रामसेतु का उलझता मामला

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arvind mishra

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Sep 16, 2007, 11:22:42 PM9/16/07
to Chithakar
रामसेतु का उलझता मामला हरि अनंत हरि कथा अनंता सरीखा है.भारतीय
पुरातात्विक सर्वेक्षण से गलती यह हो गयी कि उसने बेलौस राम की
ऐतिहासिकता को नकार दिया .यह जानते हुए की यहाँ राम एक आदर्श व्यवस्था के
प्रतिनिधि हैं ,पुरुषोत्तम हैं .आज भी रामराज्य हमारे लिए एक सुखद स्वप्न
है.अगर 'पुरुषोत्तम' राम की ऐतिहासिकता हम स्थापित नही कर पा रहे तो यह
हमारे अब तक के प्रयासों की कमी है ,इसका यह अभिप्राय नही है की राम जैसा
कोई वक्तित्व कभी था ही नही.राम को महज आस्था के रूप मे नही लेना चाहिए
और प्रकारांतर से दूसर धर्मों का औचित्य सिद्ध करना चाहिए जो प्रछन्न /
प्रत्यक्ष रूप से कई लोग और संगठन कर रहे हैं..जहाँ तक राम सेतु का मामला
है राम ने नही बनाया था ,यह एक कुदरती रचना है मगर इसका पुनरान्वेशन
उन्होंने किया होगा ,हमे अपने लोक स्मृति और महाकाव्यों मे ऐसे
अन्त्रसाक्ष्यों को देखना चाहिए .सब कुछ एकदम से कपोल कल्पित नही है.राम
सेतु के पुनर्खोज एवं पुनरोद्धार की राम की जिजीविषा सचमुच अद्भुत
है .पहले उनके निर्देशन मे हनुमान सर्वे करते हैं ,फिर नल के नेतृत्व मे
सेतु का पुनरोद्धार होता है .हमे अपने पौराणिक पुस्तकों के
अनार्साक्ष्यों को सिरे से खारिज नही कर देना चाहिए ,पर इन लोगों को कौन
समझाए .

sanjay kareer

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Sep 17, 2007, 7:03:42 AM9/17/07
to Chit...@googlegroups.com
चिट्ठाकारों के इस समूह में ऐसे विषयों पर भी कोई बोलना चाहता है यह पता नहीं था. लेकिन देखकर अच्‍छा लगा. 
 
सच्‍चाई तो यही है कि राम के अस्तित्‍व का कोई प्रमाण नहीं है.  मुझे पूरा विश्‍वास है कि  केंद्र सराकर के उन अधिकारियों का मंतव्‍य राम के अस्तित्‍व पर अंगुली उठाना कतई नहीं रहा होगा. इसे राजनीति का मुद्दा जबरन बनाया गया है.  राम हमारी आस्‍था है और यह भी सच है कि इसे किसी साक्ष्‍य से प्रमाणित नहीं किया जा सकता.
आप कहते हैं सब कुछ कपोल कल्पित नहीं है, ऐसा आप मान सकते हैं क्‍योंकि यह आपकी आस्‍था है पुन: आप इसे प्रमाणित नहीं कर सकते क्‍योंकि आपके पास एक भी साक्ष्‍य नहीं है.
नासा के एक अधिकारी ने दो दिन पहले इस मामले पर बयान दिया है कि उनके पास ऐसे कोई चित्र नहीं हैं जो रामसेतु की मौजूदगी या उसकी एतिहासिकता को प्रमाणित कर सकें. विडंबना है कि कुछ अखबारों ने इस बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थीं कि नासा के पास साक्ष्‍य हैं.
यह सिर्फ अवसरवादी राजनेताओं का मुद्दा भर है और आम आदमी को इससे कुछ लेना देना नही है. भारतीय जनता पार्टी जो खुद को धर्म का स्‍वयंभू ठेकेदार बनाए हुए है, सत्‍ता में रहने के बाद भी राम मंदिर क्‍यों नहीं बनवा पाई..... जब रामचंद्र जी इन लोगों से पूछेंगे तो क्‍या जवाब देंगे ये नेता?
सो बस बोलते रहें ...... जयश्री राम, क्‍यों कैसे आदि सवालों के जवाब मत तलाशें. यह आस्‍था का मामला ज्‍यों ठहरा.
मुझे उन लोगों के जवाब का इंतजार रहेगा जो मुझे नास्तिक, कांग्रेसी या मुस्लिम परस्‍त मानसिकता का मानकर गालियां देना चाहेंगे. 
हालांकि मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूं और पिछले 20सालों से इन मुद्दों पर लिखने बोलने के लिए गालियों से सम्‍मानित होता आ रहा हूं.
इस देश को राम के अस्तित्‍व पर बहस और आंदोलन करने से ज्‍यादा यहां फैले भ्रष्‍टाचार, बढ़ती आबादी, गरीबी और अशिक्षा जैसे मुद्दों पर सोचने और काम करने की जरूरत है.
हम नहीं जानते कभी राम थे या नही, रामसेतु था या नहीं, पर यह जानते हैं कि इस देश में ये समस्‍याएं हैं और इनका हल तलाश हमें करना ही होगा.  

