We Are The People Of India Too

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Adi karyakram

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Jan 8, 2014, 9:09:14 AM1/8/14
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Can anyone tell us why the Indian State did not deliver justice to us, who snatched our resource in the name of development? Why there is no electricity in my village even today? Why my people do not get water for their field whose lands were taken for the irrigation projects? Why there is no electricity in those houses, who have given their land for the power project? And why people are still living in small mud houses whose lands were taken for the steel plants? It seems that the Adivasis are only born to suffer and other to enjoy over our graves.

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Karan Janardan Pawar

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Jan 8, 2014, 1:57:42 PM1/8/14
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लुटते रहे भोले भाले आदिवासी
संसद में आदिवासी कोटा मे 42 एमपी रिजर्व सीट से चुने जाने के बावजूद आदिवासियों के लिए कोईआवाज नही उठाता
राजन कुमार

आदिवासी बहुृत भोलेभाले और सीधे किस्म के इंसान होते हैं। इनके इसी भोलेपन का भरपूर फायदा नेता और अधिकारी उठाते है। आदिवासी लोग जन्मो-जन्मांतर से भारत मे रह रहें हैं। और आदिवासी ही देश के असली नागरिक है। इन्हे अपने संस्कृति और अपने देश से बहुत ज्यादा लगाव होता है। अगर कहा जाये कि वन, पर्यावरण, जानवर और भूमि के संरक्षक आदिवासी ही है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। ये जन्मों-जन्मांतर से अपने देश के पर्यावरण, वन , जानवरों एवं भूमि की रक्षा कर रहे है। लेकिन आज के समय मे इनकी वनें, भूमि और जिवीका खतरे मे है। भारत सरकार, स्थानीय अधिकारी और नेता इनकों अपनी भूमि, वन, और जीविका से बेदखल कर देना चाहते है। आदिवासियों पर किये गये अत्याचार ये आदिवासी लोग बहुत जल्दी ही भुल जाते है। अधिकारी इन आदिवासी जनता पर अत्याचार करते है। फिर तुच्छ (बहुत मामूली) प्रभोलन देकर अपने वश मे कर लेते है, उसके बाद इनसे अपना कार्य करवा कर इनका फायदा उठाते है। नेता आदिवासियों से झृठे-झूठे वादे करते है। इनकी वोट लेते है, इनकी मदद लेते है, और तो और इनसे अपनी आर्थिक स्थिती भी मजबूत करते है। जब नेता चुनाव जीत जातें है तो इन आदिवासियों के एहसानों को भूल जाते है और इन आदिवासियों का शोषण करते है। जबकि नौकरशाह भी इनकी संपत्ति (वन, पर्यावरण, भूमि ) लूटने मे र्को कसर नही छोड़ते। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत कई देशों मे इन आदिवासियों (रेड इंडियन) को मारकर खत्म कर दिया गया। जो कहीं बच गये वो आज भी अपने संस्कृति से जुड़्े है और अपने संस्कृति की हाव-भाव एव देश से सच्चे दिल से लगनशील है। ये कत्तई बेइमान नही होते। ये किसी के भी धन-संपत्ति के तरफ ध्यान भी नही देते। फिर भी इनकी संपत्ति ( वन, भूमि ) को हर कोई हड़पना चाहता है। जो कि सरासर अन्याय है। भारत या किसी भी देश की