आखिर पूर्ण स्वराज है क्या ...

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Surender Yadav

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Jun 14, 2013, 7:21:24 AM6/14/13
to jang_ba...@rediffmail.com, bharatswab...@googlegroups.com

स्वराज और स्वदेशी क्यों जरूरी ...

'स्वराज

'स्वराज' एक पवित्र शब्द है, एक वैदिक शब्द है -- जिसका अर्थ है स्वयं के ऊपर संयम के साथ शासन  । स्वराज्य शब्द स्वतंत्रता से अलग  है ।  स्वतंत्रता का अर्थ है सभी तरह के बन्धनों से मुक्त होना जबकि स्वराज्य में अपने ऊपर संयम का राज्य होता है ।


स्वराज्य  का अर्थ है -- लगातार सरकार के नियंत्रण से आजाद होना , चाहे वह विदेशी हो या देशी ।


ग्राम स्वराज्य से हमारा विचार है की -- गावं पूर्ण गणतंत्र हों, अपनी अधिकाँश महत्वपूर्ण  जरूरतों के लिए स्वयं पर निर्भर हो या फिर अपनी पडोसी गांवो पर निर्भर हों।


कुछ लोगो द्वारा अधिकार प्राप्त करने से सच्चा स्वराज्य नहीं आएगा।  बल्कि सच्चा स्वराज्य तभी होगा जब सभी को अधिकारिक सत्ता के दुरुपयोग का विरोध करने की शक्ति प्राप्त हो । दुसरे शब्दों में सच्चा स्वराज्य तभी आएगा जब लोगों में इतनी जनजाग्रति आ जाए  की वे गलत आदेशों  और कानूनों का विरोध कर सकें।

    जैसे की हरेक देश खाने, पीने और सांस लेने में सक्षम है उसी तरह प्रत्येक देश अपने मामलों का निपटारा करने में भी सक्षम हो । चाहे वे मामले कितने ही ख़राब तरीके से निपटाए जाएँ ।


पूर्ण स्वराज्य का अर्थ है -- देश के लाखों मेहनती लोगों को आर्थिक आजादी । और इन मेहनती लोगों का किसी भी तरह का आर्थिक शोषण नहीं हो ।



यदि भारत को अहिंसा के रास्ते पर जाना है तो हमारा सुझाव है की भारत की सभी व्यस्थाओं का  विकेंद्रीकरण होना चाहिए । केन्द्रीयकरण को चलाने में हिंसां होती ही है ।


पुरे भारत को ग्रामीण स्तर पर व्यस्थित किया जाए तो भारत पर विदेशी हमलों का खतरा कम होगा । लेकिन हम ग्रामीण भारत थल सेना, वायु सेना और जल सेना से सुसज्जित होना चाहिए । शहरी भारत पर विदेशी हमलों का खतरा अधिक है ।


व्यस्था का केन्द्रीयकरण अहिंसात्मक समाज के साथ मेल नहीं खाता  है ।


वास्तविक प्रजातंत्र इसमें नहीं हो सकता की केंद्र में कुछ 20-25 लोग मिलकर फैसले करें। वास्तविक प्रजातंत्र तो गावं -गावं के लोगों द्वारा मिलकर किये गए फैसलों में ही हो सकता है ।


आज सत्ता और शक्ति के केंद्र दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहर बने हुए हैं। जबकि ये शक्ति और सत्ता केंद्र भारत के 7 लाख गावों में होने चाहिए ।


स्वतंत्रता नीचे गावं से शुरू होनी चाहिए । अतः प्रत्येक गावं अपने आप में गणतंत्र होगा । उस गावं की पंचायत को फैसले करने के सम्पूर्ण अधिकार होंगे । प्रत्येक गावं अपनी समस्याओं का समाधान करने और अपनी व्यस्थाओं को चलाने में सक्षम होगा । चाहे वह गावं की सुरुक्षा का मामला ही क्यों न हो ।


ग्राम पंचायतों को जितनी अधिक सत्ता और शक्ति होगी उतनी ही अधिक बेहतर लोगों की जिन्दगी होगी ।


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यदि सब गावं सम्पूर्ण स्वालंबी हो जाएँ तो, कोई भी परेशानी नहीं होगी ।


सभी गावों को अन्न, वस्त्र  तथा अन्य बुनियादी जरूरतों में सम्पूर्ण स्वालंबी होना चाहिए ।