arvind mishra

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Sep 17, 2007, 1:24:05 PM9/17/07
to Chithakar
धन्यवाद ,मैं न तो नास्तिक हूँ और न ही आस्तिक .एक बीच की कैटेगरी भी है
अग्येय्वादियों की .ये मेरी विवशता है की मैं अग्येय्वादी हूँ.
जो न तो भगवान् की सत्ता को मानता है और न ही इनकार करता है .
राम सेतु जिस रूप मे है एक कुदरती रचना है ,यह आस्था का प्रश्न नही है.यह
कोरी तार्किकता का सवाल है .नासा ने अपने उस बहुचर्चित चित्रण की चर्चा
करते हुए यह नही कहा है उक्त संरचना है ही नही.उसने बस विवाद से पीछा
छुडा लिया है.
यदि हम लोक स्मृतियों मे झांके तो राम के अस्तित्व को नकारना मुश्किल है -
भले ही वे भगवान् नही ,कोई था तो जरूर.
क्या लोक स्मृतियां इतनी झूठी हो सकती हैं ?
आप को किस तरह का प्रमाण चाहिए ??
आप क्या राम रावण युध अपनी आँखों से देखना चाहते हैं ?
यद् सार्भूतम तादुपास्नीयम ...कुछ कामन सेन्स से और अतिरंजना से अलग हट
कर देखें आप राम को मानने लगेंगे ,दशरथ के राम को न की भगवान् को .
राम सेतु का जिन्होंने पुनारान्वेशन किया था और उससे होकर लंका गए गए
थे ,रावण से युद्ध किया था .यह आर्य -अनार्या संघर्ष था .
लोक श्रुतियां निर्मूल नहीं हैं .

Hariram

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Sep 18, 2007, 3:44:02 AM9/18/07
to Chithakar
रामेश्वरम् के धनुषकोड़ि से लेकर श्रीलंका तक रामसेतु के मामले को
धार्मिक आस्थाओं और राजनैतिक वितर्कों से परे हटाकर शुद्ध वैज्ञानिक तथा
तकनीकी दृष्टि से देखें। आज भी वहाँ समुद्र किनारे ऐसे पत्थर मिलते हैं
जो पानी के ऊपर तैरते हैं। हमारे कुछ मित्र भी एक ऐसा ही पत्थर का टुकड़ा
उठाकर लाये थे जिसे स्थानीय मन्दिर में एक पानी के कुण्ड में सुरक्षित रख
दिया है। जो पानी पर तैरता रहता है। हजारों लोग, बच्चे से बूढ़े तक
प्रतिदिन आते हैं उस पत्थर को अपने हाथों से पकड़कर पानी में डुबाते हैं
और उनके छोड़ते ही वह पत्थर फिर से पानी के ऊपर आ जाता है और तैरने लगता
है।

भले ही पौराणिक कथा कुछ भी हो या न हो। उपग्रह से लिए गए चित्रों में
पानी के नीचे डूबा हुआ पुल जैसा कई किलोमीटर लम्बा उभार स्पष्ट दिखाई
देता है। ऐसे पानी के ऊपर तिरनेवाले हल्के पत्थर अपने आप में एक विस्मय,
आश्चर्य और विज्ञान तथा तकनीकी को चुनौती देते हैं। यदि ऐसे पत्थरों की
खान कही आसपास हो, या कृत्रिम रूप से ऐसे पत्थर बनाए जा सकें तो
रामेश्वरम् से लंका तक समुद्र पर यह पुल दुबारा बनाया जा सकता है।

