सच्चे गुरु का लक्षण क्या है? किन शिक्षकों से बचे? पुनर्जन्म में विश्वास क्यों? धर्म-अधर्म का निर्णय कैसे? क्या घोर पापी भी आध्यात्मिक प्रगति पा सकता है? क्या ईश्वर पक्षपाती है? विश्व माया कैसे?— इत्यादि बार बार पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रत्यायक उत्तर मात्र नहीं, अपि तु भाग्य व स्वतंत्र इच्छा, लालसा व क्रोध से
हानि, सत्यशीलता के सूक्ष्म पहलू, मानोनियंत्रण हेतु उपाय, भक्तिमार्ग पर चलने हेतु योग्यता, भगवद्गीता के मूलभूत तत्त्व, समाधि, ब्रह्मसाक्षात्कार हेतु पूर्वापेक्षाएँ व साधन— ऐसे विषयों पर शृङ्गेरी श्री शारदा पीठ के 35वें पीठाधीश्वर तथा श्रेष्ठ जीवन्मुक्त (जीवित रहते हुए संसारबन्धन से मुक्त) प०पू० जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी जी के स्पष्ट, सुसंगत व निर्णायक व्याख्यान इस ’दुःखों से परमानन्द तक’ ग्रंथ के अंतर्गत हैं।
शास्त्रों के प्रकाण्ड पण्डित व प्रबुद्ध ऋषियों का जीवंत प्रमाण गुरुजी के उपदेश सारे दुःखों से मुक्ति का उपाय दर्शाते हैं।