श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन पर यूएन में प्रस्ताव- भारतीय कूटनीति की परीक्षा

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Sudhanshu Dev

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Mar 22, 2013, 2:29:25 PM3/22/13
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श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन पर यूएन में प्रस्ताव- भारतीय कूटनीति की परीक्षा

जेनेवा में चल रहे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् के 22वें सत्र में श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ सैनिक कार्रवाई के दौरान मानवाधिकार के उल्लंघन के लिए एक बार फिर प्रस्ताव लाये जाने की चारों तरफ चर्चा है. भारत ने पिछले वर्ष अमेरिका द्वारा लाये गये श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था. लेकिन इस बार प्रस्ताव के प्रति भारत का रुख स्पष्ट नहीं है. जाहिर है, श्रीलंका में हुए आंतरिक युद्ध में सेना के अपराधों की जांच करने के संबंध में अमेरिका ने नया प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव पर पेश है आज का नॉलेज..

40 हजार लोग यूएन के अनुसार श्रीलंका में 2009 में हुए आंतरिक युद्ध के आखिरी दिनों में मारे गये थे.

90 हजार तमिल महिलाएं तमिलों के खिलाफ इस युद्ध में विधवा हुईं.

30 हजार से ज्यादा श्रीलंकाई तमिल श्रीलंका सरकार के दमन के कारण वहां से पलायन कर चुके हैं.

नॉलेज डेस्क

बीते दिनों जेनेवा के पैलेस ऑफ नेशंस में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (यूएनएचआरसी) के मार्च में आयोजित होने वाले सेशन में एक डॉक्यूमेंट्री नो फायर जोन- द किलिंग फिल्ड ऑफ श्रीलंका देखने के बाद श्रीलंका के राजदूत बिफर पडे.. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की तीखी आलोचना इसलिए की कि उसकी अनुमति से ही यूएन मुख्यालय में इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाया गया. उनके आलोचनात्मक भाषण को बड.ी खामोशी से सुना गया. अभी जेनेवा में इस आयोग के 22वें सत्र में शामिल होने के लिए दुनिया भर के राजनयिक इकट्ठा हुए हैं और यहां श्रीलंका में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा भी होनी है. यह सत्र 22 मार्च को समाप्त होगा. उसके पूर्व ही प्रस्ताव लाया जाना है. 

श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे यह दावा करते रहे हैं कि 26 वर्षों से तमिल टाइगर्स के खिलाफ चले रहे आंतरिक युद्ध के 2009 में खात्मे के वक्त सरकार की ओर से कोई महत्वपूर्ण युद्ध-अपराध नहीं हुआ. पर अब कई स्रोतों से प्राप्त जानकारियों से यह साफ हो चुका है कि उनका दावा विश्‍वसनीय नहीं है. जैसे-जैसे नयी-नयी जानकारियां आ रही हैं, श्रीलंका सरकार मानवाधिकार उल्लंघन के मसले पर घिरती जा रही है. 

डॉक्यूमेंट्री के एक फोटो में दिखाया गया है कि श्रीलंकाई सेना की हिरासत में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन का बेटा बालचंद्रन बंकर के ऊपर बैठा है और स्नैक्स खा रहा है. कुछ घंटे बाद ली गयी एक अन्य फोटो में दिखाया गया है कि लड.के का शव जमीन पर पड.ा है और उसके सीने पर गोलियां मारी गयी हैं. यह फोटो मई, 2009 की हैं. इससे पहले सेना ने कहा था कि बालचंद्रन लिट्टे के प्रभाव वाले क्षेत्र में चलाये गये अभियान के दौरान क्रॉस फायरिंग में मारा गया था. ये तसवीरें सामने आने से श्रीलंका की सेनाओं के आचरण पर फिर सवाल उठे. साथ ही श्रीलंकाई सरकार की मुश्किलें बढ. गयीं, क्योंकि यह आरोप ऐसे समय में सामने आया है, जब अमेरिका यूएनएचआरसी में लिट्टे के खिलाफ युद्ध के दौरान मानवाधिकार के उल्लंघन को लेकर नया प्रस्ताव पेश करने वाला है. डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक कैलम मैकरे ने कहा कि इसे देखने के बाद यूएनएचआरसी में भारत का अगला कदम क्या होगा, इस पर सभी की निगाहें होंगी. फिल्म में नये सबूत को देखने के बाद निश्‍चित तौर पर भारत सरकार पर श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव के सर्मथन के लिए दबाव बढ.ा है. हालांकि चैनल के पास कोई ठोस सबूत नहीं हैं, पर वे सवाल जरूर उठाते हैं, जिनके जवाब संयुक्त राष्ट्र श्रीलंका से मांग रहा है. वैसे, यह डॉक्यूमेंट्री उन रिपोटरें पर आधारित है, जो एमनेस्टी इंटरनेशनल व इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप जैसी संस्थाएं तैयार करती हैं या फिर स्वयं संयुक्त राष्ट्र के संगठनों द्वारा इकट्ठा की जाती है. 