फिलहाल यह समस्या है ब़ड़े जहाजों के आने-जाने के लिए शार्ट-कट समुद्री
मार्ग को प्रशस्त करने हेतु समुद्र के नीचे इस पुल जैसे उभार को तोड़कर
समुद्र को गहरा बनाने की सलाह दी है कुछ अन्तर्राष्ट्रीय इंजीनियरों ने।
इसे अवश्य ही डायनामाइट या बमों या अन्य विस्फोटकों से ब्लास्ट करके ही
तोड़ा जाएगा। जिससे भयँकर पर्यावरणीय संकट, भारत-श्रीलंका के भूखण्डों का
स्खलन, भूकम्प तथा सुनामी जैसी प्राकृतिक विपदाओं की आशंका है... विस्तृत
विवरण के लिए यहाँ देखें...

http://hariraama.blogspot.com/2007/09/ramsetu-environmental-issues.html


On 17 सित, 22:24, arvind mishra <drarvi...@gmail.com> wrote:
> धन्यवाद ,मैं न तो नास्तिक हूँ और न ही आस्तिक .एक बीच की कैटेगरी  भी है
> अग्येय्वादियों  की .ये मेरी विवशता है की मैं अग्येय्वादी हूँ.
> जो न तो भगवान् की सत्ता को मानता है और न ही इनकार करता है .
> राम सेतु जिस रूप मे है एक कुदरती रचना है ,यह आस्था का प्रश्न नही है.यह
> कोरी तार्किकता का सवाल है .नासा ने अपने उस बहुचर्चित चित्रण की चर्चा
> करते हुए यह नही कहा है उक्त संरचना है ही नही.उसने बस विवाद से पीछा

> छुडा लिया है.......
-....

जीतू | Jitu

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Sep 18, 2007, 4:57:41 AM9/18/07
to Chit...@googlegroups.com
इस बारे मे मै सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगा,
  1. धार्मिक मान्यताओं को नही छेड़ा जाना चाहिए। चाहे वो हिन्दू हो अथवा मुस्लिम या कोई और धर्म।
  2. इस स्थान (Adoms Bridge) की भले ही धार्मिकता के नाम पर उपयोगिता हो अथवा ना हो, लेकिन पर्यावरण के हिसाब यह एक अजूबा है, और इसे नही तोड़ा जाना चाहिए।
  3. इस मुद्दे को लेकर, राजनीति ना हो। ना बीजेपी की तरफ़ से और ना ही कांग्रेस/वामदलों की तरफ़ से।
-जीतू

arvind mishra

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Sep 18, 2007, 9:45:20 PM9/18/07
to Chithakar
आप ने परिश्रम से सामग्री जुटाई है .शुक्रिया .पानी मे तैरने वाले पत्थर
दरअसल कोरल हैं जो समुद्रों मे खासकर राम सेतु क्षेत्र मे बहूत मिलते
हैं.जबकि राम सेतु /नल सेतु लाईम स्टोन का है .
मेरी संकल्पना यह है कि राम ने कथित मार्ग का पुनरोद्धार किया था .जिससे
वह आम जन के आवागमन के लिए सुविधाजनक हो गया ,उन्होंने
इसका लोकार्पण [आधुनिक अर्थ मे ]भी किया होगा .
राम रावण युद्ध दरअसल मूल निवासियों ,जिनका रावण मुखिया था के साथ उत्तर
से आए आब्रजकों के मुखिया के संघर्ष की गाथा है.इसे आप आर्य-अनार्य
संघर्ष कह सकते हैं.
विजेता राम ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया .हम एक विजेता की
संस्कृतिक विरासत के उत्तराधिकारी है ,उसके विरुद्ध कुछ भी सुन नही
सकते ,जो स्वाभाविक है.
कुछ नेतागण हो सकता है पराजित पक्ष के कतिपय संस्कार अभी भी संजोयें हुए
हों ,जो नाहक ही इसे तोड़ने पर आमादा है और हाय तोबा मचाये हुए हैं.
नल सेतु , जीं हाँ राम ने यही नामकरण किया था [उनकी महानता ! आज तो सभी
नामकरण देश या प्रदेश का मुखिया ख़ुद अपने नाम पर करना चाहता है],
निसंदेह हमारी एक सांस्कृतिक विरासत है ,यदि हम उसे तोड़ने देते है तो
ताजमहल को भी जमींदोज कराने मे क्या गुरेज है ?
हम भारतवासियों के लिए दोनों ,राम सेतु और ताजमहल दोनों ही बेहद प्रिय
हैं ,इन्हे कोई भी नुकसान नही होने देना चाहिए.
पर्यावरण के लिहाज से तो यह संरचना लाखों तटीय लोगों के लिए जीवन मृत्यु
का प्रश्न है और एक अरब हिनुओं के लिए उनकी अस्मिता की पहचान .
किमाधिकम ?