हांलाकि हमारा लक्ष्य गावों को पूर्ण स्वालंबी बनाने का है , लेकिन यदि गावं कुछ वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकते तो उन वस्तुओं  को दुसरे गावों अथवा शहरों से मंगाया जा सकता है ।
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स्वराज्य सरकार की सबसे बढ़ी विफलता होगी यदि गावं के लोग अपने दैनिक जीवन के हरेक काम और व्यस्था के लिए सरकार के ऊपर निर्भर हों।


हमारे आदर्श गावं में बुद्धिमान लोग रहेंगे । वे गन्दगी और अँधेरे में जानवरों की तरह से नहीं रहेंगे । स्त्री और पुरुषो को इस बात की आजादी होगी की अपनी जरूरत के सभी साधनों को रखने के लिए समर्थ हों । गावं में कोलरा , प्लेग या चेचक जैसी कोई बीमारी नहीं होगी ।  गावं में कोई भी आलसी नहीं होगा । कोई भी भोग-विलासी नहीं होगा । प्रत्येक व्यत्कि को अपनी हिस्से का श्रम करना होगा । रेलवे, पोस्ट और अन्य साधनों पर भी विचार करना संभव है ।


हमारा उद्देस्य ग्राम स्वराज्य की एक रुपरेखा प्रस्तुत करना है जहां की वास्तविक लोकतंत्र हो जो व्यत्किगत स्वतंत्रता पर आधारित हो । प्रत्येक व्यक्ति अपनी  सरकार का शिल्पी होगा । अहिंसा का कानून उस सरकार को चलाएगा ।


गावं में प्रत्येक व्यक्ति को बारी - बारी से गावं की सुरुक्षा का कार्य करना होगा ।


ग्राम सरकार  ग्राम पंचायत के द्वारा चलायी जायेगी । ग्राम पंचायत में 5 सदस्य होंगें । ग्राम पंचायत का चयन गावं के व्यसक स्त्री और पुरुषों के द्वारा किया जाएगा ।जो प्रत्येक वर्ष में चुनी जायेगी । जो उम्मेदवार चुने जायेंगे, उनमे कुछ बुनियादी योग्यता होनी जरूरी है । इसी पंचायत को ही सभी शक्ति और अधिकार होंगें । जैसे न्याय करने, सजा देने, कानून नियम बनाने, प्रशासनिक व्यस्थाओं को सँभालने आदि के सभी अधिकार पंचायत को ही होंगें । इस काम-काज में केंद्रीय या राज्य सरकारों  का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा । प्रत्येक गावं इसी तरह का गणतंत्र होगा । अहिंसा आधारित समाज में गावं के सभी समूह एक दुसरे को सहयोग कर्रेंगे । ये सहयोग स्वेच्छा से होगा ।


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प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका चलने लायक सम्मानजनक रोजगार मिलेगा । यह आदर्श तभी पूरा हो सकता है जब उत्पादन का तंत्र और सारे संसाधन लोगो के नियंत्रण में रहें ।


हमारे देश के लोगों की भयंकर गरीबी का कारण है की हमारा समझ अर्थव्यस्था और जीवन में स्वदेशी के सिधान्तो और आदर्शो से बहुत दूर चला गया ।


स्वदेशी 

स्वदेशी एक धार्मिक अनुशासन है जो कितनी ही दुखों और कष्टों के बावजूद अपनाया जाना चाहिए ।


मानवता और प्यार को धारण कर सके, ऐसा एक ही सिधांत है स्वदेशी ।


प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने का अधिकार है, इसलिए रोटी-कपडा-मकान की जरूरतें पूरी करने के लिए सभी जरूरी साधन पाने का भी मनुष्य को अधिकार है । इस साधारण-सी बात के लिए हमें अर्थशास्त्रियों के नियमो और सिधान्तों की जरूरत नहीं है ।


हमे इस बात का पूर्ण विश्वास है की भारत को सच्ची आजादी पानी है और उसे बचाए रखना है तो भारतीय लोगो को गावों और झोपड़ियों में ही रहना होगा, न की शेहरो और महलों में । भारत के करोरों लोग कभी भी महलों और शहरों में नहीं रह पायेंगे।
    यदि ऐसा हुआ भी तो इसके लिए भयंकर हिंसा और असत्य का सहारा  लेना पड़ेगा ।



