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shashidharasingh shashidharasingh

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Aug 24, 2016, 1:00:25 PM8/24/16
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प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी 14 सितम्‍बर को हिन्‍दी दिवस मनाया जाएगा- सभी सरकारी कार्यालयों में हिन्‍दी पखवाड़े का आयोजन किया जाएगा, कुछ ऑंकड़ों के खेल से हिन्‍दी में कितना आधिक कामकाज होने लगा है, यह साबित करने की कोशिश की जाएगी, कुछ नये लक्ष्‍य रखे जाऍंगे, हिन्‍दी में कामकाज के लिए पुरस्‍कार दिए जाऍंगे, कुछ एक लेखन, वाक् आदि प्रतियोगिताऍं आयोजित की जाऍंगी, कहीं-कहीं कवि-सम्‍मेलनों का आयोजन किया जाएगा तो कहीं अन्‍य विविध गतिविधियों का आयोजन होगा । आपत्ति इन आयोजनों को लेकर नहीं लेकिन इसके औचित्‍य को लेकर अवश्‍य उठती है । क्‍योंकि जिस रस्‍मी तौर पर इन गतिविधियों का आयोजन होता है, उसका हश्र भी वैसा ही होता है ।
इस बार एक बहुत उम्‍दा घटनाक्रम की आहट प्रसन्‍नता दे रही है और वह है 40 वर्ष बाद भोपाल में 10वें  विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन का आयोजन । इस आयोजन की विशेषता और महत्‍व का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया है । एक तो भोपाल जैसी समृद्ध हिन्‍दी-उर्वरा भूमि और उस पर केन्‍द्रीय सरकार की गहन रुचि और सहभागिता । निश्‍चय ही यह अन्‍तर्सम्‍बन्‍ध हिन्‍दी के प्रगामी आयामों को नये, और अधिक सार्थक तथा सारगर्भित मायने अवश्‍य देगा । मैं भी बहुत आशान्वित हूँ इस बार, 40 साल पुरानी सुमधुर सुरलहिरी को नये ताल और नाद के साथ आस्‍वादित करने के लिए । हो सकता है सब कुछ इतना अधिक आशा के अनुरूप न हो, और नये कलेवर में पुराना सामान जैसी कुछ कड़वाहट भी साथ-साथ चली आए लेकिन फिर भी अच्‍छा लग रहा है इस बार, हिन्‍दी को उसका समुचित महत्‍व मिलते देखकर । एक विशिष्‍ट आनन्‍द और सुकून की अनुभूति हो रही है रह-रह कर । देखें क्‍या देकर जाता है यह 40 साल से प्रतीक्षित विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन !
हिन्‍दी की अपनी ताक़त है, अपनी विशिष्‍टताऍं हैं, अपनी सीमाऍं हैं, अपने ही गृह-शत्रु भी हिन्‍दी के भाग्‍य में हैं । लेकिन इसके साथ ही हिन्‍दी का अपना जीवट है जो विश्‍व-बाज़ार को विवश कर देता है, उसे अपनाने को । आर्थिक बाज़ार का खजाना हिन्‍दी के रास्‍ते होकर ही आएगा, ख़ासकर भारत में, यह दुनिया को अच्‍छी तरह से समझ आ चुका है । समझ तो भारत में सक्रीय आर्थिक शक्तियों को  भी इस नब्‍ज़ की आ चुकी है । फिर चाहे वह नयी तकनीक हो, मनोरंजन जगत के साथ ही हिन्‍दी समाचार माध्‍यमों का लगातार धन-बल में तब्‍दील होना हो या फिर सूचना क्रान्ति के नये आयाम हों, सबको  अब हिन्‍दी बैसाखी पैरों की नहीं,  बल्कि आलिंगन वाली प्रियतमा लगने लगी है ।

इतिहास को मनचाहे ढंग से सुविधाजनक रूप से शब्‍द या वर्ण के हेर-फेर से, जुड़े शब्‍द को अलग करके क्‍या से क्‍या साबित करने की कोशिश की जा सकती है, इसका विडम्‍बनापूर्ण उदाहरण हिन्‍दी से बेहतर क्‍या होगा । फिर कालान्‍तर में एक झूठ को बार-बार बोला जाए तो वह सच लगने ही लगता है । ग़ौरतलब है कि हिन्‍दी संसद में एकमत (unanimous) से राजभाषा बनी थी,  एक मत (single Vote ) से नहीं । कालान्‍तर में कब यह प्रचारित और प्रसारित हो गया कि हिन्‍दी मात्र एक वोट से ही संसद में जीती थी, इसका क्‍या जवाब है । लेकिन इसके पाप के भागी हम सब भारतीय अवश्‍य हैं जो एक झूठ को इस तरह अपने पैर जमाते देखते रहे और आगामी पीढ़ी को हिन्‍दी के गौरवपूर्ण अतीत और उसके सहज सान्निध्‍य से वंचित करते रहे । धीरे-धीरे अंग्रेज़ी का वर्चस्‍व इतना बढ़ गया कि हिन्‍दी को हद से अधिक सौतेलेपन और उपेक्षा सहन करनी पड़ी ।
यह तो बात हुई पुरानी । लेकिन अभी भी अगर हिन्‍दी का जीवट पीपल और बरगद सा न होता तो आज जो हम सर्वत्र हिन्‍दी की स्‍वीकार्यता,  चाहे या अनचाहे देख रहे हैं, सम्‍भव नहीं होती ।
किसी भी देश की कोई न कोई मुख्‍य सम्‍पर्क भाषा अवश्‍य होती है और यह एक ऐसा सहज विकास है सम्‍प्रेषण के माध्‍यम का, जिस पर कोई ज़ोर नहीं चलता, न सरकार का और न ही बाज़ार का । भाषा एक नदी की तरह है जो अपना रास्‍ता स्‍वयं बना ही लेती है और संस्‍कृति का वहन भी साथ-साथ करती चलती है । हॉं, बाहरी घटक उसकी गति और स्‍वरूप को प्रभावित अवश्‍य कर सकते हैं, लेकिन उसे समाप्‍त करना उन घटकों के वश में नहीं होता । भारत में निश्‍चय ही निर्विवाद रूप से यह स्‍थान हिन्‍दी को प्राप्‍त है । इसके कई प्रमाण हैं ।  कई घोर हिन्‍दी विरोधी दक्षिण के फिल्‍म-निर्माता वैसे तो हिन्‍दी में एक शब्‍द भी बोलना पसन्‍द न करें, भले  ही हिन्‍दी-विरोधी आन्‍दोलनों  का मुखरता से समर्थन करें लेकिन जब  फिल्‍म बनाऍंगे तो हिन्‍दी में । क्‍यों ? भई! बाज़ार है, चीज़ तो मुनाफ़ा  कमाने के लिए बनाई जाती है, भावुकता में व्‍यापार से समझौता तो नहीं किया जा सकता न ! ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाऍंगे जब हम साफ़-साफ़ देखते हैं कि हिन्‍दी को फ़ायदे के लिए तो इस्‍तेमाल करने की परम्‍परा है, लेकिन उसे भारतीय संस्‍कृति की सर्वाधिक सशक्‍त, सरल, प्रवाहमयी वाहिका और राष्‍ट्रीय अस्मिता की रक्‍तवाहिका मानने में हमें संकोच होता है, हमारे भाषायी अहम आड़े आते हैं । अंग्रेज़ी के पैरोकारों ने बड़ी ही चतुराई से अंग्रेज़ी को नेपथ्‍य में रखकर, अन्‍य सहोदरी भारतीय भाषाओं को   ( जिनकी जननी एक ही यानी संस्‍कृत है ) आमने-सामने खड़ा करके रणभेरी बजा दी है और इस धर्मसंग्राम में सबकी अपनी-अपनी  भावनाऍं हैं और उनके प्रति समर्पण भी । अब कौन पाण्‍डव पक्ष में हैं और कौन कौरव पक्ष में, यह भी तय करना मुश्किल है, सभी अपने हैं । इस खींचतान की दौड़ में अंग्रेज़ी मज़े लेकर रसगुल्‍ले  खाती रही और हिन्‍दी को सूखी रोटियॉं  भी नसीब होना मुश्किल हो गया था ।
वह तो शुक्र है, कि व्‍यापारी का सगा कोई नहीं होता, ‘न बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’ । और हिन्‍दी को बेमन से ही सही, लेकिन आम जन के साथ अनुकूलन के लिए अपनाना ही पड़ा । बहरहाल, कारण चाहे जो भी हों, हिन्‍दी के सुनहरे भविष्‍य के शुभ संकेत ही हैं । देखना सुखदायक रहेगा हिन्‍दी को प्रखरता के साथ विश्‍व पटल पर एक सनातन परम्‍परा की वाहिका के रूप में देख पाना, जो अपनी जीवनशक्ति, जननी संस्‍कृत से लेते हुए, अपनी सहोदराओं की विशिष्‍टताओं को समाहित करते हुए, बाहरी संस्‍कृतियों के शब्‍दों ( कौन सी भाषा है जो सहजता से ‘जनरेटर’ को ‘जनित्र’ में, ‘टेकनीक’ को ‘तकनीक’ में ढाल सके, सैकड़ों उदाहरण मिल जाऍंगे ऐसे)  को भी सहजता से गले लगाते हुए, अपने वृहद कौटुम्‍बकम परिवार में  शामिल करते हुए एक बड़ी बहना के दायित्‍व इतनी आसानी से निभाए कि भारतीय भाषाओं का कुनबा अटूट तो रहे ही, लेकिन साथ ही विदेशी संस्‍कृतियों के प्रभाव से आए शब्‍द भी अपने आपको पराया अनुभव न करें और

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Aug 25, 2016, 11:36:44 PM8/25/16
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राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर
आधुनिक हिंदी काव्य में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले तथा एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में  विख्यात राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था।  उनके पिता रविनाथ सिंह का देहावसान रामधारी सिंह के जन्म के दो वर्ष के पश्चात् हो गया। पिता की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए रामधारी सिंह ने अपना उपनाम‘‘दिनकर‘‘ रखा। पिता का  साया शीघ्र ही सिर से उठ जाने के कारण दिनकर का बचपन अधिक सुख से नहीं बीता।  दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा। साधारण से किसान परिवार में पैदा होकर भी उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा  प्रमाणित कर दिया कि प्रतिभा और विद्वत्ता किसी वर्ग विशेष की विरासत नहीं है।
दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत से प्रांरभ हुई। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में ग्रहण की। तत्पश्चात ‘बारी‘ नामक ग्राम के ‘राष्ट्रीय मिडिल स्कूल‘ से मिडिल,‘ मोकामा घाट‘ के हाई स्कूल से सन् 1928 में मैट्रिक तथा 1932 में पटना कॉलेज से इतिहास विषय लेकर बीए(आर्नस) करके एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, के पद पर नियुक्त हुए। हिंदी साहित्य में एक नया मुकाम बनाने वाले दिनकर छात्रजीवन में इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और दर्शन शास्त्र जैसे विषयों को पसंद करते थे, हालांकि बाद में उनका झुकाव साहित्य की ओर हुआ৷ वह अल्लामा इकबाल और रवींद्रनाथ टैगोर को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे৷ उन्होंने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया৷ दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ৷ इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की৷
सन् 1934 में वे बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्टार के पद पर आसीन हुए। सन् 1943 तक वे इसी पद पर कार्यरत रहे। लगभग नौ वर्षों तक वह इस पद पर रहे और उनका समूचा कार्यकाल बिहार के देहातों में बीता तथा जीवन का जो पीड़ित रूप उन्होंने बचपन से देखा था, उसका और तीखा रूप उनके मन को मथ गया। फिर तो ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद्वगीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-
वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया। सन् 1943 से 1947 तक वे बिहार सरकार के प्रचार विभाग में उपनिदेशक पद पर आसीन रहे। सन् 1950 में लंगट सिंह कॉलेज, मुज्जफरपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष, 1952 से 1963 तक राज्य सभा के सदस्य,1963 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, 1965 में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार जैसे विभिन्न पदो को सुशोभित किया एवं अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया।
उनकी प्रशंसनीय साहित्य-सेवाओं के उपलक्ष्य में भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1959 में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।  उनके ‘ऊर्वशी‘ काव्य ग्रंथ पर उन्हें 1973 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया৷
दिनकर के काव्य में परम्मपरा एवं आधुनिकता का अद्वितीय मेल है৷ राष्ट्रीयता दिनकर की काव्य चेतना के विकास की एक अपरिहार्य कडी है। उनका राष्ट्रीय कृतित्व इसलिए प्राणवाण है कि वह भारतवर्ष की सामाजिक,संस्कृतिक और उनकी आशा अकाकांक्षाओं को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम है। वे वर्त्तमान के वैताली ही नहीं बल्कि मृतक विश्व के चारण की भूमिका भी उन्हें निभानी पडी थी। परम्मपरा एवं आधुनिकता की सीमाओं से निकलकर उनका ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण ही दिनकर की राष्ट्रीयता के फलक को व्यापक बनाती है।
रेणुका – में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण परिलक्षित होता है। पर साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से त्रस्त मन की वेदना का परिचय भी मिलता है।
हुंकार – में कवि अतीत के गौरव-गान की अपेक्षा वर्तमान दैत्य के प्रति आक्रोश प्रदर्शन की ओर अधिक उन्मुख जान पड़ता है।
रसवन्ती - में कवि की सौन्दर्यान्वेषी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है पर यह अन्धेरे में ध्येय सौन्दर्य का अन्वेषण नहीं, उजाले में ज्ञेय सौन्दर्य का आराधन है।
कुरुक्षेत्र (1946 ई.)- ‘कुरुक्षेत्र’ में महाभारत के शान्ति पर्व के मूल कथानक का ढाँचा लेकर दिनकर ने युद्ध और शान्ति के विशद, गम्भीर और महत्त्वपूर्ण विषय पर अपने विचार भीष्म और युधिष्ठर के संलाप के रूप में प्रस्तुत किये हैं। दिनकर के काव्य में विचार तत्त्व इस तरह उभरकर सामने पहले कभी नहीं आया था। ‘कुरुक्षेत्र’ के बाद उनके नवीनतम काव्य ‘उर्वशी’ में फिर हमें विचार तत्त्व की प्रधानता मिलती है। साहसपूर्वक गांधीवादी अहिंसा की आलोचना करने वाले ‘कुरुक्षेत्र’ का हिन्दी जगत में यथेष्ट आदर हुआ।
सामधेनी (1947 ई.)- में दिनकर की सामाजिक चेतना स्वदेश और परिचित परिवेश की परिधि से बढ़कर विश्व वेदना का अनुभव करती जान पड़ती है। कवि के स्वर का ओज नये वेग से नये शिखर तक पहुँच जाता है।
उर्वशी (1961 ई.)- ‘उर्वशी’ जिसे कवि ने स्वयं ‘कामाध्याय’ की उपाधि प्रदान की है– ’दिनकर’ की कविता को एक नये शिखर पर पहुँचा दिया है। भले ही सर्वोच्च शिखर न हो, दिनकर के कृतित्त्व की गिरिश्रेणी का एक सर्वथा नवीन शिखर तो है ही।
दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं ‘वीर रस’ में कीं. इस बारे में जनमेजय कहते हैं, ‘भूषण के बाद दिनकर ही एकमात्र ऐसे कवि रहे, जिन्होंने वीर रस का खूब इस्तेमाल किया. वह एक ऐसा दौर था, जब लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना जोरों पर थी. दिनकर ने उसी भावना को अपने कविता के माध्यम से आगे बढ़ाया. वह जनकवि थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया ৷`
असल में दिनकर जी 'आवेग' के कवि हैं। 'रेणुका' की पहली ही कविता में कवि कहता है -
भावों के आवेग प्रबल
मचा रहे उर में हलचल।
उग्र राष्ट्रीय भावों को व्यक्त करने वाली प्रसिद्ध कविता है 'हिमालय' जिसकी ये पंक्तियाँ अत्यंत प्रसिद्ध हैं -
रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहाँ
जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडीव गदा
लौटा दे अर्जुन भीम वीर।
संवेदनशीलता का भरपूर समावेश है सृजन में ‘रेणुका‘, ‘हुंकार‘, ‘रसवन्ती‘ में एक ओर छायावादी रोमानियत, मधुर कल्पना व भावुकता मिलती है तो दूसरी ओर प्रगतिवादी सामाजिक चेतना। ‘रेणुका‘ में अतीत के प्रति गहरा आकर्षण है। ‘हुंकार‘ में कवि दीनता और विपन्नता के प्रति दयाद्र्र हो गया है। ‘रसवन्ती ‘ में कवि