zakirlko

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Sep 19, 2007, 2:07:33 AM9/19/07
to Chithakar
अरविंद जी, रामसेतु के बहाने आपके व्यक्तित्व के एक नये पहलू के बारे में
जानने को मिला। आपकी अपेक्षाकृत व्यावहारिक विचारधारा से मैं पहली बार
परिचित हुआ हूं।
जहाँ तक रामसेतु का मामला है, मेरी समझ से यह काफी बिगड़ गया है। धार्मिक
नज़रिये से तो मैं इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं करूंगा, वर्ना भाई लोग फौरन
फतवा देने लगेंगे। लेकिन यदि उसे प्राकृतिक नजरिए से देखा जाए, तो हम
स्वेज नहर और पनामा नहर को याद कर सकते हैं। वे नहरें भी इसी प्रकार से
बनाई गयी हैं। अब ज़ाहिर है जब कोई नया निर्माण होता है, तो कुछ पुराना तो
हमें खोना ही पड़ता है। जैसे कि हम जंगलों को काट कर बनाये जा रहे
कांक्रीट के जंगलों को ले सकते हैं। इसके फायदे और नुकसान दोनों अपने जगह
पर हैं। लेकिन इन नुकसानों की आशंका के कारण न तो जंगलों का कटना रूका है
और न ही शहरों का विकास।

> > > लोक श्रुतियां निर्मूल नहीं हैं .- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
>
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arvind mishra

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Sep 19, 2007, 10:28:15 AM9/19/07
to Chithakar
शुक्रिया जाकिर भाई ,आपका कहना सही है पर हर जगह सामान्य नियम नही लागू
होते ,राम सेतु का भी मामला कुछ ऐसा ही है.आप जो लाजिक दे रहे हैं उस
हिसाब से तो ताजमहल की भी बलि किसी विकास योजना के चलते दी जा सकती
है .मगर यह तो नही हुआ बल्कि एक सरकार ही ताज कारीडोर के मामले पर चली
गयी.हमे आम रचनाओं और संस्कृतिक/राष्ट्रीय धरोहरों का फर्क समझाना
चाहिए .
साथ ही यह भी देखना होगा की विकास के नाम पर जिस सरंचना की बलि दी जा रही
है उसके न होने का दूरगामी परिणाम क्या होगा ?
अगर राम सेतु का वजूद ख़त्म हुआ तो कोरल [मूंगा ] ,मछली प्रजातियों पर
तो संकट तो आयेगा ही ,सुनामी[कुनामी] भी आ सकती है और लोखों लोगों को मौत
के मुहं मे डालेगी ,बेघर बार कर देगी.लेने के देने पड़ जायेगें .ये महज
खयाली पुलाव नही है.अनेक ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं.जैसे फरक्का बाँध
बनने से गंगा नदी की समूची हिलसा मछली तथा महाझींगा मास्त्यिकी का वजूद
मिट गया .फरक्का बाँध बनने से जितना लाभ नही हुआ उससे कहीं कई गुना
ज्यादा नुकसान हो चला है.
फिर राम सेतु के टूटने से बने रास्ते से समुद्री जहाज़ों की आवा जाही से
उनसे निकले बैलासट जल से दोनों तटों के जैव समुदाय के अवांछित आमेलन से
जैवाक्रमण और जैव संपदा के विनस्ट होने की भी प्रबल संभावना है .सरकार
ने निशित रूप से इन मुद्दों पर देश की जनता को विस्वास मे नही लिया
है .मामला उतना सीधा सपाट नही है जितना ऊपर से दिखाई देता है .