हम मानते है के सत्य और अहिंसा के रास्ते के अलावा और कुछ भी नहीं है जो मानव जाती के लिए हितकर हो । गावं के साधारण और सादगीपूर्ण  जीवन में ही यह सत्य और अहिंसा चल सकती है । यह सादगी सबसे अधिक चरखा में ही मिलती है । हमे यह कहने में कोई डर  नहीं है कि आज दुनिया गलत रास्ते पर जा रही है, यह भी हो सकता है कि भारत भी उसी गलत रास्ते पर जाए और उस कहावत की तरह जिसमें यह कहा जाता है की 'पतंगा उसी लौ में जल जाता है जिसके नजदीक वह सबसे अधिक नाचता-डोलता है" । यह मेरा परम कर्त्तव्य है की में अपने जीवन की आखिरी सांस तक भारत को उस गलत रास्ते पर जाने से रोकू ताकि भारत के साथ दुनिया को सर्वनाश  के रास्ते से बचा सकू ।



यूरोप में भीमकाय फैक्टरिया  और विशाल हथियाओ का जखीरा एक दुसरे के साथ इतने जुड़े हुए है की इन्हें अलग करना संभव नहीं है । यदि इनमे से एक का अस्तित्व समाप्त हो तो दुसरे का रहना सम्भव नहीं है । अहिंसा आधारित सभ्यता का रास्ता तो भारतीय ग्राम स्वराज्य से ही होकर ही जाता है ।


राजनैतिक स्वतंत्रता का अर्थ हमारे लिए ब्रिटेन के हाउस आफ कोमंस की  नक़ल नहीं है ।


हमारा स्वराज्य भारतीय सभ्यता के गुण-स्वभाव  को अक्षुण रखने के लिए है ।


बाहरी स्वतंत्रता और भीतरी स्वतंत्रता दोनों ही सामान अनुपात में होगी । बाहरी स्वंत्रता तो हम प्राप्त करेंगे लेकिन भीतरी  स्वत्रंत्रता तो अन्दर से ही किसी  विशेष क्षण पर हमे विकसित करनी होगी । यदि स्वतंत्रता का यह सही द्रष्टिकोण है तो हम सभी को अपनी मुख्य शक्ति आतंरिक सुधर में लगानी चाहिए ।
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हम मानते है किसी देश के विकाश में यदि कच्चे माल और प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुर इस्तेमाल हो  तथा वहां के मानवीय श्रम की उपेक्षा की जाए, तो ऐसा विकाश असंतुलित ही होगा ।


भारतीय श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग और संसाधनों का उचित बटवारा ही भारत के विकाश की सही योजना है ।


यदि मजदूरों को अहिंसा रास्ता समझ में नहीं आये तो अपनी व्यासायिक सुरुक्षा के लिए और आर्थिक शोषण  के विरूद्ध हिंसा का भी सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे ।


आज जो भी देश आंशिक रूप से प्रजातांत्रिक है वे या तो पूरी तरह  से सर्व सत्तावादी (निरंकुश) हो जायेंगे, या यदि वे इमानदारी से प्रजातांत्रिक होने की कोशिश करेंगे तो साहस के साहस  से साथ अहिंसा के रास्ते पर ही जायेंगे । यह कहना  बहुत ही गलत है की अहिंसा सिर्फ व्यक्तियों द्वारा ही व्यवहार में लाये जा सकती है, राष्ट्रों के द्वारा नहीं । राष्ट्रों द्वारा भी अहिंसा निभाई जा सकती है , क्योकिं राष्ट्र व्यक्तियों के द्वारा ही बनते है ।


आजाद भारत में अधिक मात्र में सरकार कर्मचारियों को रखने की क्षमता नहीं होगी । हमारे लाखो लोगो की भुकमरी की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों  पर खर्च करना संभव नहीं होगा ।


जहाँ साधन साफ़-सुथरे हो वहां इश्वर हमेशा अपना आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित रहता है ।


इसमें कोई शक नहीं की यूरोपियन सभ्यता की हवा भारत में भी बह रही है । लेकिन हमे विश्वास है की यह क्षणिक ही साबित होगी । एक समय आएगा की भारतीय सभ्यता फिर से पुनर्जीवित होगी ।


आधुनिक सभ्यता यूरोप के लिए अभिशाप है । भारत में भी यह अभिशाप साबित होगी । इस आधुनिक सभ्यता का ही सीधा परिणाम है -- युद्ध ।