डॉ.आनंद कुमार यादव
सौन्दर्य का प्रेमी बन गया है। ‘द्वन्द्व- गीत‘ में कवि के अन्तर्जगत और बाह्य-जगत का द्वन्द है। ‘सामधेनी‘ में कवि धीरे-धीरे क्रान्ति से शांति की ओर आता दिखाई देता है। कुरुक्षेत्र में कवि का शंकालु मन, समस्यानुकूल और प्रश्नानुकूल हो गया है। ‘रश्मिरथी‘ में कवि की नई विचारधारा यह है कि व्यक्ति की पूजा उसके गुणाे के कारण होनी चाहिए। ‘नील-कमल‘ की कविताओं में प्रयोगशीलता का पुट है। कोयला और कवित्त में कवि ने कला और धर्म के सामंजस्य पर विशेष रूप से बल दिया है। स्वतंत्रता मिलने के बाद भी कवि युग धर्म से जुडा रहा। उसने देखा कि स्वतंत्रता उस व्यक्ति के लिए नहीं आई है जो शोषित है बल्कि उपभोग तो वे कर रहें हैं जो सत्ता के केन्द्र में हैं। आमजन पहले जैसा ही पीडित है, तो उन्होंने नेताओं पर कठोर व्यंग्य करते हुए राजनीतिक ढाचे को हीआडे हाथों लिया-
टोपी कहती है मैं थैली बन सकती हू ।
कुरता कहता है मुझे बोरिया ही कर लो।।
ईमान बचाकर कहता है ऑखे सबकी,
बिकने को हू तैयार खुशी से जो दे दो ।।
इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का भोग करने वालों की संवेदनहीनता के प्रति कवि के मन में रोष है, तभी तो वह कहता है -
तोड़ दो इसको, महल को बर्बाद कर दो
नींव की ईंटें हटाओ
दब गए हैं जो अभी तक जी रहे हैं
जीवितों को इस महल के बोझ से आजाद कर दो।

दिनकर की सौंदर्य दृष्टि हर वस्तु में सौंदर्य नहीं खोज पाती। सुंदरता का प्रचलित अर्थ और रूप ही वे ग्रहण करते हैं। अतः हाहाकार थम जाने पर सुंदरता की देवी उर्वशी पर कविता का ध्यान चला ही जाता है। उर्वशी के दिनकर के सृजन क्षेत्र में आने पर मुझे 'रेणुका' की एक कविता की ये पंक्तियाँ याद आती हैं -
व्योम कुंजों की परी अभिकल्पने?
भूमि को निज स्वर्ग पर ललचा नहीं
पा न सकती मृत्ति उड़ कर स्वप्न को
युक्ति हो तो आ बसा अलका यहीं।

दिनकरजी  मुख्य रूप से कवि हैं किन्तु उन्होंने गद्य  साहित्य का भी यथेष्ट निर्माण किया है। इस सम्बन्ध में उनकी ‘मिट्टी की ओर‘, ‘अद्र्ध-नारीश्वर‘, ‘काव्य की भूमिका‘, ‘शुद्ध कविता की खोज‘, ‘संस्कृति के चार अध्याय‘, ‘हमारी सांस्कृतिक एकता‘, ‘धर्म-नैतिकता और विज्ञान‘ आदि गद्य रचनाएं अत्यन्त महत्त्व की  एवं भाव पूर्ण हैं। इन रचनाओं में उनके गंभीर अध्ययन एवं स्वतंत्र चिन्तन की छाप सर्वत्र दृष्टिगत होती है। इनकी महत्ता और लोकप्रियता का अन्दाजा इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि उनकी कुछ कृतियों का अनुवाद उड़िया, कन्नड़, तेलगु, अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी आदि कई भाषाओं में हो चुका है।
दिनकर के काव्य में जहॉ अपने युग की पीडा का मार्मिक अंकन हुआ है,वहॉ वे शाश्वत और सार्वभौम मूल्यों की सौन्दर्यमयी अभिव्यक्ति के कारण अपने युग की सीमाओं का अतिक्रमण किया है। अर्थात वे कालजीवी एवं कालजयी एक साथ रहे हैं।

यह रचना डॅा०आनन्द कुमार यादव जी द्वारा लिखी गयी है।  आपकी  हिंदी एवं उर्दू -गीत,ग़ज़ल, कहानी, नज़्म, दोहे, हाइकू, छंदमुक्त,आलेख, आलोचना, समालोचना, शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके  है। आपके द्वारा लिखित विभिन्न राष्ट्रीय एवं स्थानीय पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है। विशेष उपलब्धि : प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'दैनिक जागरण' के तत्त्वावधान में आयोजित 'मेरा शहर मेरा गीत' के विजेता बनकर 'कालि्ंजर' की रचना करना। अन्य उपलब्धि :  केदारनाथ अग्रवाल शोधपीठ बांदा द्वारा सम्मानित। रामविलास शर्मा  की हिन्दी जाति सम्बन्धी अवधारणा पर व्याख्यान हेतु चि०ग्रा०वि०वि०म०प्र०से सम्मानित।
पता—राजापुर रोड़ ,कमासिन, बांदा (उ०प्र०) 210125 ,फ़ोन—

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Aug 25, 2016, 11:36:44 PM8/25/16
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राही मासूम रजा : एक परिचय

हिन्दी -उर्दू साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ राही मासूम रजा का जन्म १ सितम्बर १९२७,को गाजीपुर (उत्तर प्रदेश ) के गंगोली गाँव में हुआ था.इनके पिता का नाम सैयद वसीर हसन आब्दी तथा माँ का नाम नफीसा बेगम था । इनके पिता गाजीपुर के प्रसिद्ध वकील थे। राही की प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर शहर में हुई। बचपन में इनका पैर पोलियो ग्रस्त हो जाने के कारण इनकी शिक्षा में थोड़ा व्वधान आ गया। लेकिन इन्होने अपनी पढ़ाई जारी रखी, और इंटर करने के बाद ये अलीगढ आ गए । और यही से इन्होने उर्दू साहित्य में एम .ए.करने के बाद" तिलिस्म -ए -होशरुबा " - पर पी.एच .डी.की डिग्री प्राप्त की । "तिलिस्म -ए -होशरुबा" उन कहानियो का संग्रह है जिन्हें घर की नानी-दादी ,छोटे बच्चो को सुनाती है। पी .एच.डी करने के बाद ,ये विश्वविद्यालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक हो गए । अलीगढ में रहते हुए इन्होने अपने प्रसिद्ध उपन्यास " आधा-गाँव " की रचना की ,जोकि भारतीय साहित्य के इतिहास का , एक मील का पत्थर साबित हुई।
राही स्वभाव से ही बागी थे। इसी कारण वे अपनी बात को बिना लाग-लपट के कह पाये । एक विधवा स्त्री नैयर से प्रेम करने के कारण उन्हें अपने विभाग से निकाल दिया गया। इस प्रेम को बदनाम करने की कोशिश की गई और राही पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया गया।
इसके बाद राही को अलीगढ छोड़ना पड़ा . अलीगढ छोड़ने के बाद ये दिल्ली चले आये और यहाँ पर राजकमल प्रकाशन की मालकिन श्रीमती शिला संधू ने इनकी बड़ी सहायता की। राही रोजी -रोटी की तलाश में बम्बई चले आए। यह समय राही के जीवन का सबसे बुरा समय था।

रोशनाई के लिए अपने को बेचा किए हम/ ताकि सिर्फ़ इसलिए कुछ लिखने से बाकी न रहे / की कलम खुश्क थे और लिखने से मजबूर थे हम /

उन्हें रोज़गार के लिए फ़िल्म लेखन का काम शुरू किया। इसके लिए इन्हे कई बार बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । लेकिन इन्होने बड़ी सफलतापूर्बक सबका निर्वाह किया फ़िल्म लेखन के साथ-साथ ये साहित्य रचना भी करते रहे । इन्होने जीवन को बड़े नजदीक से देखा और उसे साहित्य का विषय बनाया। इनके पात्र साधारण जीवन के होते और जीवन की समस्यों से जूझते हुए बड़ी जीवटता का परिचय देते है । इन्होने हिंदू -मुस्लिम संबंधो और बम्बई के फिल्मी जीवन को अपने साहित्य का विषय बनाया। इनके लिए भारतीयता आदमियत का पर्याय थी ।

मेरा फन तो मर गया यारो / मै नीला पड़ गया यारो / मुझे ले जाके गाजीपुर की गंगा की गोदी में सुला देना । / मगर शायद वतन से दूर मौत आए / तो मेरी यह वसीयत है/ अगर उस शहर में छोटी -सी एक नद्दी भी बहती हो/ तो मुझको / उसकी गोद में सुलाकर / उससे कह देना/ कि यह गंगा का बेटा आज से तेरे हवाले है /

इन्होने उर्दू साहित्य को देवनागरी लिपि में लिखने की शुरुआत की और जीवन पर्यंत इसी तरह साहित्य के सेवा करते रहे और इस तरह वे आम-आदमी के अपने सिपाही बने रहे । इस कलम के सिपाही का देहांत १५ मार्च १९९२ हो हुआ।

रचना कर्म:
कविता संग्रह : मै एक फेरीवाला ,मौजे सबा, रक्से -मय, अजनबी शहर-अजनबी रास्ते,नया साल ,मौजे गुल ।
उपन्यास : आधा गाँव, टोपी शुक्ला ,हिम्मत जौनपुरी ,ओस की बूंद ,दिल एक सादा कागज़ ,कटरा बी आरजू ,असंतोष के दिन ,मुहबत के सिवा ,सीन ७५
जीवनी साहित्य : छोटे आदमी की बड़ी कहानी

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Aug 25, 2016, 11:36:45 PM8/25/16
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समास :- जब दो या दो से अधिक पद बीच की विभक्ति को छोड़कर मिलते है,तो पदों के इस मेल को समास कहते है।

'समास के भेद '

समास के मुख्य सात भेद है :-

१.द्वन्द समास २.द्विगु समास ३.तत्पुरुष समास ४.कर्मधारय समास ५.बहुव्रीहि समास ६.अव्ययीभाव समास ७.नत्र समास

१.द्वंद समास :- इस समास में दोनों पद प्रधान होते है,लेकिन दोनों के बीच 'और' शब्द का लोप होता है। जैसे - हार-जीत,पाप-पुण्य ,वेद-पुराण,लेन-देन ।

२.द्विगु समास :- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है,उसे द्विगु समास कहते है। जैसे - त्रिभुवन ,त्रिफला ,चौमासा ,दशमुख

३.तत्पुरुष समास :- जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है। इनके निर्माण में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है। जैसे - राजपुत्र -राजा का पुत्र । इसमे पिछले पद का मुख्य अर्थ लिखा गया है। गुणहीन ,सिरदर्द ,आपबीती,रामभक्त ।

४.कर्मधारय समास :- जो समास विशेषण -विशेश्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते है,उन्हें कर्मधारय समास कहते है। जैसे -
१.चरणकमल -कमल के समानचरण ।
२.कमलनयन -कमल के समान नयन ।
३.नीलगगन -नीला है जो गगन ।
५.बहुव्रीहि समास :- जिस समास में शाब्दिक अर्थ को छोड़ कर अन्य विशेष का बोध होता है,उसे बहुव्रीहि समास कहते है। जैसे -
घनश्याम -घन के समान श्याम है जो -कृष्ण
दशानन -दस मुहवाला -रावण