श्रीलंका में हुए इस आंतरिक-युद्ध में हजारों लोग मरे हैं, लेकिन यह पता करना कि उनमें कितने बेगुनाह नागरिक थे और कितने विद्रोही, बेहद मुश्किल है. श्रीलंका सरकार इस डॉक्यूमेंट्री को ही खारिज करती रही है. भारत ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि प्रस्ताव के प्रति उसका सर्मथन उसकी विषयवस्तु पर आधारित होगा. भारत इस बारे में सर्वोत्तम संभावित निर्णय करेगा. इसी रुख को लेकर विपक्षी दलों की ओर से कांग्रेस की आलोचना हो रही है. भारत के इस रुख को देखते हुए श्रीलंका ने कहा है कि वह अपने आंतरिक-युद्ध के बाद के वर्षों में अपनी उपलब्धियों से भारत को अवगत करायेगा. भारत ने पिछले वर्ष अमेरिका द्वारा लाये गये श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था. इस प्रस्ताव में श्रीलंका से लिट्टे के साथ युद्ध के अंतिम दौर में हुए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच करने को कहा गया था. कुछ दिनों पूर्व इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने भी यह आरोप लगाया था कि युद्ध-अपराध या मानवाधिकार के उल्लंघन से जुडे. मामलों की श्रीलंका सरकार ने कोई विश्‍वसनीय जांच नहीं करायी है. गौरतलब है कि इस प्रस्ताव में तमिलों के मानवाधिकार और उनके पुनर्वास के मुद्दे पर श्रीलंका की आलोचना की गयी थी. श्रीलंका पर लगाये जा रहे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के उल्लंघन और मानवाधिकार हनन के मामलों को गंभीरता से लेते हुए अमेरिका ने इसी साल कहा था कि वह जेनेवा में होने वाली बैठक में खुद ही इस संबंध में प्रस्ताव पेश करेगा. इस संबंध में आंतरिक युद्ध में सेना के अपराधों की जांच करने के संबंध में उसने नया प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया है. अमेरिका के प्रस्ताव में कहा गया है कि श्रीलंका सरकार लोगों के प्रति अपना दायित्व पूरा करने में विफल रही है. उसने राजनीतिक शक्ति का विकेंद्रीकरण भी नहीं किया है. प्रस्ताव में श्रीलंका में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की गयी है. दरअसल, तमिल-विद्रोह के दौरान श्रीलंका की सरकारी सेना द्वारा जो कार्रवाइयां की गयी थीं, श्रीलंका की सरकार उनकी जांच में जान-बूझ कर देरी कर रही है. आज भी वहां विपक्षी नेताओं के अपहरण और उनकी हत्याओं की घटनाएं हो रही हैं. श्रीलंका सरकार पर आरोप है कि वह देश की अदालती व्यवस्था में हस्तक्षेप करती है. राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका की सरकारी सेना और तमिल सेना के बीच अंतिम कुछ महीनों में हुए संघर्ष में 40 हजार आम नागरिक मारे गये थे. लेकिन श्रीलंका सरकार रिपोर्ट में पेश किये गये इन आंकड.ों को नकारती रही है. 

विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका के तमिलों की समस्या के निपटारे का एकमात्र स्रोत भारत है और भारत इस दिशा में पहले भी पहल कर चुका है. तमिलों की समस्या के समाधान के लिए राजीव-जयवर्धने समझौता की ओर लौटने की जरूरत है.

क्या है चैनल4 के डॉक्यूमेंट्री में?

चैनल4 की डॉक्यूमेंट्री श्रीलंका में मई, 2009 में समाप्त हुए गृहयुद्ध के आखिरी 138 दिनों की दहला देने वाली तसवीर पेश करती है. इसमें तमिल विद्रोहियों, नागरिकों और विजयी श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा लिये गये वीडियो और तसवीरों का प्रयोग किया गया है. फिल्म निर्माता कैलम मैकरे ने शुक्रवार को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फिल्म के प्रदशर्न से पहले जोर दिया कि इसे युद्ध अपराध के सुबूत और मानवाधिकार के खिलाफ अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि युद्ध के आखिरी दिनों में तकरीबन 40 हजार लोग मारे गये थे. इनमें से ज्यादातर श्रीलंकाई सेना द्वारा की गयी अंधाधुंध गोलीबारी में मारे गये थे. 

क्या है राजीव-जयवर्धने समझौता

29 जुलाई, 1987 को हुए भारत-श्रीलंका समझौता-1987 को राजीव-जयवर्धने समझौता भी कहा जाता है, जिसमें दोनों देशों के बीच रिश्तों में मजबूती लाने की बात की गयी है. इसमें कहा गया है कि सभी तरह की जातियां, प्रांतीय समस्याओं को दोनों देश आपस में मिलकर सुलाझायेंगे. श्रीलंका तमिल लोगों की प्रतिष्ठा की रक्षा करेगा.



Prakash Sagar

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Nov 29, 2013, 6:25:42 AM11/29/13
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Tara Chandra

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Jul 3, 2014, 10:31:37 AM7/3/14
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