Fwd: आज भी हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की शोभा बढ़ा रही है।

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Ajit Mishra

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Apr 22, 2013, 10:46:44 AM4/22/13
to a.vysyaraju, Abhijeet1857, adi.jha23, Aftab Khan, Ajit Bhaskar, amitkumarmajor, anbu_kishore, andhaqanoon, anupkidak, Aryakrishti-Vedic-Dharma, ashutosh jha 22565671, av.srikanth, Avinash Agnihotri, Joe Rajeswar AO PB, bhagavaandaas tyaagi, Bhanuprasad Khanolkar, bhanuprasad khanolkar, bharhaas.bhadas, brijendra tripathi, Nirantar - Hindi Blogzine, srinivasan babul, THOMAS BANGLORE,KANNUR, भारतमाता, आदर्श गो-ग्राम योजना ट्रस्ट (रजि.), Bal Bhavan, Chandramauli Pandey, chauhan-ajay, Deepanjan Choudhary, deeps xume, dhiman_ak, Dr. Kavita Vachaknavee, dr.pankaj shukla, Dr.Rupesh Shrivastava, dwivedigk1958, sheila dadi ?, DEV RAJ (Google+), engineershubham.tiwari, Geeta Tripathi, georgemullasseril, Gohil Thakarshi, grenukapathy, Mangesh Ghare, Mohan Gupta, harish_74, hinduxpose8, James Mathew, jitendra_path2005, kamal pandey, mohd javed, Neelesh Jaiswal, ramesh joshi, ramesh joshi, Sarad Jha, svamee paramchet na nand,svamee shree jee, Rajeev, Little-Breasts-The-Return, marsal125, multivlevel-marketing, pallav mishra, rohit mishra, S N Rai
---------- Forwarded message ----------
From: Mohan Gupta <mgu...@rogers.com>
Date: Fri, 19 Apr 2013 20:51:40 -0400
Subject: आज भी हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की शोभा बढ़ा रही है।
To: S.Posha...@yahoo.com

आज भी हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की
शोभा बढ़ा रही है।










http://www.pravakta.com/today-our-government-has-graced-all-websites-english?utm_source=feedburner&utm_medium=email&utm_campaign=Feed%3A+pravakta+%28PRAVAKTA+%E0%A5%A4+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%29



