जानने व समझने के लिए जरूर पढ़िए !!

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Adivasi Ekta Parishad

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Jan 17, 2018, 1:16:44 PM1/17/18
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जानने व समझने के लिए जरूर पढ़िए !! 

 

 

जानने व समझने के लिए जरूर पढ़िए !!

आपकी जय ! आदिवासी एकता परिषद का 25 वा आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ।

महासम्मेलन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:--

 

1)⏩ आदिवासी सांस्कृतिक एकता यात्रा :-- देश के अलग अलग राज्य से यह यात्रा निकलकर महासम्मेलन में आकर समाहित हुई । मध्य प्रदेश राज्य के दो अलग-अलग स्थानों से दिनांक 5 जनवरी 2018 को क्रांतिकारी शहीद जननायक टंट्या भील की जन्मस्थली ग्राम बड़ौदा अहिर, तहसील पंधाना, जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)एवं 9 जनवरी 2018 रतलाम से प्रारंभ हुई । दोनों यात्राओं ने मिलकर लगभग दौ सौ गांव के लोगों से संवाद स्थापित करते हुए प्रकृति व आदिवासी संस्कृति बचाने का संदेश देने के साथ ही सभी आदिवासियों को एकता के सूत्र में बांधने का आह्वान किया गया । यह यात्रा मध्य प्रदेश के 8 तथा गुजरात के 3 जिलों से होकर गुजरी। इसी प्रकार दिनांक 1213 जनवरी 2018 को देश के कई इलाकों से "आदिवासी सांस्कृतिक एकता यात्रा" चार पहिया वाहन व दो पहिया वाहन से निकाली गई । जिसमें प्रमुख रुप से मध्यप्रदेश के भंवरगढ़ (सेंधवा),खरगोन, रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर,बैतुल, बुरहानपुर,खंडवा आदि ,महाराष्ट्र के जलगांव, धुलिया, नाशिक, साक्री, पालघर, अक्कलकुवा, नंदुरबार आदि , दादरा नगर हवेली के सिलवासा एवं राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर ,उदयपुर, साबरकांठा आदि तथा गुजरात के छोटाउदयपुर, तापी, नर्मदा, धर्मपुर,बरूच आदि स्थानों से हजारों की संख्या में टू व्हीलर एवं फोर व्हीलर वाहन लेकर कार्यकर्ता महासम्मेलन में शामिल होने हेतु निकले । इससे आदिवासी समाज एवं गैर आदिवासी समाज में एक संदेश गया कि आदिवासी समाज इकट्ठा हो रहा है ।

 

2)⏩ आदिवासी प्रदर्शनी :-- दिनांक 13 जनवरी 2018 प्रातः 10:00 बजे आदिवासी प्रदर्शनी का 15 राज्यों के प्रतिनिधि एवं इंडोनेशिया के प्रतिनिधि की उपस्थिति में उद्घाटन किया गया । इस प्रदर्शनी में आदिवासी समाज की रीति रिवाज, परंपरा, संस्कृति, कृषि, पूजा पाठ तथा जीवन में उपयोग आने वाली उन सारी वस्तुओं को प्रदर्शनी में लगाया गया ।महासम्मेलन मे आने वाला समाज प्रदर्शनी को देखकर आश्चर्यचकित हो रहा था और आदिवासी समाज के बारे में सारी जानकारियां मिली ।

 

3) महिला परिसंवाद :-- दिनांक 13 जनवरी 2018 को प्रातः 10:30 बजे से महिलाओं परिसंवाद की शुरुआत हुई । इस परिसंवाद में प्रदेश के 10 राज्यों की महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इस सभा को एलीना होरो (झारखंड), कीर्ति वर्धा (महाराष्ट्र), सुनीता बहन (दादरा नगर हवेली), दमयंती बहन चौधरी (गुजरात), वासवी कीड़ों (झारखंड) ममता कुजूर (छत्तीसगढ़ ),बवानी कुलवंदा (आंध्र प्रदेश) यंगझूम डोलकाट (जम्मू एंड कश्मीर), अन्नु कुजूर (दिल्ली ),टीना दोषी (गांधी लेबर इंस्टिट्यूट अहमदाबाद), समता संस्था के प्रमुख रवि भाई (जिन्होंने आदिवासियों के लिए सर्वोच्च न्यायालय से 1997 में एक ऐतिहासिक न्याय "समता जजमेंट" को आदिवासियों के हित में करवाने में अहम योगदान दिया था ),हेमलता कटारा, डॉ राधा डामोर, सारा (इंडोनेशिया) आदि महिला प्रतिनिधियों महिला सशक्तिकरण, महिलाओ को संगठित करना, स्वावलंबन, आदिवासियों के वैचारिक आंदोलन मे महिलाओं का योगदान आदि विषयों पर अपने-अपने विचार रखे। इस अवसर पर उर्मिला खर्ते व अनीता सोलंकी द्वारा प्रेरणादाई गीत भी प्रस्तुत किया गया। महिला परिसंवाद की अध्यक्षता आदिवासी एकता परिषद के अध्यक्ष मंडल के सदस्य आप साधना बहन मीणा द्वारा की गई। संचालन सोनल बहन राठवा तथा सुमित्रा बहन वसावा व आभार मीनाबेन वसावा द्वारा किया गया ।