सरकार संविधान, नियम, कानून बनाये। जिससे समाज के सभी वर्ग के लोगों का भला हो सकें, लेकिन इस संविधान, कानून और नियम से अभी तक इनकों कोई लाभ नही पहुंचा। जहां तक इनकों हाशिए पर ही धकेला गया है। इनका शोषण किया जाता ह। आदिवासियों का शोषण आज से नही, बहुत पुराने समय से होता चला आ रहा है। जिसका उल्लेख पुराणों और ग्रंथो मे मिलता है। महाभारत मे एकलव्य के साथ अन्याय हुआ तो रामायण मे आदिवासियों को वानर और भालू की संज्ञा दी गयी। महाभारत मे द्रोणाचार्य ने एकलव्य से बर्गर धर्नुविद्या सिखाये उसका अंगूठा मांग लिया, वो भी दाहिना हाथ का अंगूठा जिससे कि एकलव्य कभी भी अच्छा धर्नुधारी न बन पाये। द्रोणाचार्य का एकलव्य के साथ यह बर्ताव सबसे घटिया, घिनौना और कायरतापूर्ण था। जबकि एकलव्य ने अपने सच्चाई, भोलेपन और महानता का परिचय देते हुए तुरंत अपना दाहिना अगूंठा द्रोण को गुरू मानकर सौंप दिया था। भगवान राम की सहायता करने वालें आदिवासियों को वानर और भालू की संज्ञा दी गयी। उनकी पूंछ बना दी गयी। आदिवासियों को मानव जाति के लायक ही नही समझा गया। और ये वानर भालू की सेना कहलाये। अगर भगवान राम की सेना मे सच मे भालू-वानर थे तो वो वानर-भालू आज क्यों नही अपने देश के लिए लड़ते। मानवों की भाषा क्यों नही बोलतें, क्यों नही एक दुसरे शादियां रचाते। अगर जामवंत भालू थे तो क्या श्रीकृष्ण किसी भालू की संतान(पुत्री जामवंती) भालू से शादी करते। आदिवासियों के साथ आदिकाल से हो रहे अन्याय आज जारी है। यह तथ्य बहुत ही चिंताजनक और निंदनीय है। आदिवासियों को जगंलो से प्यार है और हमेशा से जंगलो मे रहें है। और इनकी पूजा किए है। पहले राजाओं का शासन होने के कारण उनक साथ अन्याय हुआ और आज लोकतांत्रिक शासन होने के बावजूद इनके साथ अन्याय किया जा रहा है। आदिवासियों से अत्याचार, अन्याय कोई एक वर्ग नही बल्कि केन्द्र सरकार से लेकर (ग्रीन हंट अभियान चलाकर, पर्यावरण विरोधी कंपनियों को आदिवासियों के जमीन पर कंपनी स्थापना करने की अनुमति देकर) से लेकर राज्य सरकार, अधिकारी, नेता और निम्न स्तर पर सामाजिक वर्ग के लोग कर रहें है। ग्रीन हंट का मतलब जंगलीजातियां(आदिवासी) का शिकार करना। यह अभियान केन्द्र सरकार की तरफ से चलाया गया है। लेकिन इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नही कर रहा है। ग्रीन हंट अभियान बहुत पहले अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन समेते कई देशो मे चलाये जा चुके है। भारत के लगभग 90 प्रतिशत खनिज पदार्थों से भरी जमीन के मालिक ये आदिवासी है। इन्ही के जमीनो मे खनिज पदार्थ है। इनको इनके जमीन से बेदखल करके तरह-तरह के अभियान चला कर के इनकी जमीन हड़पी जा रही है। जबकि जन्मो-जन्मांतर से आदिवासी इस खनिज भरे जमीन और जंगल की रक्षा करते आ रहें है। इनके जमीन पर सरकारी-गैर सरकारी कंपनियां स्थापित की गयी और की जा रही हैं। लेकिन इन कंपनियों मे आदिवासियों के लिए थोड़ा सा भी आरक्षण नही है। आज भी बहुत आदिवासी जातियां कई क्षेत्रों मे खनाबदोशो की तरह जीवन यापन कर रहीं है। आदिवासियों के 42 एमपी रिजर्व सीट से हैं जबकि अन्य सीटों के भी आदिवासी सांसदो को मिलाया जाये तो लगभग 50 से ज्यादा एमपी आदिवासियों के होंगे। इसके बावजूद कोइ भी आदिवासियों