आपको स्मरण होगा कि निरंतर
http://www.nirantar.org के पुराने अंक हमारे पूर्व सर्वर से नष्ट हो गये थे। इन अंकों का हमारे पास बैकअप नहीं था। अंक 7 से हम नये सर्वर और जूमला प्रकाशन प्रणाली पर स्थानांतरित हो गये थे। निरंतर दल अब आहिस्ता आहिस्ता पुराने अंकों को फिर निर्मित करने का प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में पेश है हमारा मार्च 2005 का पहला अंक, फिलहाल इसे मुखपृष्ठ पर उपलब्ध कराया गया है। यह सामग्री पुरानी है, तीन साल पुरानी। ज़ाहिर है, कई कड़ियाँ टूटी होंगी पर हमें विश्वास है कुछ न कुछ आपकी पसंद का ज़रूर होगा। उस समय हमें ईस्वामी और अनुनाद जैसे कुछ ही पारखी पाठक मिले थे जिन्होंने टिप्पणी की थी। पंकज नरूला, जीतू, अतुल अरोरा, अनूप, ईस्वामी जैसे अनेकों का हाथ इसमें रहा है, मुझे यकीन है कि सामुदायिक पहलू आपकी नज़र से नहीं बचेगा।
आपकी खास तव्वजोह चाहुंगा दीना मेहता के लेख, वेबलॉग नीतिशास्त्र लेखों पर जो शायद आज भी प्रासंगिक हैं। मिक्स मसाला में उस समय के भारतीय चिट्ठाजगत के आंकड़ें देख कर भी हैरत कीजियेगा।
Debashish
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