 

4)⏩आदिवासी साहित्यकारों का परिसंवाद :-- दिनांक 13 जनवरी 2018 को दोपहर 3:00 बजे से 6:30 बजे तक देश के प्रसिद्ध आदिवासी साहित्यकारों की उपस्थिति में साहित्य सम्मेलन संपन्न हुआ । इस परिसंवाद में देश के जाने-माने साहित्यकारों ने भाग लिया । जिसमें प्रमुख रुप से डॉक्टर आनंद भाई वसावा (गुजरात), डॉक्टर लालू भाई वसावा (गुजरात) ,सुनील गायकवाड (महाराष्ट्र ), एपो उरांव (आंध्र प्रदेश ), प्रोफेसर शंकर कहार (उड़ीसा), प्रोफेसर विपीन जोजो ,मुंबई (महाराष्ट्र), वासवी किड़ो (झारखंड),प्रोफेसर रेखा वास्कले (मध्य प्रदेश ),अर्जुन राठवा (गुजरात), आदि साहित्यकारों ने आदिवासी साहित्य की यात्रा, दशा एवं दिशा, आदिवासियों का मौखिक साहित्य, आदिवासी साहित्य का इतिहास, आदिवासी समाज एवं पत्र पत्रिकाएं आदि विषयों पर अपने अपने विचार प्रकट किये एवं देश के सभी आदिवासी साहित्यकारों को एक मंच पर लाने की बात कही। इस सम्मेलन की अध्यक्षता आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक सदस्य वाहरू सोनवणे द्वारा की गई संचालन कनु भाई राठवा द्वारा किया गया ।

 

5)⏩ बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम:-- दिनांक 13 जनवरी 2018 को शाम 9:00 बजे से स्कूल, कॉलेज तथा यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों द्वारा 20 के लगभग मनमोहक आदिवासी संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी गई। जिसमें आसाम का बिहू नृत्य, जम्मू कश्मीर का आदिवासी नृत्य, नेपाल का आदिवासी नृत्य की प्रस्तुति भी विशेष रुप से आकर्षण का केंद्र रहा । इस कार्यक्रम का संचालन सुमित्रा वसावा, मीनाबेन वसावा तथा डॉक्टर राधा डामोर द्वारा किया गया ।

 