के लिए आवाज उठाता और सरकार आदिवासियों के साथ मनमानी करती रहती है। डेढ़ लाख से ज्यादा पढ़ी लिखी अविवाहित लड़कियां दिल्ली मे लोगों के घरों मे बर्तन धोन और घर की सफाई करने पर मजबूर है। इन लडृकियों को इनके क्षेत्र मे स्थापित कंपनियों मे काम नही दिया जाता है और ये भोली-भाली लड़कियां जालसाजों के बातों मे फंस जाती है और दिल्ली चली आती है जहां पर जालसाज इन्हे बेच कर चले जाते है और इनके साथ हर रोज अन्याय और बलात्कार होता रहता है। बीते दिनों ही निम्न स्तर पर भी आदिवासियों से अत्याचार के कई मामले चर्चा मे आये है। बीते महिने महाराष्ट्र मे आदिवासी महिला के साथ बेहद क्रूर और घिनौना व्यवहार करने का मामला प्रकाश मे आया था। उस आदिवासी (भील)महिला को नग्न अवस्था मे परेड करने पर मजबूर किये थे आरोपियों ने। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस करतूत को अंजाम देने वाले आरोपियों के प्रति कड़ा रूख अख्तियार करते हुए उचित फैसला सुनाया था। असम मे रिजर्व फारेस्ट एक्ट के तहत आदिवासियों को उन्हीे के जमीन से राज्य सरकार बेदखल कर रही है। बीते पिछले महिने 14 जनवरी को आदिवासी महाजन उरांव की रांची मे कार्य करते हुए मौत हो गयी थी। उसके मौत के बदले उसके घरवालों को मात्र 15,000 रूपये दिये गये। जबकि महाजन उरांव जवान और स्वस्थ्य था और उसकी आर्थिक स्थिती काफी जर्जर थी। उसको अपनी बेटी की शादी करनी थी जिसके लिए वह पैैसे कमाने के उद्देश्य से रांची आया था। झारखण्ड से असम ले जाये गये आदिवासियों के साथ भी काफी अन्याय हुआ और हो रहा है। असम में घनों जंगलो को काटकर ये आदिवासी चाय खेती के लायक बनाये। जिससे वहां के चाय बगान के मालिक खूूब पैसा कमाते है। लेकिन ये चाय की बगान बनाने वाले आदिवासियों की हालत वहीं की वहीं है। इनके लिए कुछ नही किये ये चाय बगान मालिक। न ही इनके रहने के लिए कमरे की व्यवस्था है, न ही स्वास्थ्य सुविधाओं की और न ही इनके बच्चो के लिए शिक्षा की कोई व्यवस्था की गयी है। उच्च शिक्षा तो दूर की बात इनके लिए हिन्दी की शिक्षा भी बहुत मुश्किल है। हिन्दुस्तान मे राष्ट्रीय भाषा हिन्दी कि शिक्षा के लिए इन आदिवासियों के बच्चो तरसना पड़ रहा है। हमेशा से इनके साथ अन्याय हुआ है,और आज भी यह जारी है। इनके तरफ किसी का भी ध्यान नही जा रहा है। आदिवासियों से जुडे़े क्षेत्र मे जब भी कोई घटना घटती है, या कोई कार्य होता है तो हमेशा से इनके साथ अन्याय हुआ ह,और आज भी यह जारी है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों मे ना सड़को ं की व्यवस्था है ना ही स्वास्थ्य सुविधाओं की और ना ही शिक्षा की। अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो तो उसे खाट पर लेटाकर या साइकिल पर बिठाकर दर्जनो मील दूर ले जाना पड़ता है। अस्पताल तक पहुंचते-पहुचते मरीज मृतक बन जाता है। एक किलो चावल, एक पैकेट नमक के लिए भी इन्हे दर्जनो मील दूर जाना पड़ता है। स्कूल अधिक दूर होने के कारण आदिवासी बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते है। तमाम यातनांए सहने के बावजूद ये आदिवासी तन-मन-धन से अपने देश, जमीन, पर्यावरण की रक्षा कर रहे है, जिसका भोग पूरा देश कर रहा है। इसके बावजूद आदिवासियों पर कोई ध्यान नही दे रहा !