> ...
>
> और पढ़ें »

Pratik Pandey

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Sep 19, 2007, 11:20:09 AM9/19/07
to Chit...@googlegroups.com
अरविन्द जी, रामायण आदि ग्रंथों में रावण ब्राह्मण के रूप में वर्णित है। जबकि राम क्षत्रिय जाति के बतलाए गए हैं। आर्यों की जाति व्यवस्था के हिसाब से रावण सबसे ऊपरी सिरे पर आता है, राम से भी पहले। तो फिर मेरे ख़्याल से उसे अनार्य मानना ग़लत होगा और शायद इसी लिए राम-रावण युद्ध को आर्य-अनार्य युद्ध के रूप में परिभाषित करना भी सही नहीं होगा।
 
प्रतीक पाण्डे

zakirlko

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Sep 20, 2007, 1:23:29 AM9/20/07
to Chithakar
अरविंद जी, मैं आपके तर्कों से सहमत हूं, पर इस देश में राजनीतिक स्वार्थ
सबसे पहले देखा जाता है, उसके बाद जनहित। इसके लाखों उदाहरण भरे पडे हैं।
हम लखनउ को ही लेते हैं। यहाँ पर मुलायम सिंह ने लोहिया पथ का निर्माण
कराया। मायावती ने उसे पैसे का अपव्यय बताया और जांच बिठा दी। लेकिन इसके
साथ ही साथ उन्होंने पहले से चकाचक अम्बेडकर स्मारक स्थल के सारे पत्थर
उखडवा दिये, जबकि अभी बने हुए ही उसे जुम्मा-जुम्मा चंद साल हुए हैं, और
अब वहाँ पर करोडों रूपये बहाए जा रहे हैं। यही हाल सारी पार्टियों और
सरकारों का है। सबकी मति एक जैसी है। कोई दलितों के नाम पर मरने मारने पर
उतारू है, कोई अल्पसंख्यंकों को लेकर और कोई हिन्दुओं को लेकर।
मेरी समझ से इस पर हम बुद्धिजीवी चाहे जो हो-हल्ला मचालें, सरकार वही
करेगी, जो उसके वोटबैंक के हिसाब से सही बैठता हो।

On 19 सित, 20:20, "Pratik Pandey" <prat...@gmail.com> wrote:
> अरविन्द जी, रामायण आदि ग्रंथों में रावण ब्राह्मण के रूप में वर्णित है। जबकि
> राम क्षत्रिय जाति के बतलाए गए हैं। आर्यों की जाति व्यवस्था के हिसाब से रावण
> सबसे ऊपरी सिरे पर आता है, राम से भी पहले। तो फिर मेरे ख़्याल से उसे अनार्य
> मानना ग़लत होगा और शायद इसी लिए राम-रावण युद्ध को आर्य-अनार्य युद्ध के रूप
> में परिभाषित करना भी सही नहीं होगा।
>
> प्रतीक पाण्डेhttp://www.hindiblogs.com/hindiblog/
>

> ...
>
> और पढ़ें »- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
>
> उद्धृत पाठ दिखाए

Hariram

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Sep 20, 2007, 2:20:37 AM9/20/07
to Chithakar
अरविन्द भाई,

पर्वावरण तथा समुद्री जीवों की सुरक्षा सम्बन्धी आपके विचार सोचनीय हैं।
इसमें इतना और जोड़ना चाहूँगा कि अभी बड़े अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारी
जहाजों तथा युद्धपोतों को श्रीलंका के पार का चक्कर लगाकर हिन्द तट पर
आना होता है। रामसेतु को तोड़कर शार्टकट समुद्री मार्ग के निर्माण से
अन्तर्राष्ट्रीय युद्धपोत तथा पनडुब्बियाँ आदि भी इस मार्ग से आवाजाही
करेंगे। जो देश की सुरक्षा की दृष्टि से एक बड़ा खतरा ही होगा।

हरिराम

On 19 सित, 19:28, arvind mishra <drarvi...@gmail.com> wrote:
> शुक्रिया जाकिर   भाई ,आपका कहना सही है पर हर जगह सामान्य नियम नही लागू

> होते ,........फरक्का बाँध बनने से जितना लाभ नही हुआ उससे कहीं कई गुना

Hariram

unread,
Sep 20, 2007, 2:24:41 AM9/20/07
to Chithakar
तब तो शायद कोई उपाय नहीं है बचने बचाने का- "विनाश काले विपरीत बुद्धिः"
। सब 'प्रलय' जैसी विपदाओं के स्वागत के लिए तैयार हो जाएँ?

