श्री ओक ने कई वर्ष पहले ही अपने इन तथ्यों और प्रमाणों को प्रकाशित कर
दिया था पर दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से
अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो
भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की
शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है।
क्या कभी सच्चाई सामने आ पायेगी?
श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो
महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण
(भावार्थ) इस प्रकार हैं -
नाम
1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी
शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है।
ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।
2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं,
अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी
इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो।
3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई
गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है
- पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम
मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय
मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता।
4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि
ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़
होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz
होना था)।
5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख
'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत
संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और
औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर
भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग
किया है।
6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से
यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़,
एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों
या मंदिरों में दफ़नाया गया है।
7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई
तुक ही नहीं है।
8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता
था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत
है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
मंदिर परंपरा
9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश
है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।
10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के
समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के
रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी
मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता।
11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे
में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे
में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता
है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है।
12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं,
हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।
13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि
प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा
हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले
गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है।
14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय
उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था
क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से
शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई।
15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में
शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है। ताजमहल में 'तेज-लिंग'
प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।
16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है।
यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों
में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने
में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ,
मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन
उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर
उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा
के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय
मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम
से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून,
1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों
में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा
प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था।
प्रामाणिक दस्तावेज
18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में
स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर
के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-
आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना
जाता था।
19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है
कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल
इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह
शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व
अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी
था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे
मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत
के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक
बेतुकी बात है।
20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम
तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम
'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में
सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में
सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय
दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि
उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है।
इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये
फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी
विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि
शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत
मरम्मत करवाने की जरूरत थी।
21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को
जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों
(नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के
उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।
22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा
(मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों
से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत
जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं।
स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह
इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर
पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का
अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने
शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर
देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा
दिया।
23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान
मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में
शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और
शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती।
24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का
कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है।
इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये
केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां
संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था।
यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख
25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण
में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान',
जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया
था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल
चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने
केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा
अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप
देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये
ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने
और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे।
26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की
मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान
देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद,
वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय
स्थान होने की पुष्टि करते हैं।
27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि
आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक
उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक,
बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है।
28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर
मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस
समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था।
उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग
के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है।
29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to
West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा
प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद)
आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण
के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या
माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है।
संस्कृत शिलालेख
30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता
है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है
(वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में
संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को
ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास
स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन्
1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को
'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी
भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर
में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय
शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और
शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था।
शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports
(1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा
है, great square black balistic pillar which, with the base and
capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well
known, once stood in the garden of Tajmahal".
अनुपस्थित गजप्रतिमाएँ
31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत
शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल
प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को
लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस
में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की
टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक
एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के
पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और
उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ
से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि
गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों
वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।"
कुरान की आयतों के पैबन्द
32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में
खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के
मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है।
यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही
उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता।
33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर
बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत
ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के
उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक
प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है।
कार्बन 14 जाँच
34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन
प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो
टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों
को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है
और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी
पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय
से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।
वास्तुशास्त्रीय तथ्य
35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के
जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त
है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू
मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा
मंदिर का ground plan ताज के समान है।
36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना
हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है।
37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार
स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ
का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण
का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में
भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं।
38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है
क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके
लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा
बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या
तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के
अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ
बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की
अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की
सत्ता है।
39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का
का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में
नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है
जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक
पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा
बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य
व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि
वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती
से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी
समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक
पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या
का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश
विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक
है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के
कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर
ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर
वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं
है।
असंगतियाँ
40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और
आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को
सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर
मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक
समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के
आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया
जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने
लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे।
41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के
लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण
नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि
पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह
शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के
कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है।
42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी
पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे
में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल
फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ
संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त
किया जाता है।
43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता
था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के
लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या
कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम
कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों
में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था
इन गलियारों में भी है।
44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे
जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती
और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने
शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये
प्रेरित किया था।
45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक
वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की
लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का
होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य
वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के
निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस
बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले
स्थान पर कपट रूप से बनाया गया।
46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे
रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य
सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये।
47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका
दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग
पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था।
48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार
शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी
के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया
जाने लगा।
खजाने वाल कुआँ
49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें
पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने
वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि
खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों
के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ
खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग
सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली
शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को
पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से
छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी
है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है।
दफ़न की तारीख अविदित
50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो
उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही
दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में
इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है।
51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न
लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान
लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा
किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000
औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य
है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान
नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया?