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AYUSH activities

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Jan 10, 2014, 8:43:32 PM1/10/14
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 आदिवासी समाजाला आरक्षण दिल जात
तॆ पण योग्य माणसापर्यत पोहचत नाही 
याची खंत वाटतॆ.

पॆट्रोल पंप,गॅस एजन्सी,किंवा नामांकित 
कंपन्याची डिलर शिप आमदारांना,खाजदारांना,
किवा त्याच्या नातॆवाईकांनाच मिळतॆ अस 
का ? 
आदिवासी विकास भवन मध्यॆ बर्याच 
योजना आहॆत त्या योग्य आहॆत .आहॆ तर 
मग कुणाला लाभ मिळतो ?
आश्रम शाळॆतील शिक्षणाचा दर्जा 
का खाल्लावलॆला आहॆ ? इतर संस्थाच्या
तुलनॆत आपण कमी का पडतो.
आदिवासी विकास भवन मध्यॆ 
आदिवासी मुलाना नोकरी साठी प्राधान्य 
दिल गॆल पाहीजॆ अशी घटनात्मक तरतुद 
का कॆली गॆली नाही ? 
राज्य मंत्रीमंडळात सर्वात जास्त निधी 
आदिवासी विकास मंडळाला दिला जातो
मग तो आपल्यापर्यंत पोहचून विकास होतो का ?
विकास होतो तर तो दाखवा ?
अनॆक विचाराची गर्दी आहॆ पण किती दिवस 
अस चालणार ? ? ?

Adi karyakram

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Jan 10, 2014, 9:14:08 PM1/10/14
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आपल्या दुमाडा गुरुजींना क्रांती ज्योती सावित्रीबाई फुले आदर्श शिक्षक जागृती पुरस्कार!
 अभिनंदन गुरुजी! आज आदिवासी समाजाला आपल्या सारख्या जागृत शिक्षकांची गरज आहे. 

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AYUSH activities

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Jan 10, 2014, 9:27:24 PM1/10/14
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क्या बंदूक के बगैर लोकतंत्र संभव है?

आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने संविधानसभा में देश के नेताओं से कहा था 
"आप हमें लोकतंत्र का पाठ नहीं पढ़ा सकते हैं क्योंकि हमारे यहां लोकतंत्र सदियों से मौजूद है। आदिवासी लोग अपना नेता चुनने के लिए न तो पैसा और न ही बंदूक का उपयोग करते हैं। लेकिन देश ने आदिवासियों की एक न सुनी जिसका परिणाम यह हुआ कि आधुनिक लोकतंत्र ने प्रकृति और समाज दोनों को खोखला कर दिया। दुनियां में बंदूक के बगैर जीवित लोकतंत्र सिर्फ आदिवासी समाज के पास मौजूद है इसल
िए जो लोग सही मायने में लोकतंत्र को साफ-सुथरा करना चाहते हैं उन्हें आदिवासियों से लोकतंत्र सीखना चाहिए क्योंकि सही लोकतंत्र की स्थापना आदिवासियों को नाकार कर नहीं हो सकती है"