6)⏩आदिवासी सांस्कृतिक एकता महारैली:-- दिनांक 14 जनवरी 2018 को प्रातः 11:00 बजे से आदिवासी सांस्कृतिक एकता महारैली की शुरुआत नांदु राजा के स्टेच्यु पर फूल माला पहनाकर इस महारैली की शुरुआत की गई। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ में आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधित्व करने वाले नेपाल के फूलमन चौधरी, आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष मंडल के सभी सदस्य तथा भरत भाई वसावा, भारती वसावा सहित 15 राज्यों एवं दो देशों के प्रतिनिधि उपस्थिति आदिवासियों की एकता को इंगित कर रही थी । इस महारैली में देश के 15 राज्यों की लगभग 40 सांस्कृतिक नृत्य दल एवं एक नेपाल का नृत्य दल नाचते व झूमते हुए महारैली की शोभा बढ़ा रहे थे । महारैली में छोटे बड़े मिलाकर 30 ढोल सहित तूर, तारपा,दौवड़ा, मांदल, कुंडी, बांसुरी आदि आदिवासियों के मूल वाद्य यंत्र भी चार चांद लगा रहे थे । इस अवसर पर अधिकांश कार्यकर्ता अपनी अपनी पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए । महाराष्ट्र की महिलाएं लेजिम के साथ में चल रही थी । यह महारैली 5 किलोमीटर लम्बी थी। 7)⏩ महासम्मेलन का उद्घाटन:-- दिनांक 14 जनवरी 2018 को दोपहर 1:00 बजे आदिवासी सांस्कृतिक एकता महारैली पांडाल में प्रवेश किया, पंडाल में मौजूद हजारों कार्यकर्ताओं ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से इस महारैली का स्वागत किया । महारैली प्रकृति की सीधे हाथ से नाचते-गाते व झूमते हुए गगनभेदी नारे लगाते हुए पांडाल की परिक्रमा करने के उपरांत महासम्मेलन के विधिवत उद्घाटन हेतु आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक सदस्य सांगलिया भाई वलवी के नेतृत्व एवं नरसिंग भाई वसावा (आदिवासी पुजारी) को मंच के सामने आमंत्रित किया गया। संस्थापक एवं अध्यक्ष मंडल के सदस्यों की उपस्थिति मे पूजा विधी सम्पन्न हुई। जिसमें पंचतत्व एवं अन्न की पूजा की गई । पूजा अर्चना के तुरंत बाद महाराष्ट्र की आशा नाईक व उनकी टीम द्वारा धरती माता की वंदना अपनी सुरीली आवाज में प्रस्तुत की गई । इसके तुरंत पश्चात आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष कालूराम धोदड़े तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवभानुसिंह मंडलोई जी को मंच पर बुलाया गया । उनकी उपस्थिति में 25वें महासम्मेलन की अध्यक्षता हेतु जीवराज जी डामोर (राजस्थान) के नाम का प्रस्ताव गंगाराम मीणा (राजस्थान) द्वारा रखा गया जिसका समर्थन भरत भाई वसावा (गुजरात) द्वारा किया गया । मंच पर आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक एवं अध्यक्ष मंडल के सदस्यों को बुलाया गया । साथ ही साथ पांचों राज्यों के आदिवासी समाज के सक्रिय सदस्यों एवं देश भर से आए हुए अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों सहित जनप्रतिनिधियों को भी मंच पर आमंत्रित किया गया। नेपाल, इंडोनेशिया एवं संयुक्त राष्ट्र संघ के आदिवासी प्रतिनिधि को भी मंच पर आमंत्रित किया गया । उनकी उपस्थिति में महासम्मेलन की थीम "आदिवासी जोड़ो ,भारत जोड़ो" जिसे दो चित्रकार गौसा पेंटर व कांति पेंटर द्वारा अपने अपने दृष्टिकोण से तैयार किया था । उनके द्वारा थीम के बारे में दो-दो मिनट में बात रखी गई । तत्पश्चात आदिवासी साहित्य का विमोचन किया गया। जिसमें प्रमुख रुप से 24वे महासम्मेलन की CD -जेैलसिंह पावरा, आदिवासी एकता परिषद के 25 वर्ष-- सांगलिया भाई वलवी, आदिवासी कैलेंडर-- आदिवासी बचाव कृती समिती नाशिक (महाराष्ट्र ),महुआ के गुण-- वासवी किड़ो,आदिवासी योध्दा भीमानायक,(मूवी, पोस्टर) जयस,आदिवासी घडी़ , मुकेश बिरवा, आदिवासी भारत (मासिक पत्रिका)--जितेंद्र वसावा सहित जेसी अंथोनी, अनु कुजूर, गौसा व कांति पेंटर आदि द्वारा रचित एवं बनाए गये साहित्य का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया ।

 

8)⏩ महासम्मेलन मे उपस्थित लाखों लोगों को कई युवाओं एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा संबोधित किया गया । जिसमें 15 राज्य, 2 देशों सहित संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि भी शामिल है । स्वागत भाषण--डॉक्टर शांतिकर वसावा, आदिवासी एकता परिषद की भूमिका -- सांगलिया भाई वलवी, आदिवासी संस्कृति एवं जीवन मूल्य --वाहरू सोनवणे, मुख्यधारा के विकास का आदिवासी समाज पर प्रभाव-- ममता कुजूर, आजादी की लड़ाई में आदिवासियों का योगदान-- डोंगरभाऊ बागुल, प्राकृतिक संसाधन एवं आदिवासी समाज का स्वावलंबन-- जितेंद्र वसावा, आदिवासियों के संवैधानिक प्रावधान पांचवी और छठी अनूसची के विशेष संदर्भ मे-- प्रभु भाई टोक्या के अतिरिक्त विनय कुमार (दादरा नगर हवेली) ,सुनील गायकवाड (महाराष्ट्र), राजेश भाई कन्नौजे( मध्य प्रदेश), लालसिंह पारगी (गुजरात), मुकेश बिरवा (झारखंड),बिदु सोरेन (उड़ीसा ),डेविड बुरूड़ी (आंध्रा- तेलंगाना), अन्नु कुजूर (दिल्ली) दिनेश कुमार चौहान (आसाम), सोनम सुपारी (जम्मू कश्मीर), आदिवासी एकता परिषद संस्थापक अध्यक्ष-- कालूराम धोदड़े, पूर्व अध्यक्ष-- शिवभानु सिंह मंडलोई , भंवरलाल परमार (राजस्थान) ,विजय मछार (गुजरात ),अशोक भाई चौधरी (महासचिव ,आदिवासी एकता परिषद ) ,झूमा सोलंकी (विधायक, मध्य प्रदेश) ,महेश भाई छोटू भाई वसावा (विधायक गुजरात) आदि वक्ताओं ने अपने अपने राज्य में आदिवासियों की स्थिति, संघर्ष एवं आदिवासियों एकता के सूत्र में बनाने बांधने मे आदिवासी एकता परिषद की भूमिका पर अपनी अपनी बात रखी। इस अवसर पर जगन भाई (गुजरात) ,चंपालाल बड़ोले (मध्य प्रदेश), भीम सिंह पवार, संतोष पावरा (महाराष्ट्र )आदि ने आदिवासी प्रेरणादायक गीतों की मनमोहक प्रस्तुतियां गाकर सभा में समा बांधा ।

