A Beautiful Story

16 views
Skip to first unread message

Sunder Pal Saini

unread,
Oct 12, 2012, 10:55:15 AM10/12/12
to



मां की शिक्षा


एक बार मालदा शहर के एक बगीचे में एक अफगान व्यापारी बशीर मुहम्मद ने रात बिताई। 

सवेरे अपना सामान समेटकर वह वहां से चल पड़ा। कई मील पहुंचने पर जब उसने अपना सामान देखा तो याद आया कि रुपयों से भरी थैली तो एक पेड़ की डाली पर ही लटकी रह गई है। 

यह जानकर वह काफी दुखी हुआ। उसने सोचा , थैली तो मिलने से रही , फिर रुपयों के बिना व्यापार के लिए भी आगे नहीं जाया जा सकता। दुखी मन से वह वापस उसी ओर चल पड़ा। संयोगवश वीरेश्वर मुखोपाध्याय नामक एक बालक बगीचे में पहुंचा। 
खेलते - खेलते वह उस पेड़ के पास पहुंच गया जिस पर रुपयों से भरी थैली टंगी थी। बालक ने उत्सुकतावश थैली उतारी। उसके अंदर सोने की मुद्राएं देखकर वह हैरान रह गया। 

उसने माली से पूछा कि यहां कौन आया था ? माली ने बताया कि काबुल का व्यापारी रात गुजारकर यहां से दक्षिण की ओर रवाना हुआ है। यह सुनते ही बालक थैली लेकर दक्षिण की ओर दौड़ चला। 

तभी उसे बशीर मुहम्मद उस ओर आता हुआ नजर आया। बालक ने उसकी पोशाक देखकर अंदाजा लगा लिया कि यही काबुली व्यापारी है। उधर बशीर मुहम्मद ने भी बालक के हाथ में अपनी थैली देखी। 

बालक बोला , ' शायद यह थैली आपकी ही है। मैं इसे आपको लौटाने के लिए आ रहा था। ' 

एक नन्हे बालक के मुंह से यह सुनकर बशीर मुहम्मद दंग होकर बोला , ' क्या तुम्हें रुपयों से भरी थैली देखकर लालच नहीं आया । ' 

यह सुनकर बालक सहजता से बोला , ' मेरी मां मुझे कहानियां सुनाते हुए बताया करती है कि दूसरे के धन को मिट्टी के समान समझना चाहिए। चोरी करना घोर पाप है। थैली देखकर मेरा मन जरा भी नहीं डगमगाया। ' 

बालक की बात पर बशीर मुहम्मद बोला , ' धन्य है तुम्हारी मां। अगर हरेक मां अपने बच्चे को ऐसी ही शिक्षा दे तो समाज से बुराई पूरी तरह खत्म हो जाएगी। ' 

इसके बाद बशीर मुहम्मद बालक को आशीर्वाद देकर चला गया। 






--



Regards
Sunder Pal Saini

Sunder Pal Saini

unread,
Oct 13, 2012, 10:44:24 AM10/13/12
to



श्रीराम ने भरत के प्यार और त्याग की श्रेष्ठता सिद्ध 

जब राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे और उनका राज्याभिषेक हुआ, तभी एक दिन एक सभासद ने भरत से पूछा- ‘आपने राम के लिए इतना त्याग किया और श्रीरामजी भी आपको प्राणों से प्रिय बताते हैं, 

फिर क्या कारण है कि राजसभा में आपको सबसे पिछला स्थान दिया गया?’ भरत ने उत्तर दिया - ‘जो पेड़ कड़वा हो, उसकी पत्तियां, फूल व फल सभी कड़वे होते हैं। 

मेरी माता ने भ्राता राम को वनवास दिलवाकर जघन्य पाप किया था। उसका पुत्र होने के कारण इस पाप की कड़वाहट से मैं कैसे बचा रह सकता था? इसलिए मुझे सबसे पीछे स्थान दिया गया।’ जब सभासद ने श्रीराम को भरत के ये विचार बताए, 