आधारहीन प्रेमकथाएँ
52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल
हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम
प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण
के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया।
कीमत
53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं
उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी
कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक
होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है।
निर्माणकाल
54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान
लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके
निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि
उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती।
भवननिर्माणशास्त्री
55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी
अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़
मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि
एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं।
दस्तावेज़ नदारद
56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20
हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा
(design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls),
दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी
के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़
शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा
भी नहीं है।
57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा
सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर
करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे
भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी
और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है।
58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों
में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता
है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-
देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों
का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये
जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स
मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल
तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के
हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था।
59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी
यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है।
60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र
होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल
में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है
तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के
निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों
स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर
में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का
हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ
मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है।
61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन
निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है।
हिंदू गुम्बज
62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र
के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता
है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों
का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले
घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर
देते हैं।
63. ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। इस्लाम के गुम्बज
अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास
और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं।
64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है। यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका
मुख पश्चिम की ओर होता।
कब्र दफनस्थल होता है न कि भवन
65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक
स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे
गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया
गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के
ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया
जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल
तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से
बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके
ऊपर ताज का निर्माण किया गया।
66. ताज एक सातमंजिला भवन है। शाहज़ादा औरंगज़ेब के शाहज़हां को लिखे
पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन के चार मंजिल संगमरमर पत्थरों से
बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृतीय मुख्य कक्ष और तहखाने
का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल
कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और
मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल
अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये क्योंकि सभी प्राचीन
हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।
67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22
कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को
जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के
द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय
में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर
अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33
फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये
हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से
चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों।
68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई
बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी
ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके
भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य
को
देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान
शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे
मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के
शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र,
संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन
कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ
सफाई करने की नितांत आवश्यकता है।
69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी
दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन्
1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग
के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय
अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह
से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या
तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा
दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के
आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो
चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य
आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक
भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे
अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के
द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें
और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं।
शाहज़हां के पूर्व के ताज के संदर्भ
70. स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है।
शायद महमूद गज़नी और उसके बाद के मुस्लिम प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर
अपवित्र किया है परंतु हिंदुओं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव
की प्रतिष्ठा करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था।
शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के पवित्रता को
भ्रष्ट किया।
71. विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं,
"बाबर ने सन् 1630 आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से
मुक्ति पाई"। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था।
72. बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूँनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृतांत में
ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है।
73. बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक
मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत का जिक्र
करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ
साल पहले का होने का संकेत देते हैं।
74. ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दूरी में फैली हुई है। नदी के
पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं।
विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित
प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती
है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया।
75. यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो
वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में
अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के
गुम्बजदार भवनों में।
76. दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में
रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है।
इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी
का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने
वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप
में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान
रहे बनवाया नहीं था)।
77. शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से
निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक
कब्र बनवाया जावे।
78. मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष
योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे।
79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के
साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना
तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस
प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल
कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक
दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता
है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था।
80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में
उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये
आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता।
81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन
साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के
छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे
उड़ा सके?
82. जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई
विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत
के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है,
के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां
मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता?