- डुंगडुंग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। 


http://chingarigvk.blogspot.in/2014/01/blog-post_10.html

AYUSH activities

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Jan 16, 2014, 4:09:03 AM1/16/14
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महिलांचे 'विहीर वाचवा' आंदोलन चिखले गावात तटरक्षकचा प्रकल्प ग्रामपंचायत कार्यालयावर हल्लाबोल बोर्डी : तटरक्षक दलाने चिखले गावात वीस एकर जमिनीवर प्रकल्प उभारणीचे काम हाती घेतले आहे. प्रकल्पात विहीर व जमीन जाऊन विस्थापित होण्याच्या भीतीने १३ जानेवारीला दोनशे उद्विग्न महिलांनी ग्रामपंचायत कार्यालयावर धडक मोर्चाद्वारे प्रकल्प हटवा, अन्यथा ग्रामपंचायत बरखास्तीची मागणी केली आहे. साडेसहा हजार लोकवस्तीचे चिखले गाव समुद्रकिनारी आहे. गावात पिण्याच्या पाण्याच्या र्मयादित स्त्रोतांमुळे मचूळ पाणी पिऊन ग्रामस्थांना अनेक आजारांनी ग्रासल्याचे नागरिकांचे म्हणणे आहे. आजतागायत ग्रामपंचायतीने पाणी पुरवठा योजना न राबविल्याने पाणी प्रश्न ऐरणीवर आहे. दरम्यान, तटरक्षक दलाने सर्व्हे नं. २0२ व २0३ येथे प्रकल्पाकरिता जमिनीच्या हद्द निश्‍चितीनंतर कुंपणाचे काम हाती घेतले आहे. गावाला पाणी पुरवठा करणारी विहीर प्रकल्पात जाऊन भविष्यात विस्थापित होण्याची भीती ग्रामस्थांमध्ये पसरली आहे. तथापि १३ जानेवारी रोजी दोनशे महिलांनी ग्रामपंचायत कार्यालय गाठले. १७ जानेवारी रोजी विशेष ग्रामसभेचे तत्काळ आयोजन करुन प्रकल्प हटविण्याचे ग्रामस्थांना आश्‍वासन द्यावे अन्यथा ग्रामपंचायत बरखास्त करावी, अशी मागणी ग्रामसेविका तनुजा सावे यांच्याकडे केली असून तीव्र आंदोलनाचे संकेत दिले आहे. (वार्ताहर) प्रकल्पाला जागा दिल्याने भविष्यात गावाच्या विकासाला खीळ बसू शकते. मधुमेह, रक्तदाब, लठ्ठपणाचे रुग्ण, गरोदर महिला व ज्येष्ठ नागरिकांना व्यायामाकरिता जागा उपलब्ध नाही. मैदानाअभावी विद्यार्थी व युवक खेळापासून वंचित आहेत. - उमेश चुरी, चिखले ग्रामस्थ ग्रामपंचायतीकडून पाणी पुरवठा योजनेची प्रभावी अंमलबजावणी नाही. दलित वस्ती पाणी पुरवठा योजनेत दलित पाण्यापासून वंचित. पाण्याअभावी गावातील महिलांचे अतोनात हाल. - महेश सुरती, माजी ग्रामपंचायत सदस्य, चिखले. चिखले गावातील सर्व्हे नं. २0२ व २0३ येथील वीस एकर जागेवर भारतीय तटरक्षक दलाकडून प्रकल्प उभारण्याचे काम सुरु आहे. ग्रामस्थांना त्रास द्यायचा हेतू नाही. संबंधित विहिरीपासून दहा मीटर जागा सोडली आहे. - विठ्ठल पतंगरे, कमांडर तटरक्षक दल दोनशेपैकी ८ ते १0 महिला बारावीपर्यंत शिकलेल्या आहेत. उर्वरित अशिक्षित महिलांत मात्र लढा देऊन, मागण्या मान्य करण्याची हिंमत आहे. - लक्ष्मी डाेंगरे आणि संजना आगरी

AYUSH activities

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Jan 28, 2014, 9:29:50 AM1/28/14
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Sunil Parhad

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Jan 29, 2014, 3:27:00 AM1/29/14
to adi...@googlegroups.com
johar....!
mazya adivasi bhagini-ani -bandhvana avhan ahe ki PESA
,5 th shedule .samanjun hya sarkarchaya mujori virudhha ladhya sathi
sajja zal pahije.. nuste artical lihun-vachun tatpurte halahal
vyakt karun chalanar nahi..jastit jast siklyalya lokani andolant
sakriya zale pahije tarch aapan aplya samajaathi kahi karu sakto..
ADIVASI EKTA JINDABAD ! ADIVASI
EKJUTICHA VIJAY ASEL
STRENTH TROUGH UNITY , UNITY TROUGH FAITH !
TOGETHER WE BARGAIN, DIVIDED WE BEG !