६.अव्ययीभाव समास :- जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो,और उसी का अर्थ प्रधान हो,उसे अव्ययीभाव समास कहते है। जैसे - यथाशक्ति = (यथा +शक्ति ) यहाँ यथा अव्यय का मुख्य अर्थ लिखा गया है,अर्थात यथा जितनी शक्ति । इसी प्रकार - रातों रात ,आजन्म ,यथोचित ,बेशक,प्रतिवर्ष ।

७.नत्र समास :- इसमे नही का बोध होता है। जैसे - अनपढ़,अनजान ,अज्ञान ।

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Aug 25, 2016, 11:36:45 PM8/25/16
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भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकर्षक बनाते है। जैसे -
राम बहुत सुन्दर कहानी लिखता है। अनेक शब्दों के स्थान पर हम एक ही शब्द 'कहानीकार' का प्रयोग कर सकते है । इसी प्रकार ,अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर सकते है। यहां पर अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ उदाहरण दिए जा रहे है : -

१.जो दिखाई न दे - अदृश्य
२.जिसका जन्म न हो - अजन्मा
३.जिसका कोई शत्रु न हो - अजातशत्रु
४.जो बूढ़ा न हो - अजर
५.जो कभी न मरे - अमर
६.जो पढ़ा -लिखा न हो - अपढ़ ,अनपढ़
७.जिसके कोई संतान न हो - निसंतान
८.जो उदार न हो - अनुदार
९. जिसमे धैर्य न हो - अधीर
१०.जिसमे सहन शक्ति हो - सहिष्णु
११.जिसके समान दूसरा न हो - अनुपम
१२.जिस पर विश्वास न किया जा सके - अविश्वनीय
१३.जिसकी थाह न हो - अथाह
१४.दूर की सोचने वाला - दूरदर्शी
१५.जो दूसरों पर अत्याचार करें - अत्याचारी
१६.जिसके पास कुछ भी न हो - अकिंचन
१७.दुसरे देश से अपने देश में समान आना - आयात
१८.अपने देश से दुसरे देश में समान जाना - निर्यात
१९.जो कभी नष्ट न हो - अनश्वर
२०.जिसे कोई जीत न सके - अजेय
२१.अपनी हत्या स्वयं करना - आत्महत्या
२२.जिसे दंड का भय न हो - उदंड
२३.जिस भूमि पर कुछ न उग सके - ऊसर
२४.जनता में प्रचलित सुनी -सुनाई बात - किंवदंती
२५.जो उच्च कुल में उत्पन्न हुआ हो - कुलीन
२६.जिसकी सब जगह बदनामी -कुख्यात
२७.जो क्षमा के योग्य हो - क्षम्य
२८.शीघ्र नष्ट होने वाला - क्षणभंगुर
२९.कुछ दिनों तक बने रहना वाला - टिकाऊ
३०.पति-पत्नी का जोड़ा - दम्पति
३१.जो कम बोलता हो -मितभाषी
३२.जो अधिक बोलता हो - वाचाल
३३.जिसका पति जीवित हो - सधवा
३४.जिसमे रस हो - सरस
३५.जिसमे रस न हो - नीरस
३६.भलाई चाहने वाला - हितैषी
३७.दूसरों की बातों में दखल देना - हस्तक्षेप
३८.दिल से होने वाला - हार्दिक
३९.जिसमे दया न हो - निर्दय
४०.जो सब जगह व्याप्त हो -सर्वव्यापक
४१.जानने की इच्छा रखने वाला - जिज्ञासु
४२.सप्ताह में एक बार होने वाला - साप्ताहिक
४३.साहित्य से सम्बन्ध रखने वाला - साहित्यिक
४४.मांस खाने वाला - मांसाहारी
४५.जिसके आने की तिथि न हो - अतिथि
४६.जिसके ह्रदय में दया हो - दयावान
४७.जो चित्र बनाता हो - चित्रकार
४८.विद्या की चाह रखने वाला - विद्यार्थी
४९.हमेशा सत्य बोलने वाला - सत्यवादी
५०.जो देखने योग्य हो - दर्शनीय

shashidharasingh shashidharasingh

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Aug 25, 2016, 11:36:46 PM8/25/16
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संख्याएँ...... हिन्दी शब्द...... रोमन लिपि
० शून्य shoonya
१ एक Ek
२ दो do
३ तीन teen
४ चार chaara
५ पाँच paaNnch
६ छह chhah
७ सात saat
८ आठ AATh
९ नौ nao
१० दस das
११ ग्यारह gyaarah
१२ बारह baarah
१३ तेरह terah
१४ चौदह chaodah
१५ पन्द्रह pandrah
१६ सोलह solah
१७ सत्रह satrah
१८ अठारह AThaarah
१९ उन्नीस Unnees
२० बीस bees
२१ इक्कीस Ikkees
२२ बाईस baaEEs
२३ तेईस teEEs
२४ चौबीस chaobees
२५ पच्चीस pachchees
२६ छब्बीस chhabbees
२७ सत्ताईस sattaaEEs
२८ अट्ठाईस ATThaaEEs
२९ उनतीस Unatees
३० तीस tees
३१ इकतीस Ikatees
३२ बत्तीस battees
३३ तैंतीस taiNtees (taiNntees)
३४ चौंतीस chaoNtees (chaoNntees)
३५ पैंतीस paiNtees (paiNntees)
३६ छत्तीस chhattees
३७ सैंतीस saiNtees (saiNntees)
३८ अड़तीस ADdatees
३९ उनतालीस Unataalees
४० चालीस chaalees
४१ इकतालीस Ikataalees
४२ बयालीस bayaalees
४३ तैंतालीस taiNtaalees (taiNntaalees)
४४ चौवालीस chaovaalees
४५ पैंतालीस paiNtaalees (paiNntaalees)
४६ छियालीस chhiyaalees
४७ सैंतालीस saiNtaalees (saiNntaalees)
४८ अड़तालीस ADdataalees
४९ उनचास Unachaas
५० पचास pachaas
५१ इक्यावन Ikyaavan
५२ बावन baavan
५३ तिरेपन tirepan
५४ चौवन chaovan
५५ पचपन pachapan
५६ छप्पन chhappan
५७ सत्तावन sattaavan
५८ अट्ठावन ATThaavan
५९ उनसठ UnasaTh
६० साठ saaTh
६१ इकसठ IkasaTh
६२ बासठ baasaTh
६३ तिरेसठ tiresaTh
६४ चौंसठ chaoNsaTh (chaoNnsaTh)
६५ पैंसठ paiNsaTh (paiNnsaTh)
६६ छियासठ chhiyaasaTh
६७ सड़सठ saDdasaTh
६८ अड़सठ ADdasaTh
६९ उनहत्तर Unahattara
७० सत्तर sattara
७१ इकहत्तर Ikahattara
७२ बहत्तर bahattara
७३ तिहत्तर tihattara
७४ चौहत्तर chaohattara
७५ पचहत्तर pachahattara
७६ छिहत्तर chhihattara
७७ सतहत्तर satahattara
७८ अठहत्तर AThahattara
७९ उनासी Unaasee
८० अस्सी Assee
८१ इक्यासी Ikyaasee
८२ बयासी bayaasee
८३ तिरासी tiraasee
८४ चौरासी chaoraasee
८५ पचासी pachaasee
८६ छियासी chhiyaasee
८७ सत्तासी sattaasee
८८ अट्ठासी ATThaasee
८९ नवासी navaasee
९० नब्बे nabbe
९१ इक्यानबे Ikyaanabe
९२ बानबे baanabe
९३ तिरानबे tiraanabe
९४ चौरानबे chaoraanabe
९५ पंचानबे paNchaanabe
९६ छियानबे chhiyaanabe
९७ सत्तानबे sattaanabe
९८ अट्ठानबे ATThaanabe
९९ निन्यानबे ninyaanabe
१०० सौ sao

संख्याएँ हिन्दी शब्द... Xliteration
१,००० हजार hajaara
१,००,००० लाख laakh
१,००,००,००० करोड़ karoDd
१,००,००,००,००० अरब Arab
१,००,००,००,००,००० खरब kharab

shashidharasingh shashidharasingh

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Aug 26, 2016, 2:01:36 AM8/26/16
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दम तोड़ती रिश्ते के बीच की उलझी हुई डोर की कहानी 'आपका बंटी'

पुस्तक  - आपका बंटी
लेखिका - मन्नू भंडारी
आपका बंटी मन्नू भंडारी के उन बेजोड़ उपन्यासों में है जिनके बिना न बीसवीं शताब्दी के हिन्दी उपन्यास की बात की जा सकती है, न स्त्री-विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है। दजर्नों संस्करण और अनुवादों का यह सिलसिला आज भी वैसा ही है जैसा धमर्युग में पहली बार धारावाहिक के रूप में प्रकाशन के दौरान था। बच्चे की निगाहों और घायल होती संवेदना की निगाहों से देखी गई परिवार की यह दुनिया एक भयावह दु: स्वप्न बन जाती है। कहना मुश्किल है कि यह कहानी बालक बंटी की है या माँ शकुन की और अजय-शकुन के बिखरे रिश्ते की। सभी तो एक-दूसरे में ऐसे उलझे हैं कि त्रासदी सभी की यातना बन जाती है। शकुन के जीवन का सत्य है कि स्त्री की जायज महत्वाकांक्षा और आत्मनिर्भरता पुरुष के लिए चुनौती है-नतीजे में दाम्पत्य तनाव से उसे अलगाव तक ला छोड़ता है। यह शकुन का नहीं, समाज में निरन्तर अपनी जगह बनाती, फैलाती और अपना कद बढ़ाती हर स्त्री का है। पति-पत्नी के इस द्वन्द में यहाँ भी वही सबसे अधिक पीसा जाता है जो नितान्त निर्दोष, निरीह और असुरक्षित है-बंटी। बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ-बूझ के लिए चर्चित, प्रशंसित इस उपन्यास का हर पृष्ठ ही मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक है। हिन्दी उपन्यास की एक मूल्यवान उपलब्धि के रूप में आपका बंटी एक कालजयी उपन्यास है।
मंन्नु भंडारी का वक्तव्य
उपन्यास के प्रारंभ में लेखिका का वक्तव्य अत्यंत ही मर्मस्पर्शी है। उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-वह बांकुरा की एक साँझ थी। अचानक ही पी। का फोन आया- तुमसे कुछ बहुत जरूरी बात करनी है, जैसे भी हो आज शाम को ही मिलो, बांकुरा में। मैं उस जरूरी बात से कुछ परिचित भी थी और चिंतित भी। रेस्त्राँ की भीनी रोशनी में मेज पर आमने-सामने बैठकर, परेशान और बदहवास पी। ने कहा- समस्या बंटी की है। तुम्हें शायद मालूम हो कि बंटी की माँ (पी। की पहली पत्नी) ने शादी कर ली। मैं बिलकुल नहीं चाहता कि अब वह वहाँ एक अवांछनीय तत्त्व बनकर रहे, इसलिए तय किया है कि बंटी को मैं अपने पास ले आऊँगा। अब से वह यहीं रहेगा और फिर वे देर तक यह बताते रहे कि बंटी से उन्हें कितना लगाव है, और इस नई व्यवस्था में वहाँ रहने से उसकी स्थिति क्या हो जाएगी.यहां एक ऐसे बच्ची की स्थिति की वर्णना है जो अपने माता-पिता के टूटे हुए रिश्ते के बीच एक मात्र कड़ी है।

