विकास कार्य नक्सली विचारधारा पर अंकुश लगाने में कारगर उपाय हो सकते हैं। - ॠषि कुमार मरावी

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AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Apr 14, 2015, 11:56:56 AM4/14/15
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।। एक तीर एक कमान सभी आदिवासी एक समान ।।

।। अस्पतालों में भ्रष्टाचार की गोलीयाँ खाकर नसबंदीें से मरती वो हर माताएं आदिवासी है। 
नक्सली कांड की गोलियां खाकर मरता हुआ वो हर जवान भी आदिवासी है। भूमि अधिग्रहण से मरता हुआ वो हर किसान भी आदिवासी है 
ये संयोग नहीं साजिश है । उठो संघर्ष करो। यह अस्तित्व की लड़ाई है ।।

माओवादियों के सामने विधि का शासन ध्वस्त है और उनकी संगठित हिंसा अब राज्य सरकारों पर भारी पड़ रही है। आज लगभग 1200 गांवों के एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में माओवादी रणनीति के सामने पुलिस व प्रशासन पूर्ण रूप से विवश हैं। इससे यह जरूर साबित हो जाता है कि सरकारी खुफिया तंत्र के मुकाबले नक्सलियों का अपना तंत्र काफी मजबूत है। नक्सलवाद वर्ग विषमता व अन्याय के विरुद्ध है। यह किसानों, भूमिहीन कृषकों व श्रमिकों का पक्षधर भी है। खासतौर पर उनका जिनका शोषण जमींदार, महाजन, नेता और नौकरशाही करती है। इसलिए नक्सलवादी विचारधारा इस भ्रष्ट, अनैतिक व अनाचारी व्यवस्था को समाप्त करते हुए एक भेदभाव रहित समाज बनाने का स्वप्न संजोए हैं।
ऐसा लगता है जैसे नक्सलवाद की समस्या को अभी तक समझने का प्रयास नहीं किया गया। सरकारों ने पुलिस अथवा केंद्रीय बलों के दमनकारी दृष्टिकोण के चलते नक्सलवादी आंदोलन को दबाने का प्रयास किया है। सरकारों के सामने नक्सलवाद को लेकर हमेशा ही यह दुविधा रही है कि इसे कानून व्यवस्था की समस्या माना जाए अथवा एक सामाजिक-आर्थिक समस्या। आज तक नक्सलवादी आंदोलन का दमन करने के सरकारों के जो भी प्रयास किए गए उनसे नक्सलवाद पर अंकुश लगने के बजाय, उल्टे हिंसक गतिविधियों में वृद्धि तथा उनके प्रभाव में विस्तार ही हुआ है। लगता है कि पिछले दो दशकों में गरीबों, बेरोजगारों, भूमिहीन कृषकों की संख्या में वृद्धि, भूमि-वितरण में असमानता तथा आदिवासियों के स्थानीय अधिकारों से बेदखली के मामले जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, उसी अनुपात में नक्सलवाद की समस्या भी बढ़ रही है। 2002 में जहां नक्सलवादी हिंसा की 1465 घटनाएं हुईं, वहीं 2003 में इनकी संख्या 1597 और 2004 में यह आंकड़ा बढ़कर 1800 हो गया। 2005 से लेकर 2008 तक नक्सली घटनाओं में थोड़ी कमी देखने को मिली, परंतु 2009-10 के बीच इनमें फिर चार फीसद की वृद्धि हो गई। वर्तमान 2012-13 से जुड़े सरकारी आंकड़े नक्सली घटनाओं में कमी का दावा कर रहे हैं। इंस्टीटयूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस की रिपार्ट भी खुलासा करती है कि पिछले कुछ सालों में नक्सलवाद के स्वरूप में बदलाव देखने को मिला है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि नक्सली हिंसा में मामूली कमी तो आई है, परंतु इसके प्रभाव में विस्तार भी हुआ है। 28 मई, 2013 को गृह मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने भी साफ कहा कि वामपंथी उग्रवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने वाले लोग भली-भांति जानते हैं कि स्थानीय लोगों के दिलों में नक्सलवादियों के प्रति सम्मान है। नक्सलियों का अपना कोई हित नहीं हैं। वे एक विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे है। उनका आंदोलन उल्फा व बोड़ो की तरह न तो कोई पृथकतावादी आंदोलन है और न ही जाति, धर्म व अर्थपरक। परंतु यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि नक्सली संगठनों को स्थानीय स्तर पर प्रथकतावादी संगठनों से भी अधिक समर्थन प्राप्त है।