DR.SUNIL PARHAD

On 1/28/14, AYUSH activities <adi.ac...@gmail.com> wrote:
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>
> <https://lh4.googleusercontent.com/-B4pzcuVcivM/Uue-rysF7tI/AAAAAAAAHNs/Bc4WYp6J_9s/s1600/Slide1.GIF>
>
> <https://lh5.googleusercontent.com/-jvmiK0PphgI/Uue-w0O2s0I/AAAAAAAAHN0/fCvyjRdWE1s/s1600/Slide3.GIF>
>
> <https://lh3.googleusercontent.com/-J2tU8TQ-AIQ/Uue-1T8CLKI/AAAAAAAAHN8/E9rq6pSFvNI/s1600/Slide2.GIF>
>
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>
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>
> On Wednesday, January 8, 2014 7:39:14 PM UTC+5:30, AYUSH activities wrote:
>>
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>> *We* Are The *People Of India*
>> Too.<https://groups.google.com/forum/#!searchin/adiyuva/we$20are$20people$20of$20india/adiyuva/JU5u1Jy02Po/hG76VRs6ry8J>
>>
>>
>> Can anyone tell us why the Indian State did not deliver justice to us, who
>>
>> snatched our resource in the name of development? Why there is no
>> electricity in my village even today? Why my people do not get water for
>> their field whose lands were taken for the irrigation projects? Why there
>>
>> is no electricity in those houses, who have given their land for the power
>>
>> project? And why people are still living in small mud houses whose lands
>> were taken for the steel plants? It seems that the Adivasis are only born
>>
>> to suffer and other to enjoy over our graves.
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Jan 29, 2014, 4:18:04 AM1/29/14
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Jan 31, 2014, 4:37:13 AM1/31/14
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४0 वर्षानंतरही : आदिवासी गावपाड्यांना सुविधा नाहीत

कासा : डहाणू तालुक्यातील सायवन भागातील आदिवासी गावपाडे व वस्त्या आजही वीज, पाणी, रस्ते, आरोग्य आदी प्राथमिक सुविधांपासून वंचित असून ४0 वर्षानंतरही सदर भागातील नागरिकांना समस्याग्रस्त जीवन जगण्याला सामोर जावे लागत आहे.
तालुक्यातील सायवन भागातील दिवशी, दाभाडी, किन्हवली, चळणी, आष्टा, रायपुर, सुकटआां, गडचिंचले आदी गावे डोंगराळ भागात वसलेली आहेत. तर गावातील पाडे एकमेकांपासून दूरवर दर्‍याखोर्‍यात वसलेली आहेत. त्यामुळे काही पाड्यामध्ये जाण्यास साधा कच्चा रस्ताही नाही. नागरीकांना पायवाटेने जावे लागते. त्यामुळे सदर पाड्यांचा पावसाळ्यात गावांशी संपर्क तुटतो. सायवन भागातील सदर गावेही कासा बाजारपेठेपासून १५ ते २0 कि.मी अंतरावर आणि तालुक्याच्या ठिकाणापासून ३५ ते ४0 कि.मी अंतरावर आहेत. आरोग्य, पाणी, रस्ते आदी समस्या सदर भागात मोठय़ा प्रमाणात भेडसावत आहेत. एखाद्या गंभीर आजारी रुग्णास कठीण परिस्थितीत आरोग्यसेवेसाठी २0 ते ३५ कि.मी अंतरावर न्यावे लागते. त्यामुळे काही रुग्णास आपला जीव गमवावा लागल्याच्या घटना घडल्यात तसेच शैक्षणिक सुविधांचाही अभाव आहे. रोजगाराचा प्रश्न गंभीर असल्याने मोठय़ा प्रमाणात नागरिक दरवर्षी शहराकडे स्थलांतर करतात.
पावसाळ्यात नदी नाल्यांना पूर येत असल्याने आठ-दहा दिवस कासा, डहाणू, सायवन, तलासरी, बाजारपेठा व आजुबाजूच्या भागाशी संपर्क तुटत असल्याने सदर भागातील नागरिकांची मोठी अडचण होते. तसेच बरेच कर्मचारी पावसाळयात पंधरा ते वीस दिवस जाण्यास गैरसोय होत असल्याचे कारण पुढे करत दांड्या मारतात. त्यामुळे आरोग्यविषयक, शैक्षणिक समस्या निर्माण होतात.

सदर गावे ही तालुका मुख्यालय व बाजारपेठ यांच्यापासून दूरवर आहेत. त्यामुळे विकासावर परिणाम होत आहे.
- एकनाथ मेरे, ग्रामसेवक, दिवशी

सायवन भागातील गावे प्राथमिक सुविधेपासून वंचित आहेत. डहाणू तालुक्यात अनेक सोयी सुविधा झाल्या असल्या तरी सायवनवासी मात्र दुर्लक्षितच राहिले आहेत. 
- रमेश रावरे, ग्रामस्थ, दिवशी

Original at : http://marathi.yahoo.com/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B5-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-185102080.html 

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Feb 1, 2014, 7:51:11 AM2/1/14
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आदिवासी विद्यार्थ्यांचा जीव धोक्यात..