हरिराम

On 20 सित, 10:23, zakirlko <zakir...@gmail.com> wrote:
> अरविंद जी, मैं आपके तर्कों से सहमत हूं, पर इस देश में राजनीतिक स्वार्थ
> सबसे पहले देखा जाता है, उसके बाद जनहित। इसके लाखों उदाहरण भरे पडे हैं।

> ..... मेरी समझ से इस पर हम बुद्धिजीवी चाहे जो हो-हल्ला मचालें, सरकार वही

arvind mishra

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Sep 20, 2007, 12:00:34 PM9/20/07
to Chithakar
पांडेय जी, हम जिन बड़े मिथकीय युद्धों के बारे मे पढते आए हैं ,उनमे
काफी लंबे समय तक चलने वाला देवासुर संग्राम है,फिर राम रावण युद्ध और
फिर महाभारत.यह मूल निवासियों या पहले से स्थापित ,बसे हुए लोगों के साथ
नए यायावरों के मुठभेड की लोक्स्म्रितियां हैं .रावण विद्वान् है
महापंडित है और शिव का संरक्षण प्राप्त है जो एक उत्तरी देव हैं .तथापि
अपनी कतिपय कमजोरियों की वजह से वह राम से परास्त होता है .लेकिन वह है
तो एक दक्षिणी मूलवासी ही जो राम के आगे टिक नही सका .आप ने कभी यह गौर
किया है की सारे मिथक-महापुरुष उत्तर भारत मे ही क्यों जन्म लिए ? राम
क्रिस्न ऊत्तर वासी ही क्यों ?
निश्चय ही उत्तर से आगे बढ़ अपना साम्राज्य विस्तार कराने मे ये अग्रणी
रहे और इतिहास तो विजेता का ही होता है.
राम क्रिस्न अवश्य थे मगर उनके होने या न होने को हमे तार्किक नजरिये
से देखना होगा ,पोंगापन्थी रास्ता छोड़ना होगा.

On 19 सित, 20:20, "Pratik Pandey" <prat...@gmail.com> wrote:

> अरविन्द जी, रामायण आदि ग्रंथों में रावण ब्राह्मण के रूप में वर्णित है। जबकि
> राम क्षत्रिय जाति के बतलाए गए हैं। आर्यों की जाति व्यवस्था के हिसाब से रावण
> सबसे ऊपरी सिरे पर आता है, राम से भी पहले। तो फिर मेरे ख़्याल से उसे अनार्य
> मानना ग़लत होगा और शायद इसी लिए राम-रावण युद्ध को आर्य-अनार्य युद्ध के रूप
> में परिभाषित करना भी सही नहीं होगा।
>
> प्रतीक पाण्डेhttp://www.hindiblogs.com/hindiblog/
>

> ...
>
> और पढ़ें »

Hariram

unread,
Sep 21, 2007, 4:01:40 AM9/21/07
to Chithakar
विज्ञान तथा दर्शन के आधार पर
कंस, रावण, हिरण्यकश्यपु, महिषासुर, ड्रेगन शैतान आदि = दुर्गुणप्रधान =
दानव = खलनायक= villain = नकारात्मक शक्तियाँ हैं।
प्रह्लाद, राम, कृष्ण, दुर्गा, हातिम आदि = सद्गुणप्रधान = दिव्यगुणधारी
(देव) = नायक = Hero = सकारात्मक शक्तियाँ हैं।

किसी जाति, प्रान्त, क्षेत्र विशेष से इनको जोड़ना संहति की दृष्टि से
उचित नहीं।

हर जाति, हर क्षेत्र में दोनों प्रकार के लोग होते हैं। नकारात्मक और
सकारात्मक चुम्बकीय आवेशों के मध्य निरन्तर संघर्ष से ही विद्युत धारा
सृजित होती है, संसार चलता है। बिजली के नेगेटिव और पोजिटिव दोनों तार
मिलने से ही बल्ब जलता है। अकेला पोजिटव तार भी कुछ नहीं कर सकता। लेकिन
हाँ, पोजिटिब तार में 220 वोल्ट धारा होनी चाहिए। जबकि नेगेटिव में
मात्र 14 से 20 वोल्ट तक। चूँकि आजकल नेगेटिव शक्तियाँ अधिक शक्तिशाली
हें, यही संसार की समस्त समस्याओं का कारण है। जरूरत है पोजिटिव अर्थात
सकारात्मक शक्तियों को बढ़ाने की।

हरिराम

On 20 सित, 21:00, arvind mishra <drarvi...@gmail.com> wrote:
> पांडेय जी, हम जिन बड़े मिथकीय  युद्धों के बारे मे पढते आए हैं ,उनमे
> काफी लंबे समय तक चलने वाला देवासुर संग्राम है,फिर राम रावण युद्ध और

> फिर महाभारत.....की लोक्स्म्रितियां हैं .रावण विद्वान् है
> महापंडित है और शिव का संरक्षण प्राप्त है.....

