धर्माद्यष्टपादविरचितसिंहासने

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विश्वासो वासुकिजः (Vishvas Vasuki)

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Nov 30, 2025, 7:06:28 AM (5 days ago) Nov 30
to Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, tantrollAsaH
धर्माद्य्-अष्ट+++(=??)+++-पाद-विरचित-सिंहासने 


इति यतीन्द्रमतदीपिका-प्रयोगः। 

अधारशक्तितर्पणादौ ४ एवोच्यन्ते धर्मादि-पादाः। कथम् अत्राष्टौ?
एकैकस्य पुनः पादद्वयम् इति?


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Vishvas /विश्वासः

HONGANOUR KRISHNA

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Nov 30, 2025, 7:46:20 PM (4 days ago) Nov 30
to विश्वासो वासुकिजः (Vishvas Vasuki), Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, tantrollAsaH
बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है आपने। आइए इसे क्रम से देखें:
१. धर्मादि-पाद की संज्ञा
यतीन्द्रमतदीपिका में “धर्माद्यष्टपादविरचितसिंहासने” इत्युक्ते, धर्मादि पादों का उल्लेख है। सामान्यतः धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य — ये चार पाद बताए जाते हैं।
२. ‘अष्ट’ का कारण
आपने ठीक देखा कि अधारशक्ति-तर्पणादि प्रयोगों में केवल चार पादों का उल्लेख होता है। परन्तु यहाँ “अष्ट” कहा गया है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक पाद को द्विभागेन (द्विपादरूपेण) गृहीत किया जाता है।
• धर्म → द्विपाद
• ज्ञान → द्विपाद
• वैराग्य → द्विपाद
• ऐश्वर्य → द्विपाद
इस प्रकार ४ × २ = ८ पाद हो जाते हैं।
३. सिंहासन-रचना का भाव
“सिंहासन” का रूपक यहाँ आश्रय अथवा आधार के रूप में है। भगवान् के आसन को धर्मादि गुणों से निर्मित दिखाया गया है। और चतुर्विध गुणों का द्विपादात्मक विस्तार करके आठ पादों वाला सिंहासन कल्पित है।
४. निष्कर्ष
• अधारशक्ति-तर्पणादि में केवल चार पादों का उल्लेख होता है।
• पर यतीन्द्रमतदीपिका में “अष्टपाद” कहा गया है क्योंकि प्रत्येक धर्मादि-गुण को द्विपादरूपेण गृहीत किया गया है।
• अतः “धर्माद्यष्टपादविरचितसिंहासने” का अर्थ है — धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य — इन चार गुणों के द्विपादात्मक विस्तार से निर्मित आठ-पादों वाला सिंहासन।

Thank you,
HONGANOUR S KRISHNA



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