विकास कुमार गुप्ता

हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद – Swatantra हुआ। लेकिन हमारी जनता
आजाद गुलाम की मानिंद जिन्दगी बसर करने मजबूर है। और यह सब हमारी सरकार
की कुनीतियों एवं अनदेखी का परिणाम है। हमारे थाने अंग्रेजों के समय के
थानों से भी खतरनाक है वो इसलिए क्योंकि अंग्रेजों की लाठी खाने पर कम से
कम अपने लोगों की सहानुभूती और मदद तो मिलती थी। लेकिन वर्तमान में तो
हमारे थानों में हमारे ही लोग है जो हुबहू अंग्रेजों जैसी ही लाठियां
भांजते नजर आते है। क्योंकी इंडियन पुलिस एक्ट अभी भी वहीं का वहीं है।
अगर कोई शासनतंत्र गुलामों पर शासन करने के लिये कोई कानून का निर्माण
करता है तो हूबहू वहीं कानून आजाद लोगों पर कैसे लागू किया जा सकता है।
सर्वविदित है कि नौकर और गुलाम के लिए कपड़े, खाने से लेकर हर विषय-वस्तु
में फर्क होता है लेकिन हमारे बुद्धिजीवी नेताओं को आजादी मिलने पर यह
बात समझ में नहीं आई। बेफिजूल के हजारों कानून देश में अभी भी लागू है
किसलिए पता नहीं। किसी ने सही ही कहा था कि भारतीय अभी सत्ता संभालने के
योग्य नही है। एक तो भारतीयों को इन तमाम यूरोपीय टाइप के कानूनों की आदत
नहीं थी। और इसपर अंग्रेजी की नासमझी थी। पूर्व में हमारे यहां 565 जिले
हुआ करते थे और वे सभी जिले एक राज्य के रूप में थे। इन जिलों का एक राजा
होता था। राजा ही अपने जिले का प्रधानमंत्री, जज, डीएम सब होता था।
जजमेन्ट भी मिनटों में हो जाता था। और भ्रष्टाचार और घोटाला होने का
प्रश्न ही नहीं था क्योंकि राजा ही सर्वेसर्वा होता था। शिक्षा और अन्य
सभी मुलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति राजा द्वारा की जाती थी। लेकिन सब राजा
एक दूसरे के शत्रु हुआ करते थे। और यही शत्रुता का लाभ अंग्रेजों ने
उठाया। जब थाॅमस रो और जहांगीर के बीच पहली संधी 1618 में हुयी तबसे लेकर
1857 तक अंग्रेज यहां के राजाओं से संधी करते गये। 1857 के सैनिक विद्रोह
के बाद यहां सीधे ब्रिटिश संसद का शासन हो गया। उसके बाद अंग्रेजों ने
आयरिश पीनल कोड को उठाकर यहां हूबहू लागू कर दिया। फिर डीएम, एसपी, और
थाने बनाये गये। और फिर अंग्रेजों ने अपने यहां चल रहे संसदीय लोकतंत्र
प्रणाली जिसे महात्मा गंाधी बाझ और वेश्या कहते थे को लागू कर दिया। और
फिर मार-काट लूट का चक्र चलता रहा। जोकि 1947 तक चली। अंग्रेजों ने भारत
में उपलब्ध सोने का 95 फीसदी हिस्सा जब लूट लिया और जब उनको लगा की यहां
अब कुछ लूटने को बचा नहीं तक अंग्रेज से चले गये। विचारणीय है कि हमारा
देश सोने का चिडि़या हुआ करता था। सारे रोमन और समूचा विश्व हमारे यहां
का बना कपड़ा, लोहा और अनेको वस्तुएं खरीदकर प्रयोग करता था। और बदले में
यहां के व्यापारियों को सोना मिलता था। क्योंकि उस समय सोना का सिक्का ही
मुद्रा हुआ करता था। हमारे पड़ोसी देश नेपाल को भी अंग्रेज गुलाम बना
सकते थे लेकिन नेपाल में सिर्फ राजा के पास ही सोना था और जनता गरीब थी।
लेकिन की जनता के पास सोने के विशाल भंडार हुआ करते थे। अंग्रेजों के
जाने बाद होना तो ये चाहिये था कि हम अंग्रेजों के सभी तंत्र को समाप्त
कर अपना नया तंत्र बनाते। नये कानून बनाते। लेकिन जैसे अंग्रेज छोड़कर
गये थे। उस शासन व्यवस्था पर हमारे काले अंग्रेजों ने शासन शुरू कर दी।
जोकि अभी तक चल रही है। थानो से लेकर कार्यालय तक लूट मची हुई है। जिसको
जहां मौका मिल रहा वहीं लूट का अध्याय शुरू हो जाता है। अंग्रेजी की समझ
बहुत कम भारतीयों को है। उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय से लेकर उच्च
स्तर पर सभी कार्य अंग्रेजी में हो रहे है। देश आजाद तो हुआ 1947 में
लेकिन कानून 1860 के ही चल रहे है। और हमारी सरकारे कहती है कानून
अंग्रेजों का है तो क्या हुआ शासन तो भारतीयों का है। अगर शासन भारतीयों
का है तो फिर भारतीयों को उनके अधिकार क्यों नहीं दिये जा रहे। हम
मनमोहन, प्रणब मुखर्जी और अपने देश के सरकार के हर उस शख्स से पूछना
चाहते है कि बताओं इंटरनेट पर सभी सरकारी वेबसाइटे, देश के सभी कानून,
देश की सभी व्यवस्था हिन्दी, तमिल, तेलुगु बोलने वाले के लिए है या 6
करोड़ की जनंसख्या वाले ब्रिटेन के लिए। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से
लेकर सभी की वेबसाइटे पहले अंग्रेजी में क्यो खुलती है? और उसमें उपलब्ध
दो तिहाई सामग्रियां आखिर हमारे देश की आठवीं अनुसूची में उपलब्ध भाषाओं
में आखिर क्यों नहीं है। क्या सरकार सिर्फ अंग्रेजी भाषियों के लिए है या
अन्यों के लिए भी। सैकड़ों प्रकार के टैक्स और शुल्क हिन्दी और अन्य आठवी
अनुसूची भाषी देते है तो फिर सबके साथ ये अन्याय क्यो?