जीतू | Jitu

unread,
Sep 21, 2007, 5:26:49 AM9/21/07
to Chit...@googlegroups.com
Kya aapko nahi lagta,
Bahas mudde se bhatak gayi hai,

Bhai logon wapas ADOMS Bridge ke mudde par lauto

-jitu

arvind mishra

unread,
Sep 21, 2007, 12:44:47 PM9/21/07
to Chithakar
जीं हाँ जीतू भाई ,बहस बेसबब बेतरतीब होती लग रही है ,आप कोई किनारा
सुझायिये .

On 21 सित, 14:26, "जीतू | Jitu" <jitu9...@gmail.com> wrote:
> Kya aapko nahi lagta,
> Bahas mudde se bhatak gayi hai,
>
> Bhai logon wapas ADOMS Bridge ke mudde par lauto
>
> -jitu
>

GIRIRAJ DUTT HARSH

unread,
Sep 22, 2007, 12:43:20 AM9/22/07
to Chit...@googlegroups.com
नमस्कार साथियों

मेरा ये मानना हैं कि यदि राम नहीं हैं तो कृष्ण भी नहीं हैं । क्योंकि कृष्ण लीला की बहुत सी कहानियां रामलीला से
जुडी हुई हैं । और बिना कृष्ण के गीता तो हो ही नहीं सकती ।
फिर तो भारत का संविधान भी दुबारा लिखना पडेगा जहां गीता की कसम दिलायी जाती रही हैं ।
हे ! कलयूग के देवताओं , भारत की गरीब जनता को इतना मत सताना कि भगवान श्री राम को स्वंय आकर अपना प्रमाण देना पडे ।
यदि ऐसा हो गया तो .................. ।


रावण भी भारत के दक्षिण मे रहता था ओर ................. ।

zakirlko

unread,
Sep 22, 2007, 1:57:28 AM9/22/07
to Chithakar
दोस्तो,
आज से पचासों साल पहले डेल कार्नेगी ने अपनी पुस्तक "हाउ टू विन फ्रेन्डस
एण्ड इंफलुएंस पीपुल" में लिखा था कि किसी भी बहस का सबसे अच्छा नतीजा यह
हो सकता है कि बहस की ही न जाए। कहने का आशय यह है कि हर आदमी की अपनी-
अपनी समझ होती है और अपने आदर्श। दुनिया को कोई भी आदमी उनसे एक इंच भी
डिगना नहीं चाहता, भले ही उसके सामने उनके विरोध में लाखों सुबूत क्यों न
रख दिये जाएं। इसलिए मेरी समझ से इस मुददे पर की जाने वाली बहस को यहीं
समाप्त कर दिया जाए। अन्यथा होगा यह कि प्रत्येक आदमी अपनी दलील के पक्ष
में तर्क पे तर्क रखता चला जाएगा। इसमें संभावना यह भी होगी कि वह कुतर्क
भी रखने लगे। इससे फायदा तो कोई नहीं होगा, हाँ यह जरूर हो सकता है कि
दूसरे लोग उसके तर्को-कुतर्कों से नाराज अवश्य हो जाएं या मन में कोई
दुर्भावना पाल लें।
भवदीय,
-जाकिर अली "रजनीश"
http://alizakir.blogspot.com

On 22 सित, 09:43, "GIRIRAJ DUTT HARSH" <gdha...@gmail.com> wrote:
> नमस्कार साथियों
>
> मेरा ये मानना हैं कि यदि राम नहीं हैं तो कृष्ण भी नहीं हैं । क्योंकि कृष्ण
> लीला की बहुत सी कहानियां रामलीला से
> जुडी हुई हैं । और बिना कृष्ण के गीता तो हो ही नहीं सकती ।
> फिर तो भारत का संविधान भी दुबारा लिखना पडेगा जहां गीता की कसम दिलायी जाती
> रही हैं ।
> हे ! कलयूग के देवताओं , भारत की गरीब जनता को इतना मत सताना कि भगवान श्री राम
> को स्वंय आकर अपना प्रमाण देना पडे ।
> यदि ऐसा हो गया तो .................. ।
>
> रावण भी भारत के दक्षिण मे रहता था ओर ................. ।
>

> > > > > महापंडित है और शिव का संरक्षण प्राप्त है.....- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
>
> उद्धृत पाठ दिखाए

Shrish Sharma

unread,
Sep 22, 2007, 7:37:00 AM9/22/07
to Chit...@googlegroups.com
"आप ने कभी यह गौर
किया है की सारे मिथक-महापुरुष उत्तर भारत मे ही क्यों जन्म लिए ? राम
क्रिस्न ऊत्तर वासी ही क्यों ?"

