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यतो धर्म: ततो जय: राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका
विद्यालय प्रार्थना में वन्दे
मातरम - कलकत्ता स्थित निवेदिता कन्या पाठशाला सम्पूर्ण
देश में राष्ट्रीयता का विरला उदारहण थी | निवेदिता ने न केवल
सरकारी अनुदान लेने से इन्कार किया वरन अपनी पाठशाला की दैनिक
प्रार्थना ' वन्दे मातरम ' गाने कीशुरुआत कर दी, जबकि
सार्वजानिक रूप में 'वन्दे मातरम ' गाने पर उन दिनों पाबन्दी
लगी हुई थी |
क्रांतिकारियों का नेतृत्व - सन 1902 में
जब वायसराय लॉर्ड कर्जन का अनुपयुक्त राष्ट्रीय शिक्षा
व्यवस्था थोपने के लिए विश्वविद्यालय कमीशन बनाया गया तब
निवेदिता ने इसका पुरजोर विरोध किया | उसी समय वे क्रांतिकारी
ब्रह्मबंधव उपाध्याय के सम्पर्क में आयीं | श्री अरविन्द ने
बंगाल आने के बाद एक पांच सदस्यीय क्रांतिकारी दल बनाया, जिसमे
उनके साथ सुरेन्द्रनाथ टैगोर, सी. आर.दास, यतीन्द्र बेनर्जी
तथा भगिनी निवेदिता शामिल थे | निवेदिता दल की सचिव की तरह
काम करती थीं | 1907 में निवेदिता जब इंग्लैंड और अमेरिका के
प्रवास पर गयी तब वहां भूपेन्द्रनाथ दत्त, तारक नाथ दत्त जैसे
अनेक क्रांतिकारियों से मिलकर आजादी के आन्दोलन में सहायता
करती रहीं तथा उन्होंने क्रांतिकारियों के पुनर्वास एवं
आन्दोलन के लिए धन एकत्र करने में भी बड़ा योगदान दिया |
बंग-भंग
का विरोध - 1905 में जब ब्रिटिश सर्कार ने बंगाल के
विभाजन का फैसला किया तो पूरा देश इसके विरोध में उठ खड़ा हुआ
था | तब निवेदिता गंभीर रूप से बीमार थीं, फिर भी उन्होंने
प्रसिद्ध क्रांतिकारी आनन्द मोहन बोस के साथ मिलकर बंग-भंग का
प्रबल विरोध किया |
क्रांतिकारी पत्रकार - 1906 से
1907 की अवधि में भगिनी निवेदिता ' प्रबुद्ध भारत' में
संपादकीय लिखने के साथ-साथ अनेक अखबारों में क्रांतिकारियों के
पक्ष में लेख किखा करतीं थीं | अरविन्द,उनके छोटे भाई
बारिन्द्र घोष एवं स्वामी विवेकानन्द के छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ
दत्त द्वारा शुरू किए गए साप्ताहिक पत्र 'युगान्तर' जो गोपनीय
रुप से क्रांतिकारी आन्दोलन का प्रमुख साधन था, में भी
निवेदिता लिखतीं | बाद में तो जब भूपेन्द्रनाथ दत्त को जेल हो
गई तब निवेदिता ने ही 'युगान्तर' को जारी रखने का बीड़ा उठाया
था | ऐसे अनेक प्रकार से निवेदिता राष्ट्रीय आन्दोलन से सक्रिय
रूप से जुड़ी रहीं तथा उन्होंने अनेक क्रांतिकारियों को आजादी
की लड़ाई के लिए प्रेरणा भी दी |