उन कारकों पर विचार करना समय की मांग है कि आखिर यह विचारधारा वहां के लोगों में अपनी गहरी पैठ क्यों बना रही है? देश में लगभग 56 नक्सली गुट मौजूद हैं, जिनमें 50,000 से ज्यादा नक्सली सक्रिय हैं। इनमें 22,000 से अधिक आधुनिक हथियारों से लैस हैं। देश के वनों का एक तिहाई से भी अधिक भाग इनके कब्जे में है। स्त्री पुरुष व बच्चे तक इन गुटों के सक्रिय सदस्य हैं। गरीबी रेखा से नीचे अपनी गुजर-बसर करने वाले आदिवासियों की औसत आमदनी रोजाना 12 रुपये है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, ओडीशा, बिहार, झारखंड, छत्ताीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक जैसे 20 राच्यों के 230 जनपदों में नक्सली पार्टियां बनी हैं। दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह है कि इन राज्यों में खदानों के मालिक और ठेकेदार स्थानीय आदिवासियों का खुलकर शोषण और उत्पीड़न करते हैं। नक्सलवादी उद्योगपतियों, व्यापारियों और सरकारी अफसरों तक से वसूली करते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार नक्सलवादियों का सालाना बजट करीब चार हजार करोड़ रुपये है। इस धन से वे आधुनिक हथियार और विस्फोटक सामग्री खरीदकर अपने संगठन का विस्तार करते हैं। दुखद पहलू यह है कि नक्सली पुलिस व प्रशासनिक भ्रष्टाचार का फायदा उठाते हुए अपने कैडर का विस्तार कर रहे हैं। विगत चार दशकों में यदि देश में नक्सलवाद फला-फूला है तो इसके लिए राज्य सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है। आदिवासियों के साथ में यदि वहां अन्याय हुआ है तो शोषक के रूप में उन्हें अपनी जिम्मेदारी स्वीकारनी ही पड़ेगी। अब समय आ गया है जब राच्य व केंद्र सरकार को राष्ट्रहित में माओवादियों पर अंकुश लगाने में सख्ती से काम करना चाहिए। सच यह है कि नक्सलवादी विचारधारा सीधे तौर पर सामाजिक शोषण व आर्थिक असमानता से जुड़ी है। इसलिए सरकारों को आंकड़ों की बाजीगरी से अलग रहते हुए इन बिंदुओं पर भी गहन मंथन करने की आवश्यकता है। इससे भी आगे बढ़कर विस्थापित आदिवासी समाज के दबे-कुचले व वंचित लोगों के लिए ईमानदारी व प्रतिबद्धता से किए किए गए सघन विकास कार्य नक्सली विचारधारा पर अंकुश लगाने में कारगर उपाय हो सकते हैं।

‪#‎सेवा_जौहार‬। ॠषि कुमार मरावी §



Dhaval Raut

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Apr 14, 2015, 2:19:29 PM4/14/15
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​How many Adivasi Brother & sistes are qualified in ITI?
From Thana District Maharastra only .
Any Record as do we have .

Thanks' & Regards,
Dhaval H. Raut.
.
 
(9930869119) 

--
सर्व शिक्षित/अशिक्षित बेरोजगार आदिवासी तरुण तरुणी साठी "स्थानिक आदिवासी बेरोजगार मेळावा"
(१४/०४/२०१५ सकाळी १० वाजता) स्थळ कासा, तालुका डहाणू, जिल्हा पालघर.
संपर्क | 9960 879 780 | 9272 275 794 | 9158 171 137 | www.jago.adiyuva.in
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