 

9)⏩ सांस्कृतिक कार्यक्रम :-- 25वें आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन के ऐतिहासिक अवसर पर देश एवं विदेश से आए हुए आदिवासी कलाकारों द्वारा 82 सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां देकर पंडाल में उपस्थित लाखों कार्यकर्ताओं का मन मोह लिया । जिसमें प्रमुख रुप से आसाम का बिहू नृत्य, जम्मू कश्मीर का आदिवासी नृत्य ,नेपाल का आदिवासी नृत्य, गुजरात का विश्व प्रसिद्ध डांग नृत्य, महाराष्ट्र का डोंगरिया देव नृत्य, दादरा नगर हवेली व महाराष्ट्र का तारपा नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र रहा । इसी सत्र में MY TV द्वारा निर्मित "आदिवासियों का इतिहास", "नार्वे के सौम्या समुदाय की आदिवासी संसद", जयस द्वारा निर्मित "आदिवासी योद्धा भीमा नायक" टेली फिल्म भी प्रदर्शित की गई । सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत पहले इस ऐतिहासिक महासम्मेलन के आयोजन के लिए गुजरात राज्य के कार्यकर्ताओं को मंच पर बुलाकर तालियों की गड़गड़ाहट से सम्मान किया गया एवं आभार व्यक्त किया गया । इसके साथ ही "आदिवासी ससांस्कृतिक एकता यात्रा" में अपना पूरा समय देने वाले कार्यकर्ताओं को भी मंच पर बुलाकर तालियां बजाकर स्वागत सम्मान व आभार व्यक्त किया गया । सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन डॉ राधा डामोर, सुमित्रा बहन वसावा, धर्मेंद्र बोरसे ,एल एन पाड़वी, दरबारसिह पाड़वी, जेल सिंह पावरा, दामू ठाकरे आदि ने किया ।अनुशासन समिति के रूप में सी के पाड़वी, अनिल रावत, भूपेंद्र भाई चौधरी, लालसिंह गामित, धनेश ठाकरे, अरविंद कोटेड़, नीलेश भाई पटेल,मगनसिंह बघेल आदि ने निभाई ।

 

10)⏩युवा सत्र :--दिनांक 15 जनवरी 2018 को "विशेष युवा सत्र "का आयोजन किया गया । जिसमें "युवाओं की अपेक्षाएं, चुनौतियां एवं दायित्व" विषय पर कई युवाओं ने अपनी बात रखी । जिसमें प्रमुख रुप से अश्विन वसावा, कृती वसावा (गुजरात), नक्ताराम भील (राजस्थान), सचिन सातवी (महाराष्ट्र ),सुनील वास्कले (मध्यप्रदेश) मुकेश बिरवा (झारखंड ),दिनेश कुमार चौहान (आसाम) ,कैलाश वसावा (महाराष्ट्र), रणजीत गायकवाड (महाराष्ट्र), डॉक्टर रमेश चौहान , डॉक्टर के एस डामोर (मध्य प्रदेश) सहित लगभग 20 से 25 युवाओं ने अपनी बात रखी । देश के आदिवासियों को एकता के सूत्र में बांधनी में आदिवासी एकता परिषद की भूमिका पर जोर दिया। युवा सत्र का संचालन डॉ सुनील पराड़ ( पालघर, महाराष्ट्र) द्वारा किया गया ।

 