आधुनिक सभ्यता को दो बातो से ही व्याख्यायित किया जा सकता है : एक तो आधुनिक सभ्यता में क्रिया-कलाप निरंतर चलते रहते है , दुसरे यह आधुनिक सभ्यता समय-काल का सर्वनाश करने का उद्देस्य रखती है । इस आधुनिक सभ्यता में प्रत्येक व्यक्ति भयंकर व्यस्त दीखाई देता है । हमारे लिए यह बहुत खतरनाक लक्षण है, इस सभ्यता में प्रत्येक व्यक्ति अपने दो समय की रोटी कमाने में ही इतना व्यस्त है की उसके पास अन्य किसी बात के लिए समय नहीं है । इस आधुनिक सभ्यता ने लोगो को इतना भौतिकवादी बना दिया है की उनका ध्यान हमेशा अपने शरीर के आराम को बढ़ने वाले साधनों को कैसे बढाया जाए, इस्सी पर रहता है ।


भारत के शेहरो में जो अकूत सम्पति दीखाई देती है, वह अमेरिका और इंग्लैंड से नहीं आई  है, बल्कि हमारे देश के निर्धनतम लोगों के खून में से पैदा हुयी है ।


यदि मनुष्य को सिर्फ इतनी - सी बात समझ में आ जाए की गलत कानूनों को मानना मानवता के खिलाफ है, तो दुनिया की कोई भी शक्ति उसे गुलाम नहीं बना सकती है । यही स्वराज्य की कुंजी है ।

Jaimin Patel

unread,
Jun 15, 2013, 2:25:35 AM6/15/13
to bharatswab...@googlegroups.com
बहोत  बढ़िया विचार हे इसे अमल करना मुश्किल जरुर हे लेकिन नामुमकिन तो नहीं हे....


2013/6/14 Surender Yadav <surend...@gmail.com>

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Vicki Singh

unread,
Jun 15, 2013, 10:28:31 PM6/15/13
to bharatswab...@googlegroups.com
thanks for the information I really appriciate your effort ,

vicki


2013/6/15 Jaimin Patel <jaimin...@gmail.com>

Narendra Sisodiya

unread,
Jun 15, 2013, 11:23:54 PM6/15/13
to bharatswab...@googlegroups.com
आप में जो लोग Slides बनाना जानते हो वो मुझे संपर्क करे । मै करीब ३०० slides बनाना चाहता हूँ जिसमें डबल स्टैंडर्ड मीडीया और नेताओ को दिखाया जायेगा ।

जैसे
१) हज पर छूट पर कुंभ पर टैक्स
२) मुंबई सबका है, तो कश्मीर क्युँ नही ?
३) होली के पानी के लिये रोना, पर बकरीद और IPL पर मुँह में फेवीकोल डाले रखना ।
४) संतो की एक ही दिन में गिरफ्तारी, पर पाकीस्तानी ISI ऐजेंट बुखारी अभी तब खुलेआम घुम रहा है
५) जब हज कमेटी (http://www.hajcommittee.com/index.php?value=chairmen) में एक भी हिंदू नही है तो कुंभ मेले का प्रभारी "आजम खाँ" को क्युँ बना दिया गया ?

इस प्रकार और भी कई टोपिक है , जो google doc पर slides बना सके, वो संपर्क करे ।

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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│  http://narendrasisodiya.com
└─────────────────────────┘

Bhawani Gururani

unread,
Jun 16, 2013, 12:04:40 PM6/16/13
to bharatswab...@googlegroups.com
ॐ,
ऐसे सारे सवाल s(ick)lurist धूर्त नेताओं और उनके द्वारा पालित पोसित पार्टियों और उनके पिछलग्गू
चमचों और दुष्ट  देशद्रोहियों की कब्र खोदने के लिए काफी हैं , लेकिन भा ज पा के नेताओं की समझ में
ये बातें क्यों नहीं आती और वे सम्प्रदाइकता का जुआ कंधे पर ढोने के लिए मजबूर क्यों हैं , यह बात
समझ में नहीं आती . क्यों नहीं यह पार्टी देश की जनता को इनकी धूर्तता से अवगत कराती , कालें अग्रेजों
को  ला बुरा कहने के बजाय उनकी इस कारगुजारी , उनके  दुग्गल्लापन ,उनकी तुष्टिकरण की पोल खोल
कर देश की जनता को जाग्रत करने के प्रयाश करे तो लोग ज्यादा प्रभावित होंगें .
जय भारत


From: Narendra Sisodiya <nare...@narendrasisodiya.com>
To: bharatswab...@googlegroups.com
Sent: Sunday, 16 June 2013 8:53 AM
Subject: Re: [BST] आखिर पूर्ण स्वराज है क्या ...

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