प्रेस नोट 28 सितम्बर, 2015
सरदार सरोवर विस्थापितों के हज़ारों वयस्क पुत्रों के ज़मीन अधिकार समाप्त करने संबंधी
मध्य प्रदेश सरकार की याचिका सर्वोच्च अदालत द्वारा खारिज
2000 और 2005 के फैसलों के तहत हर वयस्क पुत्र का ज़मीन अधिकार सुरक्षित
आंदोलन से आदेश की स्वागत:
सर्वोच्च अदालत के आदेश से ‘पुनर्वास पूर्ण’ के शासकीय दावों की पोल-खोल
नई दिल्ली: सर्वोच्च अदालत के सामाजिक न्याय खंडपीठ की और से न्या. मदन लोकूर और न्या. उदय उमेश ललित ने आज सरदार सरोवर विस्थापितों के हज़ारों वयस्क पुत्रों के ज़मीन अधिकार समाप्त करने संबंधी मध्य प्रदेश सरकार / नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की याचिका को खारिज करते हुए, आदेश दिया कि पूर्व में 2000 और 2005 में अदालत द्वारा दी गयी आदेशों का कोई पुनर्विचार संभव नहीं है |
मा. न्यायाधीशों ने म.प्र. सरकार को फटकार लगाया कि अगर उनके 2005 का आदेश गलत था, तो उसी समय शासन को पुनर्विचार याचिका दाखिल करना था| इतने सालों के बाद अब पूर्व में दी गई आदेश और उसके आधार पर की गयी आवंटन में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है | खण्डपीठ ने यह भी माना कि जबकि गुजरात, महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश में भी आज तक हज़ारों की पात्रता स्वीकार की गई है और इसके आधार पर ज़मीन आवंटन भी किये गए है, नगद भुगतान भी हुआ है, अब बचे हुए विस्थापितों को अपना अधिकार से वंचित करना, संविधान द्वारा स्वीकृत अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष सभी सामान) का तीर्व उल्लंघन होगा | “यह सुशासन नहीं है, यह कहते हुए, म. प्र. सरकार की याचिका पूर्ण रूप से से खारिज कर दी गयी |
प्रतिवादियों के अदिवाक्ता श्री संजय पारीख जी ने कहा की शासन की याचिका, कानून के प्रक्रिया का घोर उल्लंघन है और 2011 में सर्वोच्च अदालत द्वारा ओंकारेश्वर बाँध प्रकरण में पारित फैसले की गलत अर्थ के आधार पर है, जो सरदार सरोवर वयस्क पुत्रों के लिए लागू ही नहीं है | उन्होंने वाद में बताया की सरदार सरोवर में नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण, सर्वोच्च अदालत के फैसले 2000 और 2005 के आधार पर प्रत्येक पात्र वयस्क पुत्र, जिनके पिता की 25 प्रतिशत से ज़्यादा ज़मीन प्रभावित है, उन्हें स्वतंत्र रूप से 5 एकड़ खेतीलायक और सिंचित ज़मीन की पात्रता है | उन्होंने दस्तावेजों के आधार पर यह भी कहा की जब सरदार सरोवर विस्थापितों के लिए ज़िम्मेदार 3 मुख्य प्राधिकरण – नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण, शिकायत निवारण प्राधिकरण और केन्द्रीय पुनर्वास उपदल ने स्पष्ट रूप से लिखित में निर्णय लिया है / आदेश पारित की है कि सरदार सरोवर वयस्क पुत्रों को पृथक से ज़मीन की पात्रता है और ओंकारेश्वर का फैसला सरदार सरोवर में लागू नहीं होगा, तब राज्य सरकार इसका उल्लंघन नहीं कर सकती है |
नर्मदा आन्दोलन और सभी विस्थापित इस आदेश का स्वागत करते है, जो पूर्व में दी गयी आदेशों को पुनः स्थापित करती है| आज भी अपने कानूनी जीने के हक़ के लिए संघर्ष करने वाले हज़ारों गरीब आदिवासियों / छोटे किसानों को इस आदेश से बल मिलता है, जिनमे से कई खातेदारों के ज़मीन डूब-प्रभावित हो चुकी है |
आज के आदेश के तहत, अब मध्य प्रदेश सरकार को हज़ारों वयस्क पुत्रों को खेतीलायक, सिंचित ज़मीन देना है, जिनमे ऐसे सैकड़ों लोग शामिल है, जो फर्जी रजिसट्रीयों में फसाए गए है (लगभग 2,000, जिनकी संख्या न्या. झा आयोग की जांच रिपोर्ट से स्पष्ट होगी), जिन्हें नगद अनुदान का एक किश्त मिलने के बाद भी आज तक ज़मीन नहीं खरीद पाए (1500 विस्तापित) और सैकड़ों लोग जिन्हें शासकीय भूमी बैंक से खराब / अतिक्रमित ज़मीन दी गयी है | आज के आदेश से, शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष लंबित लगभग 500 प्रकरणों का तत्काल निराकरण संभव है |
प्रतिवादियों की और से अधिवक्ता श्री संजय पारीख जी के साथ, अड़ क्लिफ्टन रोजारियो और अड़ निन्नी सूसन उपस्थित थे | नर्मदा आन्दोलन की और से मेधा पाटकर भी न्यायालय में उपस्थित थी| म.प्र. की और ASG पटवालिया और नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की और से ASG तुषार मेहता ने बहस की |
राहुल यादव मुकेश बाबू अवास्या सुरभान भिलाला संपर्क फ़ोन - 09179148973