क्यों जबरदस्ती हमारे देश के होनहारों पर अंग्रेजी थोपी जा रही है। अभी
कुछ समय पहले एक आई.ए.एस से मेरी हिन्दी अंग्रेजी को लेकर चर्चा हो रही
थी। ये आइएएस महोदय अंग्रेजी के तारिफों के पुल बांधे जा रहे थे। फिर
मैंने अंग्रेजी की एक कविता उन्हें दी और कहा इसका अर्थ बताइयें फिर क्या
था, वह आइ.ए.एस. महोदय बगले झांकने लगे। भाषा जानना और उसकी आत्मा को
समझना दो अलग पहलु है। हिन्दी हमारी आत्मा में बसती है। लेकिन अंग्रेजी
को हम अनुवाद करके ही समझते है। हां अगर 1 अरब 25 करोण में एक से डेढ़
करोण लोग अच्छी अंग्रेजी वाले है भी तो उनकी वजह से 1 अरब 24 करोण लोगों
पर अंग्रेजी थोपना प्रजातंत्र के सिद्धान्त के अनुसार क्या न्यायोचित
माना जायेगा? जब देश के सबसे कठिन परीक्षा पास करने वाले अधिकारियों का
ये हाल है तो फिर आम जनता की स्थिति का आंकलन स्वतः किया जा सकता है। आज
भी सरकारी कार्यालयों में इतने नियम है कि उन्हें समझने के लिए सालों लग
जाते है। भाषा के चलते आ रहे समस्याओं के समाधान हेतु राजभाषा नियम 1976
बनाया गया था लेकिन इसका समुचित अनुपालन आज तक नहीं हो पा रहा। आज भी
हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की शोभा बढ़ा रही है। आखिर आम जनता
अंग्रेजी को क्यो पढ़े। भाषा की समस्या ही मुख्य समस्या है इस देश में।
देश में क्या हो रहा है उसकी समझ आम जनता के परे है। सब रट्टा मार
प्रतियोगिता करने में भागे जा रहे हैं। हमारे बगल में चाइना दिन-दूनी रात
चैगूनी कर रहा है और वहां सभी कार्य उसके अपने भाषा में हो रहे है। जापान
निरन्तर उन्नती कर रहा है और उसके यहां भी सभी कार्य उसके अपने भाषा में
हो रहे है और भी अनेको देश है जो निज भाषा का प्रयोग कर उन्नती की अग्रसर
है। लेकिन हमारी सरकार का अंग्रेजी मोह नहीं छुट रहा। हमारे देश के
होनहार बच्चों को अंग्रेजी की चक्की में पीसा जा रहा है। एक तरफ
संभ्रान्त, रसूखदार और ऊँचे तबके के लोग शुरू से ही अपने बच्चों को
अंग्रेजी शिक्षा की चक्की का आंटा खिला रहे है तो दूसरी तरफ हमारी
केन्द्र सरकार संविधान की दुहाई देकर प्राथमिक स्तर तक बच्चों को
अंग्रेजी नहीं पढ़ा रही। क्योंकि हमारे संविधान का अनुच्छेद 350 (क) में
प्राविधान है कि- ”प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय
प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालको को शिक्षा के प्राथमिक स्तर
पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्थाा करने का
प्रयास करेगा।”

संविधान के अनुच्छेद 351 में हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश दिये गये
है और कहा गया है कि ”संघ का कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार
बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों
की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना
हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं
में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या
वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः
अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।” लेकिन
सीधा प्राविधान होने के बाद भी हमारी सरकारे आज तक अन्य भारतीय भाषाओं की
उन्नति की जगह अंग्रेजी भाषा की उन्नती करती जा रही है। और ऐसा सिर्फ
सरकारी मांग की वजह से हो रहा है। क्योंकि हमारी सरकार और उनके द्वारा
बुलायी गयी हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनीय अंग्रेजी के जानकारों को खोज रही
है। अतः हमारी जनता भी अंग्रेजी के पीछे दीवाना हो चुकी है। अगर आजादी
पश्चात् ही आठवी अनुसूची की भाषाओं में ही कार्य किया जाता तो ऐसी स्थिति
नहीं उभरती। समूचे देश की एक भाषा अगर चुनना ही था तो हिन्दी चुन ली
जाती। और अगर अन्य आठवी अनुसूची से सम्बन्धित भाषाओं का विवाद उत्पन्न
होता तो तमिल को अंग्रेजी की जगह तमिल हिन्दी दी जाती। राज्यस्तर की भाषा
का चयन राज्य की भाषा के अनुसार किया जाता तो कितना अच्छा रहता।

From: Prem Jain - preman...@hotmail.com;

Sent: Wednesday, April 17, 2013 6:22 PM

Subject: आज भी हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की शोभा बढ़ा रही है।

I have been watching you posts and struggle to get Hindi popularity. I
understand and respect your agenda in terms of enslaving against a
foreign language. I love hindi and speak very well. I have only one
thing to say .