11)⏩ संगठन व समापन सत्र :-- इस ऐतिहासिक महासम्मेलन के अंतिम सत्र के रूप में संगठन व समापन सत्र दिनांक 15 जनवरी 2018 को दोपहर 3:00 बजे से प्रारंभ हुआ एवं शाम 5:30 बजे तक चला । जिसमें देश विदेश से आए हुए कई कार्यकर्ताओं ने आदिवासी एकता परिषद के कार्यक्रमों के बारे में अपने अपने सुझाव दिये। आदिवासी एकता परिषद के द्वारा कुछ कार्यक्रमों की घोषणा संगठन सत्र में की गई जिसमें प्रमुख रुप से हर राज्य में "राज्य स्तरीय आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन" का आयोजन किया जाएगा । इस महासम्मेलन के अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति उस प्रदेश का साल भर के लिए प्रदेश अध्यक्ष होगा । तत्पश्चात राष्ट्रीय तर्ज पर राज्य स्तर पर अध्यक्ष मंडल का सदस्य होगा । 9 अगस्त को "विश्व आदिवासी दिवस समारोह" मनाना, क्रांतिकारियों,महापुरुषों तथा शहीदों की जयंतियां व स्मृती दिवस मनाना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज जागरण करना, नेतृत्व निर्माण हेतु शिविर का आयोजन करना, वृक्षारोपण को बढ़ावा देना तथा आदिवासियों की स्थिति को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सभी राज्यों के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्रियों को खत लिखा जाएगा । शेष कार्यक्रमों की घोषणा अध्यक्ष मंडल की मीटिंग में चर्चा उपरांत घोषित किए जाएंगे ।

 

12)⏩ महासम्मेलन के उद्घाटन सत्र में गुजरात राज्य के कैबिनेट मिनिस्टर का आदिवासियों के हित के विरोध में जाकर कार्य करने के लिए पांडाल में उपस्थित कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध दर्ज किया गया । आयोजकों द्वारा इसे रोकने का प्रयास किया गया किंतु लोगों द्वारा आक्रोश में आकर उनके वाहन को नुकसान पहुंचाया गया । यह हमारे लिए ठीक नहीं है, क्योंकि आदिवासी एकता परिषद "एक वैचारिक आंदोलन है" जो हिंसा में विश्वास नहीं करता है । महासम्मेलन में हुई इस घटना पर आदिवासी एकता परिषद के महासचिव द्वारा मंच से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी एवं खेद व्यक्त किया ।

 

13)⏩आदिवासी एकता परिषद के 25 वे आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन को सफल बनाने में सभी राज्यों के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने एवं भागीदारी निभाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा एवं आभार व्यक्त करते हैं।

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SACHCHIDANAND CHOTABABU SOREN

unread,
Jan 18, 2018, 2:55:03 AM1/18/18
to adi...@googlegroups.com
कृपाया फ़ोटो भी भेजे

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AYUSH main

unread,
Jan 18, 2018, 2:55:06 AM1/18/18
to AYUSH google group
[राजपिपला मी हुवे आदिवासी संस्कृती महासंमेलन मे युवा सत्र मी मुझे बात रखने को कहा गया, पर स्टेज पे जातेही मुझे लगा मै जो बोलना चाह रहा था वह ठिकसे बोलना नही हो पाया इसीलिये आपके जाणकारी के लिये यहा लिखके शेअर कर रहा हू] ..... 

सभी को आप कि जय !
माफ़ कीजियेगा मैं बहुत अच्छा वक्ता नहीं हूँ, पर मेरी बात संक्षिप्त रखनेकी कोशिश करूँगा
मेरा नाम सचिन सातवी, मूलतः डहाणू, जिला पालघर महाराष्ट्र से।

सरकारी दप्तर के अनुसार १५-३५ साल उम्र युवा माना जाता है। और अभी हमारे देश मे ४०% युवा है। क्रियाशील, गतिशील, उत्साह और ऊर्जामान यह युवावोके महत्वपूर्ण पेहलू है। किसी भी समाज या देश के विकास भविष्य के लिये युवा वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह कहते हुवे गर्व महसूस हो रहा है कि इस आदिवासी वैचारिक आंदोलन मे ७०-८० साल उम्र के आदर्श युवा हमे मार्गदर्शक है।

आज आदिवासी समाज एक नाजूक मोड पे है। अलग अलग छोटी बडी समस्याओंका सामना कर रहा है। एक और किताबी शिक्षा कि गुणवत्ता, रोजगार, कौशल्य, अर्थव्यवस्था तो दुसरी और संविधानिक अधिकारोका हनन, कागदी योजना, जल जंगल जमीन का अधिकार छिना जा रहा है। हमारी सांस्कृतिक पहचान, समाज/पर्यावरण/जीवसृष्टि सवेंदना कम होते हुवे दिख रही है।

