"अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"......भारत में अहिंसा के पुजारी का ढोंग करने वाले महात्मा गाँधी ने हिन्दुओ की सभा में हमेंशा यही श्लोक पढते थे लेकिन हिन्दुओ को कायर रखने के लिए गांधी इस श्लोक को अधूरा ही पढ़ता था .

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MahanDeshBharat

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Jan 11, 2013, 1:38:23 AM1/11/13
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""अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"

(अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है)

Ahimsa Paramo Dharma Dharma himsa tathaiva cha,, 
(Non-violence is the ultimate dharma. So too is violence in service of Dharma).

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भारत में अहिंसा के पुजारी का ढोंग करने वाले महात्मा गाँधी ने हिन्दुओ की सभा में हमेंशा यही श्लोक पढते थे लेकिन हिन्दुओ को कायर रखने के लिए गांधी इस श्लोक को अधूरा ही पढ़ता था जिससे हिन्दुओ का धार्मिक खून उबल न पड़े. इसमें कोई शंशय नहीं की अहिंसा बहुत ही स्वीकार्य और महान सोच है परन्तु उसी के साथ हिन्दुओ / सनातनियो को अपने धर्म की रक्षा (राष्ट्र धर्म,मानवता, प्रकृति, कर्त्तव्य रक्षा, समाज रक्षा, गृहस्थ रक्षा यानी जितने धार्मिक कर्तव्य हैं ) के आड़े आने वाली हर बाधा की समाप्त करने के लिए किया गया आवश्यक  हिंसा उतना ही श्रेष्ठ है. अपने बंधू-बान्धवो की रक्षा राष्ट्र रक्षा का एक भाग जिसमे यदि हिंसा आवश्यक है तो करना श्रेष्ठ है.
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ध्यान रहे ये श्लोक तब लिखे गए थे जब अब्रहमिक धर्म (ईसाई और इस्लाम) इस विश्व में आये ही नहीं थे, लेकिन सनातन धर्म इस जगत में कब से किसी को अंदाज़ा नहीं है और धर्म के लिए हिंसा का अभिप्राय सनातन धर्म के रक्षार्थ लिखा गया जिसमे एक तुलसी की भी पूजा की जाती है और दुष्कर्मो के लिए अनिवार्य मृत्यु का विधान है जिससे की समाज की भयमुक्त किया जा सके.

भारत में हमारी हिंदू विरोधी सरकारे भी हिन्दुओ को आधा ही श्लोक बताने की शौकीन हैं..कारन हिन्दुओ का शोषण जरी रखा जा सके.

इसीलिये इस श्लोक को नयी पीढ़ी के पास अंधाधुंध अग्रेषित करे. 

 अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथीव च |

जय भारत 

आपने स्वयं और अपने परिवार के लिए सब कुछ किया, देश के लिए भी कुछ करिये,

क्या यह देश सिर्फ उन्ही लोगो का है जो सीमाओं पर मर जाते हैं??? सोचिये...... 

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