PMOPG/E/2025/0134215
संबन्धित विभाग : दिल्ली नगर निगम
प्रति वर्ष वर्षा ऋतु के दौरान बहुत से उद्यानों व अन्य कच्चे स्थानों पर प्राकृतिक रूप से वृक्ष उग आते हैं, किन्तु MCD के कार्मिक उन सभी को काट डालते हैं ऐसा बहुत सालों से हो रहा है। जो श्रमिक कटाई हेतु आते हैं उनको आदेश है की सभी नए फुटाव काट डालो, वे लोग बिलकुल भी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते और सभी नए उग रहे पौधों को काट डालते हैं। एक-एक नए वृक्ष को लगाना उसकी सुरक्षा व पालना बहुत ही श्रम का कार्य है, जो कार्य कुदरत स्वयं कर रही है उसे निगम की कार्मिक नष्ट कर देते हैं। प्रकृति के मुफ्त उपहार को जान बूझकर नष्ट कर दिया जाता है और फिर वही मुफ्त के काम खुद करने में लाखों का बजट पास किया जाता है फिर भी आंशिक सफलता ही हाथ लगती है। प्राकृतिक रूप से उगे पौधों के जीवित रहने की क्षमता व संभावना अधिक होती है। उन्हे केवल सुरक्षा चाहिए।
साथ ही वृक्षों के बढ़ते ही जनता भी तुरंत छंटाई की मांग करती है। हम वर्ष भर धूल व अत्यधिक प्रदूषण में रहते हैं किन्तु जब शुद्ध वायु मिल रही है तो छंटाई हमें तुरंत चाहिए। जिस व्यक्ति ने शायद जीवन भर में एक भी वृक्ष नहीं लगाया वो भी छंटाई के लिए अर्जी लगाने में सबसे आगे रहता है। अगर डालियाँ बढ़ने से कुछ समस्या भी होती है तो क्या हम कुछ समय उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते व हरियाली को क्यों तुरंत कम करना चाहते हैं । निगम कर्मी और दो हाथ आगे हैं वे आवश्यकता से अधिक छंटाई में बिलकुल भी नहीं हिचकते।
उपरोक्त के संदर्भ में आपसे अनुरोध है की सभी उद्यान निदेशकों को यह सख्त निर्देश दिया जाए की
(1) नई कोपलों को नष्ट ना किया जाए तथा
(2) छंटाई न्यूनतम मात्रा में की जाए
DARPG/E/2025/0013591
संबन्धित विभाग : DDA
प्रति वर्ष वर्षा ऋतु के दौरान बहुत से उद्यानों व अन्य कच्चे स्थानों पर प्राकृतिक रूप से वृक्ष उग आते हैं, किन्तु DDA के कार्मिक उन सभी को काट डालते हैं ऐसा बहुत सालों से हो रहा है। जो श्रमिक कटाई हेतु आते हैं उनको आदेश है की सभी नए फुटाव काट डालो, वे लोग बिलकुल भी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते और सभी नए उग रहे पौधों को काट डालते हैं। एक-एक नए वृक्ष को लगाना उसकी सुरक्षा व पालना बहुत ही श्रम का कार्य है, जो कार्य कुदरत स्वयं कर रही है उसे निगम की कार्मिक नष्ट कर देते हैं। प्रकृति के मुफ्त उपहार को जान बूझकर काट दिया जाता है और फिर वही मुफ्त के काम खुद करने में लाखों का बजट पास किया जाता है फिर भी आंशिक सफलता ही हाथ लगती है। कुदरती तौर पर उग रहे सैंकड़ों दरख्तों को शैशव काल में ही मौत की नींद सुला दिया जाता है प्राकृतिक रूप से उगे पौधों के जीवित रहने की क्षमता व संभावना अधिक होती है। उन्हे केवल मानव से सुरक्षा चाहिए।
साथ ही वृक्षों के बढ़ते ही जनता भी तुरंत छंटाई की मांग करती है। हम वर्ष भर धूल व अत्यधिक प्रदूषण में रहते हैं किन्तु जब शुद्ध वायु मिल रही है तो छंटाई हमें तुरंत चाहिए। जिस व्यक्ति ने शायद जीवन भर में एक भी वृक्ष नहीं लगाया वो भी छंटाई के लिए अर्जी लगाने में सबसे आगे रहता है। अगर डालियाँ बढ़ने से कुछ समस्या भी होती है तो क्या हम कुछ समय उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते व हरियाली को क्यों तुरंत कम करना चाहते हैं । इसी गहन हरियाली के लिए लोग अपने फार्म हाउस में लाखों खर्च करने को तैयार रहते हैं किन्तु सड़क पर मुफ्त में मिलती हरियाली आँखों में तुरंत चुभनी शुरू हो जाती है? निगम कर्मी और दो हाथ आगे हैं वे आवश्यकता से अधिक छंटाई में बिलकुल भी नहीं हिचकते। सवाल है की दरख्त की टहनियाँ ही क्यों काटी जाएँ बिजली के खंबे क्यों नहीं आगे पीछे किए जा सकते? बल्ब की ऊंचाई क्यों नहीं ऊपर नीचे की जा सकती? हम प्रदूषण से मर रहे हैं किन्तु पेड़ की कटाई का विचार मन में सबसे पहले आता है।
उपरोक्त के संदर्भ में आपसे अनुरोध है की सभी उद्यान निदेशकों को यह सख्त निर्देश दिया जाए की
(1) नई कोपलों को नष्ट ना किया जाए तथा
(2) छंटाई न्यूनतम मात्रा में की जाए
(3) जहां खंबे वृक्ष के बहुत पास हैं उनको दूर किया जाए तथा
(4) बल्ब की ऊंचाई 12-15 फुट से ऊपर ना हो जिससे अवरोध कम हो सके ।