आदिवासी समाज को फिरसे स्वावलंबी/सशक्त/स्वयंपूर्ण बनाने और समाज कि सभी समस्याओंका कायमस्वरूपी समाधान हेतू युवा वर्ग पे बहुत बडी जिम्मेदारी है। आज के युवा अपनी पारंपरिक व्यवस्था जाणते है और नयी तकनिकी साधनोसे परिचित है। हमारी स्वावलंबी सामाजिक व्यवस्था, मूल्य, पारंपरिक ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कार, संस्कृती, पर्यावरण, निसर्ग, जीवश्रुष्टी आदी का अध्ययन एवं आदर करके नये जमाने के साथ नये गती के साथ चलने वाली समाज की एक अपनी यंत्रणा बनाने हेतु सभीने अपने अनुभव कौशल्य और रूचि अनुसार सहभागी होने की आदत डाल लेनी चाहिए। हर एक क्षेत्र में ऐसे प्रयासोंको मजबूती करने पूरक उपक्रम और उसके लिए समय/कष्ट/सहकार्य देने वाले युवावोंके समूह तैयार करने की जरुरत है, हम सभीको इन जरूरतोंको ध्यान रखते हुवे वैयक्तिक एवं एकत्रित कार्य को बढ़ावा चाहिए।

आज पर्यावरण, जीवसृष्टि, मानवी मूल्य, अर्थव्यवस्था इत्यादि अच्छी तरह जिने के लिए दुनिया आदिवासी जीवन शैली को आदर्श मानती है। तो आदिवासी समाज को सभी समुदायों का बड़ा भाई होनेके नाते एक बड़ा दायित्व निभाना है। इसी लिए आदिवासी समाज को खुदको सक्षम बनाना जरुरी है। सिर्फ आदिवासी समाज नहीं, सिर्फ सरहदोमें बटा एक क्षेत्र नहीं बल्कि दुनिया के सभी जीवसृष्टि एवं विश्व के हित हेतु हमारी समाज मूल्य एवं सभ्यताओंको खड़ा उतरना है। और उसके लिए शक्तिशाली, गुणसंपन्न, कार्यशील, कृतिशील, युवावोंको संस्कार देनेवाली स्वयंपूर्ण प्रणाली मजबूत करने की जरूरत है।

मेरा क्षेत्र देस के आर्थिक राजधानी से सटा हुवा है, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी वाला यह अनुसूचित क्षेत्र अलग समस्याओं का सामना कर रहा है। शिक्षा दर्जा, आश्रम शाला एवं आवास की समस्याएं, रोजगार और व्यवसायों में बाहरी कब्ज़ा, बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स/डैम/महामार्ग के लिए विस्थापन, शहरोके लिए पानी चोरी, प्रदूषित होती नदिया, जहरीली शराब की आदते, कुपोषण, बाहरी लोगो की संख्या बढ़ने से बढ़ते गुनाह, प्रसाशन में समाज के प्रति असवेंदना, जल जंगल जमीन से छूटता अधिकार और इसपेसे ध्यान हटाने दर्ज़नोसे अनेक पंथ, धर्म, राजनीतिक दल की लड़ाईया जिसके कारन आपस में लड़ते आदिवासी। यह चित्र बदलने की जरुरत है और इस तरफ अनेक प्रयास हो रहे है।

उदहारण की तौर पे हम पिछले ११ सलों से आदिवासी युवावोंमे जागृती करने हेतु हम आयुश (आदिवासी युवा शक्ति) माध्यमसे प्रयास है. आदिवासी पारम्परिक हस्तकला वारली चित्रकला का भौगोलिक उपदर्शनी में बौद्धिक सम्पदा अंतर्गत दर्ज कराया है. और अभी पारम्परिक ज्ञान जतन के साथ आर्थिक स्वावलम्बन हेतु प्रयास चल रहे है. सोशियल नेट्वर्किंग के माध्यमसे सामाजिक जागृतिका प्रयास जारी है. विश्वास है की आप सभी के मार्गदर्शन से हम यह प्रयास और प्रभावी बनाएंगे. जोहार !

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anup

unread,
Jan 18, 2018, 12:18:15 PM1/18/18
to adi...@googlegroups.com
thanks


A N kispotta, New Delhi


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AYUSH | adivasi yuva shakti

unread,
Jan 21, 2018, 1:41:19 PM1/21/18
to AYUSH | adivasi yuva shakti
वयक्तिक अनुभव : काय बघितले महासंमेलनात 
२५ वे आदिवासी सांस्कृतिक महासंमेलन, राजपिपला - गुजरात  