तो वे बोले - ‘भरत के विचार ठीक नहीं हैं। अयोध्या लौटकर मैंने भरत से कहा था - कल से तुम मेरा छत्र लेकर मेरे पीछे खड़े रहोगे। कोई भी राजा तभी तक राजा रह सकता है, जब तक उसका छत्र सुरक्षित है।’

सभासद दुविधा में पड़ गया कि क्या सही है? उसने फिर भरत को राम के वचन सुनाए, तो वे बोले - ‘राम तो अपने अधम से अधम सेवक की भी प्रशंसा करते हैं। वैसे सही वही है, जो मैंने कहा।’ सभासद उलझन में पड़ गया। उसने श्रीराम को पुन: भरत के विचार बताए, 

तो वे बोले - ‘प्रेम व त्याग के युद्ध में मैं भरत से पराजित हो गया हूं। मैंने अपनी पराजय स्वीकार कर उन्हें पीठ दिखा दी है, इसलिए वे पीछे हैं। उनका पीछे होना उनकी महानता का सूचक है।’ 

रामायण का यह प्रसंग बताता है कि त्याग, सेवा और भक्ति की त्रयी धरती पर राम राज्य को साकार कर सकती है, जैसा भरत ने कर दिखाया। 

Sunder Pal Saini

unread,
Oct 16, 2012, 11:45:04 AM10/16/12
to


किसी शहर में एक 

मशहूर वैद्य था। उसकी दवाएं अचूकहोती थीं। वह जिस भी रोगी का इलाज करता , वह कुछसमय बाद स्वस्थ हो जाता था। 
लेकिन उसमें एक खराबी थीकि वह लालची बहुत था। एक बार एक महिला अपने 

बच्चेको लेकर आई। उसने कई जगहों पर कई वैद्यों से अपने बच्चेको दिखाया था , मगर कोई भी बच्चे के मर्ज को नहीं समझसका था।
वह महिला काफी उम्मीद लेकर इस वैद्य के पासआई थी। 

वैद्य ने बच्चे को देखकर दवाई दी। संयोगवश बच्चा कुछ समयबाद बिल्कुल ठीक हो गया। हर बार वह औरत वैद्य को कुछनकद रुपए देती थी , 
लेकिन इस बार बच्चे के बेहतर होतेस्वास्थ् के बारे में जानकर उसे बहुत खुशी हुई और उसने उपहार में वैद्य को रेशम का एक कीमती बटुआ दिया।

बटुआ देखकर वैद्य नाक - भौं सिकोड़ने लगा और बोला , ' बहनजी , मैं इलाज का केवल नकद रुपया ही लेता हूं।

ऐसे उपहार मुझे स्वीकार नहीं हैं। कृपया आप आज के दाम भी नकद देकर ही चुकाइए। ' 

वैद्य के मुंह से यह सुनकर महिला दंग रह गई और बोली , ' आप के आज के कितने रुपए हुए ?' वैद्य बोला , ' तीनसौ रुपए। ' 

महिला ने झट उस रेशमी बटुए में से तीन सौ रुपए निकाले और वैद्य की ओर बढ़ा दिए। इसके बाद वह महिलावैद्य से बोली , ' अच्छा हुआ तुमने अपनी लालची प्रवृत्ति उजागर कर दी। दरअसल मैंने खुश होकर इस बटुए मेंपांच हजार रुपए रखे थे। 

ये रुपए मैं तुम्हें अपनी श्रद्धा से देना चाहती थी। मेरा बच्चा तुम्हारे इलाज से सही हुआथा इसलिए मैंने अतिरिक्त इनाम तुम्हें देना चाहा था 
किंतु तुमने नहीं लिया। ' 

यह सुनकर वैद्य लज्जित हो गया और उसने उसी क्षण निश्चय किया कि आगे से वह कभी भी लालच नहीं करेगा और प्रत्येक व्यक्ति का इलाज सेवा - भावना से करेगा। 
Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages