखने को मिलती है आजकल. जिन लोगों को विषयांतर हो गया हो वे नीचे की प्रविष्टि को फिर पढ़ लें और इसके बाद
अगली चिट्ठी में आगे की चर्चा आ रही है. कृपया अनुरोध है अगली प्रविष्टि तक अतिआवश्यक न हो तो टिप्पणियों को बचा कर रखें.अगली प्रविष्टि के बाद टिप्पणियां करेंगें.पिछली प्रविष्टि इस प्रकार संक्षेप में------------------------------------------------------------------------------------------प्रथमतया हमको *ये जान लेना चाहिए की हम कौन हैं, तभी हम जान पायेंगें हम कहाँ हैंतो हमें भारत के बारे में जान लेना चाहिए की इसका नैसर्गिक चरित्र (तत्व) है क्या?
इस चरित्र (तत्व) को जानने के लिए बहुत ही सरल कुंजी है की (*फल की पहचान उसके बीज से और बीज की पहचान उसके फल से होती है* )
तो भारत का चरित्र क्या है* इसका संकेत हमें लग गया. मानव मात्र को उस पथ पर ले जाने वाले पथ की भूमिका जो उसे अनंत आनंद के स्रोत तक ले जाये.
अमिट और अनंत स्रोत की भूमिका भी अनंत और अमित होनी चाहिए *इसलिए ये भारत भी और इसकी सभ्यता भी इसी एक कारण से ही अमिट और अनंत है*.*भारत का ये जो चरित्र है* जो मानव मन को सदैव इसी और अग्रसर करने में लगा हुआ है की *तुम अमृत पुत्र हो न की केवल भौतिक पञ्च तत्वों से बने मिटटी के पुतले*.
*इसी चरित्र के कारण ही भारत और इसकी सभ्यता काल पर विजय पाकर सदैव अक्षुण्ण और सनातन रही है*.*अगर इस चारित्रिक गुण से अगर भारत हटा या यूँ कहें की भारतीय ( भारत का राज्य, समाज और मानव समूह ) हटा तो काल और परिथिति इस संसार में क्या हो सकती है,*
सरकार ( अब हम सभी इसे राज्य कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा ) के दो भाग होते हैं १) राज्य तत्व २) राज्य रूप.
राज्य तत्व की अपेक्षा राज्य रूप बदलने से कुछ परिवर्तन नहीं आता राज्य रूप बदलना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन
उसे करने के लिए समाज एवं राज्य समूहों पर अतिरिक्त समय का एवं अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त व्यवथापन का बोझ बढ़ जाता है जिस कारण समाज का
किसी भी प्रकार के तंत्र पर से विश्वास उठने सा लगता है. हमारा प्राचीन ज्ञान हमें बताता है की तंत्र कोई विफल नहीं होता अपितु उसके देशकाल निमित्तों और उस तंत्र को चलाने वालों के विपरीतार्थी अर्थ होने से तंत्र विफल होता है.
१) राज्य तत्व २) राज्य रूप.इन दोनों का गहन विश्लेषण आगे आने वाली प्रविष्टियों में होगा-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------जय भारत--
तमसो मा ज्योतिर्गमय--शशांक
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आपकी अनुमति हो तो आगे बढूँ. लेकिन जब तक कम से कम तीन चार प्रविष्टि पूरी नहीं हो जाएँ तब तक जिज्ञासा का तो स्थान है लेकिन वाद विवाद का नहीं.
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>> *पीर मरे , पैगम्बर मरी हैं , मरी हैं जिंदा जोगी
>> राजा मरी हैं , परजा मरी हैं , मरी हैं बैद और रोगी
>> चंदा मरी हैं , सूरज मरी हैं , मरी हैं धरनी अकासा
>> चौदह भुवन के चौधरी मरी हैं , इनहूँ की का आसा
>> नौ हूँ मरी हैं , दस हूँ मरी हैं , मरी हैं सहज अठासी
>> तेतीस कोटि देवता मरी हैं , बड़ी काल की बाजी
>> नाम अनाम अनंत रहत है , दूजा तत्त्व न होई
>> कहे कबीर सुनो भाई साधो , भटक मरो मत कोई *
>>
>> *आप कहेंगे इस आध्यात्मिक छंद का देश के अव्यवस्था से क्या लेना देना है ?*
>> *है |*
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B P S Chandel 09803512991
VISHIST SADASHY
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शशांक--
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From: | pankaj agarwal <pankaj...@gmail.com> |
To: | bharatswab...@googlegroups.com |
Date: | 04/05/2011 08:11 AM |
Subject: | Re: [BST] Re: भारत - कौन सा पथ अपनाएं? एक चिंतन चर्चा BHARAT - WHICH PATH TO TAKE? A CONTEMPLATING DISCUSSION . |
Sent by: | bharatswab...@googlegroups.com |
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