उच्च शिक्षित /व्यवसाय/नोकरी करणाऱ्यांचा सहभाग : 
स्थानिक पातळीवरचे डॉक्टर/अभियंते यांच्या ग्रुप चा एक्टिव सहभाग ठळक पणे जाणवत होता. वेवस्थित प्लॅनिंग आणि इम्पलेमेंटेशन, को ऑर्डिनेशन मुळे हा कार्यक्रम आंतरराष्ट्रीय पातळीवरचा वाटत होता. गुजरात मधील उच्च शिक्षित आदिवासी चळवळीशी जोडलेले आहेत आणि बऱ्यापैकी सामाजिक उपक्रमात सहभाग असतो. महाराष्ट्रात विशेष लक्ष देणे गरजेचे वाटतेय 

युवा वर्गाचा मोठा सहभाग : 
सामाजिक कार्यक्रमात युवा वर्गाचा सहभाग लक्षणीय होता हे आशादायक आहे. हि ऊर्जा आदिवासी चळवळ आणि समाजोपयोगी उपक्रम मजबुतीकरणासाठी सतत कार्यशील राहण्यासाठी प्रयत्न करूया

सर्व राजकीय पक्षांचा सहभाग :
विविध पक्षांचे पदाधिकारी आणि कार्यकर्ते आदिवासी समाजाचा एक भाग म्हणून सहभागी दिसले. जितके विविध राजकीय विचार सरणीची माणसे सहभागी होतील तितकी आपली चळवळ सर्वव्यापी होण्यास हातभार लागेल असे वाटते 

पारंपरिक ज्ञान आणि संस्कृतीचे दर्शन : 
विविध राज्यातील संस्कृती आणि पारंपरिक कलांचे प्रदर्शन खूप छान आयोजित केले होते. विशेष म्हणजे प्रवेश द्वाराजवळ मोठ्या आकारात पालघर जिल्ह्यातील कार्यकर्त्यांनी काढलेली वारली पेंटिंग रांगोळी. 
 
विविध संस्था/संघटना सहभागी : 
अनेक संस्था आणि संघटना विविध माध्यमातून सहभागी झाल्या होत्या. असेच संपर्क जाळे आणि एकत्रित येऊन समाजोपयोगी उपक्रम करण्यासाठी प्रयत्न करूया. 

# विविध माध्यमातून हे आदिवासी वैचारिक आंदोलन सुरु आहे आणि अधिक मजबूत करण्यासाठी पुढील गोष्टींवर सविस्तर चर्चा करून मार्ग काढूया. 
१) शेवट्याच्या कार्यकर्त्याला ध्येय धोरणे पूर्ण माहिती होण्यासाठी घोषणा पत्र आणि त्याचे स्पष्टीकरण व जागरूकता 
२) समाजा समोरील आव्हाने विविध माध्यमातून सोडविण्यासाठी आणि दिशा देण्यासाठी पूरक उपक्रम 
३) सकारात्मक आणि रचनात्मक समाजउपोयोगी उपक्रम सुरु करणे आणि त्यासाठी कार्यकर्त्यांची फळी तयार करणे 
४) सुशिक्षित/नोकरी/व्यवसायी माणसे चळवळी सोबत जोडून सहभाग वाढवण्यासाठी प्रयत्न करणे 
५) शिस्तबद्ध ध्येय आधारित संघटन वाढवणे आणि पूर्ण वेळ देणारे प्रामाणिक कार्यकर्त्यांची फळी तयार करणे 

काही चुकले असल्यास दुरुस्ती करावी, आदिवासी चळवळ अधिक प्रभावी व्हावी हि प्रामाणिक इच्छा. चलो एकत्रित प्रयत्न करूया. Lets do it together!


On Thursday, January 18, 2018 at 1:25:06 PM UTC+5:30, AYUSH adivasi yuva shakti wrote:
[राजपिपला मी हुवे आदिवासी संस्कृती महासंमेलन मे युवा सत्र मी मुझे बात रखने को कहा गया, पर स्टेज पे जातेही मुझे लगा मै जो बोलना चाह रहा था वह ठिकसे बोलना नही हो पाया इसीलिये आपके जाणकारी के लिये यहा लिखके शेअर कर रहा हू] ..... 

सभी को आप कि जय !
माफ़ कीजियेगा मैं बहुत अच्छा वक्ता नहीं हूँ, पर मेरी बात संक्षिप्त रखनेकी कोशिश करूँगा
मेरा नाम सचिन सातवी, मूलतः डहाणू, जिला पालघर महाराष्ट्र से।

सरकारी दप्तर के अनुसार १५-३५ साल उम्र युवा माना जाता है। और अभी हमारे देश मे ४०% युवा है। क्रियाशील, गतिशील, उत्साह और ऊर्जामान यह युवावोके महत्वपूर्ण पेहलू है। किसी भी समाज या देश के विकास भविष्य के लिये युवा वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह कहते हुवे गर्व महसूस हो रहा है कि इस आदिवासी वैचारिक आंदोलन मे ७०-८० साल उम्र के आदर्श युवा हमे मार्गदर्शक है।

