अनिश्चितकालीन सत्याग्रह के बीच नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने आज संघर्ष और नवनिर्माण के 30 साल पूरे किये |
राजघाट ;बडवानीद्धए १६ अगस्त २०१५ रू १६ अगस्त-इस रोज 30 साल पहले नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत हुई नर्मदा धरण ग्रस्त समिती के गठन के साथ आज राजघाट के जीवन अधिकार सत्याग्रह स्थल पर उत्सव का वातावरण हैं। पुरानी यादे उजागर हो रही है, कि 16 अगस्त के ही दिन महाराष्ट्रª के आदिवासीयों ने अपनी आवाज उठाने के लिए कैसा संगठन बनाया जो फिर मध्यप्रदेश के कुछ थोडे गंाधीवादी विचारवंतो से शुरु हुए गुट से जुडते हुए मध्यप्रदेश मे भी फैलता रहा गुजरात के आदिवासी भी जो सन 1969 के पहले से ही उजाडे जा रहे थे भी इस संगठन मे शामिल होते गए सत्याग्रह स्थल के सभा मे आज सुबह ज्येष्ठ कार्यकर्ता देवराम भाई कनेरा, राजेन्द पाण्डे, सीताराम बाबा, कमला यादव, सुहास ताई कोल्हेकर, और मेधा पाटकर, अपने पुराने काल के अनुभव रखे, महाराष्ट्र के डोमखेडी मे पानी से टकराने वाले आदिवासीयो की कटीबद्धता तथा एकता पुॅंजीसी दमन के तथा भुमिगत मुददे के स्वदेशी अभियान से रोक थाम के लिये जीवनशालाए शुरु करने के संदर्भ के और सम्पुर्ण अंिहंसक मार्ग से पुॅंजीसो के कडी के (काॅंरडाॅंन) तोडने के। राजेन पांडेजी ने वह कहानी बताई की कैसे उन दिनो युवाओ ने शपथ ली और वे आंदोलन मे कुद पडे सीताराम बाबा और कमलु जीजी ने उनकी विशेष निमाडी ढंग से, पुलिसी दमन का उन्होने कैसे सामना किया इसकी कहानीया सुनाकर सुनने वालो को उत्साह और पे्ररणा दी।
निमाड के किसानो ने फल,सब्जीया तथा खेती के विविद उपजो का तथा बीजो का सत्याग्रह स्थल पर प्रदर्शन आयोजित किया। इस तरह निमाड की जैव विविधता का एहसास देते हुए निमाड की सम्पत्ति को उजागर किया।
स्थानिक तथा हायब्रीड बीज और जैविक पध्दती, जो हायब्रीड बीज और रासायनिक खाद तथा किटनाशक पर निर्भर खेती का पर्याय है, इसका आग्रह करते हुए अपने नैसर्गीक संशाधनो पर हक रेखांकित किया और विनाशकारी बांधो की पोलखोल की ।
ग्राम चिखल्दा जिसमे एशिया खंड के पहले किसान का जन्म हुआ था ऐसा ऐतिहासिक संशोधन मंे सिध्द किया ,ओर नर्मदा नदी पर सत्याग्रह स्थल के सामने इस चिखल्दा ग्राम के कुल 688 परिवारो मे से आज भी 600 सो परिवार बसे हुए है। इनमे किसान, खेती मजदुर, मछुआरे, कहार, कूम्हार और छोट-छोटे कारागीर , एंव व्यापारी है, जो सरदार सरोवर से ग्रस्त है, इनके घर और खेत भी कुछ हाद तक प्रभावित है, और पूनर्वास स्थल, जिसमे सभी सुविधाये उपलब्ध हो उसका कोइ ठिकाना नही आज भी मुलगाॅंव मे ही चल रही शालाए, दवाखाना, पंचायत, मंदिर जो 17 वी शतक पुराने, मस्जिद, जमातखाना, जैन मंदिर तथा पुरानी सिंचन योजनाए भी।
निमसे भरा क्षेत्र इसलिए जिसे निमाड कहते है, अभी तक डूब से विशेष गाॅंव प्रभावित नही हुए इसकी कृषि संस्कृति जहाॅं एक भी आत्म हात्या नही हुई, आज तक किसानो के साथ खेत मजदूर तथा छोटे व्यापारीयो का भी जीवन आधार रही, अब नष्ट हो रही है। यदि सरदार सरोवर पुरा करके उसके गेटस बंद किये जाए तो 125 गाॅंव (कुल 245 मे से) मध्यप्रदेश के निमाड क्षेत्र से जो डूब मे आ सकते है, इस साल या अगले साल आज के दिन 177 जिसमे एक नगर है, प्रभावित माने जाते 122 मी. बांध की उचाई पर। खम्बे बांधे जा रहे है। गुजरात तथा केन्द्र के सम्पुर्ण साथ से गेट लगाने की साजिश, अक्टुबर तक ही चल रही है, तथा न्याय के हर तत्व का अवमान करते हुए।
किसान, खेतमजदुर इस दिवस को आज आजादी उत्सव उत्सव के रुप मे सत्याग्रह स्थल पर मना रहे है। निमाड की जमीन और पानी के साथ यहा की कृषि संस्कृति बचाओ ऐसी दुनिया के सबसे पुराने इस सभ्यता के लोगो की चिल्लाहट है,। सत्याग्रह-सत्य के आग्रह की प्रतिज्ञा है, 30 सालो से अधिक समय के इस आंदोललन की, कुछ यश तथा कई कठिनाईयो के साथ समता न्याय और चिरायु विकाश की दिशा मे।े
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Narmada Bachao Andolan,
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