83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का
कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया
जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था।
84. मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर
लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान
को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है।
85. शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत
मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त
शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य
बनाने वाली संवेदना है।
86. सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो
वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो
बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां
के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज
से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था।
स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने
की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे।
87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के
पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के
लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे
मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप
और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में
दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक
सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन
काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी
शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी
छुपाये रखा जावे।
88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय
कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया
देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते
तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी
हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था
इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।
89. ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों,
मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य
सुरक्षा व्यवस्था रही है।
90. पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये
हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने
का एक लिखित प्रमाण है।
91. नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियाँ, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और
प्राचीन हिंदू शव-दाह गृह है। यदि शाहज़हाँ ने ताज को बनवाया होता तो इन
सबको नष्ट कर दिया गया होता।
92. यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना
चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे
मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के
कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने
कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में
कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम
रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से
काम लिया था।
93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में
पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस
बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं।
94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप
में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने
तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया
है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही
इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही
विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी
व्यक्ति था।
95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग
विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के
सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को
चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक
भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के
शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ
तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का
सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया।
96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा
करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे।
97. ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू
गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात
है।
98. ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र
के लिया अनावश्यक है।
99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे
रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है।
100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार
ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय
क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है।
ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय
वाटिका के ठीक सीध में है।
101. ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय
उपयुक्त नहीं है।
102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है
जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने
अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को
देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में
अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके
बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे
और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से
शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी
ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग
कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे।
तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था
घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल
ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो
छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर
हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की
इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है।
103. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर
बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित
दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था।
104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक
प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक
सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी
युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और
क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे।
105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है
कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों
का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल
कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने
कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी
सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा
जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही।
106. जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग
में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते
हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये
सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध
भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है।
झूठे दस्तावेज़
107. ताज के गुम्बज की देखरेख करने वाले मुसलमानों के पास एक दस्तावेज़
है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं। इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर
'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है। कीन का
कथन एक रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल
को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो कि ताजमहल को बनाने
का श्रेय शाहज़हां को देता है झूठा ही माना जायेगा।
108. पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में
ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे तर्क या कम से कम
भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह
से मुस्लिम भवन है। उन्हें यह बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार
स्तंभों का होना आदि हिंदू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना
पक्ष रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंदू थे और
शायद इसीलिये उन्होंने हिंदू शैली से उसे बनाया। पर उनका पक्ष गलत है
क्योंकि मुस्लिम वृतान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers)
बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे, और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम
तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे।
किस प्रकार से अलग अलग मुस्लिम शासकों ने देश के हिंदू भवनों को मुस्लिम
रूप देकर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया इस बात का ताज एक आदर्श
उदारहरण है।
आशा है कि संसार भर के लोग जो भारतीय इतिहास का अध्ययन करते हैं जागरूक
होंगे और पुरानी झूठी मान्यताओं को इतिहास के पन्नों से निकाल कर नई
खोजों से प्राप्त सत्य को स्थान देंगे।
रवि शंकर यादव
aajs...@in.com
Mobile. 9044492606, 857418514
http://twitter.com/aajsamaj
http://aaj-samaj.blogspot.com
http://aapki-awaz.blogspot.com
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
http://www.bharatswabhimantrust.org - Bharat Swabhiman Official website
श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100
से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव
मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक के तर्कों और
प्रमाणों के समर्थन करने वाले छायाचित्रों का संकलन भी है (देखने के लिये
क्लिक करें)।
श्री ओक ने कई वर्ष पहले ही अपने इन तथ्यों और प्रमाणों को प्रकाशित कर
दिया था पर दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से
अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो
भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की
शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है।
क्या कभी सच्चाई सामने आ पायेगी?
श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो
महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण
(भावार्थ) इस प्रकार हैं -
नाम
1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी
शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है।
ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।
2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं,
अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी
इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो।
3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई
गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है
- पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम
मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय
मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता।
4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि
ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़
होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz
होना था)।
5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख
'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत
संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और
औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर
भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग
किया है।
6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से
यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़,
एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों
या मंदिरों में दफ़नाया गया है।
7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई
तुक ही नहीं है।
8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता
था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत
है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
मंदिर परंपरा
9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश
है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।
10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के
समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के
रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी
मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता।
11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे
में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे
में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता
है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है।
12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं,
हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।
13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि
प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा
हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले
गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है।
14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय
उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था
क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से
शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई।
15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में
शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है। ताजमहल में 'तेज-लिंग'
प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।
16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है।
यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों
में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने
में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ,
मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन
उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर
उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा
के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय
मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम
से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून,
1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों
में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा
प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था।
प्रामाणिक दस्तावेज
18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में
स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर
के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-
शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती।
24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का
कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है।
इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये
केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां
संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था।
यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख
25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण
में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान',
जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया
था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल
चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने
केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा
अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप
देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये
ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने
और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे।
26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की
मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान
देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद,
वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय
स्थान होने की पुष्टि करते हैं।
27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि
आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक
उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक,
बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है।
28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर
मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस
समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था।
उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग
के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है।
29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to
West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा
प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद)
आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण
के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या
माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है।
संस्कृत शिलालेख
30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता
है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है
(वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में
संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को
ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास
स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन्
1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को
'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी
भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर
में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय
शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और
शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था।
शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports
(1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा
है, great square black balistic pillar which, with the base and
capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well
known, once stood in the garden of Tajmahal".