बंटी जैसे बच्चों की दशा का वर्णन
लेखिका ने बंटी जैसे बच्चों की दशा का कुछ इस तरह से वर्णन किया है कि -बंटी अपनी नई माँ के घर आ गया है। नई माँ और पिता के बीच एक बालिका। लगभग छ: महीने बाद की घटना है। ड्राइंग रूम में अनेक बच्चे धमा-चौकड़ी मचाए हैं-उन्मुक्त और निश्चिंत। बारी-बारी से सब सोफे पर चढ़कर नीचे छलाँग लगा रहे हैं। उस बच्ची का नंबर आता है। सोफे पर चढ़ने से पहले वह अपनी नई माँ की ओर देखती है। माँ शायद उसकी ओर देख भी नहीं रही थी, पर उन अनदेखी नजरों में भी जाने ऐसा क्या था कि सोफे पर चढ़ने के लिए बच्ची का ऊपर उठा हुआ पैर वापस नीचे आ जाता है। बच्ची सहमकर पीछे हट जाती है। अनायास ही मेरे भीतर छ: महीने पहले का बंटी उस वातावरण में व्याप्त एक सहमेपन के रूप में जाग उठता है। खेल उसी तरह चल निकला है, लेकिन अगर कोई इस सारे प्रवाह से अलग हटकर सहमा हुआ कोने में खड़ा है, तो वह है बंटी। रात में सोई तो लगा छ: महीने पहले जिस बंटी को अपने साथ लाई थी, वह सिर्फ़ एक दयनीय मुरझायापन बनकर रह गया है।लेखिका बंटी के संदर्भ में कहती हैं कि किसी एक व्यक्ति के साथ घटी घटना दया, करूणा और भावुकता पैदा कर सकती है, लेकिन जब अनेक जि Þ ंदगियाँ एक जैसे साँचे में ही सामने आने लगती हैं तो दया और भावुकता के स्थान पर मन में धीरे-धीरे एक आतंक उभरने लगता है। बंटी के इन अलग-अलग टुकड़ों ने उस समय मुझे करुणा-विगलित और उच्छ्वसित ही किया था, लेकिन जब सब मिलाकर बंटी मेरे सामने खड़ा हुआ तो मैंने अपने-आपको आतंकित ही अधिक पाया, समाज की दिनों-दिन बढ़ती हुई एक ऐसी समस्या के रूप से, जिसका कहीं कोई हल नहीं दिखाई देता। यही कारण है कि बंटी मुझे तूफानी समुद्र-यात्रा में किसी द्वीप पर छूटे हुए अकेले और असहाय बच्चे की तरह नहीं वरन अपनी यात्रा के कारणों के साथ और समानांतर जीते हुए दिखाई दिया। भावना के स्तर पर उद्वेलित और विगलित करनेवाला बंटी जब मेरे सामने एक भयावह सामाजिक समस्या के रूप में आया तो मेरी दृष्टि अनायास ही उसे जन्म देने, बनाने या बिगाड़नेवाले सारे सूत्रों, स्रोतों और संदर्भों की खोज और विश्लेषण की ओर दौड़ पड़ी। बंटी के तत्काल संदर्भ अजय और शकुन हैं.दूसरे शब्दों में वे संदर्भ अजय और शकुन के वैवाहिक संबंधों का अध्ययन और उसकी परिणति के रूप में ही मेरे सामने आए। इस पूरी स्थिति की सबसे बड़ी विडंबना ही यह है कि इन संबंधों के लिए सबसे कम जि Þ म्मेदार और सब ओर से बेगुनाह बंटी ही त्रास को सबसे अधिक भोगता है इस ट्रैजडी के। लेखिका ने बंटी को उन तमाम बच्चों का प्रतिनिधि बनाया जो कि अक्सर पति-पत्नी के रिश्ते के बीच बेटी या बेटा बन कर पिसते हैं।
महिला के दो रूपों का वर्णन
लेखिका ने मां और कामकाजी महिला के बीच की टकराहट को बड़ी ही अनोखी तरह से पेशकश की है। लेखिका ने कुछ इस तरह बयां किया है कि बंटी जानता है, ममी अब पीछे मुड़कर नहीं देखेंगी। नपे-तुले क़दम रखती हुई सीधी चलती चली जाएँगी। जैसे ही अपने कमरे के सामने पहुँचेंगी चपरासी सलाम ठोंकता हुआ दौड़ेगा और चिक उठाएगा। ममी अंदर घुसेंगी और एक बड़ी-सी मेज के पीछे रखी कुर्सी पर बैठ जाएँगी। मेज पर ढेर सारी चिट्ठियाँ होंगी। फाइलें होगी। उस समय तक ममी एकदम बदल चुकी होंगी। कम से कम बंटी को उस कुर्सी पर बैठी ममी कभी अच्छी नहीं लगीं। पहले जब कभी उसकी छुट्टी होती और ममी की नहीं होती, ममी उसे भी अपने साथ कॉलेज ले जाया करती थीं। चपरासी उसे देखते ही गोद में उठाने लगता तो वह हाथ झटक देता। ममी के कमरे के एक कोने में ही उसके लिए एक छोटी-सी मेज-कुर्सी लगवा दी जाती, जिस पर बैठकर वह ड्राइंग बनाया करता। कमरे में कोई भी घुसता तो एक बार हँसी लपेटकर, आँखों ही आँखों में जरूर उसे दुलरा देता। तब वह ममी की ओर देखता। पर उस कुर्सी पर बैठकर ममी का चेहरा अजीब तरह से सख़्त हो जाया करता है। प्रंसिपल की कुर्सी पर बैठी ममी उसे कभी अच्छी नहीं लगतीं। वहाँ उसके और ममी के बीच में बहुत सारी चीजें आ जाती हैं। ममी का नक़ली चेहरा, कॉलेज, कॉलेज की बड़ी-सी बिल्डिंग, कॉलेज की ढेर सारी लड़कियाँ, कॉलेज के ढेर सारे काम! पर ममी है कि फूफी को कुछ नहीं कहतीं। बस, हँसती रहती हैं, क्योंकि उस समय घर में जो रहती हैं ममी! वह भी एकदम ममी बनी हुई।
आपका बंटी उपन्यास पर इतिश्री सिंह के विचार
आपका बंटी एक ऐसी बच्चे की मनो: गाथा है जो अपनी मम्मी और पापा के रिश्तों की डोर है वह भी उलझा

इतिश्री सिंह
हुआ। मन्नु भंडारी ने जब यह उपन्यास लिखी शायद तब तलाक के उतने मामले न होते होंगे जितना की आज होता है। आज बात-बात पर रिश्तेटूट जाया करते हैं और दूसरी बार हो या फिर बार फिर से रिश्ते जुड़ते भी हैं लेकिन इन सबके बीच जिसकी जिंदगी सूनेपन की गठरी बन जाती है वह है बंटी यानि बंटी जैसे बच्चों को। लेखिका ने शायद इस समस्या को पहले ही भांप लिया है। लेखिका ने बंटी के माध्यम से उन तमाम बच्चों की मनोदशा जो कि माता-पिता के विखराब के बीच एक मात्र डोर हैं, अतुल्य वर्णना दी है जो कि आपको दूसरी बार कहानी पढ़ने से नहीं रोक पाएगा।

यह समीक्षा इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.
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shashidharasingh shashidharasingh

unread,
Aug 26, 2016, 2:05:52 AM8/26/16
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जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाये ,उसे क्रिया विशेषण कहते है । जैसे - १.खरगोश तेज दौड़ता है। २.पिता जी बाहर घूमने जा रहे है। ३.धीरे धीरे मेरा उससे परिचय हुआ । ४.मेज के ऊपर पुस्तक रखी हुई है।

क्रिया विशेषण के भेद :-
१.कालवाचक विशेषण
२.स्थानवाचक विशेषण
३.परिमाणवाचक विशेषण
४.रीतिवाचक विशेषण

१.कालवाचक विशेषण : -वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के समय से सम्बंधित विशेषण बताते है ,वे कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते है। जैसे - १.आज बरसात होगी । २.माँ सुबह नाश्ता बनाती है ।३.राम कल मेरे घर आयेगा। इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
कल ,परसों ,प्रायः ,अक्सर ,बाद में ,जब,तब,अब,अभी,आज,कभी,नित्य ,सदा,प्रतिदिन आदि है ।

२.स्थानवाचक क्रियाविशेषण : - वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराते है,उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते है। जैसे - १.अन्दर जाकर पढ़ो ! २.बच्चे ऊपर खेलते है । ३.अब वहां अकेला मज़दूर था । इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
यहाँ,वहां ,कहाँ,दूर,पास,ऊपर,नीचे ,अन्दर ,बाहर,भीतर ,किधर ,इस ओर,उस ओर,इधर,उधर आदि।

३.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :- जिन क्रिया -विशेषण शब्दों से क्रिया के परिमाण अथवा मात्रा से सम्बंधित विशेषता का बोध हो ,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है । जैसे - १.अधिक पढ़ो ! २.कम खाओ ! ३.ज्यादा सुनो ! । अन्य परिमाणवाचक क्रिया विशेषण इस प्रकार है - पर्याप्त ,कुछ ,जरा ,खूब,बिल्कुल,काफ़ी ,बहुत,कितना,थोड़ा,ज्यादा आदि है।

४.रीतिवाचक क्रिया विशेषण : - जो क्रिया विशेषण शब्द क्रिया के घटित होने की विधि या रीति से सम्बंधित विशेषता का बोध करवाते है,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे - १.कछुवा धीरे धीरे चलता है । २.अचानक काले बादल घिर आए ३.हरीश ध्यानपूर्वक पढ़ रहा है। इसके अलावा रीतिवाचक क्रियाविशेषण के अन्य उदाहरण है - ठीक ,ग़लत,सच,झूठ,धीरे,सहसा,ध्यानपूर्वक ,ऐसे,वैसे,कैसे,तेज आदि।

Agasagi M

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Aug 29, 2016, 10:23:01 AM8/29/16
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M.C.Agasagi sir

रवि २२२.pdf

tasleema009

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Aug 31, 2016, 8:14:48 AM8/31/16
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Sent from my Samsung Galaxy smartphone.
VID-20160829-WA0003.mp4

Kumarswami Hongal

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Aug 31, 2016, 9:25:31 PM8/31/16
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Nice video.😁

On 31-Aug-2016 5:44 PM, "tasleema009" <tasle...@gmail.com> wrote:




Sent from my Samsung Galaxy smartphone.

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Sunil Vittal

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Sep 4, 2016, 5:04:49 AM9/4/16
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काकभुशुण्डि

Page issues


काकभुशुण्डि रामचरितमानस के एक पात्र हैं। संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखा है कि काकभुशुण्डि परमज्ञानी रामभक्त हैं। रावण के पुत्र मेघनाथ ने राम से युद्ध करते हुये राम को नागपाश से बाँध दिया था। देवर्षि नारद के कहने पर गरूड़, जो कि सर्पभक्षी थे, ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर राम को नागपाश के बंधन से छुड़ाया। राम के इस तरह नागपाश में बँध जाने पर राम के परमब्रह्म होने पर गरुड़ को सन्देह हो गया। गरुड़ का सन्देह दूर करने के लिये देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्मा जी के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम्हारा सन्देह भगवान शंकर दूर कर सकते हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका सन्देह मिटाने के लिये काकभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। अन्त में काकभुशुण्डि जी राम के चरित्र की पवित्र कथा सुना कर गरुड़ के सन्देह को दूर किया। गरुड़ के सन्देह समाप्त हो जाने के पश्चात् काकभुशुण्डि जी गरुड़ को स्वयं की कथा सुनाया जो इस प्रकार हैः

पूर्व के एक कल्प में कलियुग का समय चल रहा था। उसी समय काकभुशुण्डि जी का प्रथम जन्म अयोध्या पुरी में एक शूद्र के घर में हुआ। उस जन्म में वे भगवान शिव के भक्त थे किन्तु अभिमानपूर्वक अन्य देवताओं की निन्दा करते थे। एक बार अयोध्या में अकाल पड़ जाने पर वे उज्जैन चले गये। वहाँ वे एक दयालु ब्राह्मण की सेवा करते हुये उन्हीं के साथ रहने लगे। वे ब्राह्मण भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे किन्तु भगवान विष्णु की निन्दा कभी नहीं करते थे। उन्होंने उस शूद्र को शिव जी का मन्त्र दिया। मन्त्र पाकर उसका अभिमान और भी बढ़ गया। वह अन्य द्विजों से ईर्ष्या और भगवान विष्णु से द्रोह करने लगा। उसके इस व्यवहार से उनके गुरु (वे ब्राह्मण) अत्यन्त दुःखी होकर उसे श्री राम की भक्ति का उपदेश दिया करते थे।

एक बार उस शूद्र ने भगवान शंकर के मन्दिर में अपने गुरु, अर्थात् जिस ब्राह्मण के साथ वह रहता था, का अपमान कर दिया। इस पर भगवान शंकर ने आकाशवाणी करके उसे शाप दे दिया कि रे पापी! तूने गुरु का निरादर किया है इसलिये तू सर्प की अधम योनि में चला जा और सर्प योनि के बाद तुझे 1000 बार अनेक योनि में जन्म लेना पड़े। गुरु बड़े दयालु थे इसलिये उन्होंने शिव जी की स्तुति करके अपने शिष्य के लिये क्षमा प्रार्थना की। गुरु के द्वारा क्षमा याचना करने पर भगवान शंकर ने आकाशवाणी करके कहा, "हे ब्राह्मण! मेरा शाप व्यर्थ नहीं जायेगा। इस शूद्र को 1000 बार जन्म अवश्य ही लेना पड़ेगा किन्तु जन्मने और मरने में जो दुःसह दुःख होता है वह इसे नहीं होगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा। इसे अपने प्रत्येक जन्म का स्मरण बना रहेगा जगत् में इसे कुछ भी दुर्लभ न होगा और इसकी सर्वत्र अबाध गति होगी मेरी कृपा से इसे भगवान श्री राम के चरणों के प्रति भक्ति भी प्राप्त होगी।"

इसके पश्चात् उस शूद्र ने विन्ध्याचल में जाकर सर्प योनि प्राप्त किया। कुछ काल बीतने पर उसने उस शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया वह जो भी शरीर धारण करता था उसे बिना कष्ट के सुखपूर्वक त्याग देता था, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग कर नया वस्त्र पहन लेता है। प्रत्येक जन्म की याद उसे बनी रहती थी। श्री रामचन्द्र जी के प्रति भक्ति भी उसमें उत्पन्न हो गई। अन्तिम शरीर उसने ब्राह्मण का पाया। ब्राह्मण हो जाने पर ज्ञानप्राप्ति के लिये वह लोमश ऋषि के पास गया। जब लोमश ऋषि उसे ज्ञान देते थे तो वह उनसे अनेक प्रकार के तर्क-कुतर्क करता था। उसके इस व्यवहार से कुपित होकर लोमश ऋषि ने उसे शाप दे दिया कि जा तू चाण्डाल पक्षी (कौआ) हो जा। वह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया। शाप देने के पश्चात् लोमश ऋषि को अपने इस शाप पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने उस कौए को वापस बुला कर राममन्त्र दिया तथा इच्छा मृत्यु का वरदान भी दिया। कौए का शरीर पाने के बाद ही राममन्त्र मिलने के कारण उस शरीर से उन्हें प्रेम हो गया और वे कौए के रूप में ही रहने लगे तथा काकभुशुण्डि के नाम से विख्यात हुये।  संग्रह सुनील कुमार आर वी

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tasleema009

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Sep 4, 2016, 11:40:45 PM9/4/16
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Baburao Amble

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Sep 4, 2016, 11:49:11 PM9/4/16
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बहुत खूब

On 5 Sep 2016 9:10 am, "tasleema009" <tasle...@gmail.com> wrote:




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Tasleema F

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Sep 5, 2016, 6:41:01 AM9/5/16
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tasleema009

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Sep 6, 2016, 5:52:20 AM9/6/16
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Agasagi M

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Sep 6, 2016, 7:50:58 AM9/6/16
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M.C.Agasagi sir

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Agasagi M

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Sep 7, 2016, 10:21:00 PM9/7/16
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M.C.Agasagi sir

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Shankar Lamani ಶಿಕ್ಷಕರು ಸರಕಾರಿ ಪೌಢಶಾಲೆ.ಸುನ್ನಾಳ

unread,
Sep 8, 2016, 4:34:53 AM9/8/16
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Sir rajeyallin tarabeti EL enayitu

On Sep 8, 2016 7:51 AM, "Agasagi M" <ssag...@gmail.com> wrote:

