DARPG/E/2025/0016319
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स्वस्थ जीवन सदैव से ही मानव की सबसे बड़ी आवश्यकता रहा है। आज स्वास्थ्य के लिए प्रदूषण व मिलावटी भोजन/दवाएं सबसे बड़े संकट के रूप में उभर कर आ रहे हैं। प्रदूषण आज एक वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है। इससे निबटने का उपाय किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथ में नहीं है। किंतु खाद्य पदार्थों/दवाओं में मिलावट व्यक्ति विशेष के हाथ में होती है। कोई न कोई इसको अपने हाथ से या अपने निरीक्षण में करवाता है। हमारे देश में मिलावट के लिए भी बहुत ही ढीले ढाले नियम हैं। केवल कुछ वर्ष की सजा। अगर कोई आतंकवादी कुछ नागरिकों को मार देता है तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता है किंतु एक मिलावट करने वाला जो हजारों लोगों को नित्य तिल-तिल मार रहा है उसे केवल नाममात्र का दंड? ये कैसा न्याय है? विशेष रूप से जो व्यक्ति पहले ही जीवन से संघर्ष कर रहा है वो नकली दवा देना अमानवीय है।
नकली खाने से लाखों लोगों की किडनी, अँतड़ियाँ, गुर्दे सब खराब होते हैं बीमारी में आर्थिक बोझ से परिवार तबाह हो जाते है किंतु केवल कुछ वर्ष का कारावास? हज़ारों व्यक्ति असह्य रोगों की मार झेलते हैं हस्पतालों पर काम का बोझ बढ़ता है जिससे अन्य प्राकृतिक रूप से बीमार व्यक्ति चिकित्सा नहों करवा पाते, चिकित्सा सुविधाओं पर समाज का अनावश्यक बोझ बढ़ता है. बीमार लोगों की आय की हानि होती है जिससे परिवार तनाव में आता है. यह तो सरासर अन्याय है। केवल एक लाख तक जुर्माना व अधिकतम 7 वर्ष की जेल? ये तो एक संवर्धन योजना की तरह है। सबको पता है की कानूनी उलझनों के चलते भारत में किसी को सजा दिलवाला कितना कठिन है, अगर कोई फंस भी गया तो केवल नाम मात्र की सजा? केमिकल से पके फल बेचना अपराध है, किंतु हर जगह ये बिक रहे हैं क्योंकि कोई सजा नहीं है। जिन राष्ट्रों में नशीली दवाओं के लिए मृत्यु दंड दिया जा सकता है वहां इस अपराध की आवृत्ति नगण्य होती है, इस मॉडल को भारत, खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए, भी लागू कर सकता है.
एक नकली केमिकल से घी, दूध, शहद आ दवा बनाने वाली कंपनी लाखों लोगों का जीवन बर्बाद कर देती है सजा केवल एक लाख का जुर्माना। यह वास्तव में एक उपहास प्रतीत होता है। अगर लाखों लोगों को क्षति पहुंचाने पर इतनी से सजा है तो आतंकवादी को मृत्यु दंड क्यों? क्षति ग्रस्त व घटती कार्य क्षमता वाले अंगों के साथ लाखों लोगों को जीवन यापन के लिए मजबूर करने वाले अपराधी को मात्र कुछ समय का कारावास? इसमें से भी कुछ समय वो पेरोल पर बाहर आ जाएगा और कुछ सजा सरकार 26 जनवरी/15 अगस्त को माफ कर देगी। जो लोग दिन रात पेट काट कर चिकित्सा हेतु पैसे इकट्ठा कराते हैं उन्हे बाद में क्या मिलता है – नकली दवाएं? क्या मानव जाति पर इससे बड़ा कोई कलंक हो सकता है? जान बूझ कर आर्थिक लाभ हेतु हानिकारक तत्वों को खाद्य पदार्थों/दवाओं में मिला कर मनुष्य को तड़पा कर मारने के लिए साधारण कारावास किसी भी दृष्टि से अपर्याप्त है, ऐसे मामलों में
(1) अपराधी व उसके साथ रहने वाली पत्नी/पति की सम्पूर्ण संपत्ति अनिवार्य रूप से जब्त होनी चाहिए,
(2) जीवन भर के लिए नागरिकता समाप्त होनी चाहिए,
(3) बंदी गृह में प्रतिदिन निश्चित संख्या में कोड़े लगने चाहिए
(4) अपराधी को सभी धाराओं में मिला कारावास क्रमशः चलना चाहिए।
(5) कारागृह में आकांतवास मिलना चाहिए