अनुपस्थित गजप्रतिमाएँ
31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत
शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल
प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को
लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस
में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की
टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक
एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के
पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और
उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ
से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि
गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों
वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।"
कुरान की आयतों के पैबन्द
32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में
खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के
मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है।
यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही
उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता।
33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर
बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत
ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के
उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक
प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है।
कार्बन 14 जाँच
34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन
प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो
टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों
को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है
और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी
पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय
से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।
वास्तुशास्त्रीय तथ्य
35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के
जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त
है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू
मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा
मंदिर का ground plan ताज के समान है।
36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना
हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है।
37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार
स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ
का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण
का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में
भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं।
38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है
क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके
लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा
बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या
तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के
अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ
बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की
अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की
सत्ता है।
39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का
का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में
नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है
जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक
पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा
बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य
व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि
वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती
से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी
समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक
पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या
का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश
विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक
है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के
कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर
ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर
वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं
है।
असंगतियाँ
40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और
आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को
सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर
मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक
समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के
आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया
जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने
लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे।
41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के
लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण
नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि
पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह
शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के
कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है।
42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी
पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे
में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल
फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ
संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त
किया जाता है।
43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता
था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के
लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या
कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम
कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों
में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था
इन गलियारों में भी है।
44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे
जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती
और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने
शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये
प्रेरित किया था।
45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक
वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की
लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का
होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य
वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के
निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस
बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले
स्थान पर कपट रूप से बनाया गया।
46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे
रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य
सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये।
47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका
दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग
पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था।
48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार
शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी
के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया
जाने लगा।
खजाने वाल कुआँ
49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें
पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने
वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि
खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों
के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ
खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग
सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली
शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को
पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से
छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी
है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है।
दफ़न की तारीख अविदित
50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो
उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही
दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में
इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है।
51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न
लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान
लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा
किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000
औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य
है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान
नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया?
आधारहीन प्रेमकथाएँ
52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल
हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम
प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण
के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया।
कीमत
53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं
उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी
कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक
होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है।
निर्माणकाल
54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान
लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके
निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि
उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती।
भवननिर्माणशास्त्री
55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी
अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़
मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि
एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं।
दस्तावेज़ नदारद
56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20
हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा
(design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls),
दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी
के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़
शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा
भी नहीं है।
57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा
सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर
करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे
भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी
और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है।
58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों
में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता
है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-
देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों
का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये
जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स
मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल
तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के
हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था।
59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी
यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है।
60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र
होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल
में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है
तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के
निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों
स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर
में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का
हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ
मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है।
61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन
निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है।
हिंदू गुम्बज
62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र
के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता
है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों
का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले
घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर
देते हैं।
63. ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। इस्लाम के गुम्बज
अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास
और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं।
64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है। यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका
मुख पश्चिम की ओर होता।
कब्र दफनस्थल होता है न कि भवन
65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक
स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे
गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया
गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के
ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया
जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल
तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से
बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके
ऊपर ताज का निर्माण किया गया।
66. ताज एक सातमंजिला भवन है। शाहज़ादा औरंगज़ेब के शाहज़हां को लिखे
पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन के चार मंजिल संगमरमर पत्थरों से
बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृतीय मुख्य कक्ष और तहखाने
का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल
कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और
मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल
अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये क्योंकि सभी प्राचीन
हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।
67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22
कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को
जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के
द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय
में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर
अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33
फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये
हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से
चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों।
68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई
बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी
ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके
भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य
को
देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान
शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे
मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के
शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र,
संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन
कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ
सफाई करने की नितांत आवश्यकता है।
69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी
दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन्
1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग
के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय
अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह
से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या
तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा
पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं।
विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित
प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती
है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया।
75. यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो
वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में
अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के
गुम्बजदार भवनों में।
76. दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में
रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है।
इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी
का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने
वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप
में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान
रहे बनवाया नहीं था)।
77. शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से
निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक
कब्र बनवाया जावे।
78. मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष
योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे।
79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के
साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना
तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस
प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल
कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक
दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता
है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था।
80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में
उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये
आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता।
81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन
साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के
छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे
उड़ा सके?
82. जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई
विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत
के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है,
के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां
मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता?