M.C.Agasagi sir

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usha ck

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Sep 10, 2016, 12:34:38 AM9/10/16
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rayee rajkumar

unread,
Sep 10, 2016, 9:45:38 AM9/10/16
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rayee rajkumar

unread,
Sep 10, 2016, 10:41:14 AM9/10/16
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I request all D.K.District Hindi Teachers to assist and extend wholehearted support to all of us to serve you better.

tasleema009

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Sep 14, 2016, 9:29:49 AM9/14/16
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raviraj pawar

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Sep 20, 2016, 2:10:14 AM9/20/16
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वाक्यांश या शब्द–समूह          -- शब्द

• हाथी हाँकने का छोटा भाला— अंकुश
• जो कहा न जा सके— अकथनीय
• जिसे क्षमा न किया जा सके— अक्षम्य
• जिस स्थान पर कोई न जा सके— अगम्य
• जो कभी बूढ़ा न हो— अजर
• जिसका कोई शत्रु न हो— अजातशत्रु
• जो जीता न जा सके— अजेय
• जो दिखाई न पड़े— अदृश्य
• जिसके समान कोई न हो— अद्वितीय
• हृदय की बातेँ जानने वाला— अन्तर्यामी
• पृथ्वी, ग्रहोँ और तारोँ आदि का स्थान— अन्तरिक्ष
• दोपहर बाद का समय— अपराह्न
• जो सामान्य नियम के विरुद्ध हो— अपवाद
• जिस पर मुकदमा चल रहा हो/अपराध करने का आरोप हो/अभियोग लगाया गया हो— अभियुक्त
• जो पहले कभी नहीँ हुआ— अभूतपूर्व
• फेँक कर चलाया जाने वाला हथियार— अस्त्र
• जिसकी गिनती न हो सके— अगणित/अगणनीय
• जो पहले पढ़ा हुआ न हो— अपठित
• जिसके आने की तिथि निश्चित न हो— अतिथि
• कमर के नीचे पहने जाने वाला वस्त्र— अधोवस्त्र
• जिसके बारे मेँ कोई निश्चय न हो— अनिश्चित
• जिसका भाषा द्वारा वर्णन असंभव हो— अनिर्वचनीय
• अत्यधिक बढ़ा–चढ़ा कर कही गई बात— अतिशयोक्ति
• सबसे आगे रहने वाला— अग्रणी
• जो पहले जन्मा हो— अग्रज
• जो बाद मेँ जन्मा हो— अनुज
• जो इंद्रियोँ द्वारा न जाना जा सके— अगोचर
• जिसका पता न हो— अज्ञात
• आगे आने वाला— आगामी
• अण्डे से जन्म लेने वाला— अण्डज
• जो छूने योग्य न हो— अछूत
• जो छुआ न गया हो— अछूता
• जो अपने स्थान या स्थिति से अलग न किया जा सके— अच्युत
• जो अपनी बात से टले नहीँ— अटल
• जिस पुस्तक मेँ आठ अध्याय होँ— अष्टाध्यायी
• आवश्यकता से अधिक बरसात— अतिवृष्टि
• बरसात बिल्कुल न होना— अनावृष्टि
• बहुत कम बरसात होना— अल्पवृष्टि
• इंद्रियोँ की पहुँच से बाहर— अतीन्द्रिय/इंद्रयातीत
• सीमा का अनुचित उल्लंघन— अतिक्रमण
• जो बीत गया हो— अतीत
• जिसकी गहराई का पता न लग सके— अथाह
• आगे का विचार न कर सकने वाला— अदूरदर्शी
• जो आज तक से सम्बन्ध रखता है— अद्यतन
• आदेश जो निश्चित अवधि तक लागू हो— अध्यादेश
• जिस पर किसी ने अधिकार कर लिया हो— अधिकृत
• वह सूचना जो सरकार की ओर से जारी हो— अधिसूचना
• विधायिका द्वारा स्वीकृत नियम— अधिनियम
• अविवाहित महिला— अनूढ़ा
• वह स्त्री जिसके पति ने दूसरी शादी कर ली हो— अध्यूढ़ा
• दूसरे की विवाहित स्त्री— अन्योढ़ा
• गुरु के पास रहकर पढ़ने वाला— अन्तेवासी
• पहाड़ के ऊपर की समतल जमीन— अधित्यका
• जिसके हस्ताक्षर नीचे अंकित हैँ— अधोहस्ताक्षरकर्त्ता
• एक भाषा के विचारोँ को दूसरी भाषा मेँ व्यक्त करना— अनुवाद
• किसी सम्प्रदाय का समर्थन करने वाला— अनुयायी
• किसी प्रस्ताव का समर्थन करने की क्रिया— अनुमोदन
• जिसके माता–पिता न होँ— अनाथ
• जिसका जन्म निम्न वर्ण मेँ हुआ हो— अंत्यज
• परम्परा से चली आई कथा— अनुश्रुति
• जिसका कोई दूसरा उपाय न हो— अनन्योपाय
• वह भाई जो अन्य माता से उत्पन्न हुआ हो— अन्योदर
• पलक को बिना झपकाए— अनिमेष/निर्निमेष
• जो बुलाया न गया हो— अनाहूत
• जो ढका हुआ न हो— अनावृत
• जो दोहराया न गया हो— अनावर्त
• पहले लिखे गए पत्र का स्मरण— अनुस्मारक
• पीछे–पीछे चलने वाला/अनुसरण करने वाला— अनुगामी
• महल का वह भाग जहाँ रानियाँ निवास करती हैँ— अंतःपुर/रनिवास
• जिसे किसी बात का पता न हो— अनभिज्ञ/अज्ञ
• जिसका आदर न किया गया हो— अनादृत
• जिसका मन कहीँ अन्यत्र लगा हो— अन्यमनस्क
• जो धन को व्यर्थ ही खर्च करता हो— अपव्ययी
• आवश्यकता से अधिक धन का संचय न करना— अपरिग्रह
• जो किसी पर अभियोग लगाए— अभियोगी
• जो भोजन रोगी के लिए निषिद्ध है— अपथ्य
• जिस वस्त्र को पहना न गया हो— अप्रहत
• न जोता गया खेत— अप्रहत
• जो बिन माँगे मिल जाए— अयाचित
• जो कम बोलता हो— अल्पभाषी/मितभाषी
• आदेश की अवहेलना— अवज्ञा
• जो बिना वेतन के कार्य करता हो— अवैतनिक
• जो व्यक्ति विदेश मेँ रहता हो— अप्रवासी
• जो सहनशील न हो— असहिष्णु
• जिसका कभी अन्त न हो— अनन्त
• जिसका दमन न किया जा सके— अदम्य
• जिसका स्पर्श करना वर्जित हो— अस्पृश्य
• जिसका विश्वास न किया जा सके— अविश्वस्त
• जो कभी नष्ट न होने वाला हो— अनश्वर
• जो रचना अन्य भाषा की अनुवाद हो— अनूदित
• जिसके पास कुछ न हो अर्थात् दरिद्र— अकिँचन
• जो कभी मरता न हो— अमर
• जो सुना हुआ न हो— अश्रव्य
• जिसको भेदा न जा सके— अभेद्य
• जो साधा न जा सके— असाध्य
• जो चीज इस संसार मेँ न हो— अलौकिक
• जो बाह्य संसार के ज्ञान से अनभिज्ञ हो— अलोकज्ञ
• जिसे लाँघा न जा सके— अलंघनीय
• जिसकी तुलना न हो सके— अतुलनीय
• जिसके आदि (प्रारम्भ) का पता न हो— अनादि
• जिसकी सबसे पहले गणना की जाये— अग्रगण
• सभी जातियोँ से सम्बन्ध रखने वाला— अन्तर्जातीय
• जिसकी कोई उपमा न हो— अनुपम
• जिसका वर्णन न हो सके— अवर्णनीय
• जिसका खंडन न किया जा सके— अखंडनीय
• जिसे जाना न जा सके— अज्ञेय
• जो बहुत गहरा हो— अगाध
• जिसका चिँतन न किया जा सके— अचिँत्य
• जिसको काटा न जा सके— अकाट्य
• जिसको त्यागा न जा सके— अत्याज्य
• वास्तविक मूल्य से अधिक लिया जाने वाला मूल्य— अधिमूल्य
• अन्य से संबंध न रखने वाला/किसी एक मेँ ही आस्था रखने वाला— अनन्य
• जो बिना अन्तर के घटित हो— अनन्तर
• जिसका कोई घर (निकेत) न हो— अनिकेत
• कनिष्ठा (सबसे छोटी) और मध्यमा के बीच की उँगली— अनामिका
• मूलकथा मेँ आने वाला प्रसंग, लघु कथा— अंतःकथा
• जिसका निवारण न किया जा सके/जिसे करना आवश्यक हो— अनिवार्य
• जिसका विरोध न हुआ हो या न हो सके— अनिरुद्ध/अविरोधी
• जिसका किसी मेँ लगाव या प्रेम हो— अनुरक्त
• जो अनुग्रह (कृपा) से युक्त हो— अनुगृहीत
• जिस पर आक्रमण न किया गया हो— अनाक्रांत
• जिसका उत्तर न दिया गया हो— अनुत्तरित
• अनुकरण करने योग्य— अनुकरणीय
• जो कभी न आया हो (भविष्य)— अनागत
• जो श्रेष्ठ गुणोँ से युक्त न हो— अनार्य
• जिसकी अपेक्षा हो— अपेक्षित
• जो मापा न जा सके— अपरिमेय
• नीचे की ओर लाना या खीँचना— अपकर्ष
• जो सामने न हो— अप्रत्यक्ष/परोक्ष
• जिसकी आशा न की गई हो— अप्रत्याशित
• जो प्रमाण से सिद्ध न हो सके— अप्रमेय
• किसी काम के बार–बार करने के अनुभव वाला— अभ्यस्त
• किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा— अभीप्सा
• जो साहित्य कला आदि मेँ रस न ले— अरसिक
• जिसको प्राप्त न किया जा सके
• जो कम जानता हो— अल्पज्ञ
• जो वध करने योग्य न हो— अवध्य
• जो विधि या कानून के विरुद्ध हो— अवैध
• जो भला–बुरा न समझता हो अथवा सोच–समझकर काम न करता हो— अविवेकी
• जिसका विभाजन न किया जा सके— अविभाज्य/अभाज्य
• जिसका विभाजन न किया गया हो— अविभक्त
• जिस पर विचार न किया गया हो— अविचारित
• जो कार्य अवश्य होने वाला हो— अवश्यंभावी
• जिसको व्यवहार मेँ न लाया गया हो— अव्यवहृत
• जो स्त्री सूर्य भी नहीँ देख पाती— असूर्यपश्या
• न हो सकने वाला कार्य आदि— अशक्य
• जो शोक करने योग्य नहीँ हो— अशोक्य
• जो कहने, सुनने, देखने मेँ लज्जापूर्ण, घिनौना हो— अश्लील
• जिस रोग का इलाज न किया जा सके— असाध्य रोग/लाइलाज
• जिससे पार न पाई जा सके— अपार
• बूढ़ा–सा दिखने वाला व्यक्ति— अधेड़
• जिसका कोई मूल्य न हो— अमूल्य
• जो मृत्यु के समीप हो— आसन्नमृत्यु
• किसी बात पर बार–बार जोर देना— आग्रह
• वह स्त्री जिसका पति परदेश से लौटा हो— आगतपतिका
• जिसकी भुजाएँ घुटनोँ तक लम्बी होँ— आजानुबाहु
• मृत्युपर्यन्त— आमरण
• जो अपने ऊपर निर्भर हो— आत्मनिर्भर/स्वावलंबी
• व्यर्थ का प्रदर्शन— आडम्बर
• पूरे जीवन तक— आजीवन
• अपनी हत्या स्वयं करना— आत्महत्या
• अपनी प्रशंसा स्वयं करने वाला— आत्मश्लाघी
• कोई ऐसी वस्तु बनाना जिसको पहले कोई न जानता हो— आविष्कार
• ईश्वर मेँ विश्वास रखने वाला— आस्तिक
• शीघ्र प्रसन्न होने वाला— आशुतोष
• विदेश से देश मेँ माल मँगाना— आयात
• सिर से पाँव तक— आपादमस्तक
• प्रारम्भ से लेकर अंत तक— आद्योपान्त
• अपनी हत्या स्वयं करने वाला— आत्मघाती
• जो अतिथि का सत्कार करता है— आतिथेय/मेजबान
• दूसरे के हित मेँ अपना जीवन त्याग देना— आत्मोत्सर्ग
• जो बहुत क्रूर व्यवहार करता हो— आततायी
• जिसका सम्बन्ध आत्मा से हो— आध्यात्मिक
• जिस पर हमला किया गया हो— आक्रांत
• जिसने हमला किया हो— आक्रांता
• जिसे सूँघा न जा सके— आघ्रेय
• जिसकी कोई आशा न की गई हो— आशातीत
• जो कभी निराश होना न जाने— आशावादी
• किसी नई चीज की खोज करने वाला— आविष्कारक
• जो गुण–दोष का विवेचन करता हो— आलोचक
• जो जन्म लेते ही गिर या मर गया हो— आजन्मपात
• वह कवि जो तत्काल कविता कर सके— आशुकवि
• पवित्र आचरण वाला— आचारपूत
• लेखक द्वारा स्वयं की लिखी गई जीवनी— आत्मकथा
• वह चीज जिसकी चाह हो— इच्छित
• किन्हीँ घटनाओँ का कालक्रम से किया गया वर्णन— इतिवृत्त
• इस लोक से संबंधित— इहलौकिक
• जो इन्द्र पर विजय प्राप्त कर चुका हो— इंद्रजीत
• माँ–बाप का अकेला लड़का— इकलौता
• जो इन्द्रियोँ से परे हो/जो इन्द्रियोँ के द्वारा ज्ञात न हो— इन्द्रियातीत
• दूसरे की उन्नति से जलना— ईर्ष्या
• उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा— ईशान/ईशान्य
• पर्वत की निचली समतल भूमि— उपत्यका
• दूसरे के खाने से बची वस्तु— उच्छिष्ट
• किसी भी नियम का पालन नहीँ करने वाला— उच्छृंखल
• वह पर्वत जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा उदित होते माने जाते हैँ— उदयाचल
• जिसके ऊपर किसी का उपकार हो— उपकृत
• ऐसी जमीन जो अच्छी उत्पादक हो— उर्वरा
• जो छाती के बल चलता हो (साँप आदि)— उरग
• जिसने अपना ऋण पूरा चुका दिया हो— उऋण
• जिसका मन जगत से उचट गया हो— उदासीन
• जिसकी दोनोँ मेँ निष्ठा हो— उभयनिष्ठ
• ऊपर की ओर जाने वाला— उर्ध्वगामी
• नदी के निकलने का स्थान— उद्गम
• किसी वस्तु के निर्माण मेँ सहायक साधन— उपकरण
• जो उपासना के योग्य हो— उपास्य
• मरने के बाद सम्पत्ति का मालिक— उत्तराधिकारी/वारिस
• सूर्योदय की लालिमा— उषा
• जिसका ऊपर कथन किया गया हो— उपर्युक्त
• कुँए के पास का वह जल कुंड जिसमेँ पशु पानी पीते हैँ— उबारा
• छोटी–बड़ी वस्तुओँ को उठा ले जाने वाला— उठाईगिरा
• जिस भूमि मेँ कुछ भी पैदा न होता हो— ऊसर
• सूर्यास्त के समय दिखने वाली लालिमा— ऊषा
• विचारोँ का ऐसा प्रवाह जिससे कोई निष्कर्ष न निकले— ऊहापोह
• कई जगह से मिलाकर इकट्ठा किया हुआ— एकीकृत
• सांसारिक वस्तुओँ को प्राप्त करने की इच्छा— एषणा
• वह स्थिति जो अंतिक निर्णायक हो, निश्चित— एकांतिक
• जो व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर हो— ऐच्छिक
• इंद्रियोँ को भ्रमित करने वाला— ऐँद्रजालिक
• लकड़ी या पत्थर का बना पात्र जिसमेँ अन्न कूटा जाता है— ओखली
• साँप–बिच्छू के जहर या भूत–प्रेत के भय को मंत्रोँ से झाड़ने वाला— ओझा
• जो उपनिषदोँ से संबंधित हो— औपनिषदिक
• जो मात्र शिष्टाचार, व्यावहारिकता के लिए हो— औपचारिक
• विवाहिता पत्नी से उत्पन्न संतान— औरस
• हड्डियोँ का ढाँचा— कंकाल
• दो व्यक्तियोँ के बीच परस्पर होने वाली बातचीत— कथोपकथन
• बर्तन बेचने वाला— कसेरा
• जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो— कट्टर
• जिसकी कल्पना न की जा सके— कल्पनातीत
• ऐसा अन्न जो खाने योग्य न हो— कदन्न
• हाथी का बच्चा— कलभ
• कर्म मेँ तत्पर रहने वाला— कर्मठ
• एक के बाद एक— क्रम
• कान मेँ कही जाने वाली बात— कानाबाती/कानाफूसी
• सरकार का वह अंग जो कानून का पालन करता है— कार्यपालिका
• शृंगारिक वासनाओँ के प्रति आकर्षित— कामुक
• जो दुःख या भय से पीड़ित हो— कातर
• अपनी गलती स्वीकार करने वाला— कायल
• दूसरे की हत्या करने वाला— कातिल
• बाल्यावस्था और युवावस्था के बीच की अवस्था— किशोरावस्था
• जो बात पूर्वकाल से लोगोँ मेँ सुनकर प्रचलित हो— किँवदन्ती/जनश्रुति
• अपने काम के बारे मेँ कुछ निश्चय न करने वाला— किँकर्तव्यविमूढ़
• वृक्ष लता आदि से ढका स्थान— कुञ्ज
• जिस लड़के का विवाह न हुआ हो— कुमार
• ऐसी लड़की जिसका विवाह न हुआ हो— कुमारी
• बुरे कार्य करने वाला— कुकर्मी
• बुरे मार्ग पर चलने वाला— कुमार्गी
• जिसकी बुद्धि बहुत तेज हो— कुशाग्रबुद्धि
• जो अच्छे कुल मेँ उत्पन्न हुआ हो— कुलीन
• वह व्यक्ति जिसका ज्ञान अपने ही स्थान तक सीमित हो— कूपमंडूक