आज आदिवासी समाज एक नाजूक मोड पे है। अलग अलग छोटी बडी समस्याओंका सामना कर रहा है। एक और किताबी शिक्षा कि गुणवत्ता, रोजगार, कौशल्य, अर्थव्यवस्था तो दुसरी और संविधानिक अधिकारोका हनन, कागदी योजना, जल जंगल जमीन का अधिकार छिना जा रहा है। हमारी सांस्कृतिक पहचान, समाज/पर्यावरण/जीवसृष्टि सवेंदना कम होते हुवे दिख रही है।

आदिवासी समाज को फिरसे स्वावलंबी/सशक्त/स्वयंपूर्ण बनाने और समाज कि सभी समस्याओंका कायमस्वरूपी समाधान हेतू युवा वर्ग पे बहुत बडी जिम्मेदारी है। आज के युवा अपनी पारंपरिक व्यवस्था जाणते है और नयी तकनिकी साधनोसे परिचित है। हमारी स्वावलंबी सामाजिक व्यवस्था, मूल्य, पारंपरिक ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कार, संस्कृती, पर्यावरण, निसर्ग, जीवश्रुष्टी आदी का अध्ययन एवं आदर करके नये जमाने के साथ नये गती के साथ चलने वाली समाज की एक अपनी यंत्रणा बनाने हेतु सभीने अपने अनुभव कौशल्य और रूचि अनुसार सहभागी होने की आदत डाल लेनी चाहिए। हर एक क्षेत्र में ऐसे प्रयासोंको मजबूती करने पूरक उपक्रम और उसके लिए समय/कष्ट/सहकार्य देने वाले युवावोंके समूह तैयार करने की जरुरत है, हम सभीको इन जरूरतोंको ध्यान रखते हुवे वैयक्तिक एवं एकत्रित कार्य को बढ़ावा चाहिए।

आज पर्यावरण, जीवसृष्टि, मानवी मूल्य, अर्थव्यवस्था इत्यादि अच्छी तरह जिने के लिए दुनिया आदिवासी जीवन शैली को आदर्श मानती है। तो आदिवासी समाज को सभी समुदायों का बड़ा भाई होनेके नाते एक बड़ा दायित्व निभाना है। इसी लिए आदिवासी समाज को खुदको सक्षम बनाना जरुरी है। सिर्फ आदिवासी समाज नहीं, सिर्फ सरहदोमें बटा एक क्षेत्र नहीं बल्कि दुनिया के सभी जीवसृष्टि एवं विश्व के हित हेतु हमारी समाज मूल्य एवं सभ्यताओंको खड़ा उतरना है। और उसके लिए शक्तिशाली, गुणसंपन्न, कार्यशील, कृतिशील, युवावोंको संस्कार देनेवाली स्वयंपूर्ण प्रणाली मजबूत करने की जरूरत है।

मेरा क्षेत्र देस के आर्थिक राजधानी से सटा हुवा है, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी वाला यह अनुसूचित क्षेत्र अलग समस्याओं का सामना कर रहा है। शिक्षा दर्जा, आश्रम शाला एवं आवास की समस्याएं, रोजगार और व्यवसायों में बाहरी कब्ज़ा, बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स/डैम/महामार्ग के लिए विस्थापन, शहरोके लिए पानी चोरी, प्रदूषित होती नदिया, जहरीली शराब की आदते, कुपोषण, बाहरी लोगो की संख्या बढ़ने से बढ़ते गुनाह, प्रसाशन में समाज के प्रति असवेंदना, जल जंगल जमीन से छूटता अधिकार और इसपेसे ध्यान हटाने दर्ज़नोसे अनेक पंथ, धर्म, राजनीतिक दल की लड़ाईया जिसके कारन आपस में लड़ते आदिवासी। यह चित्र बदलने की जरुरत है और इस तरफ अनेक प्रयास हो रहे है।

उदहारण की तौर पे हम पिछले ११ सलों से आदिवासी युवावोंमे जागृती करने हेतु हम आयुश (आदिवासी युवा शक्ति) माध्यमसे प्रयास है. आदिवासी पारम्परिक हस्तकला वारली चित्रकला का भौगोलिक उपदर्शनी में बौद्धिक सम्पदा अंतर्गत दर्ज कराया है. और अभी पारम्परिक ज्ञान जतन के साथ आर्थिक स्वावलम्बन हेतु प्रयास चल रहे है. सोशियल नेट्वर्किंग के माध्यमसे सामाजिक जागृतिका प्रयास जारी है. विश्वास है की आप सभी के मार्गदर्शन से हम यह प्रयास और प्रभावी बनाएंगे. जोहार !
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