83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का
कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया
जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था।
84. मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर
लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान
को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है।
85. शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत
मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त
शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य
बनाने वाली संवेदना है।
86. सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो
वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो
बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां
के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज
से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था।
स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने
की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे।
87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के
पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के
लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे
मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप
और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में
दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक
सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन
काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी
शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी
छुपाये रखा जावे।
88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय
कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया
देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते
तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी
हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था
इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।
89. ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों,
मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य
सुरक्षा व्यवस्था रही है।
90. पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये
हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने
का एक लिखित प्रमाण है।
91. नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियाँ, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और
प्राचीन हिंदू शव-दाह गृह है। यदि शाहज़हाँ ने ताज को बनवाया होता तो इन
सबको नष्ट कर दिया गया होता।
92. यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना
चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे
मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के
कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने
कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में
कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम
रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से
काम लिया था।
93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में
पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस
बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं।
94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप
में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने
तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया
है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही
इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही
विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी
व्यक्ति था।
95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग
विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के
सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को
चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक
भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के
शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ
तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का
सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया।
96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा
करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे।
97. ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू
गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात
है।
98. ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र
के लिया अनावश्यक है।
99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे
रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है।
100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार
ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय
क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है।
ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय
वाटिका के ठीक सीध में है।
101. ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय
उपयुक्त नहीं है।
102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है
जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने
अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को
देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में
अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके
बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे
और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से
शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी
ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग
कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे।
तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था
घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल
ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो
छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर
हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की
इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है।
103. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर
बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित
दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था।
104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक
प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक
सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी
युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और
क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे।
105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है
कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों
का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल
कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने
कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी
सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा
जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही।
106. जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग
में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते
हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये
सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध
भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है।
झूठे दस्तावेज़
107. ताज के गुम्बज की देखरेख करने वाले मुसलमानों के पास एक दस्तावेज़
है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं। इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर
'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है। कीन का
कथन एक रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल
को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो कि ताजमहल को बनाने
का श्रेय शाहज़हां को देता है झूठा ही माना जायेगा।
108. पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में
ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे तर्क या कम से कम
भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह
से मुस्लिम भवन है। उन्हें यह बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार
स्तंभों का होना आदि हिंदू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना
पक्ष रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंदू थे और
शायद इसीलिये उन्होंने हिंदू शैली से उसे बनाया। पर उनका पक्ष गलत है
क्योंकि मुस्लिम वृतान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers)
बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे, और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम
तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे।
किस प्रकार से अलग अलग मुस्लिम शासकों ने देश के हिंदू भवनों को मुस्लिम
रूप देकर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया इस बात का ताज एक आदर्श
उदारहरण है।
आशा है कि संसार भर के लोग जो भारतीय इतिहास का अध्ययन करते हैं जागरूक
होंगे और पुरानी झूठी मान्यताओं को इतिहास के पन्नों से निकाल कर नई
खोजों से प्राप्त सत्य को स्थान देंगे।
रवि शंकर यादव
aajs...@in.com
Mobile. 9044492606, 857418514
http://twitter.com/aajsamaj
http://aaj-samaj.blogspot.com
http://aapki-awaz.blogspot.com
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
http://www.bharatswabhimantrust.org - Bharat Swabhiman Official website
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
http://www.bharatswabhimantrust.org - Bharat Swabhiman Official website
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
54. इसी प्रकार से �¤
ekdam sahi kaha hai Prof Chetan aapne.vastavikta to yah hai ki mai bhi is tarah ki baten rakhta hoon to logon ko us men se communal ki boo ane lagti hai. yah bat alag hai ki mujhe iski koi parvah nahi hai. mai itna hi kahunga ki satya akhir satya hai, chahe aap ise kitna hi jhuthlaen. aur bahut kuch padhne ke bad bhi hamare desh ke kai Muslim unnhi akramak videshi Muslim shasakon ke gun gate hain. maine aise bhi log dekhe hain ki jo Aurangzeb ko Sant (saint) Aurangzeb kahte hain aur uski pooja karte hain.aisi soch rakhnevale is desh ke musalmanon ko kya atmanirikshan ki zaroorat nahin hai? agar unnhen aisa lagta hai ki zaroorat nahin hai to unnhe is desh men rahne ka koi adhikar bhi nahin hai. aur ek tippani abhi group par padhi, (kisne likkha yaad nahin) to uske bare men mai sirf itna kahunga ki is desh ko Hindu rashtra kahne men bhi koi harz nahin hai. Bharat to yah desh hai hi, lekin Hindu keval dharma na hokar ek vichardhara hai to aisi vichardhara ka anusaran karnevala rashtra Hindu rashtra nahin to aur kya hai? bhrashtachar ko to hatana hai hi, lekin keval bhrashtachar hi desh ki ekmatra samassya nahin hai. yahan sarkar ki taraf se kuch bhi bola jata hai, RSS jaisi sevabhavi sansthaon ki tulna SIMI jaisi atankvadi gaton se kee jati hai. sarkari adhikari atankvadiyon ke parivarvalon se milne jate hain. Jammookashmir men bank ravivar ki jagah Shukravar ko band rakkhe jate hai. Tamilnadu men sarkari TV aur Radio ke prasaran deshvandana ki jagah Yishuvandana se shuru hote hain. Pakistan ki team Bharat ko harakar Cricket match jitti hai to yahan ke Muslim khushiyon se sarabor ho jate hain. bina kisi saboot desh ke gruhmantri "Bhagva Atankvad ki charcha karte hain, itna hi nahin, aage chalkar yahi Hindu atankvad Lashkar se bhi zyada khatarnak hai aisa videshon me kaha jata hai. Mumbai hamla (26/11) tatha Hemant Karkare ke mrutyu ka karan bhi yahi Bhagwa Atankvad hi hai aisa kahne ki jurrat is desh ke tathakathit "seculars" karte hain. Shahrukh Khan, Arundati Roy jaise log kuch bhi bakte hain. yahan tak sunne ko aya hai ki 1965 ke Pakistan yuddha ke samay Desh ke Dilip Kumar jaise saput Pakistan ki madat kar rahe the. aur bhi kai sari aisi hi baten likkhi ja sakti hain. kya yah kam gambhir hai? agar in chizon ko sadharan mana jay to ham Bharat ka swabhiman kaise jagaenge. keval Bhrastachar hatao kahne se desh ki gardan oonchi nahin hogi. beshak yah badi samassya hai, lekin fir ek bar duhrata hoon, yah desh ki ekmatra samassya nahi hai yah anek samassyaon men se ek hai. yah kisi vyaktivishesh ko samne rakhkar kaha nahin hai, balki yah katu vastavikta hai. aur agar ham Bharat ka swabhiman lautane ki bat aur karya karna chahte hain to in baton ko nazarandaz nahi kiya ja sakta.mai yahan rukta hoon.DhannyavadSandesh---- Original Message -----
From: chetan kapadnisSent: Friday, December 24, 2010 9:32 PMSubject: Re: [BST] ताज महल या शिव मंदिर ?मुझे बहुत दुःख हुआ प्रतिक्रियावो को देखकर... सभी भाईयो ने पुरे सत्य शोध को मंदिर मस्जिद विवाद या धर्मं - धर्मं के बिच के विवाद का रंग दे दिया...
चाहे ताज मंदिर हो या मकबरा क्या फरक पड़ता है ऐसे बोलने वाले को निचे दिए गए प्रश्न का उत्तर देना पड़ेगा
- सत्य को - मतलब ताजमहल असल में क्या था - सामने लाना एवं जनता को सत्य से उजागर करना गलत है?- हम जूठा इतिहास अपने बच्चो क्यों पढाये?- मुझे पता है की आज भारत के सामने बहुत सारी चुनोवातिया है. लेकिन हमारी असली सांस्कृतिक प्रतिको के बारे में सच सामने रखना धर्मान्धता है? या फिर ये इतना गौण मुद्दा है? या ये भारत के स्वाभिमान से जरा भी नाता नही रखता है ?
- क्या सच को दबाया रखा जाया क्योकि उसके बहार आने से धार्मिक विवाद बढ़ेंगे?
- क्या सच को सामने लाने वाले इतने डरपोक है?- फिर हम तमसो माँ जोतिर्ग्मय क्यों कहे- किसी भी देश का इतिहास सिर्फ biography न रहके उसकी Autobiography होनी चाहिए. ये मूल फरक है सजीव और निर्जीव के इतिहास में जैसे की नेपोलियन एक आक्रान्ता, अत्याचारी, लुटेरा था इंग्लैंड एवं रूस के लिए. पर फ्रांस के लिए वो देवता सामान था. फ्रांस ने नेपोलियन का शव १९ साल बाद ब्रिटन से लाकर पारिस में बड़े सम्मान से दफनाया.- मतलब अगर हम कहते है की कोई ईमारत किसी आक्रान्ता ने बनवाई है तो उस वक्त की मन की भावना और जब हम कहते है की किसी भारतीय ने बनवाई है उस वक्त की भावना दोनों में जमीन- आसमान का अंतर है और वो रहना भी चाहिए.
- जब कोई पुरातन शिल्प की बात होती है तो सहज से कुछ सवाल सामने आते है - किसने बनवाई? कब और क्यों? इससे उस वक्त की संस्कृति की कला एवं वास्तु विज्ञानं के बारे में पता चलता है. अगर हम उपरी सभी प्रश्न भूल जाये तो क्यों मतलब बनता है उस ईमारत को देखने में? अगर किसी को अपने पूर्वजो एवं उनके कर्तुत्वो के बारे में गर्व एवं अभिमान नही होना आलोचना करने योग्य है. अगर कोई कहता है की ताजमहल आक्रान्ता शाहजहाँ ने बनाया है (और जबकि वो गलत है) जिसने मेरे देश को सालो तक लुटा तो मुझे गर्व किस बात पर होना चाहिए? शाहजहाँ ने कई स्त्रियों के साथ बलात्कार करके उनको पीड़ित किया, लुटा और ऐसी ५००० स्त्रियों को बंदी बनाकर रखा तो उसके बारे में मै क्या गर्व महसूस करू?- धार्मिक विवाद बढ़ेंगे इस आधार पर सत्य को छुपाना क्या मतलब रखता है- अगर कोई प्रश्न पूछता है की ताजमहल किसने बनवाया तो क्या आप कहेंगे - भाई देखो इससे धार्मिक विवाद बढ़ेंगे... अमन को धक्का पहुचेगा इसलिए हमने तय किया है की हम चुप बैठेंगे या फिर शाहजहाँ - मुमताज की लव स्टोरी को सुनो
- अगर हम इतने सीधे शैक्षणिक एवं पुरे प्रमाण वाली समस्यावो का समाधान नही निकाल सकते है तो भारत के सामने वाली बड़ी बड़ी चुनोवातियो का समाधान कैसे कर पाएंगे ?- अगर सत्य स्वीकार नही है तो कृपया सत्यमेव जयते लिखना कहना बंद कर दे
- मुझे बताईये की छत्रपति शिवा ने क्या गलत किया था मुस्लिम अक्रंतावो से लड़कर? क्या उससे communal harmoney disturb हुयी थी ?कृपया सत्य के आधार पर ही आपका अभिप्राय लिखे. केवल बहस करना मेरा मकसद नही... मेरी इच्छा है की सत्य सामने आना चाहिए... नाकि विवाद बढ़ाना... आशा है की मुस्लिम भाई गौर से सोचेंगे... आक्रान्ता मुस्लिम और भारतीय मुस्लिम दोनों के बिच का फर्क स्वामी जी भी कह चुके है ...
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
--
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज प�¤
रवि शंकर यादव
aajs...@in.com
Mobile. 9044492606, 857418514
http://twitter.com/aajsamaj
http://aaj-samaj.blogspot.com
http://aapki-awaz.blogspot.com
On Dec 28, 11:01 am, dehydratedpaani _ <dehydratedpa...@gmail.com>
wrote:
> Koi fayda nahi hai inko samjah kar manzoor bhai. aap inko ignore karein.
> unko apne mandir-masjid ki duniya mein masgul rehne dijiye. iss desh ki
> sabse badi samasya hai brahstrachar, angrezi-karan, aur kala dhan. par inn
> ko mandir-masjid ke muddo mein hi maza aata hai. best thing is to leave them
> in their own world. lets concentrate on rajiv ji's and swamiji's agenda.
> mandir-masjid is not agenda of bharat swabhiman.
>
> Jai Bharat.
>
> 2010/12/28 Manzoor Khan Pathan <manzoor.khan....@gmail.com>
>
> > हेलो भाई साहेब ,
>
> > हम यहाँ गड़े मुर्दे उखाड़ने नहीं बैठे है . गड़े मुर्दे उखाड़ने
> > से कुछ हासिल नहीं होगा . भूतकाल को दुनिया की कोई ताकत बदल नहीं
> > सकती . न तो तुम और हम भूतकाल में थे और न ही बहुत लम्बे समय
> > भविष्य में जिन्दा रहेंगे . और इन बातों से कुछ हासिल नहीं होने
> > वाला . सिर्फ अपने दिल की भाणास निकाल लोगे और क्या .
>
> > हिन्दुस्तान के भविष्य की नई तस्वीर क्या हो और हम भारत स्वाभिमान
> > के लक्ष्य को कैसे प्राप्त करे और हमारा योगदान क्या हो इसके लिए
> > इकट्ठे हो रहे है . हम भारत स्वाभिमान के तहत अब क्या योगदान कार
> > सकते है उसपे विचार करो न की ये की इस राजा ने क्या किया उस
> > बादशाह ने क्या किया.