• किए गए उपकार को मानने वाला— कृतज्ञ
• किए गए उपकार को न मानने वाला— कृतघ्न
• जो धन को अत्यधिक कंजूसी से खर्च करता हो— कृपण
• जिसने संकल्प कर रखा है— कृतसंकल्प
• जो केन्द्र से हटकर दूर जाता हो— केन्द्रापसारी
• जो केन्द्र की ओर उन्मुख हो— केन्द्राभिसारी/केन्द्राभिमुख
• सर्प के शरीर से निकली हुई खोली— केँचुली
• जो क्षमा किया जा सके— क्षम्य
• जिसका कुछ ही समय मेँ नाश हो जाए— क्षणभंगुर
• जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैँ— क्षितिज
• जो भूख मिटाने के लिए बेचैन हो— क्षुधातुर
• भूख से पीड़ित— क्षुधार्त
• वह स्त्री जिसका पति अन्य स्त्री के साथ रात को रहकर प्रातः लौटे— खंडिता
• आकाशीय पिँडोँ का विवेचन करने वाला— खगोलशास्त्री
• जो व्यक्ति अपने हाथ मेँ तलवार लिए रहता है— खड्गहस्त
• नायक का प्रतिद्वन्द्वी— खलनायक
• जहाँ से गंगा नदी का उद्गम होता है— गंगोत्री
• शरीर का व्यापार करने वाली स्त्री— गणिका
• जो आकाश को छू रहा हो— गगनस्पर्शी
• पहले से चली आ रही परम्परा का अनुपालन करने वाला— गतानुगतिक
• ग्रहण करने योग्य— ग्राह्य
• गीत गाने वाला/वाली— गायक/गायिका
• गीत रचने वाला— गीतकार
• हर पदार्थ को अपनी ओर आकृष्ट करने वाली शक्ति— गुरुत्वाकर्षण
• जो बात गूढ़ (रहस्यपूर्ण) हो— गूढ़ोक्ति
• जीवन का द्वितीय आश्रम— गृहस्थाश्रम
• गायोँ के खुरोँ से उड़ी धूल— गोधूलि
• जब गायेँ जंगल से लौटती हैँ और उनके चलने की धूल आसमान मेँ उड़ती है (दिन और रात्रि के बीच का समय)— गोधूलि बेला
• गायोँ के रहने का स्थान— गौशाला
• घास खोदकर जीवन–निर्वाह करने वाला— घसियारा
• शरीर की हानि करने वाला— घातक
• जो घृणा का पात्र हो— घृणित/घृणास्पद
• जिसके सिर पर चंद्रकला हो (शिव)— चंद्रचूड़/चंद्रशेखर
• वह कृति जिसमेँ गद्य और पद्य दोनोँ होँ— चंपू
• चक्र के रूप मेँ घूमती हुई चलने वाली हवा— चक्रवात
• ब्याज का वह प्रकार जिसमेँ मूल ब्याज पर भी ब्याज लगता है— चक्रवृद्धि ब्याज
• जिसके हाथ मेँ चक्र हो— चक्रपाणि
• चार भुजाओँ वाला— चतुर्भुज
• कार्य करने की इच्छा— चिक्कीर्षा
• लंबे समय तक जीने वाला— चिरंजीवी
• जो चिरकाल से चला आया है— चिरंतन
• जो बहुत समय तक ठहर सके— चिरस्थायी
• चिँता (चिँतन) करने योग्य बात— चिँतनीय/चिँत्य
• जिस पर चिह्न लगाया गया हो— चिह्नित
• चार पैरोँ वाला— चौपाया/चतुष्पद
• जो गुप्त रूप से निवास कर रहा हो— छद्मवासी
• दूसरोँ के केवल दोषोँ को खोजने वाला— छिद्रान्वेषी
• पत्थर को गढ़ने वाला औजार— छैनी
• एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलने वाला— जंगम
• पेट की अग्नि— जठराग्नि
• बारात ठहरने का स्थान— जनवासा
• जो जल बरसाता हो— जलद
• जो जल से उत्पन्न हो— जलज
• वह पहाड़ जिसके मुख से आग निकले— ज्वालामुखी
• जल मेँ रहने वाला जीव— जलचर
• जनता द्वारा चलाया जाने वाला तंत्र— जनतंत्र
• उम्र मेँ बड़ा— ज्येष्ठ
• जो चमत्कारी क्रियाओँ का प्रदर्शन करता हो— जादूगर
• जिसने आत्मा को जीत लिया हो— जितात्मा
• जानने की इच्छा रखने वाला— जिज्ञासु
• इन्द्रियोँ को वश मेँ करने वाला— जितेन्द्रिय
• किसी के जीवन–भर के कार्योँ का विवरण— जीवन–चरित्र
• जो जीतने के योग्य हो— जेय
• जेठ (पति का बड़ा भाई) का पुत्र— जेठोत
• स्त्रियोँ द्वारा अपनी इज्जत बचाने के लिए किया गया सामूहिक अग्नि-प्रवेश— जौहर
• ज्ञान देने वाली— ज्ञानदा
• जो ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता हो— ज्ञानपिपासु
• बहुत गहरा तथा बहुत बड़ा प्राकृतिक जलाशय— झील
• जहाँ सिक्कोँ की ढलाई होती है— टकसाल
• बर्तन बनाने वाला— ठठेरा
• जनता को सूचना देने हेतु बजाया जाने वाला वाद्य— ढिँढोरा
• जो किसी भी गुट मेँ न हो— तटस्थ/निर्गुट
• हल्की नीँद— तन्द्रा
• जो किसी कार्य या चिन्तन मेँ डूबा हो— तल्लीन
• ऋषियोँ के तप करने की भूमि— तपोभूमि
• उसी समय का— तत्कालीन
• वह राजकीय धन जो किसानोँ की सहायता हेतु दिया जाता है— तक़ाबी
• जिसमेँ बाण रखे जाते हैँ— तरकश/तूणीर
• जो चोरी–छिपे माल लाता ले जाता हो— तस्कर
• किसी को पद छोड़ने के लिए लिखा गया पत्र— त्यागपत्र
• तर्क करने वाला व्यक्ति— तार्किक
• दैहिक, दैविक और भौतिक सुख— तापत्रय
• तैर कर पार जाने की इच्छा— तितीर्षा
• ज्ञान मेँ प्रवेश का मार्गदर्शक— तीर्थँकर
• वह व्यक्ति जो छुटकारा दिलाता है/रक्षा करता है— त्राता
• दुखान्त नाटक— त्रासदी
• भूत, वर्तमान और भविष्य को जानने/देखने वाला— त्रिकालज्ञ/त्रिकालदर्शी
• गंगा, जमुना और सरस्वती नदी का संगम— त्रिवेणी
• जिसके तीन आँखे हैँ— त्रिनेत्र
• वह स्थान जो दोनोँ भृकुटिओँ के बीच होता है— त्रिकुटी
• तीन महीने मेँ एक बार— त्रैमासिक
• जो धरती पर निवास करता हो— थलचर
• पति और पत्नी का जोड़ा— दंपती
• दस वर्षोँ की समयावधि— दशक
• गोद लिया हुआ पुत्र— दत्तक
• संकुचित विचार रखने वाला— दक़ियानूस
• धन जो विवाह के समय पुत्री के पिता से प्राप्त हो— दहेज
• जंगल मेँ फैलने वाली आग— दावानल
• दिन भर का कार्यक्रम— दिनचर्या
• दिखने मात्र को अच्छा लगने वाल— दिखावटी
• जो सपना दिन (दिवा) मेँ देखा जाता है— दिवास्वप्न
• दो बार जन्म लेने वाला (ब्राह्मण, पक्षी, दाँत)— द्विज
• जिसने दीक्षा ली हो— दीक्षित
• अनुचित बात के लिए आग्रह— दुराग्रह
• बुरे भाव से की गई संधि— दुरभिसंधि
• वह कार्य जिसको करना कठिन हो— दुष्कर
• दो विभिन्न भाषाएँ जानने वाले व्यक्तियोँ को एक–दूसरे की बात समझाने वाला— दुभाषिया
• जो शीघ्रता से चलता हो— द्रुतगामी
• जिसे कठिनाई से जाना जा सके— दुर्ज्ञेय
• जिसको पकड़ने मेँ कठिनाई हो— दुरभिग्रह/दुग्राह्य
• पति के स्नेह से वंचित स्त्री— दुर्भगा
• जिसे कठिनता से साधा/सिद्ध किया जा सके— दुस्साध्य
• जो कठिनाई से समझ मेँ आता है— दुर्बोध
• वह मार्ग जो चलने मेँ कठिनाई पैदा करता है— दुर्गम
• जिसमेँ खराब आदतेँ होँ— दुर्व्यसनी
• जिसको मापना कठिन हो— दुष्परिमेय
• जिसको जीतना बहुत कठिन हो— दुर्जेय
• वह बच्चा जो अभी माँ के दूध पर निर्भर है— दुधमुँहा
• बुरे भाग्य वाला— दुर्भाग्यशाली
• जिसमेँ दया भावना हो— दयालु
• जिसका आचरण बुरा हो— दुराचारी
• दूध पर आधारित रहने वाला— दुग्धाहारी
• जिसकी प्राप्ति कठिन हो— दुर्लभ
• जिसका दमन करना कठिन हो— दुर्दमनीय
• आगे की बात सोचने वाला व्यक्ति— दूरदर्शी
• देश से द्रोह करने वाला— देशद्रोही
• देह से सम्बन्धित— दैहिक
• देव के द्वारा किया हुआ— दैविक
• प्रतिदिन होने वाला— दैनिक
• धन से सम्पन्न— धनी
• जो धनुष को धारण करता हो— धनुर्धर
• धन की इच्छा रखने वाला— धनेच्छु
• गरीबोँ के लिए दान के रूप मेँ दिया जाने वाला अन्न–धन आदि— धर्मादा
• जिसकी धर्म मेँ निष्ठा हो— धर्मनिष्ठा
• किसी के पास रखी हुई दूसरे की वस्तु— धरोहर/थाती
• मछली पकड़कर आजीविका चलाने वाला— धीवर
• जो धीरज रखता हो— धीर
• धुरी को धारण करने वाला अर्थात् आधारभूत कार्योँ मेँ प्रवीण— धुरंधर
• अपने स्थान पर अटल रहने वाला— ध्रुव
• ध्यान करने योग्य अथवा लक्ष्य— ध्येय
• ध्यान करने वाला— ध्याता/ध्यानी
• जिसका जन्म अभी–अभी हुआ हो— नवजात
• गाय को दुहते समय बछड़े का गला बाँधने की रस्सी जो गाय के पैरोँ मेँ बाँधी जाती है— नवि
• जो नया–नया आया है— नवागंतुक
• जिसका उदय हाल ही मेँ हुआ है— नवोदित
• जो आकाश मेँ विचरण करता है— नभचर
• सम्मान मेँ दी जाने वाली भेँट— नजराना
• जिस स्त्री का विवाह अभी हुआ हो— नवोढ़ा
• ईश्वर मेँ विश्वास न रखने वाला— नास्तिक
• पुराना घाव जो रिसता रहता हो— नासूर
• जो नष्ट होने वाला हो— नाशवान/नश्वर
• नरक के योग्य— नारकीय
• वह स्थान या दुकान जहाँ हजामत बनाई जाती है— नापितशाला
• किसी से भी न डरने वाला— निडर/निर्भीक
• जो कपट से रहित है— निष्कपट
• जो पढ़ना–लिखना न जानता हो— निरक्षर
• जिसका कोई अर्थ न हो— निरर्थक
• जिसे कोई इच्छा न हो— निस्पृह
• रात मेँ विचरण करने वाला— निशाचर
• जिसका आकार न हो— निराकार
• केवल शाक, फल एवं फूल खाने वाला या जो मांस न खाता हो— निरामिष
• जिससे किसी प्रकार की हानि न हो— निरापद
• जिसके अवयव न हो— निरवयव
• बिना भोजन (आहार) के— निराहार
• जो यह मानता है कि संसार मेँ कुछ भी अच्छा होने की आशा नहीँ है— निराशावादी
• जो उत्तर न दे सके— निरुत्तर
• जिसके कोई दाग/कलंक न हो— निष्कलंक
• जिसमेँ कोई कंटक/अड़चन न हो— निष्कंटक
• जिसका अपना कोई शुल्क न हो— निःशुल्क
• जिसके संतान न हो— निःसंतान
• जिसका अपना कोई स्वार्थ न हो— निस्स्वार्थ
• व्यापारिक वस्तुओँ को किसी दूसरे देश मेँ भेजने का कार्य— निर्यात
• जिसको देश से निकाल दिया गया हो— निर्वासित
• बिना किसी बाधा के— निर्बाध
• जो ममत्व से रहित हो— निर्मम
• जिसकी किसी से उपमा/तुलना न दी जा सके— निरुपम
• जो निर्णय करने वाला हो— निर्णायक
• जिसे किसी चीज की लालसा न हो— निष्काम
• जिसमेँ किसी बात का विवाद न हो— निर्विवाद
• जो निन्दा करने योग्य हो— निन्दनीय
• जिसमेँ किसी प्रकार का विकार उत्पन्न न हो— निर्विकार
• जो लज्जा से रहित हो— निर्लज्ज
• जिसको भय न हो— निर्भय
• जो नीति जानता हो— नीतिज्ञ
• रंगमंच पर पर्दे के पीछे का स्थान— नेपथ्य
• आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत करने वाला— नैष्ठिक
• जो नीति के अनुकूल हो— नैतिक
• जो न्यायशास्त्र की बात जानता हो— नैयायिक
• घृत, दुग्ध, दधि, शहद व शक्कर से बनने वाला पदार्थ— पंचामृत
• पक्षपात करने वाला— पक्षपाती
• पदार्थ का सबसे छोटा कण— परमाणु
• जितने की आवश्यकता हो उतना— पर्याप्त
• महीने के दो पक्षोँ मेँ से एक— पखवाड़ा
• नाटक का पर्दा गिरना— पटाक्षेप/यवनिकापतन
• अपनी गलती के लिए किया हुआ दुःख— पश्चाताप
• केवल अपने पति मेँ अनुराग रखने वाली स्त्री— पतिव्रता
• पति को चुनने की इच्छा वाली कन्या— पतिम्वरा
• उपाय/मार्ग बताने वाला— पथ-प्रदर्शक/मार्गदर्शक
• अपने मार्ग से च्युत/भटका हुआ— पथभ्रष्ट
• अपने पद से हटाया हुआ— पदच्युत
• जो भोजन रोगी के लिए उचित है— पथ्य
• घूमने–फिरने/देश–देशान्तर भ्रमण करने वाला यात्री— पर्यटक
• केवल दूध पर निर्भर रहने वाला— पयोहारी
• दूसरोँ पर निर्भर रहने वाला— पराश्रित/पराश्रयी
• परपुरुष से प्रेम करने वाली स्त्री— परकीया
• पति द्वारा छोड़ दी गई पत्नी— परित्यका
• दूसरे का मुँह ताकने वाला— परमुखापेक्षी
• जो पहनने लायक हो— परिधेय
• जो मापा जा सके— परिमेय
• जो सदा बदलता रहे— परिवर्तनशील
• जो आँखोँ के सामने न हो— परोक्ष/अप्रत्यक्ष
• दूसरे पर उपकार करने वाला— परोपकारी/परमार्थी
• जो पूरी तरह से पक चुका हो/पारंगत हो चुका हो— परिपक्व
• पर्दे के अंदर रहने वाली— पर्दानशीन
• प्रशंसा करने योग्य— प्रशंसनीय
• किसी प्रश्न का तत्काल उत्तर दे सकने वाली मति— प्रत्युत्पन्नमति
• किसी वाद का विरोध करने वाला— प्रतिवादी
• शरणागत की रक्षा करने वाला— प्रणतपाल
• वह ध्वनि जो कहीँ से टकराकर आए— प्रतिध्वनि
• जो किसी मत को सर्वप्रथम चलाता है— प्रवर्तक
• वह स्त्री जिसके हाल ही मेँ शिशु उत्पन्न हुआ हो— प्रसूता
• वह आकृति जो किसी शीशे, जल आदि मेँ दिखाई दे— प्रतिबिम्ब
• हास्य रस से परिपूर्ण नाटिका— प्रहसन
• प्रमाण द्वारा सिद्ध करने योग्य— प्रमेय
• संध्या के बाद व रात्रि होने के पूर्व का समय— प्रदोष/पूर्वरात्र
• ज्ञान नेत्र से देखने वाला अंधा व्यक्ति— प्रज्ञाचक्षु
• सभा मेँ विचारार्थ प्रस्तुत बात— प्रस्ताव
• हाथ से लिखी गई पुस्तक— पाण्डुलिपि
• किसी परिश्रम के बदले मिलने वाली राशि— पारिश्रमिक
• जिसका स्वभाव पशुओँ के समान हो— पाशविक
• महीने के प्रत्येक पक्ष से संबंधित— पाक्षिक
• किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता— पारंगत
• जिसमेँ से आर–पार देखा जा सकता हो— पारदर्शी
• जो परलोक से संबंधित हो— पारलौकिक
• मार्ग मेँ खाने के लिए भोजन— पाथेय
• जिसका संबंध पृथ्वी से हो— पार्थिव
• ज्ञात इतिहास के पूर्व समय का— प्रागैतिहासिक
• स्थल का वह भाग जिसके तीन ओर पानी हो— प्रायद्वीप
• जिसको देखकर अच्छा लगे— प्रियदर्शी
• पीने की इच्छा रखने वाला— पिपासु
• बार–बार कही गई बात— पुनरुक्ति
• जिसका पुनः जन्म हुआ हो— पुनर्जन्म
• पहले किया गया कथन— पूर्वोक्त
• दोपहर से पहले का समय— पूर्वाह्न
• प्राचीन इतिहास का ज्ञाता— पुरातत्त्ववेत्ता
• पीने योग्य पदार्थ— पेय
• पिता एवं प्रपिताओँ से संबंधित— पैतृक
• जो सम्पत्ति पिता से प्राप्त हो— पैतृक सम्पत्ति
• फटे–पुराने कपड़े पहनने वाला— फटीचर
• केवल फलोँ पर निर्वाह करने वाला— फलाहारी
• फल की इच्छा रखने वाला— फलेच्छु
• बुरी किस्मत वाला— बदकिस्मत
• बुरे मिजाज (आचरण) वाला— बदमिजाज
• सूर्योदय से पहले दो घड़ी तक का समय— ब्रह्ममुहूर्त
• जीवन का प्रथम आश्रम— ब्रह्मचर्याश्रम
• बहुत विषयोँ का जानकार— बहुज्ञ
• जिसने सुनकर अनेक विषयोँ का ज्ञान प्राप्त किया हो— बहुश्रुत
• समुद्र मेँ लगने वाली आग— बड़वानल
• जो अनेक रूप धारण करता हो— बहुरूपिया
• बहुत से देवताओँ के अस्तित्व मेँ विश्वास करने वाला मत— बहुदेववाद
• काफी अधिक कीमत का— बहुमूल्य
• अनेक भाषाओँ को जानने वाला— बहुभाषाविद्
• रात का भोजन— ब्यालू/रात्रिभोज
• जिस स्त्री के कोई संतान नहीँ हुई हो— बाँझ
• खाने का इच्छुक— बुबुक्षु