In modern world, think of English as a ladder to globalize ourselves,
a way to communicate our freedom, talent and show the power to rest of
the world. No matter how Indians learnt English, but this language has
become one of the major factors to Indian’s success around the world.
English has become the de-facto language not just of European
countries - but all over the world.



The societies which were reluctant to learn English, are suffering and
their growth is hampered. Japan is a good example. All other countries
including Europe and Asia have embraced English as their second
language. I travel worldwide and I can see the difference it makes to
have a command language to communicate in this global economy.



Prem

From: Madhusudan H Jhaveri - mjha...@umassd.edu;

Sent: Thursday, April 18, 2013 1:09 AM

Subject: आज भी हमारी सरकार की सभी वेबसाइटे अंग्रेजी की शोभा बढ़ा रही है।

प्रेम जी।
क्या सारे भारत को अंग्रेज़ी में शिक्षित कर सभीकी उन्नति की जा सकती है?
अंग्रेज़ी के कारण, कुछ लोग अवश्य आगे बढ पाएंगे। और अंतर-राष्ट्रीय संबध
और व्यवहार करने के लिए, कुछ परदेशी भाषाएँ ठीक है।
पर सारा देश नहीं बढ पाएगा।
कुछ मात्रामें अंग्रेज़ी पढी जाए।पर जपानी चीनी फ्रांसीसी जर्मन इत्यादि
इत्यादि उनसे व्यापार करने के लिए पढी जाए।

मैंने चीन (१८ दिन था) में सामान्य प्रजा को चीनी बोलते देखा।
हवाई में (१५ दिन) भी सामान्य जन हवाईयन बोलते थे।
पुर्टोरिको में (एक सप्ताह) भी कोई अन्य भाषा बोलते लोगों को सुना।खो
जाने पर केवल "सान-ह्वान" नगर का नाम बोलकर वे मुझे मार्ग अपने हाथों से
दिखाते थे। और वहाँ तो USA का ही शासन भी है।
रूस में भी विजया लक्ष्मी पंडित (जब राजदूत बनकर गयी थी) को हिंदी या
रशियन बोलने कहा गया था-अंग्रेज़ी नहीं।
फ्रांस में भी फ्रेंच भाषा का प्रयोग चलता है, और सशक्त आग्रह भी होता है।
जर्मनी में जर्मन।
इज़राएल ने हिब्रू जो कोई भी(एक भी जन) बोलता नहीं था, उस अवस्था से अपनी
दुर्दम्य इच्छाशक्ति से अकेले बेन-येहुदा नामक व्यक्ति के पुरूषार्थ से
राष्ट्र भाषा के स्तर तक आगे बढाया। वहाँ ३६ अलग अलग परदेशी भाषा
बोलनेवाले नागरिकता लेने पहुंचे थे।
मैं गुजराती भाषी, अंग्रेज़ी में University of massachusetts में निर्माण
अभियांत्रिकी का प्रोफेसर, कुछ दस वर्ष पहले मुझे दीर्घ मनन-चिंतन-मंथन
के अंत में,समझ में आया,
कि भारत अंग्रेज़ी द्वारा और एक हज़ार वर्ष भी लगा ले, तो प्रगति नहीं कर पाएगा।
यह केवल डॉ. मधु झवेरी की उन्नति की बात नहीं है। केवल प्रेम जी जैन की
उन्नति की बात नहीं है।
क्या समग्र भारत के ग्रामीण और नागरी महिलाओं को और अन्य नागरिकों को,
अंग्रेज़ी में शिक्षित कर आप सारे भारत को आगे लेजाने का स्वप्न साकार कर
सकते हो?
आपकॊ देश के शीर्ष नेता की भाँति सोचना है। जैसे परिवार का मुखिया परिवार
के हित की सोचता है।आपको राष्ट्र हितकी दष्टिसे सोचना है।

१९४० के समय जर्मनी का बोलबाला था।
१९५०-६०-७० के आस पास रूस का वर्चस्व था।
कभी इंग्लंड का रहा।
आज अमरिका का बोलबाला भी ठंडा होता जा रहा है।
कल यदि चीन आगे बढा तो क्या तुरंत हम चीनी सीखना प्रारंभ करेंगे।और परसों
जपानी, और फिर रूसी।