> > ---
> > Warm Regards
>
> > Manzoor Khan Pathan
>
> > Contact Numbers : 92528-84207
>
> > क्या आप रुपये 280 लाख करोड़ प्राप्त करना चाहते हो? यदि हाँ तो रोजाना रात 8
> > .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चेंनल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक
> > संस्कार चेनल देखिये
>
> > Do you want Rs. 280 Lakh Karod? If yes, see AASTHA Channel at night from
> > 08-00 PM to 9.00 PM and SANSKAR Channel from 9.00 PM to 10.00 PM
> > ----
> > Manage emails receipt at
> >http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
> > To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
> >http://www.rajivdixit.com- Rajiv Dixit audio and videos lectures.
> >http://www.bharatswabhimanyatra.com- swami Ramdev's Yatra Videos
> >http://www.bharatswabhimantrust.org- Bharat Swabhiman Official website
>
> > 2010/12/27 sandesh <sandeshnaray...@gmail.com>
> >> *From:* chetan kapadnis <cvkapad...@gmail.com>
> >> *To:* bharatswab...@googlegroups.com
> >> *Sent:* Friday, December 24, 2010 9:32 PM
> >> *Subject:* Re: [BST] ताज महल या शिव मंदिर ?
>
> >> मुझे बहुत दुःख हुआ प्रतिक्रियावो को देखकर... सभी भाईयो ने पुरे सत्य शोध को
> >> मंदिर मस्जिद विवाद या धर्मं - धर्मं के बिच के विवाद का रंग दे दिया...
> >> चाहे ताज मंदिर हो या मकबरा क्या फरक पड़ता है ऐसे बोलने वाले को निचे दिए
> >> गए प्रश्न का उत्तर देना पड़ेगा
> >> - सत्य को - मतलब ताजमहल असल में क्या था - सामने लाना एवं जनता को सत्य से
> >> उजागर करना गलत है?
> >> - हम जूठा इतिहास अपने बच्चो क्यों पढाये?
> >> - मुझे पता है की आज भारत के सामने बहुत सारी चुनोवातिया है. लेकिन हमारी
> >> असली सांस्कृतिक प्रतिको के बारे में सच सामने रखना धर्मान्धता है? या फिर ये
> >> इतना गौण मुद्दा है? या ये भारत के स्वाभिमान से जरा भी नाता नही रखता है ?
> >> - क्या सच को दबाया रखा जाया क्योकि उसके बहार आने से धार्मिक विवाद बढ़ेंगे?
> >> - क्या सच को सामने लाने वाले इतने डरपोक है?
> >> - फिर हम तमसो माँ जोतिर्ग्मय क्यों कहे
> >> - किसी भी देश का इतिहास सिर्फ biography न रहके उसकी Autobiography
> >> होनी चाहिए. ये मूल फरक है सजीव और निर्जीव के इतिहास में जैसे की नेपोलियन
> >> एक आक्रान्ता, अत्याचारी, लुटेरा था इंग्लैंड एवं रूस के लिए. पर फ्रांस के लिए
> >> वो देवता सामान था. फ्रांस ने नेपोलियन का शव १९ साल बाद ब्रिटन से लाकर
> >> पारिस में बड़े सम्मान से दफनाया.
> >> - मतलब अगर हम कहते है की कोई ईमारत किसी आक्रान्ता ने बनवाई है तो उस वक्त
> >> की मन की भावना और जब हम कहते है की किसी भारतीय ने बनवाई है उस वक्त की भावना
> >> दोनों में जमीन- आसमान का अंतर है और वो रहना भी चाहिए.
> >> - जब कोई पुरातन शिल्प की बात होती है तो सहज से कुछ सवाल सामने आते है -
> >> किसने बनवाई? कब और क्यों? इससे उस वक्त की संस्कृति की कला एवं वास्तु
> >> विज्ञानं के बारे में पता चलता है. अगर
>
> ...
>
> read more »
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
----- Original Message -----From: Ravinder Kumar
2010/12/28 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकà
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
अपवित्र काम करE
2010/12/28 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos
2010/12/28 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
स्वीकारोक्त�¤
----- Original Message -----From: निशांत
2010/12/29 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/29 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/28 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख àA
2010/12/29 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/29 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/28 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/27 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2010/12/24 dehydratedpaani _ <dehydra...@gmail.com>
2010/12/23 Ravi Shanker <infoemplo...@gmail.com>
--
Manage emails receipt at http://groups.google.com/group/bharatswabhimantrust/subscribe
To post ,send email to bharatswab...@googlegroups.com
http://www.rajivdixit.com - Rajiv Dixit audio and videos lectures.
http://www.bharatswabhimanyatra.com - Swami Ramdev's Yatra Videos