रस्ता रुंदीकरण होईना : तलासरीतील सर्व्हिस रोड रखडला

आम्हालाच दुजाभाव का?

तलासरी : आय.आर.बी.च्या मनमानी कामामुळे तलासरीत आदिवासी विद्यार्थ्यांना जीव मुठीत धरून रस्त्याने चालावे लागत आहे. याबाबत आय.आर.बी.च्या अधिकार्‍यांकडे विचारणा केली असता याबाबत आपण राष्ट्रीय महामार्गाकडे तक्रार करा असे सांगण्यात आल्याने आदिवासी विद्यार्थ्यांचा बळी पडल्यावर तलासरीतील सर्व्हिस रोडची रूंदी वाढवणार का? असा संतप्त सवाल आदिवासी जनतेने केला आहे. 
राष्ट्रीय महामार्गाचे काम करणार्‍या आय.आर.बी.ने तलासरीत मनमानी पध्दतीने काम केल्याने याचा फटका मात्र गावातील जनतेला व विद्यार्थ्यांना बसत आहे. आय.आर.बी.ने महामार्गाचे काम करताना महामार्गावर अनावश्यक कट ठेवले. प्रत्येक हॉटेलात जाताना अनावश्यक कट व सर्व्हिसरोड दिले. मात्र महामार्गावरून तलासरीत येताना तसेच उंबरगाव, सिल्व्हासा येथे जाण्यासाठी ठेवलेला सर्व्हिस रोड हा फक्त एक पदरी व अरूंद ठेवला असल्याने वाहनचालकांना तसेच नागरिकांना हा रस्ता त्रासाचा झाला आहे.
तलासरी गावात महामार्गावरून येणारा सर्व्हिस रोड अरूंद ठेवला आहे. या सर्व्हिस रोडलगतच आदिवासी विकास विभागाच्या मुलांचे व मुलींचे वसतिगृह आहे. या वसतिगृहात जवळपास ५00 विद्यार्थी राहून शिक्षण घेतात. हे विद्यार्थी महाविद्यालयात या सर्व्हिस रोडवरून जातात. परंतु याच सर्व्हिस रोडवरू न मोठय़ा प्रमाणात अवजड वाहनेही भरधाव जात असतात.
या मार्गावरून भरधाव जाणारी वाहने यामुळे येथे नेहमी अपघातही होतात. याच सर्व्हिस रोडला लागलेल्या जाळय़ाही तुटून मार्गावर आलेल्या आहेत. परंतु आय.आर.बी. या जाळय़ा तसेच सर्व्हिस रोडची रूंदी वाढविण्यास टाळाटाळ करते. इतर सर्व ठिकाणी सर्व्हिस रोड रूंद असतात. मात्र तलासरीत प्रवेश करणारा सर्व्हिस रोडच अरूंद का, हा प्रश्न जनतेने विचारला आहे.
याबाबत आय.आर.बी.चे अधिकारी मगर यांच्याकडे विचारणा केली असता याबाबत आम्ही काहीही करू शकत नाही. राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरणाकडे तक्रार करा असे सांगितले. 
महामार्गावरील हॉटेलात जाण्यासाठी हॉटेलच्या फायद्यासाठी अनावश्यक कट, सर्व्हिस रोड ठेवणार्‍या आय.आर.बी.च्या अधिकार्‍यांना तलासरीत प्रवेश करणारा मार्ग महत्त्वाचा वाटला नाही का, असा संतप्त सवाल जनतेने केला असून विद्यार्थ्यांच्या जिवाच्या सुरक्षेसाठी आंदोलन करण्याचा निर्णय घेतला आहे.(वार्ताहर) हॉटेल मालकांना सवलत मिळाली परंतु सामान्य नागरिकांचे काय, असा प्रश्न परिसरातून उपस्थित होत आहे. रस्ता रुंदीकरण करताना स्थानिक ग्रामपंचायत व महसूल विभागाशी चर्चा करणे आवश्यक होते. या परिसरातील वाहतूक लक्षात घेता आयआरबी व राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरणाच्या अधिकार्‍यांनी हा सर्व्हिस रोड अधिक रुंद करणे गरजेचे आहे.