आप मेरे लिखित "जपान से हिंन्दी हितैषी क्या सीखॆं? नामक आलेख "प्रवक्ता"
पर पढने का कष्ट करें। २५+ आलेख केवल इसी विषय पर डाले हैं। पढकर
प्रतिक्रिया का कष्ट करें।
बहुत धन्यवाद।
कृपांकित
डॉ. मधु झवेरी



Posted byLeena Mehendaleat10:09 AMNo comments:

Monday, December 17, 2012
सितम्बर में होनेवाले विश्व हिंदी सम्मेलन के उपलक्ष्य में हिंदीके
सम्मुख 14 मुख्य सवाल
हिंदीके सम्मुख 14 मुख्य सवाल --

सेक्शन 1 – आधुनिक उपकरणोंमें हिंदी

1. हिंदी लिपिको सर्वाधिक खतरा -- अगले 10 वर्षोंमें मृतप्राय होनेका डर

2. संगणक पर, मोबाइलपर, निकट भविष्यमें बननेवाले ऐसे कितनेही उपकरणोंपर
कहाँ है हिंदी

3. विकिपीडिया जो धीरे धीरे विश्वज्ञानकोषका रूप ले रहा है, उसपर कहाँ है

हिंदी सेक्शन –2 जनमानसमें

4. कैसे बने राष्ट्रभाषा

5. लोकभाषाएँ सहेलियाँ बनें या दुर्बल करें -- भारतमें 6000 से आधिक और
हिंदीकी 3000 से अधिक बोलीभाषाएँ हैं, जो हमारे देशके लिये गर्व हैं फिर
भी....

6. अंग्रेजीकी तुलनामें तेजीसे घटता लोकविश्वास

सेक्शन – 3 सरकारमें

7. हिंदीके प्रति सरकारी व्हिजन Vision - Doordarshita क्या है

8. सरकारमें कौन कौन विभाग हैं जिम्मेदार, उनमें क्या है कोऑर्डिनेशन, वे
कैसे तय करते हैं उद्दिष्ट और कैसे नापते हैं सफलताको

9. विभिन्न सरकारी समितियोंकी शिफारिशोंका आगे क्या होता है

सेक्शन 4 -- साहित्य जगतमें --

10. ललित साहित्य के अलावा बाकी कहाँ है हिंदी साहित्य -- विज्ञान,
भूगोल, कॉमर्स, कानून व विधी, बँक और व्यापारका व्यवहार, डॉक्टर और
इंजीनिअर्सकी पढाईका स्कोप क्या है ।

11. ललित साहित्यमें भी वह सर्वस्पर्शी लेखन कहाँ है जो एक्सोडस जैसे
नॉवेल या रिचर्ड बाखके लेखनमें है।

12. भाषा बचानेसेही संस्कृति बचती है -- क्या हमें अपनी संस्कृती चाहिये
। दूसरी ओर क्या हमारी आजकी भाषा हमारी संस्कृतिको व्यक्त कर रही है।

13. युवा पीढी क्या कहती है भाषाके मुद्देपर -- कौन सुन रहा है युवा पीढीको।

14. आघुनिक मल्टिमीडिया संसाधनोंका प्रभावी उपयोग हिंदी और खासकर
बालसाहित्यके लिये क्यों नही है



From: Tapan Ghosh <tapan...@gmail.com>

Putin's speech on Feb.04, 2013
Now he is a favourite

On February 4th, 2013, Vladimir Putin, the Russian president,
addressed the Duma, (Russian Parliament), and gave a speech about the
tensions with minorities in Russia:

"In Russia live Russians. Any minority, from anywhere, if it wants to
live in Russia, to work and eat in Russia, should speak Russian, and
should respect the Russian laws.

If they prefer Shari `a Law, then we advise them to go to those places
where that's the state law. Russia does not need minorities.
Minorities need Russia, and we will not grant them special privileges,
or try to change our laws to fit their desires, no matter how loud
they yell 'discrimination'. We better learn from the suicides of
America, England, Holland and France, if we are to survive as a
nation. The Russian customs and traditions are not compatible with the
lack of culture or the primitive ways of most minorities. When this
honourable legislative body thinks of creating new laws, it should
have in mind the national interest first, observing that the
minorities are not Russians.

The politicians in the Duma gave Putin a standing ovation for five minutes!+


Ref./ Links:



1. http://mysingaporenews.blogspot.in/2013/03/putins-speech-on-february4th-2013.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed:+MySingaporeNews+(My+Singapore+News)



2. http://www.forums.mlb.com/n/pfx/forum.aspx?nav=messages&webtag=ml-mets&tid=548599
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