अरविन्द जी, दक्षिण में भी एक से बढ़कर एक महापुरुष हुए हैं। बात बस ये है कि इसके लिए आपको दक्षिण के ग्रंथो को पढ़ना होगा।

आप कैसे भूल रहे हैं कि प्रभु श्रीविष्णु ने दक्षिण में ही तिरुपति के रुप में अवतार लिया। संतु तिरुवल्लुवर जैसे महापुरुष भी उसी भूमि पर जन्मे। और भी बहुत से होंगे जिनके बारे में वहाँ के निवासियों से ही जानकारी मिल सकती है।
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Shrish Sharma (श्रीश शर्मा)
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arvind mishra

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Sep 22, 2007, 10:52:30 PM9/22/07
to Chithakar
शिरीष भाई !मेरी बात का निहितार्थ कुछ और था !दरअसल दक्षिण के प्रामिनेंट
भगवान् पहले उत्तर मे जन्म लेते हुए दिखते हैं .राम भी तो विष्णु के
अवतार हैं . तिरुपति दक्षिण भारत मे नही जन्मे दिखाए जाते .वे तो विष्णु
स्वयं हैं क्षीर सागर मे शयन करने वाले. विष्णु ,ब्रह्मा और शंकर अनादि
और अजन्मे हैं. हुआ यह है कि विजेता मानव दलों का प्रवास उत्तर से ही
दक्षिण की तरफ होता रहा ,और जन स्मृतियां भी स्थान बदल कर पीढ़ी दर
पीढ़ी सम्वाहित होती रहीं -यही कारण है कि दक्षिण के धुर स्थान
कन्याकुमारी मे भी शंकर और पार्वती हैं,मुरुगन यानी कार्तिकेय हैं जबकि
उनका मूल स्थान कैलाश पर्वत है - धुर उत्तर !!यह सब दरअसल उत्तर से
दक्षिण की तरफ मानव महाभिनिस्क्रम्नों [पलायन]की माहागाथा के स्मृति शेष
हैं और इन्हे हमे इसी परिप्रेक्ष्य मे देखना होगा .आपने एक सटीक प्रश्न
उठाया -अछा लगा .

On 22 सित, 16:37, "Shrish Sharma" <sharma.shr...@gmail.com> wrote:
> *"आप ने कभी यह गौर


> किया है की सारे मिथक-महापुरुष उत्तर भारत मे ही क्यों जन्म लिए ? राम
> क्रिस्न ऊत्तर वासी ही क्यों ?"

> **
> *अरविन्द जी, दक्षिण में भी एक से बढ़कर एक महापुरुष हुए हैं। बात बस ये है कि


> इसके लिए आपको दक्षिण के ग्रंथो को पढ़ना होगा।
>
> आप कैसे भूल रहे हैं कि प्रभु श्रीविष्णु
> ने दक्षिण में ही तिरुपति के रुप में अवतार लिया। संतु तिरुवल्लुवर जैसे महापुरुष
> भी उसी भूमि पर जन्मे। और भी बहुत से होंगे जिनके बारे में वहाँ के निवासियों
> से ही जानकारी मिल सकती है।
>

> ...
>
> और पढ़ें »

arvind mishra

unread,
Sep 22, 2007, 11:01:07 PM9/22/07
to Chithakar
जाकिर भाई आप नाहक ही आशंकाओं से दुबले होते जा रहे हैं -आप देखियेगा
हमारे हिन्दी चिट्ठिकार भाई अब काफी संजीदा हैं ,परिपक्व हैं ,मई तो यही
मानता हूँ -वादे वादे जायते तात्व्बोधः.
हौसला बनाएं रखें और बहस मे खल कर सह्भाग करें ,हिदी चित्ठिकारी का झंडा
बुलंद रहना चाहिए .ना दैन्यम न पलायनम.
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