• किसी भवनादि के खंडित होने के बाद बचे भाग— भग्नावशेष
• भय के कारण बेचैन— भयाकुल
• भाग्य पर भरोसा रखने वाला— भाग्यवादी
• जो भाग्य का धनी हो— भाग्यवान
• दीवारोँ पर बने हुए चित्र— भित्तिचित्र
• जो पृथ्वी के भीतर का ज्ञान रखता हो— भूगर्भवेता
• धरती पर चलने वाला जन्तु— भूचर
• जो पहले था या हुआ— भूतपूर्व
• धरती को धारण करने वाला पर्वत— भूधर
• औषधियोँ का जानकार— भेषज
• प्रातःकाल गाया जाने वाला राग— भैरवी
• सूर्योदय के पहले का समय— भोर
• भूगोल से संबंधित— भौगोलिक
• फूलोँ का रस— मकरंद
• दोपहर का समय— मध्याह्न
• सर्दी मेँ होने वाली वर्षा— महावट/मावठ
• हाथी को हाँकने वाला— महावत
• सुख एवं दुःख मेँ एक समान रहने वाला— मनस्वी
• जिसकी आँखेँ मगर जैसी हो— मकराक्ष
• किसी मत का अनुसरण करने वाला— मतानुयायी
• दो पक्षोँ के बीच मेँ पड़कर फैसला कराने वाला— मखत्राता/यज्ञरक्षक
• जो बहुत ऊँची अकांक्षा/इच्छा रखता हो— महत्वाकांक्षी
• जिसकी बुद्धि कमजोर है— मन्दबुद्धि/मतिमान्द्य
• जिसकी आत्मा महान हो— महात्मा
• किसी चीज के मर्म का ज्ञाता— मर्मज्ञ
• मध्यरात्रि का समय— मध्यरात्र
• मन का असीम दुःख— मनस्ताप
• जहाँ केवल रेत ही रेत हो— मरुस्थल
• माँस आदि खाने वाला— माँसाहारी
• माह मेँ होने वाला— मासिक
• माता की हत्या करने वाला— मातृहंता
• कम खाने वाला— मिताहारी
• कम खर्च करने वाला— मितव्ययी
• जो असत्य बोलता हो— मिथ्यावादी
• जिस स्त्री की आँखेँ मछली के समान होँ— मीनाक्षी
• थोड़ा खिला हुआ फूल— मुकुल
• शुभ कार्य हेतु निकाला गया समय— मुहूर्त
• दिल खोलकर कहना— मुक्तकंठ
• मुद्रा का अधिक चलन/प्रसार— मुद्रास्फीति
• मरणासन्न अवस्थावाला/शक्ति के अनुसार— मुमूषु
• मरने की इच्छा— मुमूर्षा
• मोक्ष की इच्छा रखने वाला— मुमुक्षु
• चुपचाप देखने वाला— मूकदर्शक
• हरिण के नेत्रोँ जैसी आँखोँ वाली— मृगनयनी
• जो मीठी वाणी बोलता हो— मृदुभाषी
• जिसने मृत्यु को जीत लिया हो— मृत्युंजय
• कमल की डंडी— मृणाल
• जो रचना किसी व्यक्ति की अपनी स्वयं की हो एवं नई हो— मौलिक
• जुड़वाँ भाई या बहन— यमल/यमला
• रंगमंच का परदा— यवनिका
• शक्ति के अनुसार करना— यथाशक्ति
• जैसा चाहिए, उचित हो वैसा— यथोचित
• जो यंत्र से संबंधित हो— यांत्रिक
• जब तक जीवन रहे— यावज्जीवन/जीवनपर्यँत
• घूम–घूमकर जीवन बिताने वाला— यायावर
• समाज को नई दिशा देकर नए युग की शुरुआत करने वाला— युगप्रवर्तक
• अपने युग का ज्ञान रखने वाला— युगद्रष्टा
• यज्ञ–स्थान पर स्थापित किया जाने वाला खंभा— यूप
• रात को कुछ भी दिखाई नहीँ देने वाला रोग— रतौँधी
• किसानोँ से भूमि कर लेने वाला सरकारी विभाग— राजस्व विभाग
• राज्य द्वारा आधिकारिक रूप से प्रकाशित होने वाला पत्र— राजपत्र(गजट)
• जिसके नीचे रेखाएँ लगाई गई होँ— रेखांकित
• प्रेम, आनन्द, भय आदि से रोँगटे खड़े होने की दशा— रोमांच
• प्रसन्नता से जिसके रोँगटे खड़े हो गए होँ— रोमांचित
• जो लकड़ी काटकर जीवन बिताता हो— लकड़हारा
• जिसका वंश लुप्त हो गया हो— लुप्तवंश
• लोभी स्वभाव वाला— लुब्ध/लोभी
• जिसे देखकर रोँगटे खड़े होँ जाएँ— लोमहर्षक
• वंश परम्परा के अनुसार— वंशानुगत
• जिसके हाथ मेँ वज्र हो— वज्रपाणि
• बहुत ही कठोर और बड़ा आघात— वज्राघात
• बचपन और यौवन के मध्य की उम्र— वयसंधि
• जिसका वर्णन न किया जा सके— वर्णनातीत
• अधिक बोलने वाला— वाचाल
• सन्तान के प्रति प्रेम— वात्सल्य
• मुकदमा दायर करने वाला— वादी
• भाषण देने मेँ चतुर— वाग्मी
• जिसका वाणी पर पूर्ण अधिकार हो— वाचस्पति
• सामाजिक मानमर्यादा के विपरीत कार्य करने वाला— वामाचारी
• गृह–निर्माण संबंधी विज्ञान— वास्तुविज्ञान
• बाहर के तापमान का असर रोकने हेतु की जाने वाली व्यवस्था— वातानुकूलन
• वह कन्या जिसके विवाह करने का वचन दे दिया गया हो— वाग्दता
• जिसमेँ विष मिला हुआ हो— विषाक्त
• जिस पर विश्वास किया जा सके— विश्वस्त
• जिस विषय मेँ निश्चित मत न हो— विवादास्पद
• जिसकी पत्नी मर चुकी हो— विधुर
• स्त्री जिसका पति मर गया हो— विधवा
• सौतेली माँ— विमाता
• जो दूसरी जाति का हो— विजातीय
• जिस पर अभी विचार चल रहा हो— विचाराधीन
• वह स्त्री जो पढ़ी–लिखी व ज्ञानी हो— विदुषी
• अपना हित–अहित सोचने मेँ समर्थ— विवेकी
• अपनी जगह से अलग किया हुआ— विस्थापित
• जिसके अंदर कोई विकार आ गया हो— विकृत
• जो अपने धर्म के विरुद्ध कार्य करने वाला हो— विधर्मी
• जो विधि/कानून के अनुसार सही हो— विधिवत्/वैध
• किसी विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला— विशेषज्ञ
• विनाश करने वाला— विध्वंसक
• जिसके शरीर के भाग मेँ कमी हो— विकलांग
• जिसे व्याकरण का पूरा ज्ञान हो— वैयाकरण
• सौ वर्षोँ का समूह— शताब्दी
• जो शरण मेँ आ गया हो— शरणागत
• शरण की इच्छा रखने वाला— शरणार्थी
• हाथ मेँ पकड़कर चलाया जाने वाला हथियार जैसे तलवार— शस्त्र
• सौ वस्तुओँ का संग्रह— शतक
• जो सौ बातेँ एक साथ याद रख सकता है— शतावधानी
• जिसके स्मरण मात्र से ही शत्रु का नाश हो/शत्रु का नाश करने वाला— शत्रुघ्न
• जिसका कोई आदि और अंत न हो— शाश्वत
• शाक, फल और फूल खाने वाला— शाकाहारी/निरामिष
• जिस शब्द के दो अर्थ होँ— शिलष्ट
• शिव का आलय (स्थान)— शिवालय
• शुभ चाहने वाला— शुभेच्छु/शुभाकांक्षी
• अनुसंधान के लिए दिया जाने वाला अनुदान— शोधवृत्ति
• जो सुनने योग्य हो— श्रव्य/श्रवणीय
• जिसमेँ श्रद्धा भावना हो— श्रद्धालु
• पति/पत्नी का पिता— श्वसुर
• पति/पत्नी की माता— श्वश्रू (सास)
• पति/पत्नी का भाई— श्वशुर्य (साला)
• जिसके छह कोण होँ— षट्कोण
• जिसके छह पद होँ (भौँरा)— षट्पद
• छह–छह माह मेँ होने वाला— षण्मासिक
• सोलह वर्ष की अवस्था वाली स्त्री— षोडशी
• दो नदियोँ के मिलने का स्थान— संगम
• इन्द्रियोँ को वश मेँ रखने वाला— संयमी
• जो समाचार भेजता है— संवाददाता
• एक ही माँ से उत्पन्न भाई/बहन— सहोदर/सहोदरा
• सात सौ दोहोँ का समूह— सतसई
• जो गुण–दोषोँ का विवेचन करता हो— समालोचक
• सब कुछ जानने वाला— सर्वज्ञ
• जो समान आयु का हो— समवयस्क
• जो सभी को समान दृष्टि से देखता हो— समदर्शी
• साहित्यिक गुण–दोषोँ की विवेचना करने वाला— समीक्षक
• वह स्त्री जिसका पति जीवित हो— सधवा
• जो सदा से चला आ रहा हो— सनातन
• अन्य लोगोँ के साथ गाया जाने वाला गीत— सहगान
• उसी समय मेँ होने वाला/रहने वाला— समकालीन
• साथ पढ़ने वाला— सहपाठी
• जो दूसरोँ की बात सहन कर सकता हो— सहिष्णु
• छूत या संसर्ग से फैलने वाला रोग— संक्रामक
• जो एक ही जाति के होँ— सजातीय
• गीतोँ की धुन बनाने वाला— संगीतकार
• रस पूर्ण— सरस
• साथ काम करने वाला— सहकर्मी
• सबको प्रिय लगने वाला— सर्वप्रिय
• सद् आचरण रखने वाला— सदाचारी
• ज्ञान देने वाली देवी— सरस्वती
• जो अपनी पत्नी के साथ हो— सपत्नीक
• सत्य के लिए आग्रह— सत्याग्रह
• शर्तोँ के साथ काम करने का समझौता— संविदा
• जो सत्य बोलता हो— सत्यवादी/सत्यभाषी
• संहार करने वाला/मारने वाला— संहारक
• जिसका चरित्र अच्छा हो— सच्चरित्र
• न बहुत ठण्डा न बहुत गर्म— समशीतोष्ण
• जो सब कुछ खाता हो— सर्वभक्षी
• सब कुछ पाने वाला— सर्वलब्ध
• जो समस्त देशोँ/स्थानोँ से संबंधित हो— सार्वभौमिक
• रथ हाँकने वाला— सारथि
• जो पढ़ना–लिखना जानता है— साक्षर
• सप्ताह मेँ एक बार होने वाला— साप्ताहिक
• सभी लोगोँ के लिए— सार्वजनिक
• आकार से युक्त (मूर्तिमान)— साकार
• जो सब जगह विद्यमान हो— सर्वव्यापी
• जिसकी ग्रीवा सुंदर हो— सुग्रीव
• जो सोया हुआ हो— सुषुप्त
• सधवा रहने की दशा या अवस्था— सुहाग
• पसीने से उत्पन्न जीव (जैसे जूँ आदि)— स्वेदज
• किसी संस्था या व्यक्ति के पचास वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य मेँ होने वाला उत्सव— स्वर्ण जयंती
• स्त्री के स्वभाव जैसा— स्त्रैण
• गतिहीन रहने वाला— स्थावर
• जिसको सिद्ध करने के लिए अन्य प्रमाणोँ की जरूरत न हो— स्वयंसिद्ध/स्वतः प्रमाण
• अपनी ही इच्छानुसार पति का वरण करने वाली— स्वयंवरा
• जो स्वयं भोजन बनाकर खाता हो— स्वयंपाकी
• जो अपने ही अधीन हो— स्वाधीन
• जो अपना ही हित सोचता हो— स्वार्थी
• सौ वस्तुओँ का संग्रह— सैँकड़ा/शतक
• हमला करने वाला— हमलावर
• सेना का वह भाग जो सबसे आगे हो— हरावल
• हवन से संबंधित सामग्री— हवि
• ऐसा बयान जो शपथ सहित दिया गया हो— हलफनामा
• दूसरे के काम मेँ दखल देना— हस्तक्षेप
• ऐसा दुःख जो हृदय को चीर डाले— हृदय विदारक
• हृदय से संबंधित— हार्दिक
• जिस पर हँसी आती हो/जो हँसी का पात्र हो— हास्यास्पद
• किसी संस्था या व्यक्ति के साठ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मेँ होने वाला उत्सव— हीरक जयंती
• जो बात हृदय मेँ अच्छी तरह बैठ गई हो— हृदयंगम
• दूसरोँ का हित चाहने वाला— हितैषी
• न टलने वाली घटना/अवश्यंभावी घटना/भाग्याधीन— होनहार
• यज्ञ मेँ आहुति देने वाला— होमाग्नि