AYUSH activities

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Feb 21, 2014, 5:50:51 AM2/21/14
to adi...@googlegroups.com
* सन 1910/11 राज्येकरते इंग्रज , प्रवरा नदी 
ठिकाण भंदारदरा ता. अकोले 
1910/11 ला इंग्रज राजवाटित आपन गुलामगिरी करीत असताना इंग्रज लोकानी सर्वेक्षण अवघ्या 13 वर्षात म्हणजे 1923 साली भंडारदरा धरण बांधून पूर्ण केले उद्धेश फ़क्त पाणी आडवून अकोले आणि परिसर हिरवा ठेवणे आणि प्रवरा नदीच्या खोर्यातिल विकास करने त्या काळात या धारणाच्या बांधकामासाठी 80 लाख रुपये खर्च आला होता मात्र अगदी आत्ताच्या काळात फक्त्त दुरुस्तिवर खर्च 8/10 कोटी रुपये करण्यात आला आहे आणि अजुनही होत आहे 

* तीच प्रवरा नदी , राज्यकर्ते आमचे , ठिकाण निळवंडे धरण गेल्या 18/20 वर्षापासून धारणाचे काम सुरु असल्याचा फ़क्त भास् निवडनुक आली की काम सुरु करायचे संपली की काम बंद कामावरचा खर्च अगदी 15/20 कोटी असेल आणि अजुनही निधीची वाढीव रकमेची गरज काम अद्यापही पूर्ण नाही फ़क्त आज मतदानाच भांडवल करायच या कामातून मोठ कमिशन घेउन आमचे नेते ट्ग्गर झालेत तर या परिसरातील आदिवासी बांधव आपल्या जमीनी गमाउन राहता तालुका तसेच इत्तर ठिकाणी खडकावर घरे बांधून रोजगारासाठी भटकत आहेत काय परिस्थिति आहे , आमच्या राजकीय लोकानी आम्हाला लुटून त्यांची घरे मात्र भरली . * विजयकुमार घोटे
* सन 1910/11 राज्येकरते इंग्रज , प्रवरा नदी 
ठिकाण भंदारदरा   ता. अकोले 
 1910/11 ला इंग्रज राजवाटित आपन गुलामगिरी करीत असताना इंग्रज लोकानी सर्वेक्षण अवघ्या 13 वर्षात म्हणजे 1923 साली भंडारदरा धरण बांधून पूर्ण केले उद्धेश फ़क्त पाणी आडवून अकोले आणि परिसर हिरवा ठेवणे आणि प्रवरा नदीच्या खोर्यातिल विकास करने त्या  काळात या धारणाच्या बांधकामासाठी 80 लाख रुपये खर्च आला होता मात्र अगदी आत्ताच्या काळात फक्त्त दुरुस्तिवर खर्च 8/10 कोटी रुपये  करण्यात आला आहे आणि अजुनही होत आहे 

* तीच प्रवरा नदी , राज्यकर्ते आमचे , ठिकाण निळवंडे धरण  गेल्या 18/20 वर्षापासून धारणाचे काम सुरु असल्याचा फ़क्त भास् निवडनुक आली की काम सुरु करायचे संपली की काम बंद कामावरचा खर्च अगदी 15/20 कोटी असेल आणि अजुनही निधीची वाढीव रकमेची गरज काम अद्यापही पूर्ण नाही फ़क्त आज मतदानाच भांडवल करायच या कामातून मोठ कमिशन घेउन आमचे नेते ट्ग्गर झालेत तर या परिसरातील आदिवासी बांधव आपल्या जमीनी गमाउन राहता तालुका तसेच इत्तर ठिकाणी खडकावर घरे बांधून रोजगारासाठी भटकत आहेत काय परिस्थिति आहे , आमच्या राजकीय लोकानी आम्हाला लुटून त्यांची घरे मात्र भरली . * विजयकुमार घोटे











































On Wednesday, January 8, 2014 7:39:14 PM UTC+5:30, AYUSH activities wrote:
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