   विभिन्न प्रकार की इच्छाएँ:
• किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा— अभीप्सा
• सांसारिक वस्तुओँ को प्राप्त करने की इच्छा— एषणा
• कार्य करने की इच्छा— चिकीर्षा
• जानने की इच्छा— जिज्ञासा
• जीतने, दमन करने की इच्छा— जिगीषा
• किसी को जीत लेने की इच्छा रखने वाला— जिगीषु
• किसी को मारने की इच्छा— जिघांसा
• भोजन करने की इच्छा— जिघत्सा
• ग्रहण करने, पकड़ने की इच्छा— जिघृक्षा
• जिँदा रहने की इच्छा— जिजीविषा
• ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा— ज्ञानपिपासा
• तैर कर पार जाने की इच्छा— तितीर्षा
• धन की इच्छा रखने वाला— धनेच्छु
• पीने की इच्छा रखने वाला— पिपासु
• फल की इच्छा रखने वाला— फलेच्छु
• खाने की इच्छा— बुभुक्षा
• खाने का इच्छुक— बुभुक्षु
• जो अत्यधिक भूखा हो— बुभुक्षित
• मोक्ष की इच्छा रखने वाला— मुमुक्षु
• मरने की इच्छा— मुमुर्षा
• मरणासन्न अवस्था वाला/मरने को इच्छुक— मुमूर्षू
• युद्ध की इच्छा रखने वाला— युयुत्सु
• युद्ध करने की इच्छा— युयुत्सा
• शुभ चाहने वाला— शुभेच्छु
• हित चाहने वाला— हितैषी

rayee rajkumar

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Sep 24, 2016, 9:59:32 AM9/24/16
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rayee rajkumar

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rayee rajkumar

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rayee rajkumar

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All the Hindi Teachers of Dakshina Kannada are requested to attend September 29th State level Hindi Day. Everyone will be given OOD. Utilise it and made Hindi Day a grand success. Reply to Ph: 9008238599 before 27/9/16.

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1. Webpage for this HindiSTF is : https://groups.google.com/d/forum/hindistf
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2. For Ubuntu 14.04 installation, visit http://karnatakaeducation.org.in/KOER/en/index.php/Kalpavriksha (It has Hindi interface also)
 
3. For doubts on Ubuntu and other public software, visit http://karnatakaeducation.org.in/KOER/en/index.php/Frequently_Asked_Questions
 
4. If a teacher wants to join STF, visit http://karnatakaeducation.org.in/KOER/en/index.php/Become_a_STF_groups_member
 
5. Are you using pirated software? Use Sarvajanika Tantramsha, see http://karnatakaeducation.org.in/KOER/en/index.php/Why_public_software
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Hindi me five periods leneka order bejiye  teacher attendance ka order bejiye sir

shahida khanum

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On 2 Oct 2016 16:48, "Shreenivas Naik" <shreenivasnai...@gmail.com> wrote:

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के यहां हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की मां का नाम 'रामदुलारी' था।

परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से 'नन्हे' कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हे अठारह महीने के हुए तब दुर्भाग्य से उनके पिता का निधन हो गया। उसकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हे की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी मां का बहुत सहयोग किया। 

ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अनपे नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया।

इसके पश्चात 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम का पर्याय ही बन गया। बाद के दिनों में "मरो नहीं, मारो" का नारा लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा 'जय जवान-जय किसान' तो आज भी लोगों की जुबान पर है।

भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक कार्यकर्ता लाल बहादुर थोड़े समय (1921) के लिए जेल गए। रिहा होने पर उन्होंने एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ (वर्तमान में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में अध्ययन किया और स्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का विद्वान) की उपाधि पाई। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। 

शास्त्रीजी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।
शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तमदास टंडन और पण्डित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। 

इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरंतर बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियां चढ़ते हुए वह नेहरूजी के मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के प्रमुख पद तक जा पहुंचे। 

1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तीन साल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पड़ने पर उन्हें बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंत्री बने।

उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धांतिक न होकर पूरी तरह से व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थी। निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा।

भारत की आर्थिक समस्याओं से प्रभावी ढंग से न निपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना भी हुई,लेकिन जम्मू-कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए युद्ध में उनके द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के लिए उनकी बहुत प्रशंसा हुई। 

ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध न करने की ताशकंद घोषणा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें मरणोपरान्त वर्ष 1966 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। 

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mehaboob...@gmail.com

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Oct 9, 2016, 12:27:46 PM10/9/16
to NEEHA SSA, Tasleema F, hindistf
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Uma Shivapujimath

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Oct 10, 2016, 5:54:32 AM10/10/16
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Zeenath Unnisa

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Oct 12, 2016, 4:47:40 AM10/12/16
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mohammadrafi tawargeri

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Oct 12, 2016, 12:33:45 PM10/12/16
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Bahoth khoob
On Oct 12, 2016 2:17 PM, "Zeenath Unnisa"
<zeenat...@gmail.com> wrote:
>
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> On Mon, Oct 10, 2016 at 3:24 PM, Uma Shivapujimath <umaha...@gmail.com> wrote:
>>
>> Sir pls send it in Pdf
>>
>> On Oct 9, 2016 9:57 PM, "mehaboob...@gmail.com" <mehaboob...@gmail.com> wrote:
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jyothisony26 soni

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All sub 1 question email address bejiye

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sujatha sapare

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Fa3 fa4 question papers

vijayalaxmi Sutar

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sanjeevkumar Kaneri

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2016-10-03 12:04 GMT+05:30 shahida khanum <khanu...@gmail.com>:

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